प्रखर राष्ट्रवादी भारतमाता के सपूत पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म दिवस '25 दिसंबर' को 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय अति प्रशंसनिय है। आदरणीय अटल जी अनुशासन के परिचायक हैं। साथ ही वर्तमान सरकार द्वारा आदरणीय अटल जी को गणतंत्र दिवस पर भारत रत्न से अलंकृत करने की घोषणा अत्यधिक हर्ष का विषय है। संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले आदरणीय अटल जी श्रेष्ठ सांसदो में से एक हैं। अटल जी को बाल्यकाल से ही अनुशासन प्रिय पिता के सानिध्य में नैतिकता की शिक्षा प्राप्त हुई थी। जनसंघ के संस्थापक सदस्य आदरणीय अटल जी ने सांसद के रूप में अभूतपूर्व सफलता का अवदान देकर भारतीय राजनीति में पर्याप्त सफलता अर्जित की है।
कवि और
प्रभावशील लेखन के धनी अटल जी का राजनीति सफर भारत की आजादी से पहले ही शुरु हो
गया था। परंतु सांसद के रूप में अटल जी का सफर 1957 से शुरू हुआ। जब कांग्रेस
सरकार, राष्ट्रीय
स्वंय सेवक संघ के सभी लोगों को जेल के सिकंजो के पीछे भेज दी थी, तब उस समय संसद में संघ की
बात कहने वाला कोई नही था। संघ के वरीष्ठ नेताओं ने निर्णय लिया कि राष्ट्रीय
स्वंय सेवक संघ भी अपनी एक पार्टी बनाये, जो चुनाव में भाग ले। तब अनुभवी नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के
नेतृत्व में भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई गई। 21 अक्टुबर 1951 को
दिल्ली में भारतीय जनसंघ पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ। 1952 में
कश्मीर की जेल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुर्खजी की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई।
अटल जी उनके व्यक्तिगत सचिव थे। मुर्खजी की अचानक मृत्यु से अटल जी को बहुत दुःख
हुआ, देशभक्ति
के ज्वार ने अटल जी को विहल कर दिया और वे राजनीति में प्रवेश किये।
अपनी
अप्रतिम भाषा कौशल और आकर्षण व्यक्तित्व के कारण अटल जी भारतीय जनसंघ के सर्वमान्य
राष्ट्रीय नेता बन गये। अटल जी के काव्यात्मक, सरल, सरस
भाषणों ने उन्हे व्यापक लोकप्रियता दिलाई। 1957 का जब चुनाव हुआ तब पार्टी ने अटल जी को लखनऊ, बलरामपुर और मथुरा से
प्रत्याशी बनाया। नई पार्टी, नया नेता, नया चुनाव सबकुछ नया था।
अटल जी बलरामपुर सीट से जीत गये किन्तु लखनऊ और मथुरा से हार गये थे। 1957 के
लोकसभा के चुनाव में अटल जी के अलावा तीन सदस्य और चुने गये थे। लोकसभा के अपने
शुरुवाती दिनों के बारे में
अटल जी
कहते हैं कि,
"हम सभी
विधाई कार्य के लिये नए थे। न कोई पूर्व अनुभव था और ना कोई पूर्व पार्टी का
सदस्य था, जो हम
लोगों का मार्ग-दर्शन करता। संख्या कम होने की वजह से सभी सांसद को संसद में पिछली सीट
पर स्थान मिला था। ऐसी स्थिती में लोकसभा अध्यक्ष का ध्यान अपनी ओर खींचना बहुत
मुश्किल था।"
उस दौरान
जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्री भी थे। अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर
सदन में गम्भीर चर्चा होती थी। जब विदेश मंत्रालय की चर्चा होती थी तो सदन खचाखच
भरा होता था और दर्शक दीर्घा में भारी भीङ होती थी। विदेश नीति अटल जी का प्रिय
विषय था। उन्होने एम.ए. राजनीति में विशेष विषय के अंर्तगत विदेश नीति ही लिया था। अपने
विदेश नीति के भाषण के बारे में अटल जी कहते हैं कि,
"विदेश
नीति पर मेरे पहले भाषण ने ही सदन का ध्यान आकृष्ट किया था। मेरी प्रांजल भाषा और
धारा प्रवाह शैली सबको पसंद आती थी। 20 अगस्त 1958 को
प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु जी ने अपना अंग्रेजी भांषण समाप्त करने के बाद
