कर्मण्यैवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना
कर्म प्रधान देश में जहां अनादी काल से सभी श्रेष्ठ विद्वानों ने गीता के कर्म योग को सर्वोपरी रखा है वहीं आज लगभग सभी राजनितिक दल अपने वोट हित को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए एक अकर्म मानसिकता को जन्म दे रहे हैं। जीवन यापन के लिए रोटी, कपङा, मकान और दवा सब मुफ्त में मिल रहा है। चुनाव के पहले बिजली फ्री, राशन फ्री ,पानी फ्री की उलझन के साथ बहनों के लिए योजनायें महिने में कहीं 1200सौ रुपये तो कहीं 2500 सौ रुपये देने की घोषणां। जनाब जरा सोचिये जीवन यापन की सामग्री के साथ पॉकेट मनी भी। इतना फ्री में मिलने के बाद कौन बुद्धीमान काम करना चाहेगा।
आज खेतों पर काम के लिए मजदूर नही हैं, पहाङों पर बोझा ढोने वाले नहीं हैं। जो हैं उनमें मेहनत करने की शक्ति नही है। मुफ्त की रेवणी बांटने वाले ये भूल गये हैं कि, फ्री में तो हम सांस भी नही ले सकते एक देकर ही एक सांस मिलती है तभी जिवन संभव है। सोचिए यदि मुफ्त स्वाद हमारी फौज को लग जाये तो देश का क्या होगा।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जिसमें गोस्वामी तुलसीदास कर्म के महत्व को बताते हुए कहते हैं , यह जगत, यह विश्व कर्म प्रधान है..
हम विकासशील देश की दहलीज पर हैं ऐसे में मानवीय क्षमता का पतन करके किस दिशा में जायेंगे। जनाब! ये मुफ्त का बंटवारा आखिर किसके पैसे से हो रहा है ये भी गम्भीर प्रश्न है। क्या ये बंटवारा नेता अपनी जेब से देते हैं , आप तुरंत कहेंगे कि ये हमारा पैसा है जो टैक्स के रूप में सरकार ले रही है। तो भईया ये जुल्म ये सितम हमपे क्यों???
सोचिये जब भिक्षावृत्ति बंद कर रहे हैं तो फिर ये फ्री का समान भिक्षा नहीं है! हकीकत ये है कि, मुफ्त का भंडारा खाते-खाते लोगों की मानसिकता साम-दाम दंड भेद से फ्री वाले समान को ज्यादा कैसे हासिल करें इसी जुगाङ में लगी रहती है। मुफत में खाने वालों को पार्टी या पार्टी के सदस्यों से कोई लेना देना नही है, उनके लिए तो यही सर्वोपरी है कि किसकी रेवणी कितनी ज्यादा मिठी है। जनाब! आज मुफ्त का आलम देशहित से बङा हो गया है, एक खूंखार अपराधी भी मुफ्त में ज्यादा समान दे देने का वादा कर दे तो लोग उसको वोट दे देंगे। मुफ्त के वादे से आज परेशानी इतनी बढ गई है कि, सुप्रीमकोर्ट को भी सभी राजनिती दलों से कहना पङ रहा है कि, चुनाव से पहले मुफ्त की चीजें बांटने का वादा लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोङने की बजाय लोगों को परजिवी बना रहा है। जस्टिस बी आर गवई एवं आग्सटीन जॉर्ज की पीठ ने कहा कि, आज लोग काम करना नही चाहते।
सोचिये! हम किस मानसिकता को जन्म दे रहे हैं। ये भावना लोगों को अकर्मण्य बना रही है। पङे- पङे लोहे में भी जंग लग जाता है। काम न करने पर शारिरीक अंग जाम हो जाते हैं। लंबे समय तक मुफ्त की व्यवस्था मानसिक बिमारी को भी जन्म दे रही है। पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है अब भी नही समझे तो वो दिन दूर नही जब अकर्मठ की एक बङी आबादी दिमक की तरह देश को खोखला कर देगी।
“स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि, यदि हम कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कर्म, इस जगत में कोई भी वस्तु बिना मूल्य के नही मिलती। हर वस्तु का मुल्य चुकाना होता है। जो देना नही चाहता वरन लेने की ही योजना बनाता है वो सृष्टी के नियमों से अनजान ही कहा जायेगा।“
ये कहना अतिश्योक्ती न होगा कि, सहायता करना अच्छी सोच है परंतु सहायता किसी को पंगु बना दे ऐसी व्यवस्था का जल्द से जल्द अंत होना चाहिए। अमर बेल की तरह मुफ्त की सहायता से कर्म शून्य हो रहा है। ऐसी परजीवी मानसिकता का बहिष्कार जरूरी है। आज चिंतन जरूरी है कि, पंगु बनती कार्यक्षमता का जिम्मेदार कौन... मित्रों, कर्म यदि सही दिशा में लगेगा तभी देश आगे बढेगा और हर किसी का जीवन पल सम्मान से गुजरेगा।
धन्यवाद
जय हिंद जय भारत
