Sunday 26 October 2014

दुविधा रूपी अंधकार को आत्मविश्वास से आलोकित करें


अक्सर कई छात्र मेल के द्वारा या फोन के माध्यम से हमसे पूछते हैं कि हम प्रवेश परिक्षाओं में कैसे सफलता पायें या किस तरह तैयारी करें कि हमें कामयाबी मिले?  सच तो ये है कि, कामयाबी की चाह लिये हम सब अपने-अपने क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं। परन्तु अपने कार्य सम्पादन के दौरान अक्सर एक दुविधा में भी रहते हैं कि हमारे द्वारा किया गया कार्य सफल होगा या नही, ये हम कर पायेंगे या नही  इत्यादि इत्यादि. मित्रों, इस तरह की आशंकायें हमारी ऊर्जा को छींण करने का प्रयास करती हैं और स्वंय के विश्वास पर एक प्रश्न चिन्ह लगा देती हैं।  यही दुविधा सफलता की सबसे बङी बाधा है। किसी भी कार्य को करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करना कार्य की रणनीति होती है परंतु जब नकारात्मक पहलु योजना पर हावी होता है तो यही संशय सफलता की सबसे बङी अङचन होती है। जिसके कारण हम एक कदम भी आगे नही रख पाते। जबकि जीवन का सबसे बङा सच है कि हमेशा परिस्थिति एक जैसी नही रहती, लक्ष्य की सफलता में कई रोङे आते हैं। जो इन रुकावटों को आत्मविश्वास के साथ पार करता है वो लक्ष्य हासिल करने में सफल होता है। लेकिन दूसरी ओर जो दुविधा के जंजाल में फंस जाता है, वो कभी भी आशाजनक सफलता नही अर्जित कर पाता है। ज्यादातर लोग ज्ञान और प्रतिभा की कमी से नही हारते बल्की इसलिये हार जाते हैं कि दुविधा में पङकर जीत से पहले ही मैदान छोङ देते हैं।

दुविधा तो एक द्वंद की स्थिति है, जिसमें व्यक्ति निर्णय नही ले पाता और न ही स्वतंत्र ढंग से सोच पाता है। इतिहास गवाह है कि प्रत्येक सफल व्यक्तियों के रास्ते में अनेक मुश्किलें आईं किन्तु उन्होने उसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया समझा और आगे के कार्य हेतु कोशिश करते रहे। कई बार हम लोग किसी कार्य को करने से पहले इतना ज्यादा सोचते हैं कि समय पर काम नही हो पाता या हम अवसर को दुविधा के भंवर में कहीं खो देते हैं। यदि हम विद्यार्थी की बात करें तो कई बार ऐसा होता है कि कुछ छात्र विषय को लेकर इतने ज्यादा संशय में रहते हैं कि वो फार्म भरने में लेट हो जाते हैं या आशंकाओं के चक्कर में गलत विषय का चयन कर लेते हैं। जबकि सच तो ये है कि सभी विषय में मेहनत करनी होती है तभी अच्छे अंक मिलते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यदि एक बुद्धिमान व्यक्ति भी लंबे समय तक दुविधाग्रस्त रहता है तो उसका भी मानसिक क्षरण हो जाता है। जिसके कारण सक्षम व्यक्ति भी उन्नति नही कर पाता। दुविधा सफलता की राह में सबसे बङी अङचन है। अत्यधिक संशय आत्मविश्वास को भी कमजोर बना देता है। यदि हम एक परशेंट असफल भी होते हैं, तो भी हमारे अनुभव में इजाफा ही होता है और अनुभव से आत्मविश्वास बढता है। मन में ये विश्वास रखना भी जरूरी है कि सब कुछ संभव है।

स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि,  संभव की सीमा जानने का सबसे अच्छा तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।

जो लोग सफलता की इबारत लिखे हैं उन्हे भी दुविधाओं के कोहरे से गुजरना पढा है परन्तु ऐसे में उन लोगों ने परिस्थिति को इस तरह ढाला कि वे अपनी योजनाएं  स्वयं निर्धारित कर सके। सफलता के लिये ये भी आवश्यक है कि हम हर परिस्थिति में स्वंय को तैयार रखें। किसी भी सफलता के लिये ये जरूरी है कि हम निर्णय लेने की भूमिका में आगे बढें; क्योंकि एक कदम भी आगे बढाने के लिये निर्णय तो लेना ही पङता है, तद्पश्चात जिंदगी हमें धीरे-धीरे खुद ही निर्णय लेना सीखा देती है। अतः सबसे पहले हम दुविधापूर्ण मनः स्थिति के शिकार न होते हुए स्वंय को संतुलित रखते हुए दुविधा रूपी अंधकार को आत्मविश्वास से आलोकित करें, जिससे आशंकाओं और दुविधाओं का तिमिर नष्ट हो तथा सफलता की और हमसब का कदम अग्रसर हो।

डॉ.ए.पी.जे. कलाम के अनुसार,  Confidence & hard work is the best medicine to kill the disease called failure. It will make you a successful person. 

