Monday 25 January 2016

26 जनवरी विशेष, राष्ट्रिय गौरव का प्रतीक हमारा गणतंत्र



हमारा गणतंत्र, हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रिय गौरव का प्रतीक है। उत्तर वैदिक युग में ही हमने गणतंत्र-व्यवस्था विकसित कर ली थी। ऋगवेद तथा अथर्ववेद में आई स्तुतियों तथा मैगस्थनीज की बातों से भी यही सिद्ध होता है कि,  भारत के प्राचीन में भी गंणराज्य थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गणतंत्रीय व्यवस्था को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया है। हम सब भारतवासियों को अपनी  पुरातन संस्कृति और वर्तमान गणतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व है। आज देश में जहाँ निराशा के कारण विद्यमान हैं तो, आशा के भी उजाले चारों दिशाओं में अपना उजाला रौशन कर रहे हैं। राष्ट्रभाव की भावना का आज भी शंखनाद हो रहा है। अपनी गौरवपूर्ण गणतांत्रिक धरोहर के तले हमें अपनी अभिव्यक्ति का अधिकार है। आज हम सब विकास के नये सोपान पर चढ रहे हैं। सामाजिक चेतना की भी कोई कमी नही है। गंणतंत्र ने हमें लोकतंत्र जैसी व्यवस्था के साथ समता, स्वतंत्रता और भाई-चारे जैसे मूल्य दिये हैं। अनेकाता में एकता का प्रतीक हमारा भारत विश्व में इकलौता देश है जिसे इस पृथ्वी का स्वर्ग कहना अतिश्योक्ति न होगा। सौहार्द के रंग में रंगा हमारा देश सहिंष्णुता के विचारो से बना है। इस देश की मिट्टी में हर धर्म, जाति और समुदायों का अंकुरण है। जयशंकर प्रसाद ने तो कहा है कि, अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। हम सब को एक सूत्र में पिरोने वाला हमारा गंणतंत्र राष्ट्रीयता की पहचान है। गणतंत्र उत्सव जन गण मन का राष्ट्रीय उल्लास है। उल्लास के इस राष्ट्रीय पर्व को हम सब मिलकर मनायें और प्रण करें कि, भारत की सांस्कृतिक गणतांत्रिक विचारों की रक्षा पूरे तन मन से करते हुए भारत को गौरव के शिखर पर ले जायेंगे। इसी के साथ आप सबको, राष्ट्रीय पर्व गंणतंत्र दिवस की  हार्दिक बधाई।
जय भारत   
वंदे मातरम् और 26 जनवरी पर निबंध को पढने के लिये लिंक पर क्लिक करेंः-  वन्दे मातरम्

26 January special an essay










Saturday 23 January 2016

बालिका दिवस विशेष, आसमां तुम्हारा है

कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नही मन चाहिये, यही सोच हैं आज की बेटियों की। सामने ढेरों चुनौतियां फिर भी दिल में आगे बढने का जज़बा कहता है, "खुशबु बनकर गुलों में उङा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उङा करते हैं, ये कैंचियां खाक हमें रोकेंगी, हम परों से नही हौसलों से उङा करते हैं।" 

देश की आन बान शान की रक्षा में तत्पर भारत की मान है बेटियां। विकास के हर क्षेत्र में आज बेटियां अपना परचम लहरा रही हैं।भारतीय संस्कृति की चादर ओढे आज की बेटियो पर हर माँ-बाप को नाज है। इस सृष्टी का आधार हैं बेटियां। कुदरत का उपहार हैं बेटियां। चंद असमाजिक तत्वों का खौफ नही क्योंकि आत्मसम्मान के साहस ने दस्तक दे दी है। मर्यादा का भान लिये  नई सोच का आसमान छुने निकल पङी हैं।  उनका कहना है कि, "हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ भी चल पङेंगे रास्ता बन जायेगा।" 

बालिका दिवस के इस शुभ अवसर पर देश की समस्त बेटियों को कोटी-कोटी बधाई। एक दिन क्या हर पल है तुम्हारा, ये आसमां तुम्हारा है  उङान भरकर देखो; जो मिल गया उससे बेहतर तलाश करो, कतरे में भी छुपा है समंदर तलाश करो, हांथो की लकीरें भी यही कहती हैं  कोशिश से अपना मुक्कदर तलाश करो क्योंकि  जुगनू कभी रौशनी के मोहताज नही होते। सारा जहाँ है तुम्हारा हौसले की उङान भरो। 

