Friday, 7 November 2025

Purpel Fest 2025



बाधाएं आती हैं आएं


घिरें प्रलय की घोर घटाएं,


पावों के नीचे अंगारे,


सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,


निज हाथों में हंसते-हंसते,


आग लगाकर जलना होगा.


कदम मिलाकर चलना होगा.”

साथियों , उपरोक्त पंक्तियों को शब्दों से बाहर हकीकत की दुनिया में हमने जीवंत होते हुए देखा। गोआ परपल फेस्टिवल में जिंदगी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए ऐसे लोगों से मिले जिनके हौसलों को बाधाओं की आंधियां भी रोक न सकीं। आज जहां हम छोटी-छोटी परेशानियों में इतने परेशान हो जाते हैं कि अवसाद में चले जाते हैं। कुछ लोग तो अवसाद में आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे में हमें उन लोगों से जरूर मिलना चाहिये जो अनेक शारीरिक परेशानियों के बावजूद जिंदगी को आशावादी नजरिये से देखते हैं और खुश होकर आगे बढ रहे हैं। कहते हैं, अनुकूलता-प्रतिकूलता से मिलकर ही जीवन बनता है और संसार चलता है। सामान्य इंसान की तरह अवतारी महापुरूषों का जीवन भी अनगिनत परिक्षाओं से गुजरा है।

साथियों, गोआ में 9 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक परपल फेस्टिवल का आयोजन हुआ था। जिसका आगाज “समावेशी, प्रतिभा और सशक्तीकरण” थीम से हुआ। इसमें दिव्यांगता की सूची में शामिल सभी 21 श्रेंणियों के लोग उपस्थित थे। उनमें से कई लोगों ने अपनी सशक्त प्रतिभा से सभी को प्रेरित किया। मुझे भी अनेक लोगों से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ। दिव्यांगजन द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखकर सब मंत्र मुग्ध हो गये। इस कार्यक्रम में फिल्म सितारे जमीं के कलाकार भी उपस्थित थे। दिव्यांग लोगों के लिए अनेक खेलों का भी आयोजन था। गोआ सरकार ने समुंद्र में होने वाले खेलों का भी विशेष आयोजन किया था, जैसे- स्कूबा डाइविंग, पैरासेलिंग, जेट स्किनिगं इत्यादि। इसके अतिरिक्त अनेक विषयों पर गोष्ठी का आयोजन, हुआ। गोआ की प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक भ्रमण की भी विशेष व्यवस्था सभी दिव्यांग लोगों की सुविधानुसार थी।

हर तरफ रात में सकारात्मक संदेश देते हुए तारों जैसा नजारा था, शारीरिक परेशानियों के बावजूद क्रूज में जाने का उत्साह हो या नृत्य करने का जोश पूरा माहौल उल्लासमय था। वहां जिनसे भी मेरी बात हुई उन सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला। उन सबमें एक बात कॉमन थी कि, जीवन जितना भी है जीवन को खुश होकर जीयो, कमियां तो सबके जीवन में हैं, उसको गिनते रहेंगे तो जीवन का आनंद कब लेंगे।

दोस्तों, सत्य भी यही है कि, विपरीत परिस्थितियों में भी अपार संभावनाएं छुपी हैं। अल्फ्रेड एडलर के अनुसार, “मानवीय व्यक्तित्व के विकास में कठिनाइंयों एवं प्रतिकूलताओं का होना आवश्यक है। ‘लाइफ शुड मीन टू यु’ पुस्तक में उन्होने लिखा है कि, यदि हम ऐसे व्यक्ति अथवा मानव समाज की कल्पना करें कि वे इस स्थिती में पहुँच गये हैं, जहाँ कोई कठिनाई न हो तो ऐसे वातावरण में मानव विकास रुक जायेगा।“

दोस्तों, इस फेस्टीवल में सभी दिवयांग लोगों के लिए अनेक नये-नये उपकरण देखने को मिले। मेरा कार्यक्षेत्र दृष्टीदिव्यांग लोगों के लिए है इसलिए पूरा फोकस उनसे सम्बंधित उपकरण पर अधिक रहा। दृष्टीबाधित लोगों के लिए ऐसे स्कैनर थे जिससे वो समाचार पत्र हो या कोई भी किताब आराम मे पढ सकते हैं। परंतु दुविधा ये है कि इन उपकरणों की किमत आम लोगों की पहुंच से बहुत दूर है। एक कंपनी ऐसी भी मिली जो सभी दिव्यांगता के अनुकूल कपङे बना रही है। दृष्टीदिव्यांग लोग छूकर कपङे का टेक्सचर एवं डिजाइन बता सकते हैं। कपङे पर बारकोड लगा रहे जिसको स्कैन करके उस परिधान का पूरा विवरण मिल जायेगा। बार कोड से तो और भी बहुत सुविधा का पता चला। सौरभ यादव का पिकस्ट्री एआई ऐसा नया उद्यम है जो फ़ोटो को दृष्टीबाधित लोगों के लिए ऑडियो में बदल देता है। जिससे तस्वीर नाम, रिश्ते, घटनाएँ और माहौल के साथ सुनाई देती है। वहीं बनारस के उद्यमी सत्यप्रकाश मालवीय का कार्य भी प्रभावशाली दिखा। वो स्वयं दृष्टीबाधित हैं, उनका अद्वितीय मसाले का व्यपार केवल स्वाद नहीं, सम्मान की कहानी कहता है। उनका उद्देश्य है- काशी की विधवा महिलाओं और दृष्टिबाधित साथियों को रोज़गार देना, जिससे उनका जीवन भी सम्मान से व्यतीत हो। नई टेक्नोलॉजी को अपने साथ लेकर निर्माता आनंद विजय की फ्लॉप फ़िल्म्स (Flop Films) एक ऐसी एजेंसी है जो वीडियो कैम्पेन, विज्ञापन फ़िल्में और मनोरंजन सामग्री तैयार करती है। यह सम्भवतः दुनिया की एकमात्र क्रिएटिव एजेंसी है जिसका नेतृत्व दृष्टीबाधित निर्माता द्वारा किया जा रहा है।

