Tuesday 31 December 2019

अभिनंदन 2020



नमस्कार मित्रों, वर्ष 2020 का नया सवेरा, नई डगर के साथ दस्तक दे चुका है।

आओ मिलकर एक नई इबारत लिखें........


सबका जीवन समभाव की सुनहरी चमक के साथ अमन प्रिय बन जाये।

सरल सहज मन से सब गले मिलें, ऊंच-नीच का भेद मिट जाये।

सुख-समृद्धी की रंगोली हर द्वार सजे।

हर किसी के दिल में मानवता की ज्योति प्रज्वलित होती रहे।

बेटियों के लिये निर्भिक आसमान हो, सबके मन में उनके लिये सम्मान उपजे।

अनेक असफलताओं के बावजूद सफलता के आसमान को छुने की ख्वाइशें बरकरार रहे।

आँखों में सजे सपने साकार हो जाये, दिल में छुपी अभिलाषाएं सच हो जाये।

स्वहित से बङा देशहित  हर किसी की ख्वाइश हो जाये।

करें संकल्प! जयहिंद वंदे मातरम् का स्वर हर दिशा में गुंजे।

आप सबका नया साल खुशियों के पुष्प से सुगंधित हो जाये।


नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें 

Tuesday 8 October 2019

Happy Dashahra

💐💐आपको एवं आपके परिवार को विजयादशमी पर्व की हादिॅक शुभकामनाएं


http://roshansavera.blogspot.com/2012/10/blog-post_4383.html?m=1

Tuesday 1 October 2019

शास्त्री जी , एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व

इस देश की माटी ने जिन रत्नों को जन्म दिया है उनमें से लाल बहादुर शास्त्री जी एक हैं। उनके जीवन से हमें प्रेणना मिलती है कि, साधारण व्यक्ति होने के बावजूद हम अपने परिश्रम और ज्ञान से असाधारण व्यक्तित्व और युगपुरुष भी बन सकते हैं। 1921  में गाँधी जी के आह्वान पर देश हित के लिए खुद को समर्पित करने  वाले शास्त्री जी साधारण परिवार से थे। 17 वर्ष की आयु में ही शिक्षा छोङकर राष्ट्रीय आंदोलन से जुङ गये। हालांकि उन्होने राष्ट्रीय विचारधाराओं वाले छात्रों के लिये स्थापित काशी विद्यापीठ में डॉ. भगवानदास , आचार्य कृपलानी, डॉ. सम्पूर्णनंद तथा श्री प्रकाश जैसे शिक्षकों के नेतृत्व में आगे की पढाई की। 

आजादी के बाद उन्होने प्रधानमंत्री के रूप में देश को सैन्य गौरव का तोहफा दिया। हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह दिखाई। शास्त्री जी सीमा पर खङे प्रहरियों के प्रति अत्यधिक सम्मान रखते थे। उन्होने जय जवान जय किसान का नारा दिया।  ऐसी महान हस्ती के जन्मदिन पर उनको नमन करते हुए उनका एक प्रसंग सभी पाठकों से साझा कर रहे हैं........

