मित्रों, हमारी पाँच इंद्रियों
(आँख, नाक, कान. त्वचा और जीभ)
में, आँखें अनमोल हैं, इसी
के कारण हम दुनिया की खूबसूरती को देख पाते हैं। यदि विज्ञान के अनुसार चलें तो हम
80% ज्ञान
आँखों के माध्यम ये प्राप्त करते हैं। परन्तु कुछ अज्ञानता और लापरवाही के
कारण हम अपनी आँखों की रौशनी को खो देते हैं या संक्रमण के कारण हमारे आँखों की
रौशनी चली जाती है। हमारे समाज में एक ऐसी मानसिकता व्याप्त है कि अंधापन
अर्थात दृष्टीबाधित पिछले जन्मों में किए गये गलत कार्यों का परिणाम है। आज हम 21वीं सदी में जी रहे
हैं जिसे विज्ञान का युग भी कहा जाता है। ऐसे में उपरोक्त मानसिकता सिर्फ अशिक्षा
का ही उदाहरण है। जबकी सच तो ये है कि, समस्त विश्व में दृष्टीबाधित अर्थात अन्धापन का कारण, कई प्रकार की
बिमारियाँ, अस्वछता
तथा उदासीनता है। भारत में सर्व प्रथम दृष्टीबाधिता का कारण रुबैला वायरस अथवा जर्मन
मिजल्स होता था।
नेत्रश्लेष्मा लाशोधः- ये आँख की सामान्य बिमारी है, जो बेक्टेरिया, वायरस इन्फैक्शन, एलर्जी आदि से होती है। प्रारम्भिक लक्षण है आँख में जलन। समय पर डॉक्टर की सलाह से इसे आगे बढने से रोका जा सकता है। इसके अलावा हाइपर टेंशन, मोतियाबिंद और डाइबिटीज भी दृष्टीबाधिता के कारण हैं।
मित्रों, केन्द्र सरकार के आँकङों के अनुसार भारत में एक करोङ से अधिक दृष्टीबाधित लोग रहते हैं। जो कहीं न कहीं उपरोक्त कारणों से दृष्टीबाधित हुए हैं। हमारे समाज में इस त्रासदी का बहुत बङा कारण अशिक्षा है। कई परिवार हमने ऐसे देखे हैं जहाँ एक दो बच्चे दृष्टीबाधित हो जाने के बाद भी अभिभावक कारण समझ नही पाते। हमारे गॉवों की स्थिती तो और भी चिंता जनक है। अतः अंत में यही कहना चाहेंगे की आँखे प्रकृति का अनमोल और नाजुक उपहार है। इसका ख्याल रखना हम सबकी जिम्मेदारी है और नेत्र दान की भावना सबकी सामाजिक जिम्मेदारी है। आपकी आँखें मृत्यु के बाद भी किसी के जीवन को रौशन कर सकती हैं।
धन्यवाद
Anita Sharma
Mail ID:- voiceforblind@gmail.com
sharmaanita207@gmail.com
भारत
में दृष्टीबाधिता के कारण
टैक्रोमा, (रोहे या
कुकरे):- ये रोग अति प्राचीन
काल से अंधता का विशेष कारण रहा है। अक्सर गॉव में स्कूल जाने वाले बच्चों में ये
रोग देखने को मिल जाता था। प्रायः बचपन इस रोग का शिकार हो जाता है। इस रोग में
कार्निया में घाव हो जाता है, जो बाल्यकाल में ही ध्यान न देने से
अंधता का कारण बन जाता है। 33% दृष्टीबाधिता इस रोग के कारण होती है। ये बिमारी विशेष प्रकार के वायरस कैलेमाइडिया ट्रैकोमेडिस(Chlamydia
Trachomatis) के
द्वारा होती है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति के
आँख और नाक से परोक्ष(Direct) या
अपरोक्ष(Indirect) रूप से सम्पर्क में आने से ये रोग फैलता है। अस्वछता, गन्दा पानी और खुले
में शौच के कारण ये व्यस्कों की बजाय बच्चों में तेजी से फैलता है। गरीब देशों और गरीब लोगों में इस बिमारी से
ग्रसित दृष्टीबाधितों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस बिमारी का प्राथमिक लक्षणं है, आँखों में सुजन, आँख लाल होना एवं आखों
