Wednesday 25 September 2013

श्राद्धपक्ष



श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों को नमन करने का पक्ष है श्राद्ध पक्ष। हमारे अपने हमेशा हम सभी के साथ रहते हैं, भले ही वो सशरीर हमारे बीच न हों किन्तु उनकी आवाज, रंगरूप और उनके द्वारा दिए संस्कार हमेशा हमारे साथ होते हैं। सम्मान और आदर के साथ याद करना ही श्राद्ध पक्ष पर सही तरपण है। जिस तरह किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेंश जी का ध्यान करते हैं उसी तरह गणेंश वंदना के पश्चात हम सभी, प्रत्येक शुभ कार्य से पहले अपने पूर्वजों का भी आर्शिवाद लेते हैं। इसी क्रमानुसार दस दिनों तक गणेंश जी के विराजने के तुरंत बाद हम सभी अपने-अपने पूर्वजों को नमन एवं वंदन करते हैं। शब्दों के माध्यम से हम अपने पूर्वजों को सादर भावांजली अर्पित करते हुए समाज में कुछ अस्वाभाविक संस्कारों पर अपने विचार रखने का प्रयास किए हैं, जिसे निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढा जा सकता है।



http://roshansavera.blogspot.in/2012/10/blog-post_7.html

Monday 16 September 2013

क्षमा की शक्ति


हम सब सामाजिक प्राणी हैं, जहाँ संबंधो की दुनिया में कुछ बुरा-भला आचरण स्वाभाविक है क्योंकि गलती करना मानव स्वभाव है। जिस प्रकार प्रकृति की बगिया में भाँति-भाँति के पुष्प और पौधे हैं उसी प्रकार जीवन की बगिया भी अनेक प्रकार की सोच और प्रकृति वाले लोगों से सुसज्जित है। कई बार हममें से कई लोगों का सामना नागफनी जैसे लोगों से भी होता है। वो अपनी सोच के अनुसार हमारा मुल्याकंन करते हैं जिससे हम विचलित हो जाते हैं। कहने वाला तो कह कर चला जाता है किन्तु हम हैं कि उसकी बात को दिल से लगा कर स्वयं को तकलीफ देते रहते हैं। ये जरूरी तो नही कि सबका नजरिया एक जैसा हो। हमें अपने पर विश्वास होना चाहिए तथा स्वयं को तकलीफ देने के बजाय उसे क्षमा करके उस बात को भूल जाना चाहिए।

ये भी सच है कि माफी या क्षमा भूलने के समान नही है तथा व्यक्ति कुछ चीजें कभी नही भूलता खासतौर पर जब मन पर या स्वाभिमान पर चोट लगी हो। परन्तु ये भी सच है कि गलती किससे नही होती अक्सर कहा जाता है कि गलती करना मानव स्वभाव है और क्षमा करना ईश्वरीय। किसी को क्षमा कर देने से उससे मिले कष्ट को भूलने में मदद मिलती है। जीवन तो बढने का नाम है ऐसे में यदि हम एक बात को लेकर बैठ जायेंगे तो आगे कैसे बढेगें। माफी तो एक ऐसी औषधी है जो गहराई तक जाकर घावों का इलाज करती है। ये उस जहर को खत्म कर देती है जो प्रेम तथा सोहार्द के लिए घातक है। माफी ऐसी प्रक्रिया है जिससे अपराधी से अधिक पीङित को राहत मिलती है। क्षमा कर देने वाला व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सेहत का हकदार होता है। जीवन में सुखमय शान्ति के दो ही तरीके हैं-
1- माफ कर दो उन्हे जिन्हे तुम भूल नही सकते।
2- भूल जाओ उनको जिन्हे तुम माफ नही कर सकते।

चिकित्सकों के अनुसारः- जो लोग बदले की बजाय माफी में विश्वास रखते हैं वो आवेश तथा बदले की कल्पनाओं से मुक्त अच्छी नींद लेते हैं।
क्रोध तो गर्म कोयले के समान है जिसे पकङ कर हम स्वयं को ही जलाते हैं। क्षमा करके हम स्व-परिचय, विशिष्टता और वासत्विक स्व को सुरक्षित रखते हैं। समाज के लिए ही नही बल्कि आपसी रिश्ते में भी क्षमा महत्वपूर्ण आधार है जो रिश्तों की नींव को मजबूत करती है। दूसरों के लिए क्षमा भाव के साथ खुद को भी माफ करना आवश्यक पहलु है। जब हम अपनी असफलताओं और गलतियों को मान लेते हैं तो ग्लानी भाव के बोझ से निकलकर सकारात्मक वातावरण का निर्माण करते हैं तथा अपने आप से प्रेम करने लगते हैं जिससे जीवन का सफर सुखद हो जाता है।

क्षमा ऐसा मंत्र है जिसका बीज बचपन से ही बोने का काम करना चाहिए क्योंकि परिवार ही वह पहला स्कूल है जहाँ इसकी शिक्षा दी जा सकती है। जब माता पिता एक दूसरे को माफ करते हैं तो वो बच्चों को भी वास्तविक जीवन में क्षमा के महत्व समझाते हैं, यकिनन यही बच्चा आगे चलकर परिवार, समुदाय, समाज और राष्ट्र में इन मूल्यों को और एकता को बनाये रखने में सफल होता है।

