Saturday 9 May 2015

मातृ दिवस विशेष


मित्रों, हम सब मदर्स डे बहुत उत्साह से मनाते हैं, सच कहें तो माँ के सम्मान में एक दिन क्या वर्ष के 365 दिन भी कम हैं। 
जो जन्म देती है वो हमारी माँ है, इसके अलावा हम भारतीयों के लिये माँ का स्वरूप लिये गौ माता तथा धरती माता हैं, जिनका हमारे अस्तित्व को कायम रखने में विशेष स्थान है। आदि काल से गाय को माता के समान माना जाता है। यदि किसी कारण वश बच्चे को माँ का दूध नही मिल पाता तो नवजात शिशु को गौ माता का ही दूध दिया जाता है। गौ माता, पृथ्वी, प्रकृति तथा परमात्मा का स्वरूप है। भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति सुजाता द्वारा प्रदत्त गौ दूध की खीर से हुई थी। बाईबिल एवं कुरान में भी गौ माता की महिमा का उल्लेख है। वैज्ञानिकों ने जिस प्रकार विज्ञान का विकास किया उसी प्रकार आध्यात्मिक मनिषियों ने गौ विज्ञान का आविष्कार किया। गाय के दूध से समस्त समाज को शक्ति, बल एवं सात्विक बुद्धी प्राप्त होती है। गाय का गोबर एवं मूत्र खेती के लिये पोषण का कार्य करते हैं। एक सर्वे के अनुसार जापान जैसे आधुनिक टैक्नोलॉजी वाले देश में गाय के गोबर से बनी खाद को सबसे अच्छी खाद मानते हैं। गाय धरती पर एक मात्र प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहंण करती है और ऑक्सीजन छोङती भी है। वो प्रकृति से 21%  ऑक्सीजन लेती है और 5%  लेकर 16%  प्रकृति को वापस कर देती है। गाँव प्रधान एवं कृषी प्रधान देश भारत में गौ माता का कोई विकल्प नही है , फिर भी  आज हम अपनी संस्कृति, गौ माता को अनदेखा कर रहे हैं। प्लास्टिक की थैलियों के रूप में उसे खाने को जहर दे रहे हैं। आज कई गौ माता की मृत्यु प्लास्टिक की थैलियां खाने से हो रही है, जिसे हम सभी जाने अंजाने में उसे दे रहे हैं। मानव संस्कृति की समृद्धि गाय की समृद्धि से जुङी हुई है। अतः हमें अपनी गौ माता को यत्र-तत्र बिखरी प्लास्टिक की थैलियों से बचाना होगा। यदि हम देश का विकास चाहते हैंं तो हमें हर हाल में गौ माता की रक्षा करनी होगी।  

हम सबकी एक और माँ है वो है धरती माँ, जिसकी वजह से हम सबको रहने के लिये घर और जिवित रहने के लिये भोजन प्राप्त होता है। धरती पर ही अनाज, फल, फूल, साग सब्जियाँ इत्यादी उगते हैं जिससे सभी सजीव जगत का पालन पोषण होता है। पुराणों के अनुसार धरती को सदैव माता माना गया है और यहाँ तक की धरती पर पैर रखना भी पुराणों में पाप मान जाता है लेकिन धरती पर पैर रखे बिना व्यक्ति कोई कार्य नही कर सकता इसलिये सुबह-सुबह धरती पर पैर रखने से पहले क्षमा-याचना हेतु पुराणों में एक श्लोक दिया गया है, 

समुंद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।। 
अर्थात समुद्र रूपी वस्त्र पहनने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी, हे माता पृथ्वी, आप मुझे पाद (पांव) स्पर्श के लिए क्षमा करें। 


ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, ये श्लोक तो बहुत कम ही लोग अपने दैनिक जीवन में पढते होंगे। बरहाल धरती माता को आज सबसे बङा खतरा ग्लोबल वार्मिंग से है और रही सही कसर भू माफिया के आतंक से है। रत्नगर्भा, वसुंधरा को इस धरती के उन लोगों से सबसे ज्यादा खतरा है जो हरी भरी धरा को कंक्रीट के जंगलो में बदल रहे हैं। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है, किन्तु मित्रों, सिर्फ एक दिन की जागरुकता से हम अपनी धरती माता की मुस्कान वापस नही कर सकते। इसके लिये हमें हर पल प्रयास करना होगा नये पेङ पौधों से धरती माँ की हरियाली को वापस लाना होगा। 

मित्रों, गौ माता और धरती माता एक दूसरे की पूरक हैं। पुराणों और शास्त्रों में भी गौ माता को धरती माता का जीवन्त रूप माना गया है। इन दोनों का ही हम सबके जीवन में उतना ही महत्व है जितना की हमारी जन्मदात्री माँ का। अतः आज हम सब ये संकल्प करें कि, गौ माता तथा धरती माता की हर संभव रक्षा करेंगे। 

