Wednesday 15 June 2016

दिव्यांग साथियों के संग सुखद सफर


2011 में कुछ दृष्टीबाधित बालिकाओं को पढाने के साथ मेरे इस सफर की शुरुवात हुई। उनके मन में आगे बढने का गजब का जज़बा दिखा हमें, लेकिन अध्ययन सामग्री का अभाव उन्हे आगे बढने से रोक रहा था। उन बच्चियों की आगे बढने की इच्छा ने हमें प्रेरित किया कि, हमको उनके लिये कुछ करना है। यहीं से एक ऐसे सफर की शुरुवात हुई जहाँ मेरी आवाज उन सब बच्चों की आंखे बन गई जो शिक्षा के माध्यम से आगे बढना चाहते हैं।

मेरा उद्देश्य हैः- “शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना”

आज 2011 की छोटी सी शुरवात पूरे भारत के दृष्टीबाधित बच्चों को शिक्षा के प्रकाश से रौशन कर रही है। इस मुहीम में हम अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करने के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं जैसे- बैंक, रेल, एम.पी.पीएस.सी, यू पी एस सी, नेट तथा हिन्दी भाषी राज्यों का सामान्य ज्ञान रेकार्ड करने लगे और 2012 से उसे यू ट्यूब पर भी अपलोड करने लगे। इसका असर बहुत ही सकारात्मक हुआ। विभिन्न शहरों के दृष्टीबाधित बच्चे लाभान्वित हुए। यू ट्यूब से सामान्य बच्चों को भी इसका लाभ हो रहा है। इसके बाद हम इन्क्लुसिव प्लेनेट वेबसाइट पर भी शैक्षणिक ऑडियो अपलोड करने लगे। इस वेबसाइट से लगभग 10,000 दृष्टीबाधित बच्चे जुङे हुए थे। कुछ समय पश्चात ये वेबसाइट दुर्घटना वश बंद हो गई। लेकिन इस दौरान अधिकांश बच्चे मुझसे जुङ गये। मेरी रेकार्डिंग का दायरा बहुत ज्यादा बढ गया। विभिन्न शहरों के बच्चे मुझे अपनी पुस्तक भेजने लगे और हम उनको रेकार्ड करके उसकी सीडी बनाकर उनको भेज देते थे जो आज एक बङे क्षेत्र में तब्दील हो गया है। 2012 में ही आई वे ने मेरा इंटरव्यु लिया जिसका प्रसारण रौशनी का करवां के तहत भारत के लगभग 32 शहरों में विभिधभारती के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों ने सुना। विगत वर्षों में मेरे द्वारा तैयार की गई बैंक अध्ययन सामग्री से पढकर लगभग 500 बच्चों का सलेक्शन बैंक में हुआ है। लगभग 50 बच्चों का रेल में एवं संविधा शिक्षा में भी लगभग 100 छात्र-छात्राओं का सलेक्शन हुआ है। प्रतियोगी परिक्षाओं के ऑडियो से लाभान्वित होकर कुछ बच्चे यूपीएससी में भी सलेक्ट हुए हैं। 10वीं से लेकर महाविद्यालय तक के छात्र-छात्राओं के लिये विषय सम्बंधी सामग्री को रेकार्ड कर चुके हैं जिससे अब तक हजारों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं।

