Friday, 8 April 2016

गायत्री मंत्र का शाब्दिक महत्व



ऊँ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री मंत्र के प्रत्येक अक्षर का महत्व है। गायत्री मंत्र महामंत्र है जिसमें ऊँ परमात्मा का पावन नाम और सभी तरह के जीवन-साधनाओं व शक्तियों का परम् कारण है। भूभुर्वः स्वः के तीनों प्राकृतिक गुणं से कर्म, ज्ञान और भक्ति की अभिव्क्ति होती है। नवरात्री के नौ दिन और गायत्री मंत्र के नौ शब्द की प्रासांगिता अद्भुत संदेश है।

गायत्री मंत्र का पहला शब्द तत् है जो हमें  देवी के पहले स्वरूप शैलपुत्री के साथ जीवन-साधना में स्थिरता के महत्व को दर्शाता है। इस शब्द में पर्वतीय पर्यावरण के संरक्षण का महान संदेश भी है।

दूसरा शब्द है, सवितुः – इसमें देवी के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी की शक्ति निहित है। साथ ही इसमें जीवन साधना में पवित्रता के महत्व को भी दर्शाया गया है। इसमें प्रकृति एवं उसके घटकों में सार्वभौमिक ब्रह्मस्वरूपिणी एकता का संदेश समाहित है।

तीसरा शब्द है, वरेण्यं- इसमें प्रकृति की आह्लादकारिणी शक्ति चंद्रघंटा निहित है। इसमें जीवन साधना में एकाग्रता के महत्व को बताया गया है। इसमें प्रकृति के सभी जीवों के सुख को संवर्द्धित करने का संदेश है।

चौथा शब्द है, भर्गो- इस स्वरूप में कूष्मांडा निहित है। ये शब्द जीवन-साधना में संयम का संदेश देता है। माना जाता है कि ये देवी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली हैं, इनमें आपदाओं और प्राकृतिक प्रबंधन का संदेश निहित है।

पाँचवा शब्द है, देवस्य- इस शब्द में देवी के पाँचवे स्वरूप स्कंदमाता की शक्ति है। ये शब्द जीवन में सदाचार के महत्व को दर्शित करता है।ये शब्द माता-पिता और उनके बच्चों में मधुरता का संदेश है।

छठा शब्द है, धीमहि- इसमें देवी कात्यानी की महा शक्ति समाहित है। इस शब्द में प्रकृति का संरक्षण करने वाले ऋषियों की जीवन शैली को अपनाने का संदेश विद्यमान है।

सातवां शब्द है, धियो- इस शब्द में कालरात्री या महाकाली की शक्ति निहित। ये शब्द प्रकृति को समर्पित जीवन जीने का संदेश देता है।

आठवां शब्द है, यो नः – इस शब्द में महा गौरी की शक्ति समायी हुई है। इसमें ये संदेश दिया गया है कि, यदि मनुष्य अपनी अंतः शक्ति का परिष्कार कर ले तो बाह्य प्रकृति स्वतः ही वरदायनि हो जाती है।

नौवाँ शब्द है, प्रचोदयात् – इस शब्द में सिद्धिदात्री देवी की शक्ति समाहित है। इस शब्द के माध्यम से समझाया गया है कि, जो मनुष्य परोपकार को अपना लेता है। प्रकृति उसके जीवन के सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली सिद्धिदात्री बन जाती है।

मित्रों, आज के इस विस्फोटक युग में ये मंत्र बहुत ही प्रासांगिक है अतः हम सबको कम से कम नवरात्री में तो अवश्य ही गायत्री महामंत्र का जाप करना चाहिये और इसी के साथ प्राकृतिक संसाधनों तथा प्रकृति के नियमों की रक्षा करना हम सबका प्रथम कर्तव्य होना चाहिये।

जय माता दी, जय भारत    

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