प्रेमचंद के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय हिन्दी और उर्दु के महानतम
भारतीय लेखकों में से एक हैं। मुशी प्रेमचंद और नवाब राय तथा उपन्यास सम्राट के
नाम से अविभूत प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक विरासत हैं। ठेठ देहाती
धोती-कुर्ता ग्रामीण वेष-भूषा में गोरी सूरत, घनी काली भौहें, छोटी-छोटी आँखें,
नुकीली नाक और बङी-बङी गुछी हुई मूँछों वाला मुसकराता चेहरा मुंशी प्रेमचंद के
व्यक्तित्व को परिलाक्षित करता है। बचपन से ही रोने-खीजने वाली परिस्थितियों को
हंसी में उङाने वाले प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही नामक
गॉव में हुआ था।
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के पक्षधर मुशी प्रेमचंद जी अपनी इस मनोवैज्ञानिक
धारणा को प्रतिष्ठित करके पाठकों के सम्मुख रखते हैं। मंत्र कहानी का रूप भी इसी
प्रकार का है जिसमें यथार्थ और आदर्श का गहरा द्वन्द है और अंत में विजय आदर्श की
होती है। कहानी में भगत अपने आर्दशत्मक व्यवहार से पाठकों पर गहरी छाप छोङता है।
वहीं डॉ. चढ्ढा का भी चरित्र कहानी के अंत में आदर्श को स्पर्श करता है।
मंत्र
डॉ. चढ्ढा गोल्फ खेलने जा रहे थे। उसी समय एक ग्रामीण बिमार पुत्र को लेकर
आता है। परन्तु डॉ.साहब उसको एक नजर भी देखने का कष्ट नही उठाते। वो बेचारा
ग्रामीण उनसे लाख विनती करता है, अपनी पगङी तक उतार कर रख देता है और ये भी कहता
है कि यदि उन्होने रोगी को नही देखा तो वो मर जायेगा। परंतु डॉ. चढ्ढा पर उसकी
याचना का कोई प्रभाव नही पङता। डॉ. साहब मोटर में बैठकर चले जाते हैं। उसी रात उस
वृद्ध ग्रामीण का एक मात्र सहारा उसका 7 वर्ष का पुत्र मर जाता है।
वहीं दूसरी ओर डॉ. साहब के पुत्र का नाम कैलाश था, जो कॉलेज में पढता था।
इस घटना को कई वर्ष बीत चुके थे। कैलाश की बीसवीं सालगिरह थी। उसकी प्रेमिका और
सहपाठिनी मृणालीनी भी इस अवसर पर उपस्थित थी। कैलाश को साँप पालने का शौक था। उसने
सर्पों के बारे में एक सपेरे से बहुत कुछ सीखा था। जन्मदिन के उपलक्ष पर मृणालिनी
ने कैलाश से सांप दिखाने का आग्रह किया। पहले तो उसने मना कर दिया किन्तु आग्रह
बढने पर दिखाने के लिए राजी हो गया। मित्रों ने कटाक्ष किया कि दाँत तोङ दिया
होगा। कैलाश ने कहा कि सबके दाँत सुरक्षित हैं। इसपर लगभग कई दोस्त कहने लगे दिखाओ
तो सच माने। कैलाश इस बात से तिलमिला गया और एक काले साँप को पकङ कर बोला कि ये
मेरे पास सबसे विषेला साँप है, मैं इसके दाँत दिखाता हुँ। इस क्रिया में कैलाश ने
उस साँप की गरदन दबा दी। दबाव के कारण विषधर ने मुहँ खोल दिया जिससे दाँत साफ
दिखाई देने लगे। परंतु ज्यों ही कैलाश ने साँप की गरदन ढीली की उसने कैलाश को काट
लिया। जङी-बूटी लगाई गई, झाङ-फूक वाले को बुलाया गया। सारे उपाय व्यर्थ हो गये
कैलाश की हालत बिगङती गई। आनंद का माहौल दुःख में बदल गया। पूरे गॉव में आग की तरह
ये खबर फैल गई कि डॉ.चढ्ढा के बेटे को साँप ने काट लिया।
उस समय जोर की ठंड पङ रही थी, बुढा ग्रामीण भगत अपनी झोपङी में आग ताप रहा
था उसे भी ये समाचार मिला। 80 साल के जीवन
में अभी तक यदि कहीं भी साँप काटने की बात भगत सुनता तो दौङा चला जाता था क्योंकि
जहरीले से भी जहरीले साँप का जहर वो उतार सकता था। परंतु इसबार उसके मन में
प्रतिक्रिया का भाव जागा। उसे उपने बेटे का दम तोङता चेहरा याद आ गया। उसने सोचा
अब डॉ. चढ्ढा को पता चलेगा कि बेटे का दर्द क्या होता है। लेकिन कुछ पल बाद ही भगत
के मन में ख्याल आया कि जीवन तो अमुल्य है उसे बचाना पुन्य काम है। उसके मन में
आक्रोश और कल्याण भावना में द्वन्द होने लगा। अंत में कल्याण की भावना भगत पर हावी
हो गई क्योंकि वो बहुत नेक इंसान था। गरीब होते हुए भी इंसानियत का धनी था।
डॉ. के उदासीन व्यवहार के बावजूद भगत चढ्ढा की कोठी पर गया। उस समय रात्री
के 2 बज रहे थे, भयंकर ठंड पङ रही थी। भगत ने कैलाश को देखा और डॉ. से बोला की अभी
कुछ नही बिगङा है, कहांरो से पानी भरवाओ। कैलाश के ऊपर पानी डाला जाने लगा और
वृद्ध भगत मंत्र पढने लगा। प्रातः काल होते-होते कैलाश ने आँखे खोल दी। उसे ठीक
करके भगत चुप-चाप वहाँ से चला गया। सुबह भगत का चेहरा देखकर डॉ. चढ्ढा को याद आया
कि ये वही बुढ्ढा है जो एकबार अपने बेटे को इलाज के लिए लाया था, लेकिन तब तक भगत
अपने घर जा चुका होता है। डॉ. चढ्ढा को अपने किये पर पछतावा होता है। वो भगत से
क्षमा माँगने के लिए उसे ढूढते हैं। डॉ. अपनी पत्नी से कहते हैं कि, गरीब और अशिक्षित होते
हुए भी इस वृद्ध ने सज्जनता और कर्तव्य का आदर्श प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद जी ने इंसानियत और कर्तव्य की शिक्षा देते हुए
ये समझाया है कि बदले की भावना को कभी भी सच्चे आर्दशों पर हावी नही होने देना
चाहिए और कैलाश के चरित्र के माध्यम से ये समझाया है कि शेखी बघारने से कितना बङा
नुकसान हो सकता है। जन-मानस में भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर को भगत के
व्यवहार से ये बोध हो जाता है कि, समाज में हर किसी को एक दूसरे की आवश्यकता हो
सकती है। कोई बङा या छोटा नही होता। प्रेमचंद जी की सभी कहानियाँ सामाजिक पहलु को
साकार करते हुए जन-मानस को सकारात्मक संदेश देती हैं।
Bhaut hii achhi kahani....heart touching....kah sakte hain ki doctor ke roop me Chaddha ek maamoli insaan the par ek grameen ke parvesh me wh vriddh bhgwaan kaa roop tha.... bahut achcha laga padh ke.
ReplyDeleteधन्यवाद गोपाल, प्रेमचंद जी की कहानी (मंत्र) को हम कक्षा नवीं में पढे थे, तभी से मेरे अंर्तमन में थी और हमें बहुत अच्छी लगी थी। आज हमें अवसर मिला तो ब्लॉग के माध्यम से सबसे सांझा किये।
ReplyDeletenice
DeleteInspiriring story
ReplyDeleteVery nice story.....heart touching and thanks
ReplyDeleteThank you so much abstract ko bnane ke liye... 5 minutes me pura smjh aa gya...
ReplyDeleteहालांकि नैतिक दृष्टि से यह एक शानदार कहानी है, पर खेद का विषय है कि अनजाने में ही यह कहानी इस बात को प्रमोट करती है कि सांप के जहर को मंत्र से उतारा जा सकता है। जबकि सच्चाई यह है कि सांप के जहर का एकमात्र प्रामाणिक इलाज एंटीवेनम इंजेक्शन है। लेकिन इस तरह की कहानियों और लोक प्रचलित अंधविश्वासों के चलते आज भी हजारों लोग सांप के काटने पर ओझाओं की शरण में जाते हैं और इस वजह से हजारों लोग प्रतिवर्ष काल के गाल में समा जाते हैं। इसलिए इस कहानी के साथ अगर आप यह डिस्क्लेमर लगा दें, तो उचित होगा। इस सम्बंध में अन्य जानकारी आप इस लिंक पर भी देख सकते हैं- https://snakes.scientificworld.in/2010/07/snake-myths.html
ReplyDeleteJb doctor nhi the jb medicine nhi thi to maaf kijiyega kuchh aisi hi parikriyaaon se logo ki jaan bchai jaati thi ispr aapka ye vyengy kisi v drusti se uchit nhi.
Deletevery nice blog.Thank you
ReplyDeleteawesome article.
ReplyDeletenice information
ReplyDeleteVery nice story.....heart touching. Good!
ReplyDeleteAubrey
Nice
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