Wednesday, 31 December 2014

Happy New Year


Monday, 29 December 2014

अलविदा 2014, स्वागतम् 2015


मैं 2014 अपने 12 महिने के जीवन से विदा हो रहा हुँ। आज मैं अपने भारतीय परिवेश के अस्तित्व को आप सबसे शेयर करुँगा। मेरे इस जीवन में मुझे मंगल पर पहुँचने का कीर्तिमान मिला तो कहीं मेरी छवि को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लहुलूहान होना पङा। मेरा 365 दिनों का जीवन समुन्द्र की तरह उथल-पुथल भरा था। कभी ज्वार तो कभी भाटे की तरह कुछ पाया तो कुछ खोया। राजनीति के गलियारे में मैने राष्ट्रीय फूल को खिलते देखा, जिसकी पंखुङियां लगातार खिलती हुई, अपनी राष्ट्रीयता और भारतीयता को प्रस्फुटित कर रही हैं।

मित्रों, गाँधी के स्वच्छ भारत के जोश को देखकर  मेरे मन में ये प्रश्न उठना लाजमी है कि, स्वच्छ मानसिकता के समाज का आगाज कब होगा जहाँ बेटियां निर्भय होकर आवागमन कर सकें क्योंकि मेरे जीवन के आखरी महिने में पुनः नारी की छवि पर विभत्स मानसिकता का तेजाबी प्रहार हुआ। जिसने मुझे इस बात पर सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि आखिर हम कब नारि के लिये सम्मानित संसार की रचना कर सकेगें।
आज हम प्रगति का मापदंड भौतिक सुख-सुविधा के  तराजू में तौल रहे हैं। कभी रेडियो भी बमुश्किल लोगों के पास होता था, किन्तु आज घर की छत भले ही प्लास्टिक या खपरैल की हों लेकिन उस पर  टाटा स्काई या डिश टीवी की छत्रछाया जरूर नजर आयेगी। प्रगति की दौङ में, मैं आज काफी आगे हुँ। आधुनिक हथियारों और विज्ञान की नई उपलब्धियों से मालामाल हुँ। अपनी इस कामयाबी पर मैं जश्न मनाऊँ या खौफजदा छोटी बच्चियों को देखकर मरती इंसानियत पर आंसु बहाऊँ।

जाते-जाते मेरे जीवन के आखरी पलो ने मुझे मेरे पङोसी का ऐसा दर्द दिखाया कि अश्रु की धारा अविलंब निकल पडी। जिसमे पङोसी द्वारा मेरे भाई 2008 पर हुए दर्द को भी हम भूलकर उसके गम में शामिल हुए, क्योकिं पडोस में जो हुआ वो भी इंसानियत का क्रूर संहार था। जो इतिहास में दफन हो गया था वो पुनः हरा हो गया।

मित्रों, जहाँ मैने इतने व्यथित और मन को विहल करने वाले क्षंण देखे तो वहीं कुछ पल खुशियाँ भी दे गए।   गमों की रात के बाद मेरे जीवन में कुछ खुशियाँ भी रौशन हुईं।  राजनीति और शिक्षा के ध्रुव को भारत रत्न से अलंकृत होते देखने का सपना साकार हुआ तो कहीं बच्चों की मासूमियत को समझने वालों को विश्व के सर्वोच्च सम्मान नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। जन-जन की भाषा हिन्दी का सम्मान हुआ। गूगल जैसे सर्च इंजन को भी हिन्दी की शरण में आना पडा।

मित्रों दुःख और खुशी की दरिया में गोते लगाते हुए अब मैं आप सबसे विदा हो रहा हुँ। जाते-जाते अपने भाई 2015 का  स्वागत अंनत मंगल कामनाओं के साथ करता हुँ।