बालिका दिवस के उपलक्ष्य पर अपने पाठकों से अपील करते हैं कि; नये दौर को अपनाओं, पॉजिटिव सोच का पंख लगाओ क्योंकि बेटी है तो कल है, वरना विराना पल है। 

Beti hai to kal hai

जय भारत
धन्यवाद
अनिता शर्मा



Friday 22 January 2016

सुभाष चंद्र बोस, भारत माता के साहसी सेनापती

भारत माता की आजादी के लिये अपना सर्वस्य न्योछावर करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का बलिदान अमर है। 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष के आदर्श विवेकानंद जी थे। 20 सितंबर 1920 को आई. सी. सी. की सफल परिक्षा पास करने के बावजूद सुभाष चंद्र बोस ने 22 अप्रैल 1921 को इस महत्वपूर्ण पद से त्यागपत्र दे दिया था। इतिहास में ये दिन अमिट है क्योंकि इतने उच्च पद का त्याग करके भारत माता को नमन करने वाले वो पहले व्यक्ति थे। भारत की माटी के सच्चे प्रहरी सुभाष से अंग्रेज अधिकारी भी डरते थे। मातृ भूमी के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा थी। ऐसा उनका एक प्रसंग आप सबसे सांझा कर रहे हैं। 

एकबार एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार करने उनके घर गया। वहाँ उनके कमरे में प्रवेश करने के साथ ही चौक गया उसने विस्मित नेत्रों से कमरे को देखा बड़ा साधारण सा कमरा था कहीं कोई सजावट नहीं थी। फर्श पर एक कंबल बिछा था जिस पर सुभाष बाबु बैठे थे। आस पास कुछ पुस्तकें थी और लिखने के लिए एक पेन रखा हुआ था।  उनके हाथ में एक पुस्तक थी, संभवत: यह स्वामी विवेकानंद जी के पत्रों का संकलन था, जिसे स्वामी विवेकानंद जी ने अपने शिष्यों अपने मित्रों तथा गुरु भाइयों को समय-समय पर लिखा था। इस पत्रावली में देश प्रेम की ऐसी आग थी जिसकी गरमाहट से सुभाष का देशप्रेम ह्रदय, आजादी की चिंगारी लिये धधक रहा था। दीवार के पास एक चौकी थी जिस पर फूलों की सजावट के बीच एक चांदी की डिबिया रखी थी। यह चौकी पूजा की बेदी थी। इतना साधारण कमरा देख अंग्रेज अधिकारी के आर्श्चय का ठिकाना न था। उसने कहा मिस्टर सुभाष मेरे पास तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए वारंट है। उसने सुभाष की तरफ विचित्र नजरों से देखते हुए कहा; सुभाष तुम क्या हो सकता थे और क्या हो गए। 

मित्रों, ये अंग्रेज अधिकारी सुभाष चंद्र बोस को इंग्लैंड के दिनों से परिचित था। उसे अभी तक 20 सितंबर 1920 का वह दिन यह था, जब सुभाष चंद्र बोस आई. सी. एस. की परिक्षा में प्रथम श्रेंणी में सफल हुए थे। सफल छात्रों के सूची में उनका चौथा स्थान था; जबकि अंग्रेजी कंपोजीशन में उन्हे प्रथम स्थान मिला था। सुभाष बाबु ने, अंग्रेजों को उनकी भाषा में धूल चटा दी थी। समाचार पत्रों में इसकी बड़ी चर्चा हुई थी उसके कुछ ही महीने बाद फिर से समाचार पत्रों ने अपने मुखपृष्ठ पर एक समाचार प्रकाशित किया जब उन्होंने आई.सी.एस. के पद से त्याग पत्र दे दिया था।  

अंग्रेज अधिकारी ग्रिफिथ की बात सुनकर सुभाष चंद्र बोस ने हंसते हुए  कहा; "ठीक कहा तुमने, मैं गुलाम हो सकता था, लेकिन आज मैं अपने देश की स्वाधीनता का सजग सिपाही हूं"।

