Thursday 25 September 2014

शक्ति और प्रकृती


हम लोग वर्ष में दो बार नवरात्री का पर्व पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाते हैं, जिसमें देवी की आराधना की जाती है। श्री दुर्गा सप्तशती में भगवती की आराधना करते हुए कहा गया है कि, 

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्म ताम्।। अर्थात, प्रकृति को देवी का प्रतिकात्मक रूप मानकर उनकी वंदाना की गई है। वहीं एक और श्लोक में कहा गया है कि,  

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। या देवी  सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। अर्थात, माँ सभी प्राणियों में शक्ति रूप में विद्यमान हैं और जो देवी सभी प्राणियों यानि की नारी में माँ बनकर विद्यमान हैं वो आदि शक्ति हैं। इस तरह नारी और प्रकृति दोनो ही जीवन में आस्था का आधार हैं और दोनो ही जगतमाता का रूप हैं। 

मानव सभ्यता के कितने वर्ष बीत गये इसका अंदाजा लगाना कठिन है। परंतु आज की आधुनिक सभ्यता वाली इक्कीसवीं शताब्दी के 14वर्ष  बीत जाने के बाद भी नारी और प्रकृति दोनो ही शोषण के आघात से व्याकुल हैं। राम का वनवास तो चौदह वर्ष बाद पुरा हो गया किन्तु नारी और प्रकृति को कब तक उपेक्षित होना है इसका कोई आधार आज भी नज़र नही आ रहा है।

आज की शहरीकरण की सभ्यता ने हरे-भरे जंगल को विरान कर दिया है। मानव अपने स्वार्थ में प्राकृतिक संसाधनो का दोहन अंधाधुन कर रहा है, नित नई ओद्योगिक कारखानो की उष्मा से हिमखण्ड पिघल रहे हैं।आज मानव द्वारा प्रकृति से की गई छेडछाड का ही नतीजा है धरती के स्वर्ग कश्मीर में बांण का प्रकोप तथा पिछले वर्ष केदार नाथ की तबाही। आज मानव को विधात बनता देख अमरनाथ भी पृथ्वी पर अवतरित होने से डरते हैं। अपने को सर्वशक्तिमान समझता मानव हरी-भरी वसुंधरा का संहार करके अपने ही पैर पर कुल्हाङी मार रहा है, आधुनिकता के रंग का चश्मा पहने हमारी मानव सभ्यता को भविष्य का अंधकार नजर नही आ रहा है। प्रसिद्ध दार्शनिक मैजिनी ने अपने युग में कहा था कि, यदि मानव सभ्यता व संस्कृति को अपना अस्तित्व बरकरार रखना है तो उसे नारी की श्रेष्ठता सुनिश्चित करनी होगी। उसने अपने निश्कर्ष में ये भी कहा था कि नारी एवं प्रकृति के बिना जीवन संभव नही है।

हमारे शास्त्रों और वेदों में नारी और प्रकृति को शक्ति का स्वरूप माना है।
आज हम लोग बेटी बचाओ और पर्यावरण की सुरक्षा के लिये अनेक माध्यमों से प्रयास कर रहे हैं, परंतु ये भागीरथ प्रयास पूरी तरह से सफल नही हो पा रहा है क्योंकि  विडंबना ये है कि, 365 दिन में से केवल 18 दिन ही यानि की शारदिय नवरात्र के नौ दिन एवं क्वार नवरात्र के नौ दिन ही हम लोग प्रकृति और नारी के बाल रूप कन्या को कुछ विशेष पूजते हैं। वर्ष के अधिकांश दिनों में तो हम आस्था, सम्मान और सुरक्षा को महज शब्द मात्र ही समझते हैं।