Best of Luck 

Wednesday 22 October 2014

दिपावली की शुभकामनाएं


                   सभी पाठकों को दिपावली की हार्दिक बधाई
               
                 दिपावली का ये पावन त्योहार,
                 जीवन में लाये खुशियाँ अपार,
                लक्ष्मी जी विराजें आपके द्वार,
 मंगल कामनाओं से आलोकित हो आपका घर संसार।
                              शुभ दिपावली


Monday 20 October 2014

मानवीय चेतना को प्रकाशित करें


आज जीवन, समाज एवं राष्ट्र के बहुत सारे अंग अँधेरे में घिरे हुए हैं। आज की दुनिया में सेवा, सहकार, त्याग आदि गुणं को अलगाववाद, आतंकवाद एवं जातिवाद तथा स्वहित के सघन अंधेरे ने घेर लिया है।  हिंसा, अपराध, हत्या,  भ्रष्टाचार एवं बलात्कार जैसी घटनाएं हर किसी को भयभीत कर रही हैं। मित्रों,  सच तो ये है कि अँधेरे की कोई सत्ता नही होती वह तो केवल प्रकाश का अभाव मात्र है, जैसे ही प्रकाश का आगमन होता है वह अंधेरा अपने आप दूर चला जाता है।  जब आत्मबल, मनोबल एवं साहस रूपी तेल का दिया संकल्प तथा पराक्रम की बाती के साथ जलता  है तो आशा विश्वास एवं उत्साह का वातावरण निर्मित होता है जिससे सभी अंधकार, अर्धम तथा नकारात्मक ऊर्जाओं का अंत निश्चित है। दिपावली में जलने वाले अनगिनत दीप भले ही छोटे-छोटे  हैं परंतु इन छोटे दिपों में मानवीय चेतना समाई हुई है।  इन्ही दिपों में  जिंदगी का बुनियादी सच समाया हुआ है। अप्प दिपो भव कहकर भगवान बुद्ध ने दिये के महत्व को अभिव्यक्त किया था।  ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि एक छोटा सा दिया जिस तरह अंधेरे को दूर करता है उससे  अनेक लोगों को आगे बढने की प्रेरणा मिलती है। अतः मित्रों इस दिपावली पर दिये की शक्ती को आत्मसात करते हुए ऐसा दिपक जलाएं जिसमें आशा और विश्वास का समावेश हो, उसकी ज्योति से अंर्तमन के साहस को प्रकाशित करें जिससे जीवन के सभी रास्ते भयमुक्त हों और सफलता रौशन हो।  एकता तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना लिये  इस दिपावली हमसब मिलकर आतंक के इन अंधकार रूपी असुरों का नाश करें। जिससे सम्पूर्ण विश्व मुस्करा सके और प्रकाश पर्व सार्थक हो।   

रौशनी का पर्व है, दिप सबको मिलकर जलाना है,
जो हर दिल को अच्छा लगे गीत ऐसा सुनाना है,
गिले-शिकवे सब भूलकर सबको गले लगाना है,
ईद हो या दिपावली बस खुशियों का पर्व मनाना है। 

दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

मित्रों पूर्व की पोस्ट पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें।

http://www.roshansavera.blogspot.in/2012/11/happy-deepawali_11.html



Sunday 5 October 2014

किताबों का सुनहरा संसार

आज की अत्याधुनिक जीवन शैली में अनेक लोग लेपटॉप, मोबाइल आई पैड लिये कहीं भी दिख जायेंगे। बस का सफर हो या ट्रेन का कहीं भी अप टू डेट कहे जाने वाले लोग इंटरनेट के माध्यम से गुगल पर सर्च करके सभी जानकारी से अपडेट हो जाना चाहते हैं। मित्रों, क्या आपने कभी ये सोचा कि ये हाई प्रोफाइल माध्यम में जानकारियां आईं कहाँ से ? निः संदेह इन जानकारियों का स्रोत हमारी किताबें ही जहाँ से इन जानकारियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में परिवर्तित करने का प्रयास चल रहा है। परंतु अभी भी ज्ञान का अथाह सागर लिये हमारी पुस्तकों का ज्ञान इन आधुनिक उपक्रमों में मिल पान असंभव है। जिन्हे  वास्तविकता में जानकारियों की चाहत होती है उन्हे  तो किताबों के संसार में ही डुबकी लगाने से तृप्ति मिलती है। सच्चाई तो ये है कि गुगल जैसे सर्च इंजन हमारी जिज्ञासा को पूर्णतः शान्त नही कर सकते उसके लिये तो हमें किताबों के शरण में ही जाना चाहिये। 