मेरे भाई 2015 का सफर खुशियों और सफलताओं से भरा हो,  मजहबी अंतर को भूलकर अनेकता में एकता की पहचान का सम्मान हो, बेटियों के लिये बेकौफ आसमान की छाया हो, क्रूर मानसिकता को ऐसा दंड दिया जाए कि फिर कोई  विभत्स मानसिकता अपना फन न फैला सके। नये वर्ष की अगवानी में आत्मविश्वास का आगाज लिये सभी के लबों पर हो, नव वर्ष मंगलमय हो। 







Wednesday, 24 December 2014

संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले, आदरणीय अटल जी


प्रखर राष्ट्रवादी भारतमाता के सपूत पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म दिवस '25 दिसंबर' को 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय अति प्रशंसनिय है। आदरणीय अटल जी अनुशासन के परिचायक हैं। साथ ही वर्तमान सरकार द्वारा आदरणीय अटल जी को गणतंत्र दिवस पर भारत रत्न से अलंकृत करने की घोषणा अत्यधिक हर्ष का विषय है। संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले आदरणीय अटल जी श्रेष्ठ सांसदो में से एक हैं। अटल जी को बाल्यकाल से ही अनुशासन प्रिय पिता के सानिध्य में नैतिकता की शिक्षा प्राप्त हुई थी। जनसंघ के संस्थापक सदस्य आदरणीय अटल जी ने सांसद के रूप में अभूतपूर्व सफलता का अवदान देकर भारतीय राजनीति में पर्याप्त सफलता अर्जित की है।

कवि और प्रभावशील लेखन के धनी अटल जी का राजनीति सफर भारत की आजादी से पहले ही शुरु हो गया था। परंतु सांसद के रूप में अटल जी का सफर 1957 से शुरू हुआ। जब कांग्रेस सरकार, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सभी लोगों को जेल के सिकंजो के पीछे भेज दी थी, तब उस समय संसद में संघ की बात कहने वाला कोई नही था। संघ के वरीष्ठ नेताओं ने निर्णय लिया कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ भी अपनी एक पार्टी बनाये, जो चुनाव में भाग ले। तब अनुभवी नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई गई। 21 अक्टुबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ। 1952 में कश्मीर की जेल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुर्खजी की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई। अटल जी उनके व्यक्तिगत सचिव थे। मुर्खजी की अचानक मृत्यु से अटल जी को बहुत दुःख हुआ, देशभक्ति के ज्वार ने अटल जी को विहल कर दिया और वे राजनीति में प्रवेश किये। 

अपनी अप्रतिम भाषा कौशल और आकर्षण व्यक्तित्व के कारण अटल जी भारतीय जनसंघ के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता बन गये। अटल जी के काव्यात्मक, सरल, सरस भाषणों ने उन्हे व्यापक लोकप्रियता दिलाई। 1957 का जब चुनाव हुआ तब पार्टी ने अटल जी को लखनऊ, बलरामपुर और मथुरा से प्रत्याशी बनाया। नई पार्टी, नया नेता, नया चुनाव सबकुछ नया था। अटल जी बलरामपुर सीट से जीत गये किन्तु लखनऊ और मथुरा से हार गये थे। 1957 के लोकसभा के चुनाव में अटल जी के अलावा तीन सदस्य और चुने गये थे। लोकसभा के अपने शुरुवाती दिनों के बारे में
अटल जी कहते हैं कि
"हम सभी विधाई कार्य के लिये नए थे। न कोई पूर्व अनुभव था और ना कोई पूर्व पार्टी का सदस्य था, जो हम लोगों का मार्ग-दर्शन करता। संख्या कम होने की वजह से सभी सांसद को संसद में पिछली सीट पर स्थान मिला था। ऐसी स्थिती में लोकसभा अध्यक्ष का ध्यान अपनी ओर खींचना बहुत मुश्किल था।"