बात 1965 की है जब पाकिस्तान ने ये सोचकर भारत पर हमला किया था कि, 1962 की चीन युद्ध के बाद भारत कमजोर हो गया होगा। परंतु शास्त्री जी के नेतृत्व ने पाकिस्तान के मनसूबे पर पानी फेर दिया। पाकिस्तान को करारी शिकस्त का सामना करना पङा। पाकिस्तान के तात्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान को शास्त्री जी के बुलंद हौसले का अंदाजा नही था परिणाम ये हुआ कि पाकिस्तानी हुकमरानों को भारत के आगे गिङगिङाना पङा था। 1964 में शास्त्री जी जब राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में लंदन गये तो रास्ते में ईधन भरने के लिए उनका विमान करांची में उतरा, जहाँ अयूब खान ने उनका स्वागत किया। शास्त्री जी को देखकर अयूबखान ने अपने एक साथी से पूछा कि, क्या यही शख्स नेहरु जी का वारिस है। ये घटना बहुत ही महत्वपूर्ण थी क्योंकि अयूब खान ने 1965 में कश्मीर को छीनने की योजना बनाई थी। उसने कश्मीर में पहले घुसपैठिये भेजे और पिछे-पिछे पाक सेना भी परंतु शास्त्री जी की दूरदर्शिता ने पंजाब में दूसरा मोर्चा खोल दिया। अपने अहम शहर लाहौर का पतन देखकर अयूब खान को कश्मीर से सेना हटानी पङी। इस युद्ध से शास्त्री जी की छवी विश्व मंच पर एक शसक्त नेता के रूप में उभरी जो हर विषम परिस्थिती में भी राष्ट्र्र  गौरव बचाने में सक्षम था। पाकिस्तान को शांति समझौते की जरूरत पङी और उसने रूस से मध्यसता के लिए  सहायता मांगी। 1966 में सोवियत संघ के आमंत्रण पर शास्त्री जी समझौते के लिए ताशकंद गये, वहाँ शास्त्री जी की बुद्धीमता की वजह से पाकिस्तान  उन सभी स्थानों को लौटाने के लिए राजी हो गया था जहां-जहां तिरंगा लगा था। परंतु देश का दुर्भाग्य शास्त्री जी का दिल का दौरा पढने के कारण वहीं इंतकाल हो गया। शास्त्री जी का निधन आज भी एक रहस्य है, जो अब तक सुलझ न सका। 

सादगी और ईमानदरी का पर्याय थे शास्त्री जी, वे अपने खर्चे के लिए अपनी तनख्वाह पर ही निर्भर थे। कभी भी  अपने पद का उपयोग स्वहित के लिये नही किये। इतिहास के पन्नों में स्वर्णअक्षर से लिखा शास्त्री जी का व्यक्तित्व आज भी अमर है.......

लालों में वो लाल बहादुर 
भारत माता का प्यारा था,
नहीं युद्ध से घबराता था,
विश्व शांती का दिवाना था,
इस शांति की बेदी पर 
उसे ज्ञात था मर मिट जाना






Friday 13 September 2019

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

 हम सबकी अभिलाषा है, विश्व शिखर पर हिन्दी का सम्मान हो।
हर कण में बसी हिंदी पर , हम सबको अभिमान हो।
आओ मिलकर  प्रण करें, समस्त विश्व में हिन्दी की जय जयकार हो।
🙏हिंदी दिवस की हार्दिक हार्दिक शुभकामनायें🙏

मातृभाषा पर मेरे पूर्व के विचारों को पढेंः--

Sunday 1 September 2019

गंणेश चतूर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

नमो गणपतये। नमः प्रमथपतये। श्री वरदमूर्तये नमो नमः। 
मित्रों, महाधिपति महानायक मंगलमूर्ती गंणेश जी, जिनका पूरा परिवार सबका मंगल करते हुए, सुख शांति और आनंद बरसाता है।ऐसे सामूह शक्ति के प्रतीक गणनायक को कोटी कोटी नमन करते हुए आप सभी को गंणेश चतूर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं🙏 


पूर्व के लेख पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें



धन्यवाद 🙏

Thursday 15 August 2019

हार्दिक शुभकामनाएं

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
    *73 वें स्वतंत्रता दिवस*
                   एवं
             *रक्षाबंधन*
       की आपको
     *हार्दिक शुभकामनाएं*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Monday 15 July 2019

समस्त गुरुजनों को नमन करते हैं

गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ गुरु पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालने का प्रयास करें हैं।
मित्रों, गुरू के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को देव तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से  भी जाना जाता है। वैसे तो भारत वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में मनाने के पीछे भी एक कारण है, क्योंकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है| यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं| गुरु की श्रेष्ठता का परिचय इस बात से भी होता है कि, अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। अतः हम सबको इस पावन पर्व पर अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करना चाहिए एवं उनको नमन करते हुए उनकी शिक्षाओं को जीवन में अपनाना चाहिए। 
🙏 ऊं गुरूवेः नमः 🙏

Tuesday 25 June 2019

यूरोप की झलक मेरी नजर से.........