पुस्तकें हमारे समाज का आइना होती हैं। जिनके जरिये हम अपने अतीत के गौरवमय इतिहास को देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। प्रेमचंद जी की कहानियाँ हों या टैगोर की कविताएं सभी के माध्यम से सामजिक चित्रण हमारे मानस पटल को छू जाता है। गर्मी की छुट्टियों में नंदन, चंदामामा,चंपक और चाचा चौधरी जैसी अनेक किताबों को पढते हुए बच्चे, एक मधुर कल्पना में कहीं खो जाते थे। परंतु आज स्थिती बदल गई है, पुस्तकें तो बहुत हैं किन्तु आधुनिकता की चादर ओढे लोग उन्हे पढना नही चाहते। आज के बच्चे भी मोबाइल पे गेम खेलकर या टीवी देखकर अपना मनोरंजन कर रहे हैं। जबकि पुस्तकें तो हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं, सिर्फ देना जानती हैं बदले में आपसे कुछ नही माँगती। पुस्तकें तो हमें एक ही जगह बैठे-बैठे दुनिया की सैर करा देती हैं। हमारे व्यक्तित्व को निखारती हैं। हावर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन के अनुसार, किताबों से हमें अलग-अलग प्रकार के लोगों को समझने में मदद मिलती है। किस्से कहानियों के माध्यम से हमें एक नया अनुभव और नजरिया मिलता है।हम दूसरे लोगों की सोच और व्यवहार का अंदाजा लगा सकते हैं।

एक सर्वे के अनुसार यदि रोजमर्रा की भाग-दौङ भरी जिंदगी में से मात्र 6 मिनट आप कुछ पढने के लिये निकाल लें तो सच मानिये आपके स्ट्रेस का 2/3 हिस्सा यूँ ही कम हो जाता है। युनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में माइंड इंटरनेशनल द्वारा किये शोध के अनुसार, संगीत सुनने, वॉक पर जाने या चाय पीने के मुकाबले कुछ पढने से स्ट्रेस तेजी से कम होता है।शोधकर्ताओं का मानना है कि पढते हुए व्यक्ति को अपना दिमाग एक जगह केन्द्रित करना होता है और ऐसा करने से उसके मन एवं शरीर का टेंशन धिरे-धिरे निकल जाता है। शोध के नतीजे बताते हैं कि, संगीत से 61 फीसदी, चाय से 54 फीसदी एवं वॉक से 42 फीसदी तनाव घटता है। जबकी पढने से 68 फीसदी तनाव घटता है। मित्रों, आज हमलोगों की जीवन शैली अनेकों तनावों के अधीन हैं और तो और अर्थव्यवस्था पर कम्प्युटर का  प्रतिदिन बढता प्रभाव तनाव को और बढा रहा हैं। ऐसे में किताबों को पढने की आदत हमारे तनाव को कम करने में बहुत मददगार साबित होतीं हैं।

22वें विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि, देश में ज्ञान की भूख अधिक है और इंनटरनेट के युग में भी किताबों की अहमियत बरकरार है क्योंकि किताबें पढने की आदत हमारी सभ्यता में निहीत है। उन्होने कहा कि कोई भी सभ्य समाज बच्चों के लिये सार्थक लेखन के बिना विकसित नहीं हो सकता। भारत देश में तो ज्ञान और पुस्तकों की परंपरा का आदर किया जाता है।

प्राचीन समय में ताम्रपत्र पर लिखे साक्ष्य और प्राचीन ग्रंथो को प्रमाणिक माना जाता है। इनमें लिखी बातों को बिना किसी विवाद के स्वीकार किया जाता है और यही कारण है कि व्यक्ति इनमें निहीत ज्ञान को अपने जीवन में अपनाता है। रामयण, गीता, कुरान, बाइबिल और गुरुग्रन्थ साहिब जैसी पुस्तकें सिर्फ पढी ही नही जाती बल्की उनके अनुयायी उनकी पूजा भी करते हैं। पुराने समय में जब लङकियों को पढाया नही जाता था तब भी उन्हे धार्मिक पुस्तकों को पढने के लिये अक्षर ज्ञान दिया जाता था।

आज हमारे देश में अनेक न्यूज चैनल हैं फिर भी सुबह-सुबह अखबार का इंतजार इस बात को सत्यापित करता है कि प्रिंट मिडीया का महत्व अभी भी हमारी जिंदगी में है। अतः मित्रों, हम आज के परिवेश में किताबों के महत्व को अनदेखा नही कर सकते। आज भी हमारी संस्कृति, सभ्यता, धर्म तथा आध्यात्म को समेटे हमारी पुस्तकें ज्ञान का भण्डार हैं। जिसके अस्तित्व को नकारा नही जा सकता।
A room without Books is like a Body without a Soul.  