उस दौरान जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्री भी थे। अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर सदन में गम्भीर चर्चा होती थी। जब विदेश मंत्रालय की चर्चा होती थी तो सदन खचाखच भरा होता था और दर्शक दीर्घा में भारी भीङ होती थी। विदेश नीति अटल जी का प्रिय विषय था। उन्होने एम.ए. राजनीति में विशेष विषय के अंर्तगत विदेश नीति ही लिया था। अपने विदेश नीति के भाषण के बारे में अटल जी कहते हैं कि

"विदेश नीति पर मेरे पहले भाषण ने ही सदन का ध्यान आकृष्ट किया था। मेरी प्रांजल भाषा और धारा प्रवाह शैली सबको पसंद आती थी। 20 अगस्त 1958 को प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु जी ने अपना अंग्रेजी भांषण समाप्त करने के बाद अध्यक्ष जी से हिन्दी में कहने की अनुमति माँगी, सदस्यों ने तालियों से उनका स्वागत किया। नेहरु जी ने मेरा नाम लेकर हिन्दी में बोलना शुरु किया" 

नेहरु जी ने कहा,  "कल जो भाषण हुए उनमें से एक भाषण श्री वाजपेयी जी का हुआ। अपने भाषण में उन्होने एक बात कह थी, वो ये कि मेरे ख्याल से जो मेरी विदेश नीति है, मेरी राय में सही है। मैं उनका मसगूर हुँ की उन्होने ये बात कही किन्तु एक बात उन्होने और भी कही कि, बोलने के लिये वांणी चाहिये लेकिन चुप होने के लिये वाणी और विवेक दोनो चाहिये। इस बात से मैं पुरी तरह सहमत हुँ। कम से कम जहाँ तक हमारी विदेश नीति का संबंध है, कभी-कभी हम जोश में आ सकते हैं, कभी धोका भी हो सकता है।"

समय के साथ अनेक कारणों से जनसंघ पार्टी का दिपक बुझ गया और जनता पार्टी का उदय हुआ। मोरार जी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी जिसमें अटल जी विदेश मंत्री बनाये गये। विदेश मंत्री के रूप में अटल जी ने जो कार्य़ किये वो किसी कीर्तिमान से कम नही है। विदेश मंत्री के रूप में अटल जी ने चीन और पाकिस्तान की यात्राएं की थी। पासपोर्ट की नीति में काफी उदारता दिखाई थी। जनता पार्टी की सरकार सुचारु रूप से कार्य कर रही थी किन्तु कुछ राजनेताओं द्वारा दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाया गया और जनता सरकार भंग हो गई तथा इसी के साथ जनता पार्टी टूट गई। तब अडवानी जी और अटल जी ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। अटल जी के नेतृत्व में नये उत्साह के साथ पार्टी को गति मिली। पार्टी का भले ही नाम बदला किन्तु अटल जी का राजनीति सफर वसुधैव कुटुंबकम की भावना लिये अनवरत चलता रहा। 

राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रहरी अादरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद’ एवं 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्ति के रूप में सम्मानित किया गया है। अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1997 में पहली बार प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए।

आज भले ही आदरणीय अटल जी राजनीति जीवन से दूर हैं। परंतु देश के अंदर जागरण का शंखनाद करने वाले अटल जी का व्यक्तित्व, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की भावना और उनके ओजस्वी भांषण का कोई विकल्प नही है। आदरणीय अटल की कही पंक्तियों से कलम को विराम देते हैं और उनका शत्-शत् वंदन तथा अभिनंदन करते हैं।

"मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नही। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नही, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नही, आत्मविश्वास का जयघोष है।" 

वंदे मातरम् 
सभी पाठकों को क्रिसमस की हार्दिक बधाई

नोट- पूर्व पोस्ट पढने के लिए निचे दिये लिंक पर क्लिक करें
उच्च कोटी के वक्ता (अटल बिहारी वाजपेयी)