मित्रों, यहां ये बताना भी आवश्यक है कि, दिव्यागंता की सूची में 21 प्रकार हैं- अंधापन:कम दृष्टि,कुष्ठ रोग ,श्रवण-बाधित, चलने-फिरने में अक्षमता, बौनापन, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, बौद्धिक अक्षमता जैसे कि डिस्लेक्सिया, मल्टीपल स्केलेरोसिस, हीमोफीलिया, थैलेसीमिया,सऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, सेरिब्रल पाल्सी, मानसिक रोग, एसिड अटैक पीड़िता,पार्किंसंस रोग, सिकल सेल रोग, मल्टीपल हैंडीकैप (बहु-विकलांगता), बोलने और भाषा की अक्षमता, विशिष्ट सीखने की अक्षमता, अन्य विशिष्ट दिव्यांगताएँ जो अधिनियम के तहत सूचीबद्ध हैं।

यहां ये भी समझ लेना चीहिये कि, इसे परपल फेस्टीवल क्यों कहते हैः-

दोस्तों, पूरी दुनिया में परपल यानी बैगनी रंग को दिव्यांग आंदोलन से जोङा गया है। जैसे कि हरा रंग पर्यावरण का सूचक गुलाबी रंग एल जी बी टी का सूचक है और लाल रंग श्रमिक आंदोलन को दर्शाता है। बैगनी रंग दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण, गरिमा, सम्मान और समाज में उनके योगदान को स्वीकार करने की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। इस आयोजन का उद्देश्य है कि, संपूर्ण भारत के दिव्यांग कारिगरों, उद्यमियों और कलाकारों की प्रतिभा को एक मंच प्रदान करना और दिव्यांगो की सांस्कृतिक और खेल उपलब्धियों को बढावा देना। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ऐसे आयोजनो से उस प्रदेश की आर्थिक लाभ में भी दिव्यांगजन की भूमिका को नकारा नही जा सकता।

साथियों, गोआ की सास्ंकृतिक और सामाजिक ढांचे को देखने के बाद मेरा ये मानना है कि, परपल फेस्टीवल के लिये गोआ वाकई उपयुक्त स्थल है। मेरी नजर से गोआ में जो पूर्तगाली रंग-बिरंगी , खुशनुमा जङें हैं वो ऐसे आयोजन को और भी सकारात्मक बनाती हैं। बङे-बङे नारियल के पेङ और पहाङों के बीच रंगबिरंगे फूलों से सजे घर एवं दूकानें, वहां के स्थानिय लोगों के चटक रगों से सजे परिधान ये दर्शाते हैं कि जीवन खुशनुमा है इसे प्रकृति ने सभी सकारात्मक रंगों से रंगा है। मित्रों, मेरी नजर से गोआ की खूबसूरती अगले किसी लेख में फिर कभी लिखने का प्रयास करेंगे। परपल फेस्टीवल में उपस्थित सभी दिव्यांगजनों की जीवन के प्रति सकारात्मक सोच से गोआ और भी खुशनुमा हो गया था। वहां के सभी महाविद्यालय के बच्चे हों या सरकारी महकमें के अधिकारी सभी खुश होकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे थे। पंणजी कलेक्टर हो या मुख्यमंत्री सबका स्नेह सभी दिव्यांगजन को मिल रहा था।

मित्रों गोआ में परपल फेस्टीवल देखने के बाद मेरा ये मानना है कि, अनुकूल परिस्थिती में सफलता मिलना कोई आश्चर्य की बात नही है। परन्तु विपरीत परिस्थिती में सफलता अर्जित करना, किचङ में कमल के समान है। जो अभावों में भी हँसते हुए आशावादी सोच के साथ लक्ष्य तक बढते हैं, उनका रास्ता प्रतिकूलताओं की प्रचंड आधियाँ भी नही रोक पाती। अनुकूलताएं और प्रतिकूलताएँ तो एक दूसरे की पर्याय हैं। इसमें स्वंय को कूल (शान्त) रखते हुए आगे बढना ही जीवन का सबसे बङा सच है।😊

धन्यवाद

जय हिंद, वंदे मातरम्


दिये गये विडियो में गोआ की सकारात्मक झलकिंयां