पाश्चात्य सभ्यताओं की बात करें तो,  प्राचीन रोमन साम्राज्य में महिलाओं और प्रकृति को उपभोग का साधन माना जाता था। फ्रांस में स्त्री को आधी आत्मा वाला जीव एवं प्रकृति को जङ मानने का चलन था। प्राचीन चीनवासी महिलाओं में शैतान की आत्मा देखा करते थे, प्रकृति तो बस उनके लिये एक संसाधन थी। इस्लाम के प्रचार से पहले अरबवासी लङकियों को जिंदा दफन कर देते थे।  हमारे भारत में ऐसी अमानविय विचारधारा का इतिहास नजर नही आता फिर भी आज आधुनिकता की चादर ओढे भारत में जमीनी हकिकत यही है कि, नारी एवं उसका अस्तित्व  कुछ  तामसी प्रवृतियों के आतंक से आतंकित है। मानव यदि सुसभ्य होने व सुसंस्कारित होने का दावा करता है तो उसी के बनाये हुए सभ्यता व संस्कृति के मानकों में नारी एवं प्रकृति के शोषण का कोई स्थान नही होना चाहिए। 

शरशैया पर लेटे भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठर को सुशासन की शिक्षा देते हुए उपदेश दिया था कि, ' किसी समाज व शासन की सफलता इस तथ्य से समझी जानी चाहिये कि वहाँ नारी एवं प्रकृति कितनी पोषित हैं। उन्हे वहाँ कितना सम्मान मिला है।' 

मित्रों, ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आज जब हम मंगल की यात्रा को सफल बना सकते हैं तो अपनी पृथ्वी को भी मंगलमय वातावरण प्रदान कर सकते। अतः इस नवरात्री के शुभ पर्व पर शक्ति और प्रकृति को जीवन पर्यन्त पोषित और सम्मानित करने का प्रण करें। जिससे भारत की गौरवमय संस्कृति पुनः गौरवान्वित हो जाये। 

जय माता दी

नोट: दिये गये लिंक पर क्लिक करके उन्हे भी पढें तथा अपने विचार अवश्य व्यक्त करें. 
माँ दुर्गा का अनुपम पर्व

जीवन की आपा-धापी में क्या खोया क्या पाया



Wednesday 24 September 2014

मंगल ग्रह की सफलता पर को़टी-कोटी बधाई



आज भारत के लिये स्वर्णिम दिन है, आज मंगल का मिलन मॉम से हुआ। ये एतिहासिक पल हम सब भारतवासियों के लिये गर्व करने योग्य है। भारत का विज्ञान तो पुरातनकाल से विश्व में अपना एक विशेष स्थान रखता है। आज की सफलता ने वैज्ञानिकों की कामयाबी का एक अध्याय और लिख दिया। भारत के वैज्ञानिक और इस अभियान से जुङे सभी लोगों को कोटी-कोटी बधाई। 


आइये जानते हैं कि मंगल ग्रह के बारे में,

मंगलग्रह का नाम ग्रीक शब्द आर्क से लिया गया है जिसका मतलब है, God of War यानि की युद्ध का देवता। इसका लाल रंग इसकी विशेषता है जिसकी वजह से इसका नाम युद्ध के देवता के नाम पर रखा गया। इस ग्रह पर पाई जाने वाली मिट्टी में जंग लगे हुए लौह मिले होने के कारण पुरी तरह लाल दिखती है। आकार में ये सातवाँ बङा ग्रह है और वजन में पृथ्वी के वजन का दसवां हिस्सा है। इसका तापमान -207 डिग्री से  + 81 डिग्री तक जाता है। अर्थात यहाँ खूब ठंडक पङती है या खूब गर्मी पङती है। सूर्य के चारो ओर ये 687 दिन में ये एक चक्कर पूरा करता है। इसपर पृथ्वी के गुरुत्व बल का एक तिहाई गुरुत्व बल मौजूद है। इसके दो चंद्रमा हौं जिनके नाम फोगोस और डेमोस हैं। डेमोस से फोबोस थोङा बङा है जो सतह है 6000 किमी ऊपर परिक्रमा करता है। फोबोस धिरे-धिरे मंगल की ओर झुक रहा है जो 100वर्ष में मंगल की ओर 1.8 मी. झुक जाता है। मंगल का एक दिन 24घंटे से थोङा ज्यादा होता है। मंगल और धरती लगभग दो साल में एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं। उस दौरान दोनो के बीच की दूरी 5करोङ 60लाख किमी होती है। मंगल ग्रह सौर्य मंडल का चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है। जिस वजह से इसे लाल ग्रह कहते हैं। पृथवी की तरह मंगल भी एक स्थलिय धरातल वाला ग्रह है। सौर मंडल का सबसे ऊँचा पर्वत ओलम्पस मोन्स मंगल पर स्थित है, साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरी नेरिस भी यहीं स्थित है। 