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Thursday 2 October 2014

दशहरा की हर्दिक बधाई




सुखद और संपन्न जीवन  की शुभकामना के साथ विजयदशमी की हार्दिक बधाई  

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असत्य पर सत्य की जीत

Wednesday 1 October 2014

राजनीति के रत्न, लाल बहादुर शास्त्री


राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का अभिनंदन करते हुए, 2 अक्टुबर को जन्में गाँधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत लाल बहादुर शास्त्री जी का भी वंदन करते हैं। लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को दर किनार करते हुए काम की चिन्ता करते थे, न की नाम की। जातिवाद का विरोध करते हुए उन्होने अपने नाम के आगे से श्रिवास्तव सरनेम हटा दिया था। विद्यापीठ से मिली शास्त्री की उपाधी से ही वे जनमानस में लोकप्रिय रहे। भारत की आजादी के उपरान्त काम के प्रति उनकी निष्ठा, परिश्रम तथा विश्वास को देखते हुए उन्हे उत्तर प्रदेश मंत्रीमंडल में संसदिय सचिव बनाया गया। उत्तर प्रदेश सरकार में जब वह गृहमंत्री थे तब उन्हे कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया। केंद्रिय मंत्रीमंडल में रेलमंत्री के रूप में उन्होने बहुत अच्छा काम किया था। किंतु दो रेल दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिये। उनके समर्थन में हजारों तार एव खत आये परंतु उन्होने दुबारा रेलमंत्री का पद ग्रहण नही किया। उनके अद्भुत व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि, नेहरु जी के बाद श्री शास्त्री जी को प्रधान मंत्री बनाया गया। प्रधान मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अनेक चुनौतियों से युक्त था। फिर भी वे तनिक भी विचलित हुए देशहित के लिये अनेक निर्णय लिये, जिसमें 1965 की सुबह पाकिस्तान का भारत पर अचानक आक्रमण, अत्यधिक चुनौतिपूर्ण था। इस कार्य को शास्त्री जी ने बहुत ही सजगता पूर्ण किया। उन्होने देश को एक सफल नेतृत्व प्रदान किया। शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा देकर राष्ट्र के दो आधार स्तंभो, सैनिकों और किसानों का मनोबल बढाया। 

शास्त्री जी का जिवन कर्ममय रहा। कभी-कभी तो काम में इतने लीन हो जाते थे कि भोजन करना ही भूल जाते थे। कर्मक्षेत्र में उनकी तद्परता और सहजता सदैव परिलाक्षित होती है। वे अपने कर्मचारियों में कर्म के प्रति आलस के भाव को बिलकुल भी पसंद नही करते थे। असंभव समझा जाने वाला कार्य जब शास्त्री जी को दिया जाता था तो वो उसे इतनी सरलता से पूर्ण कर देते थे कि विरोधी भी उनकी प्रशंसा किये बिना नही रह पाते थे। शास्त्री जी का एक-एक पल देशहित के कामों में समर्पित था। शास्त्री जी की लोकप्रियता का आलम ये था कि, उनके प्रारंभिक जीवन से ही अनेक लोग उन्हे पसंद करते थे। राजनीति के छलप्रपंच रूपी किचङ में वो कमल के समान थे। उनकी ईमानदारी एवं कतर्व्यनिष्ठा की आज भी मिसाल दी जाती है। राष्ट्र के पैसे को वो कभी भी स्वहित के लिये खर्च नही करते थे। भारत रत्न से अलंकृत लाल बहादुर शास्त्री जी राजनीति के भी अनमोल रत्न हैं। सादा जीवन और उच्च विचार की ज्योत जलाने वाले अनमोल रत्नो को उनके जन्म दिवस पर शत्-शत् नमन करते हैं। 
जय भारत 

नोटः- निवेदन है कि, दिये हुए लिकं पर क्लिक कर उन्हे भी पढे तथा अपने विचार (Feed back) अवश्य दें. आपके विचार लेख को सशक्त बनाते हैं। धन्यवाद :)
लोक हितकारी सितारे