Wednesday, 10 December 2014

कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला को बधाई



साहस के प्रतीक मलाला एवं कैलाश सत्यार्थी को शांती के नोबल पुरस्कार की हार्दिक बधाई। ये वो नायक हैं जिन्होने अपनी जिंदगी की परवाह किये बिना समाज को एक नई दिशा दी है। कम उम्र के बावजूद मलाला लङकियों की शिक्षा के लिये लगातार प्रयास कर रहीं हैं। मलाला ने पाकिस्तान जैसे देश में बाल अधिकारों एव बालिका शिक्षा के लिये अपना संर्घष जारी रखा है। अक्टुबर 2012 में मात्र 14 वर्ष की अल्पआयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे तालिबानी फरमान की शिकार बनी। आँखों में डॉक्टर बनने का सपना लिये मलाला स्कूल जाती थी परंतु उसके सपने को तालिबानियों के फतवे ने विराम लगा दिया। तालिबानियों ने लङकियों के लगभग 200 स्कूलों तोङ  दिये किन्तु मलाला के इरादों को वे रोक न सके। जानलेवा हमले के बावजूद मलाला आज भी हिमालय की तरह अपने इरादे पर मजबूती से खङी है। आज भी वे बालिका शिक्षा की पक्षधर है और समाज में शिक्षा के नये आयाम को चरितार्थ कर रही हैं। सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मलाला ने सिद्ध कर दिया है कि, 
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है, 
हर पहलु जिंदगी का इम्तिहान होता है,
डरने वालों को मिलता नही कुछ ज़िंदगी में,
लङने वालों के कदमों में ज़हान होता है। 

तंग गलियों से निकलकर विश्व पटल पर छा जाने वाले कैलाश सत्यार्थी बाल अधिकारों के लिये 1980 में इलेक्ट्रीकल इंजिनियर की नौकरी छोङकर अब तक 80 हजार बाल मजदूरों को रिहा करा चुके हैं। कई बार असामाजिक तत्वों ने उनपर जानलेवा हमला किया और धमकाया भी परंतु दृण इच्छाशक्ति लिये कैलाश सत्यार्थी अपने मिशन को आगे बढाते रहे। बाल मजदूरी के समाप्ति हेतु अनेक पद यात्राएं करके जनमानस को जागृत करने का प्रयास किये। मजबूत कानून की माँग करते हुए 1993 में बिहार से दिल्ली तक की पदयात्रा, 1994 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा, 1995 में कोलकता से काठमांडू तक की यात्रा और 2007 में बाल व्यपार विरोधी दक्षिण एशियाई यात्रा प्रमुख है। शिक्षा को मौलिक अधिकार दिलाने में भी कैलाश सत्यार्थी का महत्वपूर्ण योगदान है। 

मध्यप्रदेश के गौरव कैलाश सत्यार्थी पहले गैर सरकारी व्यक्ति हैं जिन्हे संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करने का अवसर प्राप्त हुआ था। कैलाश सत्यार्थी का एनजीओ बाल श्रम और बाल तस्करी में फंसे बच्चों को मुक्त कराने का मानवीय प्रयास कर रहा है। नोबल कमेटी के अनुसार 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाने वाले सत्यार्थी ने गाँधी जी की परंपरा को कायम रखा है। भारत को विशवपटल पर गौरवान्वित करने वाले कैलाश सत्यार्थी के लिये ये कहना उचित होगा कि, 

आँधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की,
कैलाश सत्यार्थी को जिद्द है वहाँ आशियाँ बसाने की।
हिम्मत और हौसले बुलंद हैं,
मानवता की मशाल जलाने के लिये जंग अभी जारी है। 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, 2014 का शांति के लिये नोबल पुरस्कार सौहार्द का प्रतीक है। मलाला और कैलाश सत्यार्थी के मिशन में मानवता की इस मशाल को प्रज्वलित रखना हम सबकी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है।     

धन्यवाद 


3 comments:

  1. वाह अनीता जी. बुत ही शानदार पोस्ट है आपकी. ये हम सब के लिए गौरव की बात है कि एक भारतीय को नोबेल पुरस्कार मिला.
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  2. अनीता जी आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी. कैलाश जी को नोबेल पुरस्कार मिलना हम सब के लिए बड़े गौरव की बात है.
    हिंदी ब्लॉग

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  3. Great people...well deserved prize....

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