जन जन के प्रिय नेता संवेदनशील अटल जी
  







Friday, 19 December 2014

कोशिश करने वालों की हार नही होती



आज भले ही प्राइवेट क्षेत्र में अच्छे वेतन के ऑपशन्स हैं फिर भी आईएएस या अन्य उच्च पदों के प्रति आकर्षण बरकरार है। अक्सर मुझसे कई विद्यार्थी ये पूछते हैं कि, हमें सफलता कैसे मिले या हम क्या करें कि एक्जाम(Exam) क्लियर(Clear) करलें। बात विद्यार्थी की करें या किसी भी क्षेत्र में कामयाबी की। मित्रो, सच तो ये है कि,  हम सब अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब होना चाहते हैं। उसके लिये हमें सबसे पहले अपने लक्ष्य को निर्धारित करना होगा और साथ ही आसमान छुने का हौसला रखना होगा क्योकि सफलता सरलता से नही मिलती।  रास्ते में जानी अनजानी अनेक बाधाएं सूरसा के मुहँ की तरह आपकी बुद्धिमता और धैर्य की परिक्षा लेने के लिये मिलती रहेंगी। समस्याओं का सामना करने का हौसला रखें और चल पङिये अपनी मंजिल की ओर।

जिस तरह पानी में रहने के लिये तैरना आना अनिवार्य शर्त है उसी तरह हम जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उसके विषय ज्ञान का पूर्णता से अध्ययन करना सफलता की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।  लक्ष्य पाने के लिये लगातार परिश्रम करने का जज़बा इतना स्ट्रॉग(Strong) हो कि, आपके द्वारा किये गये प्रयासों से लक्ष्य करीब आ जाये। 

स्वामी विवेकानंद ने कहा है, "उठो जागो और तब तक मत रुको,
                                         जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।" 

मित्रों, जिंदगी की सामान्य धारा में बहकर कोई सफल नही होता। धारा चाहे जिस भी दिशा में बहे हमें अपने लक्ष्य के अनुसार बहने की ही कोशिश करनी चाहिये। स्वंय को परिस्थिती की दुहाई देकर धारा के हवाले करना कायरता है। अच्छे प्रयोजन में आनेवाली बाधाएं तो हमें अपने लक्ष्य के प्रति और दृणता प्रदान करती हैं क्योकि जितना कठिन परिश्रम होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। नकारात्मक आदतें हमारी सफलता की सबसे बङी दुश्मन है। थोङी सी असफलता से डरकर  कुछ लोग पहले से ही मन बना लेते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा हो ही नही सकता। उन्हे विश्वास होता है कि, वो चाहे कुछ भी करें उनका परिश्रम काम नही आयेगा। ऐसे लोग मैदान में जाने से पहले ही हार मान लेते हैं लेकिन सफलता के सपने देखते
 हैं। सोचिये!  रात में कभी सूरज उग सकता है इसलिये सफलता को रौशन करने के लिये सबसे पहले नकारात्मक सोच को अलविदा कहें क्योकि असफलता में भी सफलता का पैगाम होता है। कार्य के दौरान कभी-कभी गलतियाँ हो जाती है, ये गलतियाँ तो हमें ये एहसास कराती हैं कि हमने कोशिश की। 

मित्रों, दौङ प्रतियोगिता में जब हम किसी खिलाङी को स्वर्ण पदक लेते देखते हैं, तो सोचते हैं कि 10 -15 मिनट की दौङ से इसे ये सम्मान मिल गया किन्तु सच्चाई में उसके 10-15 वर्षो की कङी मेहनत का परिणाम होता है स्वर्ण पदक, जिसको पाने के लिये वो दौङते समय कितनी बार गिरा होगा और फिर लक्ष्य को याद करके पुनः दौङा होगा। ऐसे ही लगातार कोशिश से ही लक्ष्य प्राप्त होता है। इसलिये सफलता के बारे में सोचें, अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसके लिये मेहनत करें। धारा के अनुकूल न बहें, बल्कि धारा में बहने का हौसला रखें क्योकि........