अंग्रेज अधिकारी कुछ खिसियाते हुए बोला मुझे इसी समय तुम्हें गिरफ्तार करना है।  इस पर सुभाष फिर से हंसते हुए बोले अवश्य जो तुम्हें आदेश दिया गया है उसका पालन करो। इस पर वह अधिकारी पुनः बोला मुझे तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है। अंग्रेज अधिकारी  ने हर चीज कमरे की उलट पलट कर देखी कागजों में उसे कुछ भी आपत्तिजनक ना मिला तब उसने चौकी पर रखी चांदी की डिबिया खोली इसमें कुछ चूर्ण  जैसा था उसने पूछा यह क्या है?  सुभाष ने कहा;  "इसमें मेरे देश की मिट्टी है"
अंग्रेज अधिकारी ने उत्सुकता से पूछा, लेकिन यहां पर इस डिबिया में और चौकी के ऊपर फूलों की सजावट के बीच इस को रखने का क्या प्रयोजन है? सुभाष चंद्र बोस ने उत्तर दिया,  "मैं हर रोज अपने देश की मिट्टी की पूजा करता हूं  देश की स्वाधीनता की अपने उद्देश्य का स्मरण करता हूं" 

अंग्रेज अधिकारी ने कहा मिस्टर सुभाष तुम पागल हो गए हो अन्यथा कोई मिट्टी की भी पूजा करता है।  उसने कहा तुम्हे गिरफ्तार होने का कोई दुःख नही है। सुभाष चंद्र बोस ने कहा, "कष्ट और त्याग तो स्वाराज की नींव हैं इसी पर स्वराज की कल्पना साकार होगी।" 

इस गिरफ्तारी के बाद सुभाष चंद्र बोस को मांडले जेल में रखा गया था। मांडले जेल पहुँचकर सुभाष आनंदित हो गये क्योंकि मांडले जेल, लोकमान्य बालगंगाधर , भगत सिंह तथा लाला लाजपत राय जैसे महान देशभक्तों का साक्षी रहा है। ये तो तपस्वी क्रांतिकारियों की तपोभूमि थी। 

2 मई को सुभाष बाबु ने दिलिप कुमार राय को पत्र लिखकर कहा था कि, 
"यहाँ रहकर मेरे विचारों में परिवर्तन होने लगा है। इस जेल का वातावरण मेरे मस्तिष्क में दार्शनिक विचार उत्पन्न करता है। मैं महसूस कर सकता हूँ कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने, गीता रहस्य की रचना बहुत ही शांति और परंम संतोष के साथ की होगी।"

नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस जेल में सबके प्रिय नेता बन गये थे। उनका व्यक्तित्व एक प्रकाश पुंज की तरह था। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज भी राष्ट्र के लिये प्रकाश का अमर स्रोत हैं।भारत की स्वतंत्रता के जांबाज़ सिपाही सु्भाष चंद्र बोस को उनके जन्मदिन पर नमन करते हैं और उनके संदेश के साथ कलम को विराम देते हैं। "राष्ट्रवाद, मानव जाति के उच्चतम् आर्दशों सत्यम शिवम् सुन्दरम् से प्रेरित है।" 
जय हिंद

नेताजी के जिवन परिचय के लिये लिंक पर क्लिक करेंः- 


Wednesday 20 January 2016

आतंकवाद कभी भी अच्छा या बुरा नही होता

आतंकवाद सम्पूर्ण विश्व के लिये एक ऐसा परमाणु बम है, जिससे समस्त सजीव जगत का विनाश हो रहा है। आतंकवाद कभी भी अच्छा या बुरा नही होता, आतंकवाद का न कोई धर्म है, न कोई मज़हब। आतंकवाद तो वो ज़हर है जो इन्सानियत का सबसे बङा दुश्मन है।  सभी धर्म या मज़हब में मानवता को सर्वोपरी माना गया है फिर भी आतंकवाद के प्रचारक इसे जेहाद (धर्म) की लङाई बताकर भोले-भाले लोगों को दिशाभ्रमित कर रहे हैं। आज हम सब आतंकवाद रूपी एक ऐसे वायरस की चपेट में आगये हैं जिसको बच्चों की मासुमियत भी नज़र नही आती। विश्व के भविष्य को ही निस्तेनापूत करने वाला ये आतंकवाद रूपी बम सिर्फ दहशत का ही प्रतीक नही है बल्की समस्त सृष्टी को ही खत्म करने वाला प्रलय है। इस जलजले से सभी इंसानियत के रहनुमाओं को मिलकर लङना होगा। 
अटलबिहारी वाजपेये जी ने कहा था कि, "किसी भी मुल्क को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक साझेदारी का हिस्सा होने का ढोंग नही करना चाहिये। जबकि वो आतंकवाद को बढाने, उकसाने और प्रयोजित करने में लगा हो।" 