28 नवम्बर को हर साल रेड प्लेनेट डे यानि मंगल ग्रह के नाम का एक दिन मनाते हैं। 28 नवम्बर 1964 को स्पेस क्राफ्ट मेरीनर 4 को लॉच किया गया था जो अपने 228 दिन के मिशन में पहली बार हमारे लिये इस लाल रंग के खूबसूरत ग्रह मंगल की तस्वीर लेकर आया था। ये मंगल की पहली और सफल यात्रा थी। अतः इसकी याद में इस दिन को रेड प्लेनेट डे के नाम से जाना जाने लगा। मान्यतानुसार ये कहा जाता है कि धरती पर जीवन सम्बन्धी तत्व मंगल से ही आया है।

मार्स ऑरबीटर की सफलता पूर्वक यात्रा का संक्षिप्त परिचय

भारत के मंगल यान को 5 नवम्बर 2013 को ध्रुविय रॉकेट के माध्यम से दोपहर ढाई बजे आन्ध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया था। जिसके बाद मंगल यान विधी पूर्वक पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर गया। भाारतीय अनुसंधान संघटन के अध्यक्ष के राधा कृष्नन ने प्रक्षेपण के बाद कहा कि, "पी एस एल वी का ये 25वाँ प्रक्षेपण है और ये नये तथा जटिल अभियान प्रारूप के तहत किया गया है।" 

लगभग 1340 किलो ग्राम वजनी यान का निर्माण पूर्णतः स्वदेशी तकनिक से किया गया है। उपग्रह में ऐसी प्रणालियां है जिसमें यान खुद निर्देशित होगा और अपनी गलतियाँ स्वयं सुधारेगा। इसमें नेविगेशन प्रणाली है यानि की मार्ग भटकने पर वो स्वंय रास्ता तलाश लेगा क्योंकि रॉकेट से अलग होने के बाद मंगल यान को लम्बा सफर तय करना था। मार्स ऑरबिटर मिशन अंतरिक्ष यान को 8 नवम्बर 2013 को दुरस्त बिन्दु पृथ्वी से सबसे दूर का बिन्दु 28 हजार 6 सौ 14 किमी से 40 हजार एक सौ 86 किमी पर उठा दिया गया। भारतिय अंतरिक्ष अनुसंधान संघटन इसरो ने 9 नम्बर 2013 मार्स ऑरबिटर यान को कक्षा से बाहर निकालने की तीसरी प्रक्रिया भी पूरी कर ली, 707 सेकेंड के वन टाइम के साथ अंतरिक्ष यान को दूरस्थ बिन्दु यनि धरती से सबसे ज्यादा दूरी का बिन्दु 40 हजार 186 किमी से उठाकर 71 हजार 636 किमी पर स्थापित कर दिया गया।  मार्स ऑरबिटर यान के अभियान में 11 नवम्बर 2013 को चौथी प्रक्रिया में थोङी बाधा उत्पन्न हुई परन्तु 12 नवम्बर को सफलता पूर्वक चौथी प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई। चौथी प्रक्रिया ने यान को 124.9 मीटर प्रति सेकेन्ड की गति प्रदान की। लगभग एक महिने तक पृथ्वी के इसफियर ऑफ इन्फ्लूयेन्श यानि की SOI में चक्कर लगाने के बाद मार्स ऑरबीटर मंगल ग्रह की लंबी यात्रा पर करोङों लोगों की शुभकामना के साथ एक दिस्मबर 2013 को रवाना हो गया। इस प्रकार, इसरो के वैज्ञानिकों ने मंगल यान को लाल ग्रह की तरफ भेजने का पहला चरण सफलता पूर्वक पूरा कर लिया । 

