Monday, 29 December 2014

अलविदा 2014, स्वागतम् 2015


मैं 2014 अपने 12 महिने के जीवन से विदा हो रहा हुँ। आज मैं अपने भारतीय परिवेश के अस्तित्व को आप सबसे शेयर करुँगा। मेरे इस जीवन में मुझे मंगल पर पहुँचने का कीर्तिमान मिला तो कहीं मेरी छवि को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लहुलूहान होना पङा। मेरा 365 दिनों का जीवन समुन्द्र की तरह उथल-पुथल भरा था। कभी ज्वार तो कभी भाटे की तरह कुछ पाया तो कुछ खोया। राजनीति के गलियारे में मैने राष्ट्रीय फूल को खिलते देखा, जिसकी पंखुङियां लगातार खिलती हुई, अपनी राष्ट्रीयता और भारतीयता को प्रस्फुटित कर रही हैं।

मित्रों, गाँधी के स्वच्छ भारत के जोश को देखकर  मेरे मन में ये प्रश्न उठना लाजमी है कि, स्वच्छ मानसिकता के समाज का आगाज कब होगा जहाँ बेटियां निर्भय होकर आवागमन कर सकें क्योंकि मेरे जीवन के आखरी महिने में पुनः नारी की छवि पर विभत्स मानसिकता का तेजाबी प्रहार हुआ। जिसने मुझे इस बात पर सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि आखिर हम कब नारि के लिये सम्मानित संसार की रचना कर सकेगें।
आज हम प्रगति का मापदंड भौतिक सुख-सुविधा के  तराजू में तौल रहे हैं। कभी रेडियो भी बमुश्किल लोगों के पास होता था, किन्तु आज घर की छत भले ही प्लास्टिक या खपरैल की हों लेकिन उस पर  टाटा स्काई या डिश टीवी की छत्रछाया जरूर नजर आयेगी। प्रगति की दौङ में, मैं आज काफी आगे हुँ। आधुनिक हथियारों और विज्ञान की नई उपलब्धियों से मालामाल हुँ। अपनी इस कामयाबी पर मैं जश्न मनाऊँ या खौफजदा छोटी बच्चियों को देखकर मरती इंसानियत पर आंसु बहाऊँ।

जाते-जाते मेरे जीवन के आखरी पलो ने मुझे मेरे पङोसी का ऐसा दर्द दिखाया कि अश्रु की धारा अविलंब निकल पडी। जिसमे पङोसी द्वारा मेरे भाई 2008 पर हुए दर्द को भी हम भूलकर उसके गम में शामिल हुए, क्योकिं पडोस में जो हुआ वो भी इंसानियत का क्रूर संहार था। जो इतिहास में दफन हो गया था वो पुनः हरा हो गया।

मित्रों, जहाँ मैने इतने व्यथित और मन को विहल करने वाले क्षंण देखे तो वहीं कुछ पल खुशियाँ भी दे गए।   गमों की रात के बाद मेरे जीवन में कुछ खुशियाँ भी रौशन हुईं।  राजनीति और शिक्षा के ध्रुव को भारत रत्न से अलंकृत होते देखने का सपना साकार हुआ तो कहीं बच्चों की मासूमियत को समझने वालों को विश्व के सर्वोच्च सम्मान नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। जन-जन की भाषा हिन्दी का सम्मान हुआ। गूगल जैसे सर्च इंजन को भी हिन्दी की शरण में आना पडा।

मित्रों दुःख और खुशी की दरिया में गोते लगाते हुए अब मैं आप सबसे विदा हो रहा हुँ। जाते-जाते अपने भाई 2015 का  स्वागत अंनत मंगल कामनाओं के साथ करता हुँ।

मेरे भाई 2015 का सफर खुशियों और सफलताओं से भरा हो,  मजहबी अंतर को भूलकर अनेकता में एकता की पहचान का सम्मान हो, बेटियों के लिये बेकौफ आसमान की छाया हो, क्रूर मानसिकता को ऐसा दंड दिया जाए कि फिर कोई  विभत्स मानसिकता अपना फन न फैला सके। नये वर्ष की अगवानी में आत्मविश्वास का आगाज लिये सभी के लबों पर हो, नव वर्ष मंगलमय हो। 







2 comments:

  1. 2014 apni baat kar raha hai...bahut hii innovative laga aapka likhne ka ye lahja...

    Aapko aur Roshan Savera ke sabhi pathakon ko Nav Varsh kii badhayi.

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  2. Beautiful write up. Wish u a very very happy and prosperous new year.

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