अनीता जी आपने आज के समय के सटीक व ज्वलंत विषय को उठाया है। निष्काम कर्म के सिद्धांत पर चलने वाला राष्ट्र आज बिना कर्म किए ही सब पाने के मार्ग पर धकेला जा रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteअकर्मण्यता निश्चित ही एक विचारणीय मुद्दा है..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteअत्यंत वास्तविक और सटीक मर्म छिपा है आजके आपके आर्टिकल में जो आक्रमणों बैठने वालों को वास्तव में बोध प्रदान साबित होगा!!! सादर प्रणाम आदरणीय मैडम💯💯💯💐💐💐💐💐👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआदरणीय अनिता जी आपने गीता का श्लोक कर्मण्ये वाधिकारस्ते को चरितार्थ किया है।किसी एक व्यक्ति की अकर्मण्यता से कितने लोगों का जीवन प्रभावित होता है।निष्क्रिय व्यक्ति से तो दिव्यांग वयक्ति अच्छा है।आपके उल्लेख से समाज में जागरूकताका प्रसार होगा। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सविता जी, आपने सही कहा निष्क्रिय व्यक्ति से दिव्यांग व्यक्ति अच्छा
Deleteआपने बिल्कुल सत्य कहा है इस तरह अगर सभी को फ्री मे सब मिलने लगे तो, कोई काम क्यों करेगा 🙏🏻
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteApt remarks on this crucial, yet underdiscussed topic.
ReplyDeleteOn one side, there are people who are expected to work '90 hours a week' and pay all kinds of taxes. On the other hand, there are ones who are just unwilling to work in any form, with mentality of receiving everything free of cost.
The idea should be to provide better services, such as access to healthcare and education to every citizen, and generate employment with existing resources for upliftment of the nation as whole, rather than distributing free cash to 'vote banks' before elections and then forgetting about everything for the next 5 years!!
Again, my compliments on this well written article.
Thanks
Deleteआपने बिल्कुल सत्य कहा है इस तरह अगर सभी को फ्री मे सब मिलने लगे तो, कोई काम क्यों करेगा 🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआप का लेख विचारणीय है।
ReplyDeleteरामऔर कृष्ण की जन्म भूमि में जहां ईश्वर ने मनुष्य रूप में अवतार लेकर कर्म को प्रधानता दी ,राजनीतिक स्वार्थ के कारण कतिपय नेता उसे ही नकारने चले हैं।यह देश की प्रगति मे बाधक है।
जन साधारण को जागरूक होकर, निजी स्वार्थ को त्याग कर, प्रलोभन वाले चुनावी वादों की ओर ध्यान न देकर देश की उन्नति का जज़्बा रखने वाले सही नेतृत्व का चयन करना चाहिए।
धन्यवाद, सही कहा आपने
DeleteI would really wish, this voices reaches to all and a positive change is achieved. Thank you so much for paying attention to a major ongoing problem.
ReplyDeleteकर्मण्यैवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना
ReplyDeleteAgreed with whole article,
Many changes can be observed,
Many more things needed to be corrected,
So, to retain the political power, the process is required.
धन्यवाद
Deleteजय हिंद।
ReplyDeleteThanks for raising this very important issue. in fact earlier Governments have also suffered financially and that too with meagre results in the hinterland. Many central sponsored schemes like IRDP failed to bring about positive changes in the rural poverty despite doling out 50 % subsidy. In tribal area there is already a persisting tendency of not going for work if there is food availability for the evening. Now with these freebies the situation is going to worsen only. However, BJP does understand the ill-effects of these free schemes but the vote bank politics of other parties drags it in the mud. Hope, with growing awareness there will emerge a national debate on this subject. If Supreme Court intervenes, I think, BJP would love this situation.
ReplyDeleteThanks for your feedback
Delete'कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, 'जो जस करहि सो तस फल चाखा' बिना उचित कर्म के अनुचित फल ही मिलेगा....श्रेष्ठ फल चाहिए तो श्रेष्ठ कर्म करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. बहुत अच्छा लेख!
ReplyDeleteधन्यवाद गोपाल
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