मित्रों, हम दोनों अभी यूरोप टूर पर गये थे। वहाँ पुरानी और नई कला संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। सङकें गजब की शानदार, एक भी स्पीड ब्रेकर नहीं। पहाङों को काट कर सुरंगो से गुजरते रास्ते तो कहीं शहरों की सङकों के ऊपर से गुजरते हाई वे। विभिन्न सङकों का गजब का तानाबाना है, जिसे देखकर अच्मभित होना स्वाभाविक है। हमने  जिन देशों का भ्रमण किया उनमें जर्मनी, स्विट्जर लैंड, फ्रांस और बेल्जियम हैं। सभी देश बहुत खूबसुरत हरे-भरे और साफ-सफाई में भी नम्बर एक पर हैं। जर्मनी और स्विट्जर लैंड में जेब्रा क्रॉसिंग पर एक बटन लगा था जिसे पैदल यात्री दबा देते तो जल्दी ही पैदल क्रॉसिंग के लिए हरी लाइट जल जाती। जहाँ सिगनल नहीं थे वहां यदि जेब्रा क्रॉसिंग पर लोग खङें हैं तो गाङियाँ अपने आप रुक जाती और पैदल यात्रियों को पहले जाने देती थीं। 

इन देशों ने नई टेक्नोलॉजी के साथ पुरानी धरोहर को भी सहेज कर रखा है। दुसरे विश्व युद्ध में जो इमारत या कलाकृति नष्ट हो गई थी, उसे फिर से उसी तरह से बनाया गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जो लकङी की इमारत थी उसे किसी अन्य धातु से बनाया गया। शहरों की खूबसूरती के साथ-साथ वहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं। हम दोनों (मैं और पति अशोक) अकेले कुछ जगह घूमने गये थे, यदि वहां कुछ रास्ता या किसी चीज के बारे में कुछ पूछते तो वहाँ के लोग बहुत खुश होकर अच्छे से बताते और यदि उनको इंग्लिश नही आती तो सॉरी फील करते, जाहिर सी बात है वहां जर्मन, फ्रेंच और स्विस भाषा बोली जाती है। ये जरूरी नही है कि इंगलिश आये फिर भी समझा न पाने पर सॉरी फील करना बहुत बङी बात है। महिला सशक्ति का भी अवलोकन हुआ।
हमारी टूर गाइड 60 साल की थी। पहले दिन कोच (लग्जीरयस बस) की ड्राइवर भी 60 साल की महिला थी। वहां कई जगह होटलों का पूरा संचालन महिलाओं के द्वारा था।






हम लोगों का यूरोप टूर जर्मनी के फ्रेंकफर्ट शहर से शुरु हुआ। ये जर्मनी का पांचवाँ सबसे बड़ा शहर है। फ्रैंकफर्ट सदियों से जर्मनी का आर्थिक केंद्र रहा है और यहां बहुत सारे प्रमुख बैंक और दलाल मंडि़यां हैं। वित्त, परिवहन और व्यापारिक मेले फ्रैंकफर्ट अर्थवय्वस्था के तीन स्तंभ हैं। फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज जर्मनी का अब तक का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण स्टॉक एक्सचेंजों में से एक है। फ्रैंकफर्ट जर्मनी का एकमात्र ऐसा शहर, जहां बहुत सारी गगनचुंबी इमारते हैं। हम लोग फ्रेंकफर्ट में सिटी हॉल जिसे रोमर कहते हैं, उसको देखने गये। रोमर का अधिकांश भाग द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हो गया था, लेकिन बाद में फिर से बनाया गया। यहीं कैथेड्रल गॉथिक चर्च देखे जहां वास्तुशिल्प का अलौकिक चित्रण है। रोमर के मध्य न्याय की देवी जस्टिका की मूर्ति है। वहाँ कानून की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं है। 