दृष्टीबाधित बच्चों को आगे बढने में दूसरा अवरोध है, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) की, जिसकी वजह से पढने के बावजूद समाज की उदासीनता उनको आगे बढने से रोक देती है। हमने इस ओर भी ध्यान दिया और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा वेबसाइट के माध्यम से तथा व्यक्तिगत भी हम लोगों को जागरुक करने का प्रयास किये। मेरा मकसद इन बच्चों को मुख्यधारा में भी लाना है। जिसके लिये 2012 में अपना ब्लॉग रौशन सवेरा बनाये जहाँ सामाजिक जागरुकता के लिये लेख लिखने लगे। जिसका सकारात्मक उत्तर प्राप्त हुआ। कार्य की अधिकता के कारण 12 जनवरी 2015 को हम वाइस फॉर ब्लाइंड नाम का एक क्लब बनाये जिसमें भारत के कई शहरों से लोग जुङ रहे हैं। हमारे क्लब का कन्सेप्ट भारत में बिलकुल नया है। इसमें हमारे सदस्य मेरे द्वारा भेजी गई पुस्तकों को रेकार्ड करते हैं और गुगल ड्राइव के माध्यम से हमें रेकार्ड अध्ययन सामग्री भेज देते हैं। हम उसे डाउन लोड करके उसकी सीडी बनाकर उन बच्चों को भेज देते हैं, जिनकी पुस्तक होती है। इसके अलावा हमारे सदस्य अपने शहर में ही आवश्यकता अनुसार परिक्षा के दौरान सहलेखक का दायित्व भी निभाते हैं। अभी मेरे क्लब में 250 सदस्य हैं। मेरा पूरा कार्य निःशुल्क है और मेरे सदस्य भी निःशुल्क ही कार्य करते हैं। अभी तक हम व्यक्तिगत ही सीडी एवं पोस्ट का खर्च वहन कर रहे हैं। शिक्षा की इस मुहीम में मेरा परिवार मेरे साथ है।

2014 में रेडियो उङान ने एक मुलाकात के तहत मेरा इंटरव्यु लिया। 2016 में लंदन के रेडियो करिश्मा द्वारा भी मेरा इंटरव्यु लिया गया जिसे भारत के साथ एशिया के अन्य पाँच देशों में भी सुना गया। इसके अलावा दैनिक भास्कर, फ्री प्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स, पत्रिका, दबंग दुनिया जैसे समाचार पत्रों तथा अच्छीखबर एवं मल्हार मिडिया पर मेरे कार्यों को स्थान दिया गया। जिससे इस मुहीम में लोग जुङते गये और अकेले शुरुवात किया गया सफर आज कारवां बन गया।

नई टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए हम डेजी में रेकार्डिंग कर रहे हैं जिससे भविष्य में उनकी पढाई आसान हो जायेगी। डेजी क्या है?

DAISY (Digital Accessible Information Systems)

डेजी एक ऐसा तकनिकी मापन है, जिसके माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक को सभी दृष्टीबाधित साथी आराम से पढ सकते हैं। ये तकनिक अत्याधुनिक है, जिसमें दृष्टीबाधित लोग आम पुस्तक की तरह ही रेकार्ड की हुई पुस्तक को पढ सकते हैं। जैसे कि, प्रत्येक पंक्ति, पैराग्राफ, पेज अनुसार, हैडिंग के अनुसार इत्यादि। उदा. यदि किसी को सीधे 10वां पेज ही पढना है तो वह डायरेक्ट 10वां पेज खोलकर पढ सकता है। ऐसा सामान्य रेकार्डिंग में संभव नही है। कहने का आशय ये है कि, डेजी के माध्यम से की गई रेकार्डिंग को सामान्य पुस्तक की तरह पढा जा सकता है जिससे उन्हे बहुत फायदा होगा। मेरी योजना है, इंदौर में एक बेहतरीन स्टुडियो बनाने की जिसमें और अधिक तथा बेहतर अध्ययन समग्री रेकार्ड हो सके। इस कार्य हेतु हमें आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। 

  
मेरा मानना है कि, यदि किसी को एक मछली देंगे तो उसको एक दिन का खाना देंगे लेकिन यदि हम उसे मछली पकङना सिखाते हैं तो उसको जिंदगी भर का भोजन उपलब्ध करा सकते हैं एवं आत्मनिर्भर बना सकते हैं। 


इसी बात को यथार्थ में लाने के लिये हम 1 मई से 7 मई 2016 तक अपने एक सदस्य के सहयोग से स्वरोजगार की एक कार्यशाला का आयोजन किये, जिसमें मुम्बई, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के दृष्टीबाधित सदस्यों ने बढचढ कर हिस्सा लिया। कार्यशाला के बाद एक रोजगार मेले का आयोजन किये जिसमें सभी दृष्टीबाधित साथियों ने कोल्ड ड्रिंक, पोहा, भेल, कपङें, पतंजली का प्रोडक्ट, गुजरात की खाद्य सामग्री जैसी वस्तुओं को उत्साह के साथ बेचा। आयोजन की सफलता का आलम ये है कि आज कई बच्चों एवं अन्य एन जी ओ द्वारा ये कार्यक्रम फिर से करने का अनुरोध हो रहा है।