अमेरीका का 9/11 आतंकी हमला या मुम्बई के  26/11 हमले को लोग भूल ही नही पाये थे कि, पेशावर के स्कूल में छोटे-छोटे मासूमों की चीख ने इन्सानियत के पहरेदारों को सोचने पर मजबूर कर दिया। आतंकवाद का न कोई अपना है और न ही कोई अपना देश क्योंकि ये तो जिस देश में पनाह लेता है उसे ही डस लेता है। आज विश्व के सभी देश इस कोबरे के चपेट में आ चुके हैं। कङी से कङी सुरक्षा में भी इसकी पहुँच हैं। जिसका परिणाम है, पेरिस और रूस  का आतंकवादी हमला। हाल ही में भारत में पठानकोट हमला और अभी पेशावर के विश्वविद्यालय पर हमाला यही दिखाता है कि, आतंकवाद के खिलाफ जो भी बोलेगा उसको आतंकवाद के रहनुमा नष्ट करने में तनिक भी देरी नही कर रहे हैं। 

आज समय की माँग है कि, संयुक्तराष्ट्र संघ को गुड और बैड टेरिरज्म का राग न अलापते हुए, इस तरह की शैतानी ताकतों को जङ से नष्ट करने के लिये कोई सख्त कदम उठाना होगा। विश्व के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये सभी देशों को मिलकर, आतांकवादियों के नापाक मनसुबों को नष्ट करना होगा। चंद पैसों के लालच में अपना ईमान बेचने वाले लोगों को अपनी  देशप्रेम की भावना को जिवंत करना है। 

दिया किसी के भी घर का बुझे सच्ची इंसानियत का ह्रदय करुणा से भर जाता है क्योंकि उसके लिये सभी बच्चे एकसमान होते हैं। इंसानियत की नेकदिली को देश, धर्म या जाति की दिवारें रोक नही सकती हैं। आज सभी इंसानी ताकतों को एक होना है और इस धरा पर से आतंकवाद रूपी राक्षस को धराशायी करना है।  मानवता के प्रतिनिधियों को मिलकर विश्व कल्यांण का संकल्प करते हुए, सर्वे भवन्तु सुखिनः का आह्वान करना होगा। 

आतंकवाद नफरत है ना पालो इसे,
दिलों में खलिश है निकालो इसे,
ना तेरा ना मेरा, ना इसका ना उसका,
ये सृष्टी है सबकी बचालो इसे। 

Monday 18 January 2016

मल्हार मिडिया की नई सोच को सलाम


Voice for blind क्लब की ओर से मल्हार मिडिया को पहली सालगिरह पर हार्दिक शुभकामनाएं। मल्हार मिडिया की संस्थापक ममता यादव को बहुत-बहुत बधाई। ममता जी ने मल्हार मिडिया की पहली सालगिरह को राष्ट्र की गौरव बेटियों को समर्पित किया। ममता जी ने उन बच्चियों को सम्मानित किया जिनका सफर आसान नही था, लेकिन उनके हौसले की उङान ने उन्हे आज सफलता के सोपान पर खङा कर दिया है। मल्हार मिडिया ने इन बच्चियों को सम्मानित करके एक नई शुरुवात की है, जो समाज  में सकारात्मक संदेश देगा जिससे समाज में दृष्टीबाधितों के प्रति सहयोग की भावाना का विस्तार होगा।  इन बच्चों को दया नही समाज का परिवार की तरह साथ चाहिये  क्योंकि विकलांगता अभिशाप नही है। ममता यादव जी आपकी सोच का अभिनंदन करते हैं।  रजनी, मोनिका,सोनु और अंकिता का कहना है कि, आँधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की हमें भी जिद्द है वहाँ आशियां बसाने की। अपनी इसी जिद्द को लेकर ये बच्चियाँ दृष्टीबाधिता के बावजूद अपनी योगयता के बल पर आज आत्मनिर्भर हैं तथा अपने सपनों को साकार कर रही हैं। 