"लहरों के डर से नौका पार नही होती, 
कोशिश करने वालों की हार नही होती। 
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकीर करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। 
कुछ किये बिना ही, जय जयकार नही होती। 
कोशिश करने वालों की हार नही होती।" 
आदरणिय हरिवंश राय बच्चन जी की कविता की कुछ पंक्तियों से कलम को विराम देते हैं। 
Best of  Luck

Friday, 12 December 2014

मानवता मेरा धर्म है (Humanity is my Religion)


आजकल किसी भी न्यूज चैनल को देखें हर चैनल पर धर्म और जाति के विषय पर गरमा-गरम बहस देखी जा सकती है। मन में ये प्रश्न उठता है कि, जिस धर्म में मानविय गुणं न हो और इंसान का इंसान के प्रति सम्मान न हो, ऐसी जाति एवं धर्म से किसका भला होगा। किसी भी समाज या देश का विकास सबके सहयोग पर निर्भर है, फिर हम क्यों धर्म और जाति के नाम पर अपने विकास पर कुठाराघात कर रहे हैं ????

इतिहास गवाह है कि, ऊची जाति की अस्पृश्यता, आडम्बर, अनेक देवी-देवता, इस्लाम और ईसाइयों के कट्टर अत्याचार की नीति तथा क्रूर व्यवहार के कारण लाखों स्त्री-पुरुष धर्म परिर्वतन के लिये मजबूर हुए। भारत पर धर्म और जाति के नाम पर अनेक अमानविय आक्रमण हुए, जिसने भारत की आत्मा को तार-तार कर दिया। आज भारत ही नही विश्व के कई देश धर्म और जाति के वायरस से ग्रसित हैं और विनाश की ओर अग्रसर हैं। यहाँ तक कि एक ही धर्म इस्लाम में सिया सुन्नी का झगङा तो कहीं देवी-देवताओं के नाम पर हिन्दुओं में विवाद। आज वक्त का तकाज़ा है कि, इतिहास से सबक लेकर हमें धर्म और और जाति के चक्कर में न पङते हुए मानवीय सोच का संचार करना चाहिये। 

जाति और धर्म के नाम पर की गई व्यवस्था अप्रजातांत्रिक है, इससे समानता की भावना पर कुठाराघात होता है। कहने को तो  कोई भी सरकार जाति व्यवस्था और धार्मिक उन्मादों को भारत से दूर करना चाहती है, ताकि सभी लोग समान रूप से जीवन व्यतीत करें किन्तु जाति के नाम पर आरक्षण की नीति अपने आप में बहुत बङी त्रासदी है। सच तो ये है कि, धर्म और जाति के नाम पर टकराव सिर्फ विभिन्न राजनैतिक दलों की वोट नीति है और दंगो की उपज का एक विभत्स कारण मात्र है। 

"Every Religion that has come into the world has brought the message of love & brotherhood. Those who are indifferent to the welfare of their fellowmen, whose heart are empty of love, humanity & kindness, they do not know the meaning of Religion." 

अनंततः यही कहना चाहते हैं कि, विकास के इस दौर में परिवर्तन के बिना प्रगति की आशा करना व्यर्थ है अतः हमें अपनी सोच और विचार में परिवर्तन का आगाज करना होगा, जहाँ हम सबको इंसानियत की जाति और मानवता के धर्म में इस तरह रच-बस जाना है कि, हर ओर सुख-शान्ति की बयार बहे, बेटियाँ सुरक्षित हों और देश का चहुमुखी विकास हो। कवि प्रदीप की पंक्तियाँ साकार हो जाये....