एक निवेदनः-  दिये गये लिंक पर क्लिक करके उसे अवश्य पढें

Special Mother: पन्ना धाय

धन्यवाद
अनिता शर्मा 




Saturday 2 May 2015

निःस्वार्थ सहयोग से जिंदगी को रौशन करें


मित्रों, अरबों की आबादी वाले देश में आज विकास की गति भी अपनी आधुनिक तकनीक से दिन प्रतिदिन बढ रही है और जनसंख्या की बात करें तो अपना देश भारत, विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। विकास की इस चाल में कहीं कुछ पिछङता हुआ भी नजर आ रहा है। जगजीत सिंह की गजल पर गौर करें तो, "हर जगह हर तरफ बेशुमार आदमी फिर भी तनहांईयों का शिकार आदमी"  ये पंक्ति आज की सच्चाई बयां करती है। आज हम तरक्की की इबारत लिख रहे हैं और जिंदगी के सफर में हर दिन  इंसानो की भीङ से दो चार हो रहें हैं और इस भीङ भरी आँधी में इंसानियत के अपनेपन को तङपते हुए भी देख रहे हैं।  हमारी भारतीय संस्कृति की धरोहर सहयोग की भावना, विकास की इस आँधी में दूर होती नजर आ रही है। हम ये नही कह सकते कि सहयोग की भावना खत्म ही हो गई क्योंकि आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने दर्द को भूलकर दूसरों के जीवन को खुशहाल करने का भाव रखते हैं और हर संभव प्रयास भी करते हैं। जैसा कि, आप सभी पाठकों को पता होगा कि मई-जून में भारत के लगभग सभी राज्यों में परिक्षा का मौसम होता है और हर कोई अच्छे नम्बर लाने की कोशिश करता है ताकि अच्छे नम्बरों वाली डिग्री से अच्छी नौकरी मिले तथा जीवन सुखमय हो जाये। करोणों की संख्या वाले विद्यार्थियों के बीच कुछ हजारों की संख्या में ऐसे भी विद्यार्थी हैं जो वर्षभर मेहनत से पढते हैं लेकिन समाज और सरकार की उदासीनता की वजह से परिक्षा नही दे पाते क्योंकि वो देख नही सकते उनको परिक्षा में सहलेखक की आवश्यकता होती है, परंतु ऐसे जरूरत के समय पर हममें में से कई लोगों के पास  दूसरों के लिये वक्त नही होता। ऐसे में  हाल ही में गुजरात की एक घटना  आप सबसे शेयर करना चाहेंगे। वहाँ महाविद्यालय की परिक्षा चल रही है। अहमदाबाद में सामान्य विद्यार्थियों के बीच कुछ दृष्टीबाधित बच्चे भी अपने सपनो को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में अंध कल्यांण केन्द्र की दृष्टिबाधित बालिका हेतल को भी B.A. II year की परिक्षा देनी थी लेकिन उसे कोई राइटर नही मिला तो उसके ही संस्था की अल्पदृष्टीबाधित बालिका प्रियंका उसका पेपर लिखने को तैयार हो गई हालांकी प्रियंका के लिये ये आसान नही है क्योंकि अल्पदृष्टी के साथ कॉलेज के पेपर को लिखना किसी साहस से कम नही है। फिर भी प्रियंका अपनी दोस्त हेतल का पेपर देने में पुरा सहयोग दे रही है क्योंकि वह अपनी दोस्त हेतल के सपनों को साकार करना चाहती है। ऐसे में उसे अपनी परेशानी बहुत छोटी नजर आ रही है। प्रियंका जैसे और भी कई लोगों से मेरा सामना हुआ जो अपनी तकलीफ को दरकिनार करते हुए दूसरों की मदद के लिये सदैव तत्पर  रहते हैं। इंदौर में एक बालिका वर्षा, पोलियो  से ग्रस्त है फिर भी उसने अपनी पढाई अच्छे से पूरी की और ट्राईसिकल पर रोज दृष्टीबाधित बालिकाओं की मदद करने जाती थी। ऐसा ही एक वाक्या और है जब हम इंदौर में राइटर के लिये समाचार पत्र में अनुरोध किये तो देवास से एक विकलांग बालक विनय ने हमें फोन किया कि हम परिक्षा देने को तैयार हैं। मित्रों, ऐसे लोगों के जज़बों को हम और हमारा वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब सलाम करता है। हालांकी समाचार पत्र में दिये इश्तेहार से कई दृष्टीसक्षम लोग भी सहायता के लिये आगे आये और उन लोगों ने सहयोग भी दिया और दे भी रहे हैं किन्तु जितनी आवश्यकता है राइटर की उतनी पूर्ती नही हो रही है तभी तो हमारे देश में हेतल जैसी छात्राओं या छात्रों को राइटर का अभाव आज भी सहना पङ रहा है। एक कहावत है जाके पङे न पैर बवाई वो क्या जाने पीर पराई। दोस्तों, इस कहावत को झुटला दिजीये और जिंदगी की तेज रफ्तार में अपने मन में उन लोगों के दर्द का एहसास महसूस किजीये जिन्हे आपकी जरूरत है। आइये हम सब मिलकर निःस्वार्थ भाव से भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित करें और अपने सहयोग से हजारों दृष्टीबाधित लोगों की जिंदगियों को रौशन करें। आपका सकारात्मक सहयोग किसी के सपने को साकार कर सकता है।  
धन्यवाद

एक अनुरोधः- आप में से जो भी पाठक दृष्टीबाधित लोगों की मदद करना चाहते हैं,  वो ब्लॉग में अटैच फार्म को भरकर अपने सहयोग का क्षेत्र बतायें।