में दर्द।
ग्लुकोमा/काँचबिन्दुः- ग्लुकोमा
बहुत खतरनाक बिमारी है। जिसमें आँख के अंदर के
पानी का प्रेशर धीरे-धीरे बढ जाता है। जिसके कारण देखने में परेशानी होती है या
फिर अंधापन भी हो सकता है। यदि उपचार समय से शुरु कर दिया जाए तो, इससे बचा जा सकता है। परंतु अज्ञानता और लापरवाही की वजह से इससे ग्रसित व्यक्ति दृष्टीबाधित हो
जाता है।
ऑप्थैल्मिया नियोनोटेरम :- जन्म के अवसर पर माता के संक्रमित जनन मार्ग द्वारा शिशु का सिर निकलते समय उसकी आँखों में संक्रमण हो जाता है और इससे ग्रसित बच्चा जन्म से ही अंधता का शिकार हो जाता है। इसका लक्षण है, जन्म के तीन दिन में ही बच्चे की आँखें सूज जाती हैं तथा पलकों के बीच में से मटमैला गाढा स्राव निकलने लगता है। लगभग पिछले 10 वर्षों से ये रोग पेनिसिलीन और सल्फोनेमाइड के कारण कम हुआ है।
चेचक बङी माताः- इस रोग में कार्निया पर बङे-बङे दाने उभर आते हैं। जिससे वहाँ वर्ण बन जाने से विकार उत्पन्न हो जाता है। जो अंधता का कारण बनता है। आजकल दो बार चेचक का टीका लग जाने से इस बिमारी का प्रकोप काफी हद तक कम हो गया है।
कारनील अल्सरः- अलसर अक्सर पुतली की रगङ और बाह्य तत्व से होता है। जब कोई बाह्य तत्व पुतली में रह जाता है तो, वह अल्सर का कारण बन जाता है। जिसके कारण आँखों की रौशनी प्रभावित होती है। अतः आँख में जब कुछ तिनका या धूल या किढा चला जाए तो आँख को साफ पानी से धोएं किसी भी स्थिती में आँख को मले नही। यदि फिर भी आराम न हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।
जेराफथा लमियाः- यह विटामिन ए की कमी से होता है। इसका प्रमुख लक्षण है, रात को दिखाई नही देना। सूर्यास्त होने पर आँख की झिल्ली और पुतली अपनी चमक खो देती है। लापरवाही और उदासीनता की वजह से पुतली में निशान पङ जाता है और अल्सर की शिकायत शुरु हो जाती है।नेत्रश्लेष्मा लाशोधः- ये आँख की सामान्य बिमारी है, जो बेक्टेरिया, वायरस इन्फैक्शन, एलर्जी आदि से होती है। प्रारम्भिक लक्षण है आँख में जलन। समय पर डॉक्टर की सलाह से इसे आगे बढने से रोका जा सकता है। इसके अलावा हाइपर टेंशन, मोतियाबिंद और डाइबिटीज भी दृष्टीबाधिता के कारण हैं।
मित्रों, केन्द्र सरकार के आँकङों के अनुसार भारत में एक करोङ से अधिक दृष्टीबाधित लोग रहते हैं। जो कहीं न कहीं उपरोक्त कारणों से दृष्टीबाधित हुए हैं। हमारे समाज में इस त्रासदी का बहुत बङा कारण अशिक्षा है। कई परिवार हमने ऐसे देखे हैं जहाँ एक दो बच्चे दृष्टीबाधित हो जाने के बाद भी अभिभावक कारण समझ नही पाते। हमारे गॉवों की स्थिती तो और भी चिंता जनक है। अतः अंत में यही कहना चाहेंगे की आँखे प्रकृति का अनमोल और नाजुक उपहार है। इसका ख्याल रखना हम सबकी जिम्मेदारी है और नेत्र दान की भावना सबकी सामाजिक जिम्मेदारी है। आपकी आँखें मृत्यु के बाद भी किसी के जीवन को रौशन कर सकती हैं।
धन्यवाद
Anita Sharma
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