ऑरबीटर को पृथ्वी की कक्षा से निकालकर मंगल के पथ पर डालने की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल होती है। पूरी तरह गणित पर आधारित इस काम में जरा सी भी चूक किये कराये पर पानी फेर सकती थी। पृथ्वी के प्रभाव से मुक्त करने के लिये इसमें लगी 440 न्यूटन लिक्विड ए पो जी मोटर को फायर किया गया जो सफल रहा। इस प्रक्रिया को ट्रांस मार्स इंजेक्शन यानि की TMI का नाम दिया गया। ये प्रक्रिया इस लिये भी जटिल है क्योंकि खास पथ बिंदु पर से इस को यान पृथ्वी की कक्षा से मंगल की राह पर धक्का दिया गया। यान को 648 मी. प्रति सेकेंड का गतिशील वेग प्रदान करने के लिये 440 न्यूटन तरंग इंजन को 23 मिनट तक चलाया गया। इसमें 190 किग्रा. ईधन की खपत हुई। यान को मार्स ट्रांसफार्मर प्रेजेकटरी में उतने ही वेग से भेजा गया जितना उसे पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकालने के लिये जरूरी था। यान ने अपनी यात्रा सही दिशा में शुरु कर दी। भारत ने इस अभियान में लगभग 450 करोङ रूपये खर्च किये हैं जो बाकी देशों की अपेक्षा सबसे किफायती रहा है। 

इसरो के मंगल यान ने अपने कैमरे में पहली तस्वीर कैद की जिसमें आन्ध्र प्रदेश की तरफ बढ रहे भीषण चक्रवाती तुफान हेलेन की फोटो थी। 19 नवम्बर 2013 को खींची गई ये तस्वीर 21 नवम्बर 2013 को जारी की गई। मार्स ऑरबीटर अंतरिक्ष यान पर लगे मार्स कलर कैमरे से 67 हजार 975 किमी की ऊँचाई से ली गई फोटो है। मंगल यान में पाँच यंत्र लगे हुए हैं, 

1- मिथेन सेंसर जो की लाल रंग के वातावरण की गैसों का विशलेषण करेगा।
 2- कम्पोजीशन एण्ड लाइजर, इसका कार्य है वातावरण का अध्यन करना।
 3- फोयो मीटर, ये ग्रह के ऊपरी वातावरण में हाइड्रोजन आदि की मात्रा के बारे में शोध करेगा।
 4- कलर फोटो कैमरा, ये ग्रह के धरातल की फोटो लेगा तथा मंगल पर स्थित उपग्रहो फोबस और डेमोस के चित्र भी लेगा।
 5- इमेजिंग स्पेक्टो मीटर, ये लाल ग्रह की सतह पर मौजूद तत्वों और खनिजों के आँकङे जमा करेगा। 

मंगल अभियान के महानायक हैं, के राधा कृष्नन जो की इसरो के प्रमुख हैं। कर्नाटक संगीत और कथककली में पारंगत राधा कृष्नन भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक एवं तकनिकी संस्थान के तत्कालीन बोर्ड के चेयरमैन भी हैं। इनके अलावा इस अभियान से जुङे अन्य महानायक हैं, विक्रम सारा भाई केन्द्र के निदेशक एस रामा कृष्नन आपके पास रॉकेट पोलर सेटेलाइट को छोङने की जिम्मेदारी थी।  एम. अन्ना दुराई मार्स ऑरबिटर कार्यक्रम के निदेशक रहे आपको बजट प्रबंधन तथा कार्यक्रम प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ए. एस. किरण कुमार, एम वाई एस प्रसाद, एस के शिव कुमार, पी कुही कृष्नन जैसे महानयकों के साथ लगभग एक लाख वैज्ञानिकों ने मंगल यान की सफलता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 