रजनी, मोनिका,सोनु और अंकिता संक्षिप्त परिचय के लिये लिंक पर क्लिक करेंः-   मल्हार मीडिया की अवार्डी अद्भुत प्रतिभायें

Be kind & help others


हम कितने भी आधुनिक हो जायें फिर भी हम समाज और उसके सहयोग की अहमियत को समझते हैं क्योंकि समाज से परे एकांकी रहकर तो व्यक्तिगत जीवन का भी विकास संभव नही है। धरती पर जीवन की बनावट ही कुछ ऐसी है कि मनुष्य अपने आप में सिमट कर नही रह सकता। विकास की यात्रा हो या जिवन यापन की जरूरतें सब के सहयोग से ही पूर्ण होती है। 
Read more:-  सहयोग की भावना मानवता की प्रतीक है


जिवन में पग-पग पर अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए आज कई दृष्टीबाधित लोग अपने हौसले की रौशनी से स्वंय के साथ अनेक लोगों की जिंदगी को प्रकाशित कर रहे हैं। बेमिशाल जिंदादिली से कई लोगों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। कुदरत ने सभी को कुछ न कुछ कमियाँ दी हैं तो कुछ न कुछ प्रतिभाएं भी दी है। 

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विकास के इस दौर में आप सबसे अनुरोध है कि, हम सब मिलकर दृष्टीबाधित बच्चों के लिये मानवीय भावना से ओत-प्रोत एक ऐसे आसमान की रचना करें, जिसकी छाँव में दृष्टीबाधित बच्चे सकारात्मक सहयोग और स्वयं के प्रयास से आत्मनिर्भर बन सकें। 
Read more:-  दृष्टीबाधिता अभिशाप नही है


Friends, शिक्षा वो हथियार है जिसके माध्यम से आत्म सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन यापन किया जा सकता है। वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब का उद्देश्य भी है कि, Visual Impaired Students को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना। Read more:-
आपका थोङा सा समय किसी को आत्म सम्मान से जीने का अवसर दे सकता है

समस्त विश्व में दृष्टीबाधित अर्थात अन्धापन का कारणकई प्रकार की बिमारियाँअस्वछता तथा उदासीनता है। भारत में सर्व प्रथम दृष्टीबाधिता का कारण रुबैला वायरस अथवा जर्मन मिजल्स होता था।
Read more:-  दृष्टीबाधिता के कारण Cause of blindness

दोस्तों आप सबके सहयोग को देखकर हमें, हमारी भारतीय संस्कृती पर और अधिक गर्व होता है। सच कहें तो किसी के लिए भी मन में सहयोग की भावना, हमारी भारतीय संस्कृती की पहचान है और हममें से कई लोगों ने ये अनुभव भी किया होगा कि किसी की सहायता करके एक रुहानी खुशी का एहसास होता है। सहयोग की भावना हमारे विकास का आधार भी है।
Read more:-  Thanks for Co-Operation

धन्यवाद
अनिता शर्मा 

Wednesday 13 January 2016

मकर संक्रांति की शुभकामनायें


पारम्परिक रूप से मकर संक्राति सम्पन्नता को समर्पित त्योहार है। कहते हैं त्योहार कभी अपना या पराया नही होता, इसी का जिवंत उदाहरण है, संक्राति पर्व जो फसल की कटाई के उत्सव का पर्व है, जिसे 13 से 15 जनवरी के मध्य;  उत्तर भारत में मकर संक्राति, पंजाब में लोहङी, महाराष्ट्र तथा गुजरात में उत्तरायन तथा आन्ध्रप्रदेश, केरल तथा कर्नाटक में संक्राति या पोंगल के नाम से मनाया जाता है। इसके अलावा दुनिया के अन्य देशों, जैसे किः- श्री लंका, मलेशिया, अमेरिका, कनाडा, मॉरिशस तथा सिंगापुर में भी इसी दौरान बहुत उत्साह से मनाया जाता है। लगभग सम्पूर्ण धरा पर एक साथ मनाया जाने वाला संक्राति पर्व आप सबके जीवन में गुढ और तिल की मिठास के साथ हर पल रहे। सूर्य देव के आर्शिवाद से जीवन खुशियों की अनंत सूर्य किरणों से भर जाये। पतंगों की तरह सफलता आकाश की बुलंदी पर लहराये। 