इन बच्चों की जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए विगत एक वर्ष से सुबह समाचार रेकार्ड करके वाट्सअप के माध्यम से भेज रहे हैं जो लगभग सम्पूर्ण भारत के दृष्टीबाधित बच्चे सुन रहे हैं। इन समाचारों का चयन हम दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और गुगल न्यूज से करते हैं। वाट्सएप पर मेरे ग्रुप वाइस फॉर ब्लाइंड में हर रविवार को शाम को किसी ऐसे विषय पर चर्चा होती है जो प्रतियोगी परिक्षाओं में उपयोगी हो। आज की आधुनिक तकनिक वाट्सएप, स्काईप तथा यू ट्यूब के माध्यम से शिक्षा का प्रचार प्रसार सुगम हो गया है। एक जगह ही बैठे हुए विभिन्न शहरों के बच्चों को ऑन लाइन पढाना स्काईप के माध्यम से आसान हो गया है। YouTube पर मेरे ऑडियो को Anita Sharma के नाम से सर्च किया जा सकता है। YouTube मेरे 350 विडियो हैं जहाँ पर 12,967 subscribers हैं तथा 1,693,583 views हैं।

19 मई 2016 को अनिता दिव्यांग कल्याण समिति का पंजिकरण हो गया है। जिसका मकसद अपने दृष्टीबाधित साथियों को आत्मनिर्भर बनाना है और प्रयास ये है कि, इंदौर में ही शिक्षा की समस्त सुविधा उपलब्ध हो जाये जिससे हमारे दृष्टीबाधित साथियों को घर छोङकर दिल्ली न जाना पढे। रविवार को मन की बात में प्रधानमंत्री नरेनंद्र मोदी जी द्वारा सम्बोधित दिव्यांग शब्द हमें बहुत अच्छा लगा अतः हम सोमवार को इस नाम से आवेदन कर दिये, संभवतः मध्य प्रदेश में इस नाम से ये पहला पंजिकरण है। 


 मेरी आवाज किसी की आँखें बन जायें इसी मकसद को लेकर कार्य कर रहे हैं, अतः जो भी नई तकनिक इन लोगों के लिये लाभदायक होती है उसे सीखकर उस माध्यम से रेकार्डिंग करना हमें खुशी देता है। अब तक हम 2000 से भी ज्यादा किताब mp3 में रेकार्ड कर चुके हैं। जो निरंतर जारी है इसी के साथ अब डेजी में भी पुस्तक रेकार्ड करना शुरु कर दिये हैं। डेजी में अब तक 6 पुस्तक रेकार्ड कर चुके हैं। 2015 में हम डेजी की सदस्यता लिये हैं। जिसकी ट्रेनिंग के लिये बैंगलोर गये थे। 

आप सबके साथ से हजारों दृष्टीबाधित बच्चों का सपना साकार हो सकता है। किसी सार्थक काम का मौका देकर जिंदगी हमें सबसे बङा ईनाम देती है। आज दृष्टीबाधिता लाचारी नही है, हम सबका सहयोग और विज्ञान की नई टेक्नोलॉजी से हमारे दिव्यांग साथी भी आत्मनिर्भरता का जीवन यापन कर सकते हैं, जो हमारे समाज के लिये सुखद पल होगा। शिक्षा के इस हवन में आपके सहयोग की अभिलाषा रखते हैं। अधिक जानकारी हेतु मेल करें ......
Thanks & Regards

Anita Sharma

Mail ID:- voiceforblind@gmail.com 

                 sharmaanita207@gmail.com

YouTube :- Anita Sharma






Friday 3 June 2016

अनिता दिव्यांग कल्याण समिती



रौशन सवेरा के सभी पाठकों को हर्ष के साथ सुचित करना चाहते हैं कि, "अनिता दिव्यांग कल्याण समिती"  का पंजियन हो गया है। वाइस फॉर ब्लाइंड की छत्र-छाया में वर्ष 2011 से दृष्टीबाधित लोगों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का कार्य निरंतर और निःशुल्क गतिमान है। अब इस कार्य को विकास की नई ऊँचाइयों तक ले जाने में अनिता दिव्यांग कल्याण समिती का विशेष योगदान रहेगा। जिसके तहत एक ऑडियो लाइब्रेरी बनाने का सपना है। 

