भारत की आजादी के 68 साल बाद आखिर देश के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान में भारतीयता ने दस्तक दे दी। काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में 2015 के दिक्षांत समारोह का रंग भारतीय संस्कृति से रंग गया, जब सभी छात्रों ने नई परंपरा की शुरुवात की। बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के 97 वें दिक्षांत समारोह में सभी छात्रों ने अंग्रेजो की परंपरा यानी की काले गाउन को नकार दिया। छात्रों ने मदन मोहन मालवीय जी की तरह धोती-कुर्ता और सर पर उनके जैसी ही टोपी पहन कर दिक्षा ली और छात्राओं ने लाल रंग के बार्डर वाली सफदे साङी पहनी तो कुछ छात्राएं सफदे सलवार कुर्ते में सर पर साफा लगाए नजर आईं। माँ सरस्वती के आँगन में एक नई किरण का आगाज हुआ। ये नई पहल बनारस हिन्दु विश्वविद्याल के कुलपती प्रो. जे.सी.त्रीपाठी जी के प्रोत्साहन का ही परिणाम है।
मैकाले की शिक्षा प्रणाली के बंधनो से आजादी की पहली और सकारात्मक शुरुवात है। वास्तव में ये शुरुवात अंधकार से उजाले की ओर बढता कदम है, जो श्वेत वस्त्र घारण किये हुए कमल पर विराजमान माँ सरस्वती की शुद्ध अर्चना एवं वंदना है।
धन्यवाद
निवेदनः- दिये गये लिंक को अवश्य पढें
आजादी के 60 साल बाद भी क्या हम आजाद हैं ??
मैकाले की शिक्षा प्रणाली के बंधनो से आजादी की पहली और सकारात्मक शुरुवात है। वास्तव में ये शुरुवात अंधकार से उजाले की ओर बढता कदम है, जो श्वेत वस्त्र घारण किये हुए कमल पर विराजमान माँ सरस्वती की शुद्ध अर्चना एवं वंदना है।
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आजादी के 60 साल बाद भी क्या हम आजाद हैं ??
Bahut achchha laga ye lekh pad k. Thanks for sharing this. Aaj vastav me aisi soch ki hi jarurat hai desh ko.
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