लोहङी, पोंगल तथा मकर संक्राति की अनेकोनेक शुभकामनायें
ये लेख अवश्य पढेंः-
अनेकता में एकता को रौशन करते हमारे त्यौहार
जय भारत
अनिता शर्मा 

Monday 11 January 2016

स्वामी विवेकानंद द्वारा बैलूर मठ में गुरु रामकृष्ण परमहंस का पदार्पण


जिस तरह विभिन्न स्रोतों की धाराएं अपना जल समुन्द्र में मिला देती हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना गया हर रास्ता भगवान तक जाता है। ऐसे ही विचारों को मन में संजोए स्वामी विवेकानंद जी को अपने गुरु श्री रामकृष्ण के चरणों में ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड नजर आता था। गुरु के प्रति विवेकनंद जी की भक्ति को शब्दों में अभिव्यक्त करना असंभव है।  श्री रामकृष्ण मठ के सभी भक्तों के लिये  9 दिस्मबर का दिन बहुत ही स्मरणीय दिन है।  ब्रह्म मुहर्त में स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु भाईयों और शिष्यों के साथ गंगा जी में स्नान करके नवीन गैरिक वस्त्र पहना। विशेष अनुष्ठान की पूजा का दायित्व स्वामी जी ने स्वयं ले लिया था। ध्यान, उपासना तथा नित्य पूजादी समाप्त करके, स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण के देहावशेष वाले पवित्र पात्र को दक्षिण कंधे पर रखकर बैलूर मठ की ओर चल पङे। उनके पीछे अन्य गुरुभाई तथा शिष्य, शंख और घंटे के साथ रामकृष्ण का जयघोष करते हुए चलने लगे। श्री रामकृष्ण का उच्चारण अपूर्व आनन्दोल्लास उत्पन्न कर रहा था। भाव-विभोर हुए स्वामी विवेकानंद अपने गुरु के एहसास को बैलूर मठ में स्थापित करने जा रहे थे। स्वामी जी को ध्यान आया कि एक बार श्री रामकृष्ण जी ने कहा था कि, तू कंधे पर चढाकर मुझे जहाँ भी खुशी से ले जायेगा, मैं वहीं पर रहुँगा। सभी गुरु भाई इसी विश्वास से आगे बढ रहे थे कि, श्री रामकृष्ण की दिव्य उपस्थिति से पवित्रता, आध्यात्मिका तथा समस्त मानव जाति के आदर्श की रक्षा होगी। 

मठ प्रांगण में रचित वेदी पर पवित्र पात्र को रखकर सभी सन्यासी और ब्रह्मचारियों सहीत स्वामी विवेकानंद, भूमी पर लोट-लोट कर महान गुरुदेव को बारंबार प्रणाम करने लगे। उसके बाद स्वामी जी ने यथाविधि पूजा समाप्त करके यज्ञाग्नि प्रज्वलित किये। स्वामी जी के मुख से वेद मंत्रों का स्वर विणा की ध्वनी के समान चारों दिशाओं में झंकृत हो रहा था। स्वामी जी ने श्री रामकृष्णसन्तानों को बुलाकर कहा, बन्धुओं आओ लोक कल्यांण के अवतरित अपने प्रभु से प्रार्थना करें कि वे अंनतकाल तक इस पवित्र स्थान पर निवास करें। इस मठ के कर्म केन्द्र से 'बहुजन हिताय' 'बहुजन सुखाय',   सर्वधर्म तथा सर्वसम्प्रदाय को मानने वाले भाव की धारा का प्रवाह हो। 