हमारे सभी धर्मों में क्षमा को विषेश स्थान दिया गया है। ईद हो या होली, सभी लोग गले मिलकर एक दूसरे की गलतियों को माफ कर देते हैं और स्वस्थ भाई-चारे को बढावा देते हैं। जैन धर्म मानने वाले हर वर्ष सितंबर के महिने में एक विशेष पर्व मनाते हैं, जिसे क्षमा पर्व कहते हैं। सभी जन एक दूसरे से जाने अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रर्थना करते हैं। निःसंदेह ये सकारात्मक प्रक्रिया है जो मानवीय संबंधो में मधुरता का संचार करती है। 

शास्त्रों के अनुसारः-
क्षमावशीकृतिलोर्के क्षमया किं न साध्यते।
शान्तिखड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः।।
अर्थात- संसार को क्षमा वश में कर लेती है। ऐसा कौन सा कार्य है जो क्षमा से नही हो सकता जिसके हाँथ में शान्ति रूपी तलवार हो दुर्जन उसका क्या बिगाङ सकता है।

ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि क्षमा पर्व जैसे सत्कर्म अगर केवल एक दिन या एक सप्ताह के लिए भी हों तो व्यक्ति का ह्रदय अपने अपराध भाव के बोझ से थोङा बहुत मुक्त हो जायेगा लेकिन यदि हम क्षमा भाव को अपनी जीवन शैली बना लें तो हम गुलाब की तरह वातावरण को खुशनुमा बना सकते हैं, जिसका काँटो के साथ रहते हुए भी महत्वपूर्ण स्थान है। माफी तो वह खुशबू है, जो एक फूल उन्ही हाँथो में छोङ जाता है, जिन हाँथो ने उसे तोङा होता है।     

Sunday 8 September 2013

गणेंश चतुर्थी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई



बुद्धिदाता, विघ्नहर्ता भगवान गणेश के हर एक नाम में अपने भक्तों का उद्धार छुपा हुआ है। शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस में श्री गणेश को ओमकार: (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। गौरीसुत, महागणपति सारे ब्रह्मांड के भगवान हैं।सभी शुभ कार्य के देव प्रथमेश्वर सफलता के स्वामी हैं। देवों के देव वक्रतुण्ड ज्ञान के दाता हैं। बाधाओं को हरने वाले,  सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले सिद्दिविनायक को कोटी-कोटी प्रणाम  है।
मंगलमूर्ती गजानन के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

http://roshansavera.blogspot.in/2012/09/blog-post_5322.html





Wednesday 4 September 2013

जीवन में शिक्षा का महत्व



जीवन एक पाठशाला है। जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा पाते हैं। शिक्षा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा हमारी समृद्धि में आभूषण, विपत्ति में शरण स्थान और समस्त कालों में आनंद स्थान होती है। जीवन लक्ष्य की पूर्ती के लिए शिक्षा आवश्यक है। महान दार्शनिक एवं शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन भी मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा को सर्वाधिक आवश्यक मानते थे। उनके अनुसार- शिक्षा वह है, जो मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ उसके ह्रदय एवं आत्मा का विकास करती है। शिक्षा व्यक्ति को स्वंय के विकास के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रेरित करती है। महामहीम सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार से शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए क्योंकि विदेशी भाषा में भारतीय मौलिक चिंतन नही कर सकते।
शिक्षा के महत्व को परिलाक्षित करते हुए स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र गठन कर सकें और विचारों का सामजस्य कर सकें यर्थाथ में यही वास्तविक शिक्षा होगी। स्वामी जी भारत में ऐसी शिक्षा चाहते थे, जिसमें उसके अपने आदर्शवाद के साथ पाश्चात्य कुशलता का सामंजस्य हो। उनका कहना था कि लोगों को आत्मनिर्भर बनना अति आवश्यक है वरना सारे संसार की दौलत से भी भारत के एक गाँव की सहायता नही  की जा सकती। अतः नैतिक तथा बौद्धिक, दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना देश व समाज का पहला कार्य होना चाहिए।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, आज जिस तरह का वातावरण चारो तरफ व्याप्त है ऐसे में ऐसी शिक्षा ही आवश्यक है जिससे बच्चों का चरित्र-निर्माण हो सके, उनकी मानसिक शक्ति बढे, बुद्धि विकसित हो और देश के युवक अपने पैरों पर खङा होना सीखें। भौतिकवादी स्वार्थपरक सोच के फैलते प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक है कि स्कुली शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा की भी नींव मजबूत की जाए।
शिक्षक दिवस के पावन दिन पर सार्थक शिक्षा को आत्मसात करते हुए खुद से वादा करें कि जो शिक्षा मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य बना सके ऐसी मूल्यवान शिक्षा की अलख हम विपरीत वातावरण में भी जलाए रखेंगे। इसी प्रण के साथ आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई।