Monday 27 April 2015

अनोखी पहल

भारत की आजादी के 68 साल बाद आखिर देश के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान में भारतीयता ने दस्तक दे दी। काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में 2015 के दिक्षांत समारोह का रंग भारतीय संस्कृति से रंग गया, जब सभी छात्रों ने नई परंपरा की शुरुवात की। बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के 97 वें दिक्षांत समारोह में सभी छात्रों ने अंग्रेजो की परंपरा यानी की काले गाउन को नकार दिया। छात्रों ने मदन मोहन मालवीय जी की तरह धोती-कुर्ता और सर पर उनके जैसी ही टोपी पहन कर दिक्षा ली और छात्राओं ने लाल रंग के बार्डर वाली सफदे साङी पहनी तो कुछ छात्राएं सफदे सलवार कुर्ते में सर पर साफा लगाए नजर आईं। माँ सरस्वती के आँगन में एक नई किरण का आगाज हुआ। ये नई पहल बनारस हिन्दु विश्वविद्याल के कुलपती  प्रो. जे.सी.त्रीपाठी जी के प्रोत्साहन का ही परिणाम है। 

मैकाले की शिक्षा प्रणाली के बंधनो से आजादी की पहली और सकारात्मक शुरुवात है। वास्तव में ये शुरुवात अंधकार से उजाले की ओर बढता कदम है, जो श्वेत वस्त्र घारण किये हुए कमल पर विराजमान माँ सरस्वती की शुद्ध अर्चना एवं वंदना है। 
धन्यवाद

निवेदनः-  दिये गये लिंक को अवश्य पढें

आजादी के 60 साल बाद भी क्या हम आजाद हैं ??



Thursday 23 April 2015

आज के बालक भारत का भविष्य हैं

मित्रो, जिस तरह से आज समाज में बाल अपराध बढ रहे हैं और नाबालिग बच्चे, ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं, वो  किसी भी सभ्य समाज के लिये कलंक से कम नही है। आज के वातावरण को देखते हुए किशोर न्याय अधिनियम 2014 संशोधन बिल पर कैबिनेट की मोहर एक सार्थक कदम है। पिछले कुछ वर्षों से नाबालिग बच्चों द्वारा हत्या, दुश्कर्म तथा तेजाबी हमले तेज हुए हैं लेकिन उन्हे पुराने अधिनियम के अनुसार सख्त सजा का प्रावधान नही था जिससे अपराधिक मानसिकता की प्रवृत्ति ने निर्भया जैसी घटना को अंजाम दिया। आज भी देश निर्भया कांड को याद करके सिहर जाता है। आठवीं में पढने वाला बालक अपनी शिक्षिका की रिवाल्वर से हत्या कर देता है तो कहीं 10 से 12 वर्ष के बालक अपने साथी का अपहरण करके उसकी हत्या कर देते हैं। पिछले कुछ वर्षों से तो,  लङकियों और महिलाओं पर नाबालिग किशोरों द्वारा तेजाबी मानसिकता का कहर कुछ ज्यादा ही हो रहा है। व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि, किसी भी अपराध की सजा उसकी जघन्यता के आधार पर होनी चाहिये न की उम्र या लिंग के आधार पर । जिस दिन जे जे एक्ट संशोधन विधेयक पर संसद की मुहर लग जायेगी उस दिन से शायद इस तरह के अपराध में कमी आयेगी।

दोस्तों, मेरे मन में बाल अपराध को लेकर कुछ मंथन चल रहा है इसलिये मैने अपनी पूर्व की लाइन में शायद शब्द का इस्तमाल किया है क्योंकि ये जो बाल अपराध का ग्राफ दिन-प्रतिदिन बढ रहा है, उसके लिये जिम्मेदार क्या सिर्फ नाबालिग बच्चे हैं ! या समाज और परिवार भी। आज हम सब एक सभ्य सुंदर और सुसंस्कृत भारत की कल्पना करते हैं।  सुरक्षित वातावरण की भी कामना रखते हैं किन्तु अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को दरकिनार कर देते हैं। मेरा मानना है कि, कोई भी शिशु जन्म से अपराधी नही होता उसके लिये अनेक कारण समाज में विद्यमान हैं। हमारा कानून भी इस बात को मानता है कि,  बालकों में बढ रही अपराधिक मनोवृत्ति के पीछे सामाजिक ढांचा भी जिम्मेदार है। आज तो आलम ये हो गया है कि, संभ्रान्त परिवार के बालक भी अनेक अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। किसी भी समाज की पहली ईकाइ होती है परिवार जहाँ बालक का प्रारंभिक विकास होता है। आज-कल अक्सर  देखने को मिल रहा है कि, बच्चे की परवरिश बहुत आधुनिक ढंग से हो रही है। वास्तव में (Actully) आधुनिकता गलत नही है बल्कि आधुनिकता का अधुरा ज्ञान दिमक की तरह समाज को खोखला कर रहा है। आज बच्चों के हाँथ में इंटरनेट से सुसज्जित मोबाइल, आई पेड और स्कूल जाने  के लिये बाइक या कार कानूनी उम्र सीमा से पहले ही परिवार द्वारा मिल जाती है। यदि स्कूल या ट्राफिक नियम इसे रोकते हैं तो परिवार द्वारा हर्जाना भर दिया जाता है। ऐसे ही छोटे-छोटे अपराधों को कई परिवारों का सपोर्ट मिलता है और बच्चों का कानून से डर खत्म हो जाता है। इसके अलावा समाज में व्याप्त फिल्मों तथा विज्ञापनों का खुलापन एक नासूर की तरह अपरिपक्व बच्चों को डस रहा है। जिसका परिणाम आज का बढता बाल-अपराध है। यदि शुरुवात में ही छोटे-छोटे अपराधों को अभिभावकों द्वारा रोका जाए तो एक हद तक बच्चों में सुधार लाया जा सकता है। 

आज के बालक  हमारे भारत देश का भविष्य हैं। अतः हम सबको मिलकर भविष्य के कर्णधार की नींव को सुसंस्कारों से पल्लवित करना है। बाल्यकाल की गलतियों को बढावा देने की बजाय समय रहते ही उसे सुधारना हम सबकी नैतिक और आवश्यक जिम्मेदारी है।

Children are like different type of flowers, So irrigate them good manners and make this world a beautiful garden 

नोटः- दिये गये लिंक को अवश्य पढें, धन्यवाद 

बदलता बचपन जिम्मेदार कौन ????








Saturday 18 April 2015

साहस और आत्मविश्वास

मित्रों, जीवन में कई बार परिस्थिती हमारे अनुकूल नही होती। अक्सर कुछ कठिन परिस्थितियाँ हमारे साहस और विश्वास की परिक्षा लेती रहती हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि, समस्याएं समुंद्र की तरह विशाल और उसकी प्रचंड लहरें सब कुछ तहस-नहस कर देंगी। ऐसी परिस्थिती पर विजय पाने के लिए हमें साहस के साथ अपने आत्मविश्वास के बल पर इससे मुकाबला करना चाहिए क्योंकि साहस और आत्मविश्वास वो शक्ति है जिससे सभी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। ये वो आधार हैं, जिससे दृणइच्छाशक्ति को बल मिलता है। 

चर्चित मनोवैज्ञानिक लुईस एल के अनुसार, यदि व्यक्ति को कामयाबी हासिल करनी है तो, साहस के साथ आत्मविश्वास के कवच को धारण करना ही होगा। काम कोई भी हो उसमें दिक्कतें न आएं ये तो संभव नही है किन्तु परेशानियों को आत्मविश्वास के साथ पार करना संभव है। यदि हम ह्रदय में अविश्वास और विफलता का डर लाते हैं तो कभी भी सफल नही हो सकते। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो ये दर्शाते हैं कि, निडरता और विश्वास से सफलता की राह आसान हो जाती है। शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई के विश्वास भरे साहस से मुगलों और अंग्रेजों के हौसले भी परास्त हो गये थे। विलियम पिट को जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पद से हटाया गया था, तब उन्होने डेवेनशायर के ड्यूक से निडरता के साथ कहा था कि, इस देश को मैं ही बचा सकता हुँ, इस कार्य को मेरे सिवाय दुसरा कोई नही कर सकता। 11 हफ्ते तक इंग्लैंड में उनके बिना काम चला लेकिन अंत में पिट को ही योग्य मानते हुए उन्हे प्रधानमंत्री बनाया गया। कोलंबस ने अपने साहस और विश्वास के बल पर अमेरीका की खोज की। घनश्याम दास बिङला की शिक्षा सिर्फ पाँचवी तक हुई थी। लेकिन उनके मन में एक सफल उद्योग करने का जज़बा था। उन दिनो जूट का व्यपार केवल अंग्रेज करते थे। अंग्रेजों ने बिङला को कर्ज देने से भी इंकार कर दिया। उन्हे मशीने भी दुगने दाम में खरीदनी पङी, फिर भी साहस और आत्मविश्वास के धनी बिङला ने सभी मुश्किलों का डटकर सामना किया, नतिजा आज सब जानते हैं। बिङला ग्रुप आज प्रतिष्ठित और संपत्तिशाली उद्योग घराना है। 