रोमर के बाद हमारा सफर ब्लैकफॉरेस्ट की तरफ बढ चला, जहाँ वनों से घिरे पर्वत मंत्रमुग्ध कर रहे थे। यहां के वन इतने घने हैं कि सूर्य का प्रकाश भी अपनी दस्तक नही दे पाता इसलिये हम लोग भी इसका सोंदर्य सङकों पर से ही देख सके। ब्लैकफॉरेस्ट में ज्यादातर चीङ और देवदार के वृक्ष हैं। यहीं कु कु क्लॉक फेक्ट्री का भी अवलोकन किये।यहां एक ओपन-एयर संग्रहालय है जो घड़ी  के इतिहास को दर्शाता है। लकड़ी पर नक्काशी इस क्षेत्र का एक पारंपरिक कुटीर उद्योग है। 

हम लोग राइन फॉल्स देखने गये जो यूरोप में सबसे बड़ा सादा झरना है। जर्मनी की सुंदरता का अवलोकन करते हुए हम लोग स्विटजर लैंड में प्रवेश कर चुके थे, जहां रात्रि विश्राम के पश्चात अगले दिन माउंट टिटलिस को प्रस्थान करना था जो बहुत उत्सुकता पूर्ण था। सङक के दोनों तरफ हरे भरे पेङ और कॉटेज टाइप के घर। हर घर में छोटा या बङा बगिचा जरूर था। पिले,सफेद,गुलाबी और लाल गुलाब के फूलों की तो बहुतायत थी। सभी घर बाहर से भी सुसज्जित दिख रहे थे।  धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस देश पर प्रकृति ने दिल खोलकर अपनी छटा बिखेरी है। 

होटल से माउंट टिटलिस तक का सफर भी बहुत लुभावना था।  माउंट टिटलिस का बेस पङाव इंगलवर्ड था। जहां से केबल कार के माध्यम से ऊपर का सफर शुरु हुआ। रास्ते में सफेद चादर से ढकी टिटलिस की श्रेणियां मन को असीम खुशी दे रही थीं। केबल कार से निचे इंग्लबर्ड का नजारा भी अद्भुत दिख रहा था। गायों के गले में बंधी घंटी की आवाज प्रकृति की सुंदरता को संगीतमय कर रही थी। काफी ऊचाई पर आ जाने के बाद दूसरी केबल कार से हम लोग आगे बढे जो दुनिया की सबसे पहली Rotated केबल कार थी। इसमें एकबार में 80 लोग खङे होकर माउंट टिटलिस के शिखर तक पहुंचते हैं। ये 360 डिग्री घूम जाती है। माउंट टिटलिस पर जैसे ही पैर जमीं पर पङा लगा परिलोक में आ गये। बर्फ की चादर ओढी इसकी श्रृखंलाएं अंतरमन तक प्रसन्नचित्त कर गईं। एक चोटी से दूसरी चोटी तक एक बृज बना है जिसपर चहल कदमी करना किसी स्वपन को साकार करता नजर आ रहा था। यहां बर्फ से अटखेलियां करने के बाद इंगलबर्ड वापस आ गये, जहां भारतीय भोजन के सभी व्यंजन की उपलब्धता लिये रेस्टुरेंट था।

इंगलबर्ड भी किसी स्वपनलोक से कम नही था। यहां से बर्फ की चादर ओढे आल्पस की पहाङियों का नजारा अद्भुत था।

भोजन के पश्चात हमलोग ल्युसर्न की ओर बढ चले। ल्युसर्न स्विट्जर लैंड का सातवां बङा शहर है। प्रकृति ने इसे भी अपनी भरपूर छटा प्रदान की है। शहर तीन तरफ आल्पस की ऊंची बर्फ की पहाङियों  से ढका नजर आता है। लेक ल्युसर्न से निकलती नदी और झील पर बना पुल अत्यधिक रमणिय हैं। यहां का टाउनहाल 16वीं शताब्दी में इतावली रेनंसा शैली में बना है।
रोइस नदी पर लकङी का बना चैपल बृज अचरज करने वाला है। ये 600 साल पुराना बृज है, इसके अंदर एशियन चित्रकारी को देखा जा सकता है। इसकी खास बात ये है कि इसका कुछ हिस्सा जल गया था जिसे वापस लकङी से ही हुबहु बनाया गया है। ये पुल वाकई आश्चर्य का रंग बिखेरता है। नदी के उस पार जेसुइट चर्च और पिकासो म्युजियम का नजारा देखते हुए हम लोग लॉयन मान्युमेंट की ओर बढ चले। 