मिशन मंगल से अनेकों लाभ हैं, मंगल पर मिथेन, हाइड्रोजन तथा अन्य खनिजों की संभावना है यदि भविष्य में मंगल पर ये खनीज मिलते हैं तो रूस अमेरीका यूरोप के साथ भारत भी इसपर अपनी दावेदारी स्थापित कर सकता है। इस यान की सफलता से अंतरिक्ष में छुपी जानकारियों का मार्ग प्रशस्त हुआ है और युवा वैज्ञानिकों के मन में नई खोज के प्रति जोश उत्पन्न हुआ है। यदि कभी मंगल पर बस्ती बसाने की योजना हुई तो भारत भी वहाँ अपनी कॉलोनी बना सकता है। मंगल की अपनी सफल यात्रा से  भारत की इसरो अंतरिक्ष एजेंसी भी अमेरीका की नासा, रूस की रॉसकॉसमस की श्रेणी में  शामिल हो गई है। इसी के साथ भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल अभियान को पूरा कर लिया। 

मंगल का सफलता पूर्वक सफर आगे भी मंगलमय हो तथा हमारा देश ऐसे ही आगे भी सफलता की इबारत लिखे यही शुभकामना करते हैं। 


  

Friday 12 September 2014

राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, हिन्दी

वसुधैव कुटुम्बकम की भावना की अलख जलाती हमारी हिन्दी भाषा, दक्षिण से उत्तर तक तथा पश्चिम से पूरब तक  राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।  परंतु भारत की आजादी के 68 वर्ष बाद भी हिन्दी भाषा को लेकर कई राज्यों में विवाद चल रहा है जबकि संविधान के अनुसार 14 सितंबर 1949 को अनुछेद 343 एक  के अनुसार  हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया तथा ये 26 जनवरी 1950  से अधिकारिक तौर पर बोली जाने वाली भाषा बन गई।  संवेधानिक दर्जा प्राप्त हिन्दी को अभी भी  यदा-कदा अग्नि परिक्षा से गुजरना पङता है। विश्व स्तर पर अग्रसर हिन्दी अपने ही देश में अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रही है।

संत कनफ्यूशियस के अनुसार, "अपनी भाषा हीन होने से कोई देश आजाद नही रह सकता।" 

संविधान के अनुसार हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है और हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से आजाद भी हो गये। अंग्रेज भारत छोङकर चले भी गये किन्तु उनकी अंग्रेजी के हम अभी भी गुलाम हैं। स्वतंत्रता के संघर्ष में जनमानस की भाषा, गाँधी, टैगोर, तिलक, दयानंद सरस्वति, एवं सुभाष चंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों की भाषा हिन्दी को आज भी वो स्थान नही मिल सका जिसकी वो हकदार है। ये अजीब विडंबना  है कि आजादी के साठ दशक बाद भी स्वंय सिद्धा हिन्दी पूर्णतः सरकारी काम-काज की भाषा का सम्मान न पा सकी।

महात्मा गाँधी ने कहा था कि, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।" 

इतिहास गवाह है कि, हमारे कई मुस्लिम शासकों ने हिन्दी को अपने कामकाज की भाषा माना था। मौहम्द गौरी ने अपने राजकीय काम-काज को देवनागिरी तथा हिन्दी में संपादित करने के आदेश दिये थे। उसने सिक्कों पर देवानागीरि में 'श्री हम्मी तथा मेहमूद साँब' अंकित करवाया था। शेरशाँह सूरी ने भी अपने शासन काल में सिक्कों पर देवनागिरी में 'श्री हम्पी तथा ऊँ' अंकित करवाया था। उनके शासन काल में परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से शासन का कार्य हिन्दी में किया जाता था। 18वीं शताब्दी में पेशवा, सिंधिया और होलकर जैसे मराठी राजघरानो में हिन्दी में ही कामकाज होता था। अनेक संतो जैसे नामदेव, चैतन्य महा प्रभु, गुरु नानक ने अपने उपदेश हिन्दी में दिये थे क्योकि हिन्दी जन-साधारण की भाषा थी। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, हिन्दी भाषा प्राचीन काल से सभी प्रान्तों को एक दूसरे से जोङे हुए है। आजादी का संदेश लिये हिन्दी भाषा ने सभी देशभक्तों को एक सूत्र में बाँधा था। 

दयानंद सरस्वती ने कहा था कि, "हिन्दी ही राष्ट्रीय एकता को शास्वत और अक्षुणं बना सकती है।"