"इन्सान से इन्सान का हो भाई चारा, यही पैगाम हमारा

संसार में गूँजे समता का इकतारा, यही पैगाम हमारा।"



Wednesday, 10 December 2014

कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला को बधाई



साहस के प्रतीक मलाला एवं कैलाश सत्यार्थी को शांती के नोबल पुरस्कार की हार्दिक बधाई। ये वो नायक हैं जिन्होने अपनी जिंदगी की परवाह किये बिना समाज को एक नई दिशा दी है। कम उम्र के बावजूद मलाला लङकियों की शिक्षा के लिये लगातार प्रयास कर रहीं हैं। मलाला ने पाकिस्तान जैसे देश में बाल अधिकारों एव बालिका शिक्षा के लिये अपना संर्घष जारी रखा है। अक्टुबर 2012 में मात्र 14 वर्ष की अल्पआयु में अपने उदारवादी प्रयासों के कारण वे तालिबानी फरमान की शिकार बनी। आँखों में डॉक्टर बनने का सपना लिये मलाला स्कूल जाती थी परंतु उसके सपने को तालिबानियों के फतवे ने विराम लगा दिया। तालिबानियों ने लङकियों के लगभग 200 स्कूलों तोङ  दिये किन्तु मलाला के इरादों को वे रोक न सके। जानलेवा हमले के बावजूद मलाला आज भी हिमालय की तरह अपने इरादे पर मजबूती से खङी है। आज भी वे बालिका शिक्षा की पक्षधर है और समाज में शिक्षा के नये आयाम को चरितार्थ कर रही हैं। सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मलाला ने सिद्ध कर दिया है कि, 
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है, 
हर पहलु जिंदगी का इम्तिहान होता है,
डरने वालों को मिलता नही कुछ ज़िंदगी में,
लङने वालों के कदमों में ज़हान होता है। 

तंग गलियों से निकलकर विश्व पटल पर छा जाने वाले कैलाश सत्यार्थी बाल अधिकारों के लिये 1980 में इलेक्ट्रीकल इंजिनियर की नौकरी छोङकर अब तक 80 हजार बाल मजदूरों को रिहा करा चुके हैं। कई बार असामाजिक तत्वों ने उनपर जानलेवा हमला किया और धमकाया भी परंतु दृण इच्छाशक्ति लिये कैलाश सत्यार्थी अपने मिशन को आगे बढाते रहे। बाल मजदूरी के समाप्ति हेतु अनेक पद यात्राएं करके जनमानस को जागृत करने का प्रयास किये। मजबूत कानून की माँग करते हुए 1993 में बिहार से दिल्ली तक की पदयात्रा, 1994 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा, 1995 में कोलकता से काठमांडू तक की यात्रा और 2007 में बाल व्यपार विरोधी दक्षिण एशियाई यात्रा प्रमुख है। शिक्षा को मौलिक अधिकार दिलाने में भी कैलाश सत्यार्थी का महत्वपूर्ण योगदान है। 

मध्यप्रदेश के गौरव कैलाश सत्यार्थी पहले गैर सरकारी व्यक्ति हैं जिन्हे संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करने का अवसर प्राप्त हुआ था। कैलाश सत्यार्थी का एनजीओ बाल श्रम और बाल तस्करी में फंसे बच्चों को मुक्त कराने का मानवीय प्रयास कर रहा है। नोबल कमेटी के अनुसार 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाने वाले सत्यार्थी ने गाँधी जी की परंपरा को कायम रखा है। भारत को विशवपटल पर गौरवान्वित करने वाले कैलाश सत्यार्थी के लिये ये कहना उचित होगा कि, 

आँधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की,
कैलाश सत्यार्थी को जिद्द है वहाँ आशियाँ बसाने की।
हिम्मत और हौसले बुलंद हैं,
मानवता की मशाल जलाने के लिये जंग अभी जारी है। 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, 2014 का शांति के लिये नोबल पुरस्कार सौहार्द का प्रतीक है। मलाला और कैलाश सत्यार्थी के मिशन में मानवता की इस मशाल को प्रज्वलित रखना हम सबकी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है।     

धन्यवाद