अध्यक्ष जी से हिन्दी में कहने की अनुमति माँगी, सदस्यों ने तालियों से उनका स्वागत किया। नेहरु जी
ने मेरा नाम लेकर हिन्दी में बोलना शुरु किया"
नेहरु जी
ने कहा, "कल जो
भाषण हुए उनमें से एक भाषण श्री वाजपेयी जी का हुआ। अपने भाषण में उन्होने एक बात
कह थी, वो ये कि
मेरे ख्याल से जो मेरी विदेश नीति है, मेरी राय में सही है। मैं उनका मसगूर हुँ की उन्होने ये बात कही किन्तु
एक बात उन्होने और भी कही कि, बोलने के
लिये वांणी चाहिये लेकिन चुप होने के लिये वाणी और विवेक दोनो चाहिये। इस बात से
मैं पुरी तरह सहमत हुँ। कम से कम जहाँ तक हमारी विदेश नीति का संबंध है, कभी-कभी हम जोश में आ सकते
हैं, कभी धोका
भी हो सकता है।"
समय के
साथ अनेक कारणों से जनसंघ पार्टी का दिपक बुझ गया और जनता पार्टी का उदय हुआ।
मोरार जी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी जिसमें अटल जी विदेश मंत्री बनाये गये।
विदेश मंत्री के रूप में अटल जी ने जो कार्य़ किये वो किसी कीर्तिमान से कम नही है।
विदेश मंत्री के रूप में अटल जी ने चीन और पाकिस्तान की यात्राएं की थी। पासपोर्ट
की नीति में काफी उदारता दिखाई थी। जनता पार्टी की सरकार सुचारु रूप से कार्य कर
रही थी किन्तु कुछ राजनेताओं द्वारा दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाया गया और जनता
सरकार भंग हो गई तथा इसी के साथ जनता पार्टी टूट गई। तब अडवानी जी और अटल जी ने
भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। अटल जी के नेतृत्व में नये उत्साह के साथ पार्टी
को गति मिली। पार्टी का भले ही नाम बदला किन्तु अटल जी का राजनीति सफर वसुधैव
कुटुंबकम की भावना लिये अनवरत चलता रहा।
राष्ट्रीय
एकता और अखंडता के प्रहरी अादरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को 1994
में ‘सर्वश्रेष्ठ
सांसद’ एवं 1998 में ‘सबसे
ईमानदार व्यक्ति’ के रूप में सम्मानित किया गया है। अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1997 में पहली बार प्रधानमन्त्री के रूप में
देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ
ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर
प्रगति के अनेक आयाम छुए।
आज भले ही
आदरणीय अटल जी राजनीति जीवन से दूर हैं। परंतु देश के अंदर जागरण
का शंखनाद करने वाले अटल जी का व्यक्तित्व, विरोधी को भी साथ
लेकर चलने की भावना और उनके ओजस्वी भांषण का कोई विकल्प नही है। आदरणीय अटल की कही पंक्तियों से कलम को विराम देते हैं और उनका शत्-शत् वंदन तथा अभिनंदन
करते हैं।
"मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना
नही। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नही, जूझते योद्धा
का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नही, आत्मविश्वास का
जयघोष है।"
वंदे मातरम्
सभी पाठकों को क्रिसमस की हार्दिक बधाई
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उच्च कोटी के वक्ता (अटल बिहारी वाजपेयी)
जन जन के प्रिय नेता संवेदनशील अटल जी
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जन जन के प्रिय नेता संवेदनशील अटल जी
आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से अलंकृत करने की सरकार द्वारा घोषणा कि गई है जो भारतवासियों के लिए गौरव का विषय है। आपका यह लेख वाजपेयी जी के बारे में हमारे ज्ञान को और ज्यादा बढाने वाला है , धन्यबाद!!!
ReplyDeleteद्वारा-
amulsharma
अटल जी सही अर्थों में एक देशभक्त राजनेता से पहले कवि हैं।
ReplyDeleteAtal ji ke baare me Net par Hindi mein kam hii jaankariyan thin, par aapke yogdaan se ab bahut achcha content uplabdh hai. Thanks.
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