एक सर्वे के अनुसार 24 प्रतिशत साक्षर लोगों में से केवल दो प्रतिशत ही लोग अंग्रेजी जानते हैं क्योंकि अंग्रेजी में नरेशन की दिक्कत है जबकि हिन्दी नरेशन की बला से मुक्त है। हमारी हिन्दी भाषा में बङों का सम्मान लिए 'आप' जैसे शब्द है, जबकि अंग्रेजी ने तो सभी को एक ही शब्द 'यू' (You)  के साँचे में कैद कर दिया है। समय के बंधनो से मुक्त हिन्दी भाषा में हमारी अभिवादन शैली, प्रणाम और नमस्कार नम्रता का प्रतीक है। हिन्दी समृद्ध और सर्वग्राही भाषा है। 

आचार्य केशवचन्द्र सेन के अनुसार, "भारत जैसे देश में जहाँ अनेक बोलियां बोली जाती हैं वहाँ हिन्दी ही सम्पर्क, सर्वसुलभ ओर सार्वभौमिक भाषा सिद्ध होती है। ये राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।" 

आजादी से पूर्व हम सब एक भाषा हिन्दी के साथ, एक उद्देश्य के लिए अंग्रेजों के खिलाफ थे, परंतु आज के परिवेश में कुछ राजनैतिक गतिविधियों ने भारत को अनेक राज्यों में बाँट दिया है, वहाँ की क्षेत्रिय भाषाएं अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने लगी हैं। आज जिसे देखो वो अपने को पहले पंजाबी, बंगाली, मराठी, कन्नण, मद्रासी आदि कहते हुए मिल जायेगा, बहुत कम ही लोग स्वंय को भारतवासी या हिन्दुस्तानी कहते हुए मिलते हैं। भाषाई विवाद का ही परिणाम है, अनेक राज्यों का स्वतंत्र उदय।मित्रों, भाषा पर कुठाराघात किसी भी राष्ट्र के लिए हितकर नही होता और राष्ट्र से बढकर किसी भी भाषा का कोई स्वाभीमान नहीं होता।  

भारत जैसे विविधता वाले देश में जहाँ के लिए कहा जाता है कि चार कोस पर भाषा बदले छः कोस पर पानी, वहाँ सभी को एक सूत्र में बाँधना आसान नही है किन्तु सभी भाषाओं का मिश्रित रूप और संतो की वाणी से अलंकृत संवेधानिक भाषा हिन्दी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाये रखने में सक्षम है क्योंकि हिन्दी भाषा सद्भावना, प्रेम, श्रद्धा तथा अहिंसा, करुणा एवं विश्व मैत्री का प्रतीक है। 

वर्तमान में गूगल जैसे सर्चइंजन भी हिन्दी के विकास को समझते हुए अपनी कार्य प्रणाली को हिन्दी में भी उपलब्ध करा रहे हैं। हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने को भी अग्रसर है। अतः मित्रों विश्व स्तर पर अपना वर्चस्व रखने वाली हिन्दी भाषा को हम सब मिलकर वैश्विक मानचित्र पर नम्बर एक पर ले जाने का प्रयास करें और गर्व से हिन्दी भाषा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायें। 













Sunday 7 September 2014

सफलता का आधार है, आत्मविश्वास


मित्रों, जीवन  में हम सभी अपने-अपने लक्ष्य को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते हैं। विद्यार्थी अच्छे नम्बरों से पास होकर एक अच्छी नौकरी का सपना लिये आगे बढने की कोशिश करते हैं। व्यपारी अपने कारोबार को आगे बढाने का सपना देखते हैं, खिलाङी सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन का सपना संजोते हैं। ऐसे ही अनेक लोग अपने-अपने  क्षेत्रों में अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं और सफलता अर्जित करना चाहते हैं। किन्तु अक्सर देखा जाता है कि सभी को सफलता आसानी से मिल जाये ये मुमकिन नही होता। परेशानियां और अङचने तो आ ही जाती हैं, जिसके कारण उत्साह में थोङी उदासीनता आना स्वाभाविक है परंतु ऐसी विषम परिस्थिति में हमारा आत्मविश्वास ही एक जादूई पारस पत्थर की तरह हमें आगे बढने में मदद करता है। आत्मविश्वास अर्थात स्वयं पर विश्वास। हम लोग अक्सर एक शब्द सुनते हैं इच्छा-शक्ति इस इच्छा और शक्ति के बीच छुपा हुआ जो प्रकाश पुंज है वही है आत्मविश्वास। किसी कार्य को करने की कामना अर्थात इच्छा रखना बहुत अच्छी बात है परंतु आत्मविश्वास की ज्योति के बिना किसी काम में सफलता की कामना करना अपने आप को धोखा देने के समान है। 