स्वामी विवेकानंद जी, श्रीरामकृष्ण जी के उपदेशों तथा आदर्शों को जनसाधरण तक पहुँचाना चाहते थे। इसके लिये उन्होने पाक्षिक पत्र प्रकाशित करने का विचार अपने गुरु भाईयों के समक्ष रखा। इस कार्य को मूर्तरूप देने में गुरुभाई त्रिगुणातीतानन्द जी ने सम्पूर्ण योगदान दिया। 14 जनवरी 1899 को इस पत्रिका का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ। स्वामी विवेकानंद जी ने इस पत्र का नाम उद्बोधन मनोनित किया और इस पत्र की प्रस्तावना उन्होने ही लिखी।त्रिगुणातीतानन्द जी  इस पत्र का संचालन करते थे। पत्र के प्रति उनकी निष्ठा तथा त्याग को स्वामी विवेकानंद जी बहुत उत्साहित करते थे। स्वामी विवेकानंद जी, जीवन पर्यन्त अपने गुरु श्री रामकृष्ण की शिक्षाओं तथा आदेशों का पालन करते रहे। विश्व कल्यांण का संक्लप उन्होने इस तरह निभाया कि उसका एहसास आज भी विश्व में गुंजायमान है। स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं तथा आर्दशों को हम सबको भी जीवन में अपनाना चाहिये तथा  वसुधैव कुटुंबकम की भावना को जिवंत रखना चाहिये। स्वामी जी के जन्मदिवस पर शत्-शत् नमन एवं वंदन करते हैं। 
जय भारत
अनिता शर्मा 

Friday 8 January 2016

“मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है” स्वामी विवेकानंद



स्वामी विवेकानंद जी कहते थे कि, "जब भी कोई व्यक्ति थोङा अलग सोचता है तो उसके बारे में तीन बातें निश्चित होती हैं- उपहास विरोध और अन्त में स्वीकृति। अतः भारत के युवाओं देश हित और समाज हित के लिये कुछ अच्छा सोचो और अपनी सोच को सकारात्मक विचार के साथ सम्पूर्ण विश्व में फैलाओ। ऐसी शिक्षा अपनाओ जिसका उद्देश्य, सूचनाओं के संकलन मात्र नही अपितु तकनिकी कौशल के साथ तुम्हारा चारित्रिक और वैचारिक ज्ञान भी मजबूत हो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृण रहो, फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों।" 
अतः मित्रों, इसी विश्वास के साथ हम सबको आगे बढना है और अपने भारत की संस्कृति को पुनः गौरवान्वित करना है......

स्वामी विवेकानंद की के और भी संदेश पढने के लिये लिंक पर क्लिक करके पढेंः-----

अपने युवा काल में ही स्वामी जी ने अपनी तेजस्वी वांणी से ये संदेश दिया कि अपना भारत देश महान है। उनकी बातें आज भी युवाओं को प्रेरणा देती है। विवेकानंद जी अपने विचारों के माध्यम से आज भी अमर हैं। युवाओं पर विश्वास करने वाले विवेकानंद जी के जन्मदिन (12 जनवरी) को युवा दिवस के रूप में मनाना हमारी भारतीय संस्कृति की गौरवपूर्ण पहचान है। आगे पढें-  युवा शक्ति

आज देश में धर्म और जाति को लेकर अनेक विवाद विद्यमान हैं। मानवीय संवेदना धार्मिक और जातिय बंधन में इस तरह बंध गई है कि इंसानियत का अस्तित्व कहीं खोता हुआ नज़र आ रहा है। ऐसे में स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरणादायी प्रसंग इन जातिय और धार्मिक बंधनो को खोल सकते हैं जिससे इंसानियत पुनः स्वंतत्र वातावरण में पल्लवित हो सकती है। आगे पढें-
स्वामी विवेकानंद जी की मुंशी फैज अलि के साथ हुई धार्मिक चर्चा

बैलूरमठ की जमीन को साफ करने के लिये प्रतिवर्ष कुछ संथाल स्त्री-पुरुष आते थे। स्वामी जी उनके साथ कभी-कभी हँसी-मजाक करते थे, उनके सुख-दुःख की बातें बङे ध्यान से सुनते थे। एक दिन की बात है कि, कुछ विशिष्ट् भद्र पुरुष स्वामी जी से मठ में मिलने आये, उस समय स्वामी जी संथालों के साथ उनकी आपबीती सुन रहे थे। स्वामी जी, सुबोधानंद से बोले कि अब मैं किसी से न मिल सकूँगा आज मैं इनके साथ बङे मजे में हुँ। वास्तव में स्वामी जी, उस दिन संथालो को छोङ कर भद्र महोदय से मिलने नही गये।आगे पढें-  दरिद्रनारायण की सेवा

