Tuesday 22 December 2015

निर्भया को नही मिला इंसाफ


निर्भया एक ऐसा नाम जिसने देश में सभी को एक ज्योति के तले ला खड़ा किया था। 16 दिसम्बर 2012 को निर्भया को ऐसी विकृत मानसिकता ने घायल किया कि वह परलोक सिधार गई; किन्तु अपने पिछे कई प्रश्न   हमारी न्यायपालिका और कार्यपालिका  तथा समाज के लिये छोड़ गई .........
क्या उसका लड़की होना अपराध था?????  
क्या उसे आगे बढने और सफल होने का अधिकार नही था???? 
क्या न्याय माँगना अपराध है???? 

आज जिस तरह बेटी बचाओ और बेटी पढाओ का नारा लगाया जा रहा मुझे तो बस ये नाटक नजर आ रहा है क्योंकि जहाँ बेटीयों को स्वतंत्र और निर्भय आसमान न हो वहाँ बेटी को कोख में बचा भी लिये और पढा भी दिये तो उस दुषित मानसिकता से कैसे बचाओगे जिसे नाबालिग कहकर छोड़ दिया जाता है। बालिगों जैसे अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी को समय रहते सजा न देना, कानून में परिवर्तन न करना यहि दिखाता है कि सरकार, समाज और न्यायपालिका को इसकी कोई चिंता नही है। अगर बेटियों की इतनी ही चिंता होती तो 2012 से 2015 तक के बीच में  समय रहते सदन के सभी सदस्य सजगता दिखाते और जुवेनाइल जस्टिस बिल (किशोर न्याय अधिनियम) पास हो चुका होता; जिससे निर्भया को इंसाफ मिलता। सबसे क्रूर मानसिकता वाला अपराधी; नाबालिग कानून के तहत रिहा नही होता।  और तो और सबसे बङी विडंबना ये है कि न्याय के लिये गुहार लगाने पर निर्भया के माता-पिता को हिरासत में ले लिया गया। इस तरह की कार्यप्रणाली हमारे जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता क्या है,  इस पर एक प्रश्न चिन्ह लगाती है।  आज इसपर विचार करना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी कथनी और करनी  एक समान नजर नही आ रही है। 

आज सरे आम बेखौफ दुषित मानसिकता का प्रहार बेटीयों और महिलाओं पर हो रहा है फिर भी हमारी सरकार, समाज और न्याय व्यवस्था; कानून तथा साक्ष्य की ही दुहाई दे रही है। निर्भया जैसी कई बेटियां हैं जिन्हे इंसाफ नही मिल रहा है। एक वहशी दरिंदे की शिकार बेटी किस मनोस्थिती से गुजरती है वह दर्द अकल्पनिय है तथा ऐसे दरिन्दों को माफ कर देना समाज में जहर फैलाने के समान है। 

मित्रो, बेटी शब्द सुनकर मेरे मन में अनायास ही प्रेम , दुलार, ममत्व और करुणा की प्रतिमूर्ति नजर आने लगती है। जीवन को जीने के मायने सिखाने वाली बेटी एक नही दो कुलों का मान होती है। बेटी तो निःश्चल प्रेम की अविरल धारा है। परन्तु आज जिसतरह से उसकी सुरक्षा को लेकर अनदेखी की जा रही है तो वो दिन दूर नही जब ये धारा, धरा पर से विलुप्त ही हो जायेगी, क्योंकि कोई माँ अपनी बेटी को उस संसार का हिस्सा नही बनने देगी जहाँ जिवन तो है पर जीने की आजादी न हो। कोख से लेकर जिवन पर्यन्त जहाँ अनेकों यम बेटी को निगलने को तैयार हों वहाँ बेटी के किस भविष्य को हम संवारेगे या उसे किस दुनिया का सपना दिखायेंगे?

अतः एक महिला होने के नाते मेरा अनुरोध है , आज के आधुनिक शिक्षित सभ्य समाज, सरकार और न्याय व्यवस्था से कि, यदि यथार्त में बेटी बचाओ बेटी पढाओ को सार्थक करना चाहते हैं; तो ऐसी व्यवस्था का विस्तार करें जहाँ बेटियों को सुरक्षित और सभ्य आसमान मिले, निर्भया जैसी सभी बालिकाओं को इंसाफ मिले। 

16 दिसम्बर 2012 की पोस्ट पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें
एक आवाज
प्रश्न ये उठता है कि क्या! अमानवीय कृत्यों वाले इंसान अलग दुनिया से आते हैंनही मित्रों, ये भी उसी समाज के अंग हैं, जिस समाज में हम और आप रहते हैं।  जब हम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को सुनते हैं तो मन में ख्याल आता है कि हम किस समाज में रह रहे हैं, स्त्रियों के प्रति ऐसी सोच क्यों?







2 comments:

  1. Enter your comment...its a fact so true you have written anita mam .we are living in such country where lacs of assurance of safety respect given only on papers or on mythological books that shows we respect care our daughters but in reality its totally different .the most worst condition of daughters here women tortured by women only .poor condition poor worst decision laws justice in India .how happy the hooligan culprits vegabond feel now they are free for doing any crime .your article each and every word so heart touching shame on the people who accept this law .the minor innocent should b shoot out on the road if justice is helping .people should handle the case now if law is so worst.

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    1. Shambhu Dayal Meena22 December 2015 at 23:27

      Sahi kaha aapne m,am yeh insaaf nahi hai

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