स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, "जिसमें आत्मविश्वास नही उसमें अन्य चीजों के प्रति कैसे विश्वास हो सकता है ? "

आत्मविश्वास तो सफलता की नॉव का एक ऐसा सशक्त मल्लाह है, जो डूबती नॉव को उलझनों एवं कठिनाईंयों की प्रचंड लहरों के बीच, पतवार के सहारे नही बल्कि अपने विश्वास रूपी हाँथों के सहारे बाहर ले आता है। गाँधी जी एवं अनेक देशभक्तों के आत्मविश्वास का ही परिणाम है भारत की आजादी। स्वामी विवेकानंद जी अपने आत्मविश्वास के बल पर ही शिकागो धर्म सभा में भारत को गौरवान्वित कर सके, जबकि विदेष में उन्हे अपनी वेश-भूषा के कारण उपहास का पात्र बनना पङा था। बुद्ध, ईसा, सुकरात जैसे लोगों ने तो अपने आत्मविश्वास के बल पर युगों के प्रवाह को ही मोङ दिया। मानव जीवन के इतिहास में महापुरुषों के आत्मविश्वास का असीम योगदान है। महाराणा प्रताप अपने बच्चों के साथ भूखे-प्यासे जंगल-जंगल भटक रहे थे। अकबर की विशाल सेना उनके पीछे पङी हुई थी। उन्हे अकबर द्वारा कई प्रलोभन दिया गया। उनके पास समर्पण का भी प्रस्ताव भेजा गया जिसके बदले में उनका राज्य उन्हे लौटाने की बात कही गई, परंतु आत्मविश्वासी महाराणा प्रताप किसी भी प्रलोभन के चंगुल में नही फंसे और अंत तक युद्ध करते रहे। उनकी विरता की गाथा और स्वाभिमान राजस्थान का गौरव है। 

स्वामी रामतीर्थ कहते हैंः-  "धरती को हिलाने के लिए धरती से बाहर खङे होने की जरूरत नही है। आवश्यकता है, आत्मा की शक्ति को जानने और जगाने की।" 

सुदृढ विश्वास किसी भी चुनौति से घबराता नही है, बल्कि उससे पार पाने के लिए अपनी राह निकालकर आगे की ओर अग्रसर हो जाता है। खिलाङी हो या सैनिक दोनों ही अपने आत्मविश्वास से ही जीत हासिल करते हैं। पूरे एक वर्ष की पढाई को व्यक्त करने के लिए तीन घंटे की परिक्षा का समय कितना कम होता है!  और तो और कभी-कभी तो कुछ ऐसे प्रश्न भी आ जाते हैं जो उनके कोर्स का नही होता है। ऐसी स्थिती में जो विद्यार्थी अपना पूरा ज्ञान,  संयम और आत्मविश्वास के साथ ध्यान करता है वो लगभग सभी प्रश्नों के उत्तर सफलता से देकर अच्छे अंकों को प्राप्त करता है। वहीं जो विद्यार्थी ऐसे  अप्रत्याशी प्रश्नों को देखकर घबरा जाते हैं, वो याद किया हुआ उत्तर भी सही ढंग से नही लिख पाते उनका आत्मविश्वास डगमगा जाता है, जिससे उन्हे उनकी आशा के अनुरूप अंक नही मिलपाते। आत्मविश्वास तो ऐसी मनः स्थिति है, जो प्रकृति, संस्कृति, परिस्थिति एवं नियति (भाग्य) किसी के भी विरुद्ध खङी हो सकती है, भले ही मार्ग नया हो।  पर जिसके भी साथ होती है, उसकी अपनी नई ऊर्जा के साथ होती है। 