मित्रों, खुद पर अटूट विश्वास और आगे बढने का साहस ही हमें सफलता का एहसास कराता है। व्यक्ति जब स्वंय पर विश्वास करता है तो उसका आत्मबल प्रकट होता है। शक्तियाँ और क्षमताएं तो हर किसी में मौजूद होती हैं, सिर्फ उसे पहचानने की जरूरत है। अपनी क्षमताओं को जानकर ही हम बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं और ये तभी संभव है जब हम अपने विश्वास को साहस के साथ व्यवहार में लायेंगे। आत्मविश्वास भी तभी मजबूत होता है जब हम निडरता के साथ सभी बाधाओं को फेस करते हैं। दुनिया भी उसे ही याद रखती है जो साहस और आत्मविश्वास के साथ अपना रास्ता खुद बनाता है। जीवन की अनेक बाधाओं के बावजूद साहस,  दृणता और  विश्वास  के साथ लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। 

किसी ने सच ही कहा है,  मुश्किलों से डर के भाग जाना आसान होता है। हर पहलु जिंदगी का इम्तहान होता है। डरने वालों को मिलता नही जिंदगी में कुछ, साहस और आत्मविश्वास के साथ आगे बढने वालों के कदमों में जहान होता है। 





Tuesday 7 April 2015

आपका थोङा सा समय किसी को आत्म सम्मान से जीने का अवसर दे सकता है


Friends, शिक्षा वो हथियार है जिसके माध्यम से आत्म सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन यापन किया जा सकता है। वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब का उद्देश्य भी है कि, Visual Impaired Students को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र गठन कर सकें और विचारों का सामजस्य कर सकें वही शिक्षा वास्तविक शिक्षा है। अध्ययन के दौरान सभी को बहुत मेहनत करनी पङती है और उच्च तथा सफल शिक्षा के लिये कई बार मन पसंद चीजों का त्याग भी करना पङता है। यदि हम बात करें दृष्टीबाधित बच्चों की तो उनको अध्ययन के दौरान सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक परेशानियों का सामना करना पङता है। मैने देखा है कि अनेक दिक्कतों के बावजूद वो पढना चाहते हैं, शिक्षा के माध्यम से समाज में गौरवपूर्ण स्थान के लिये बहुत मेहनत भी करते हैं। परंतु उनके अध्ययन के दौरान कुछ ऐसी भी समस्याएं आती हैं जहाँ उनको दृष्टीसक्षम लोगों पर निर्भर होना पङता है। जैसे कि, पुस्तक को रेर्काड करवाने के लिये तथा परिक्षा में सह लेखन के लिये। आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है जिसके कारण लाइफ थोङी आसान हो गई है। कम्प्युटर के आविष्कार से किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता अब समस्या नही है। लेकिन कम्प्युटर का उपयोग काफी हद तक बिजली पर निर्भर है और बिजली की स्थिति हमारे कुछ शहरों में छोङ दी जाये तो बाकी जगह भगवान भरोसे है। ऐसे में कम्प्युटर तथा कम्प्युटर का ज्ञान काम नही आता। आज कई दृष्टीबाधित बच्चे कम्प्युटर ज्ञान से परिपूर्ण हैं फिर भी परिक्षा के समय उन्हे राइटर के लिये  मानवीय सहारे की आवश्यकता होती है, वे चाहकर भी कम्प्युटर के माध्यम से परिक्षा नही दे सकते। 

अतः हम आप सबसे निवेदन करते हैं कि, आप लोग इस नेक कार्य में अपना सहयोग दें क्योंकि आपका थोङा सा समय किसी को आत्म सम्मान से जीने का अवसर दे सकता है। यदि आप राइटर या रेर्काडिंग के लिये अपना योगदान देना चाहते हैं तो, आप हमारे क्लब वाइस फॉर ब्लाइंड के सदस्य बन सकते हैं। अधिक जानकारी के लिये लिंक पर क्लिक करें।
धन्यवाद 
Cooperate the blind

दृष्टीबाधितों की सहायता कैसे कर सकते हैं