स्वामी जी के आर्शिवचन सुनने के लिये सुबह 9 बजे से दोपहर तक, हिन्दु मुसलमान दोनो ही जाति के लोग उनके धर्ममत का श्रवणं करते थे। ऐसी ही सभा के दौरान एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि- स्वामी जी, आप गेरुआ वस्त्र क्यों पहनते हैंआगे पढें-
युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी की अलवर यात्रा


1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन चल रहा था। स्वामी विवेकानंद भी उसमें बोलने के लिए गये हुए थे। 11सितंबर को स्वामी जी का व्याखान होना था। मंच पर ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ था- हिन्दू धर्म – मुर्दा धर्म। आगे पढें-  शिष्टाचार

युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी काअभिनंदन करें, वंदन करें, उनकी आशाओं और विश्वास पर खरे उतरें, स्वामी जी की शिक्षाओं की ज्योति से हर दिशा रौशन करें।
जय भारत 
धन्यवाद
अनिता शर्मा  




Sunday 3 January 2016

ब्रेल लिपि

जो असंभव कार्य को संभव करदे उसे ही प्रतिभा कहते हैं। ऐसे ही प्रतिभा के धनी लुई ब्रेल ने एक ऐसी लिपी का आविष्कार किया बिना देखे सिर्फ छूकर पढा जा सकता है। अल्पआयु में ही अपनी दृष्टी को खो देने वाले लूई ब्रेल ने, ब्रेल लीपि का आविष्कार करके सभी दृष्टीबाधितों के लिये शिक्षा के क्षेत्र में अनोखा योगदान दिया है। उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज अनेकों दिव्यांग लोग अपनी अभिव्यक्ति को लिख कर भी व्यक्त कर सकते हैं। 

किसी भी लिपी का शाब्दिक अर्थ होता है, लिखित या चित्रित करना। हमारे भारत वर्ष में अनेक लीपियां हैं, जैसे कि- देवानागिरी, खरोष्ठी, ब्रह्मलिपी, गुरमुखी लिपी इत्यादि इत्यादि। उसी तरह दिव्यांग लोगों की लिखित लिपी का नाम ब्रेल लीपि है। जिसका आविष्कार 1829 में हुआ था। 

ब्रेल लीपि में 6 बिन्दु होते हैं जो थोङे उभरे होते हैं। इसके सेल में दो पंक्तियां होती हैं। बाईं पंक्ति में 1,2,3 तथा दाईं पंक्ति में 4,5,6 बिन्दु होते हैं। इन्ही 6 बिंदुओं में सभी अक्षर, मात्राएं तथा संख्या समाई हुई है। भारतीय लिपियों को ब्रेल में व्यवस्थित करने के लिये 1951 में स्विकृति मिली थी। उस दौरान अलग-अलग स्कूलों में ब्रेल लिपियां अलग हुआ करती थीं, जिससे इस लिपी में पुस्तकों का आभाव रहता था। रुस्तम जी अलपाई वाला ने 1923 में 'अंध बधिर सम्मेलन' में ब्रेललिपियों की एकरुपता को ठोस तरीके से प्रस्तुत किया किन्तु विदेशी सरकार से भारत के उत्थान की आशा रखना समुन्द्र में पुल बनाने जैसा कार्य था। परन्तु अलपाई वाला हार नही माने और उनके अथक प्रयासों का परिणाम रहा कि 1952 में युनेस्को ने भारत के लगभग 20लाख दृष्टीबाधित लोगों के लिए एक भारतीय ब्रेल लीपी स्वीकार की। आधुनिक ब्रेल में अब 8 बिन्दु का प्रावधान है। 

मित्रों, कोई भी लिपी ऐसे प्रतीक-चिन्हों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टीगोचर बनाया जाता है। लिखी हुई बातें या विचार इतिहास की घरोहर हैं। अतः हम सबको अपनी-अपनी लिपि का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। साक्षरता का अभिप्राय भी यही है कि, अक्षर ज्ञान। 4 जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन पर उनको शत्-शत् नमन करते हैं। 

लुई ब्रेल के संक्षिप्त जीवन परिचय को सुनने के लिये विडियो देखें। 


धन्यवाद 
अनिता शर्मा