रामधारी सिंह दिनकर कहते हैंः-  "सियाही देखता है, देखता है तु अंधेरे को,
                                                 किरण को घेरकर छाए हुए विकराल घेरे को,
                                                 उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती है।
                                                 दबी तेरे लहु में रौशनी की धार है साथी,
                                                 उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी।" 

आत्मविश्वास, किसी टिमटिमाते दिपक की लौ के समान नही होता, जो फूंक मारने से भी कंपित हो जाये; बल्कि वो तो ऐसा दावानल है, जो आँधी और तुफान से बुझने के बजाय और भी प्रज्वलित हो जाता है। आत्मविशवास हमारी सफलता का अभिन्न अंग है, परंतु अति आत्मविशवास एक बिमार मानसिकता का प्रतीक है, जिससे हम सबको बचना चाहिए। 

ए.पी. जे. अब्दुल्ल कलाम के अनुसारः- 'Confidence & Hard work is the best medicine to kill the disease called failure. It will make you a successful person.' 

आत्मविश्वास रूपी प्रेरणा कुछ आन्तरिक संक्लपों से निर्मित होती है तो कुछ बाह्य कारणों से निर्मत होती है, जिसे अंग्रेजी में नेचर बनाम नर्चर का नाम दिया जाता है। एक बच्चा या बच्ची जब साइकिल चलाना सिखते हैं तो उनके अभिभावक पिछे से साइकिल को पकङे रहते हैं, बच्चे को भी विश्वास होता है अपने अभिभावक पर और वो आगे देखकर साइकिल चलाने लगता है। कुछ पल बाद जब अभिभावक को लगता है कि बच्चा अपना बैलेंस बना ले रहा है तो, वह अपने को साइकिल से दूर कर लेते हैं और बच्चा अकेले ही साइकिल चलाने लगता है क्योंकि उसे विश्वास होता है कि उसके अभिभावक उसे पकङे हुए हैं। जब उसे सत्य स्थिति का बोध होता है तो एकबार थोङा लङखङाता है किन्तु दूसरे ही पल आत्मविश्वास के साथ पुनः साइकिल चलाने लगता है। विश्वास हमारे व्यक्तित्व की ऐसी विभूति है, जो आश्चर्यजनक ढंग से हमसे बङे सा बङा कार्य करवा लेती है। आज की अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनिक, मंगल की यात्रा हो या पुराने समय के मिस्र के पिरामिड, पनामा नहर और दुर्गम पर्वतों पर बने भवन और सङक मार्ग इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं। 

स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं, "कभी कमजोर नही पङें, आप अपने आपको शक्तिशाली बनाओ, आपके भीतर अनंत शक्ति है।" 

जीवन में जब कठिनाईयां आती हैं तो कष्ट होता है, लेकिन जब यही कठिनाईयां जाती हैं तो प्रसन्नता के साथ-साथ एक आत्मविश्वास को भी जगा जाती हैं। जो कष्ट की तुलना में अधिक मूल्वान है।  नाकामयाबी को सिर्फ सङक का एक स्पीड ब्रेकर समझें जिसके बाद हम पुनः अपनी
आत्मशक्ति रूपी ऊर्जा से आगे बढें। किसी ने सच ही कहा है, स्वास्थ सबसे बङी दौलत है, संतोष सबसे बङा खजाना और आत्मविश्वास सबसे बङा मित्र है। आत्मविश्वास की कूंजी से हम सब अपने-अपने लक्ष्यों का ताला सफलता से खोल सकेगें क्योंकि सफलता की नींव है, मेहनत और विश्वास।  अतः मित्रों, आत्मविश्वास रूपी बीज का अंकुरण अवश्य करें उसे अपनी सकारत्मक सोच और मेहनत की खाद से पोषित करें क्योंकि आत्मविश्वास सम्पूर्ण सफलताओं का आधार है। 

"Self Confidence the foundation of all great success & achievement."