Tuesday 25 March 2014

फिल्मी पोस्टर






भारतिय सिनेमा अपने सौ वर्षों के सफर का जलसा मना रहा है। सौ वर्षों के सफर में कई नई चीजें जुङी तो कई पुराने तरीके आधुनिक तकनिकों के शिकार भी हुए। डिजीटल युग ने तो हाथ से बने  फिल्मी पोस्टर्स को गुजरे जमाने का अक्स बना दिया। पोस्टर बनाना श्रम-साध्य काम होता था। जिसके एवज में बनाने वाले को मेहनताना मिलता था, जो रचनात्मक कला से पूर्ण रोजगार होता था। किसी भी चेहरे को उसके मूल रूप में कागज पर उकेरना आसान नही होता था। बॉलीवुड में कई नामचीन लोगों ने इस विधा में काम किया, जो समय के परिर्वतन के साथ गुमनामी में खो गये। परन्तु चित्रकार एफ.एम. हुसैन तथा डी.आर.भोसले का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। उनकी कार्यशैली एक अलग अंदाज में थी।

1924 में भारत में  पहली बार 'कल्याण खजिना' फिल्म का पोस्टर बना था। ये फिल्म शिवाजी के जीवन पर बनाई गई थी।  इसके पोर्स्टस बाबुराव पेंटर ने बनाए थे। संसार का पहला फिल्मी पोस्टर 1890 में एक लघु फिल्म प्रोजेक्शन 'आर्टटिकुएस' के लिए फ्रेंच चित्रकार जुल्स चेरेट ने बनाया था। 1913 में भारत की निर्मित पहली फिल्म का पोस्टर तस्वीर विहीन था। उस समय पोस्टर कैनवस पर हांथ से पेंट किये जाते थे। फिल्मो के प्रचार प्रसार में फिल्मी पोस्टर्स का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

1930 से लेकर 1960 के फिल्मी पोस्टर्स काफी चर्चा में रहे। संसार में लुप्त होती इस कला के कुछ पारखियों ने 2007 में  फिल्मी पोस्टर्स पर लगी प्रदर्शनी को सफल बनाया। इस प्रर्दशनी में  डी.आर.भोसले द्वारा बनाया गया गाइड का पोस्टर दो हजार डॉलर में बिका।  हॉलीवुड में कुछ समय पूर्व 'द साइलेन्स एंड द लैम्ब' फिल्म के पोस्टर को 35 साल का सबसे शानदार फिल्मी पोस्टर माना गया है।

आज नई पीढी अपनी इस लुप्त हेती सांस्कृतिक धरोहर को लेकर सजग है। हितेश जेठवानी जैसे कुछ लोग हस्तनिर्मित पोस्टर्स को हिप्पी डॉट संस्था के जरिये बढावा दे रहे हैं। ओसियन संग्रहालय में सदियों पुराने लगभग 19,500 पोस्टर्स सुरक्षित रखे गये हैं.। पश्चिमी देशों में बसे कला प्रेमियों के लिए भारतीय फिल्मी पोस्टर्स का विशेष महत्व है। एक दुकानदार द्वारा पाँच रूपये में खरीदे 'मदर इण्डिया' के एक पोस्टर को विदेश में लगभग 6 हजार में बेचा गया था।  फिरभी लगातार लुप्त होती प्रजातियोॆ की तरह ही फिल्मी पोस्टर्स का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है क्योंकि पोस्टर्स का सिधा रिश्ता प्रचार और एडवरटाइजिंग से होता है।
यदि सरकार और फिल्मी क्षेत्र के जागरूक लोग इन पोस्टर्स को सहजने का बीङा उठाएं तो निःसंदेह लुप्त होते पोस्टर्स फिर से जिवित हो जायेंगे और हजारो कलाकारों के हाथ को रोजी-रोटी का आधार मिल जायेगा।

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