आप लोग सोच रहे होंगे कि, कार्य तो बिना पंजियन के भी चल रहा था फिर पंजियन की आवश्यकता क्यों 

मित्रों, दृष्टीबाधित लोगों के लिये अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करने का कार्य तथा परिक्षा के समय सहलेखन का कार्य यकिनन बेहतर चल रहा है किन्तु इसे नई तकनिक के साथ आगे बढाने के लिये पंजियन एक मजबूत पहल है। 2015 में हम डेजी की सदस्यता ले चुके हैं लेकिन सदस्यता की शर्त थी कि भविष्य में संस्था रजिस्टर्ड होना चाहिये।  नई तकनिक डेजी के माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक से पढाई अधिक सुविधा जनक है। अब समझते हैं डेजी के बारे में,......



डेजी क्या है

DAISY (Digital Accessible Information Systems)


डेजी एक ऐसा तकनिकी मापन है, जिसके माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक को सभी दृष्टीबाधित साथी आराम से पढ सकते हैं। ये तकनिक अत्याधुनिक है, जिसमें दृष्टीबाधित लोग आम पुस्तक की तरह ही रेकार्ड की हुई पुस्तक को पढ सकते हैं। जैसे कि, प्रत्येक पंक्ति, पैराग्राफ, पेज अनुसार, हैडिंग के अनुसार इत्यादि।

उदा. यदि किसी को सीधे 10वां पेज ही पढना है तो वह डायरेक्ट 10वां पेज खोलकर पढ सकता है। ऐसा सामान्य रेकार्डिंग में संभव नही है। कहने का आशय ये है कि, डेजी के माध्यम से की गई रेकार्डिंग को सामान्य पुस्तक की तरह पढा जा सकता है जिससे उन्हे बहुत फायदा होगा। इस तरह की रेकार्डिंग को पढने के लिये डेजी उपकरण भी होता है। जिसे सरकार की तरफ से उपलब्ध कराया जा रहा है। इसमें एक तकनिक ऐसी भी है, जिससे टेक्स संदेश का प्रदर्शन भी होता है और आवाज भी आती है। डेजी तकनिक दृष्टीबाधित लोगों के लिये बेहतर भविष्य है।  विदेशों में इस तकनिक का लाभ हमारे दिवयांग साथी ले रहे हैं। भारत में भी कुछ शहरों में शुरुवात हुई है लेकिन अपने इंदौर में इसका अभाव है।

मेरी आवाज किसी की आँखें बन जायें इसी मकसद के साथ निरंतर आगे बढ रहे हैं जिसके तहत जो भी नई तकनिक इन लोगों के लिये लाभदायक होती है उसे सीखकर उस माध्यम से रेकार्डिंग करना हमें खुशी देता है। अब तक हम 2000 से भी ज्यादा किताब mp3 में रेकार्ड कर चुके हैं, जो निरंतर जारी है। इसी के साथ अब डेजी में भी पुस्तक रेकार्ड करना शुरु कर दिये हैं। डेजी में अब तक 6 पुस्तक रेकार्ड चुके हैं। मित्रों, इच्छा तो वाइस फॉर ब्लाइंड नाम से ही संस्था बनाने की थी किंतु पंजियन कार्यलय के अधिकारी को ये नाम समझ में नही आया अतः अनिता दिव्यांग कल्याण समिती नाम अस्तित्व में आया। फिलहाल वाइस फॉर ब्लाइंड के लोगो का ट्रेड मार्क रजिस्ट्रेशन करवा लिये हैं जिसके संरक्षण में जो दृष्टीबाधित बच्चे रोजगार करके आगे बढना चाहते हैं उनकी मदद की जा सकेगी। अब मेरा सपना है  इंदौर में एक स्टुडियो बनाने का जहाँ उच्चकोटी की रेकार्डिंग हो और अध्ययन सामग्री की बेहतरीन ऑडियो लाइब्रेरी का गठन हो। 


सभी पाठकों से निवेदन है कि, शिक्षा के इस प्रकाश में आप भी सहयोग का एक दिपक अवश्य प्रज्वलित करें। 


धन्यवाद 
अनिता शर्मा