लॉयन मान्युमेंट 18वीं शताब्दी में फ्रांस की क्रांति में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया है। एक खङी चट्टान पर सुरंग में लेटे हुए शेर का अद्भुत शिल्प है। जिसके सिरहाने भाला और तलवार रखा है तथा पेट में खंजर लगा हुआ है। शेर की भंगिमाएं स्पष्ट नजर आती हैं कि वो विषाद में है। मार्क ट्वेन ने इस शिल्प को विश्व की सबसे विषाद और ह्रदयस्पर्शी प्रतिमा कहा है। ल्युसर्न घुमने के पश्चात हम लोग वापस होटल आ गये। 


अगला दिन ऑपशनल था तो हम दोनों मेट्रो से जुग शहर घूमने निकल पङे, जहां कुछ खरिदारी के पश्चात जुग लेक पर पहुँच गये। स्विट्जर लैंड को झीलों का देश भी कहते हैं। जुग लेक भी प्रकृति के उपहार से परिपुर्ण है। उसके किनारे बने घर भी बहुत सुंदर बने हुए हैं। सौभाग्य से वहां उस दिन बच्चों की विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे- तैराकी, साइकिलिंग और दौङ को देखने का अवसर मिला। 

अगले दिन हम लोगों का टूर पेरिस के लिये निकल चला। पेरिस में कई बङी रिहायशी ईमारतें देखने को मिली। एफिल टॉवर से तो पेरिस का नजारा अदभुत था। हालांकि एफिल का नजारा हर किसी को मोहित कर देता है। फ्रांस की राजधानी पैरिस के शैम्प-दे-मार्स में स्थित एफिल टावर दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। यह लौह टावर दुनिया के सबसे आकर्षित निर्माणों में से एक और फ्रांस की संस्कृति का प्रतीक है। इस टावर की ऊँचाई 324 मीटर है और जब यह बनकर तैयार हुआ था, उस वक्त यह दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। गौरतलब है कि, इस टावर का डिजाइन अलेक्जेंडर-गुस्ताव एफिल ने किया था और इन्हीं के नाम पर इसका नाम भी रखा गया है। हम लोग दिन में एफिल टॉवर पर गये थे लेकिन जगमगाते एफिल टॉवर को शाम को क्रूज से देखे। सेंट नदी में क्रूज की यात्रा भी आनंदमय थी। नदी के दोनों ओर स्थित पेरिस शहर बहुत ही शानदार है। फ्रांस की राजधानी पेरिस को ‘रोशनी का शहर’ और ‘फैशन की राजधानी’ भी कहा जाता है। हरेक प्रेमी जोडा चाहता है कि जिंदगी में एक बार वह एफिल टावर के नीचे कुछ खुशगवार पल बिताए | पेरिस एक ऐसा शहर जो पूरी दुनिया के कला प्रेमियों को रोमांचित करता है। आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि पेरिस एक ऐसा शहर है जिसमें बच्‍चों की संख्‍या से ज्‍यादा कुत्‍तों की संख्‍या है | पेरिस के निवासी कुत्तों को बहुत पसंद करते हैं।उन्हे अपने कुत्ते को रेस्टोरेंट में ले जाने की अनुमति भी होती है। पेरिस में साइकिल चलाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जो वहां के पर्यावरण के लिए काफी अच्छा साबित हो सकता है। शहर में साइकिल चलाने के लिए लगभग 500 किलोमीटर के बराबर लंबी सङक है। हालांकि जर्मनी और स्विट्जर लैंड में भी रास्ते इतने शानदार थे कि, वहां बहुत लोग साइकिल , स्केटिंग या एक पैर से धक्का देकर रफ्तार देनी वाली स्कुटी चलाते दिखे। वहां भी पर्यावरण बहुत शुद्ध था। अब तक हम जिन देशों से गुजरे वहां रात के 10 बजे भी सूरज की गजब रौशनी रहती है। वहां हमलोग सुबह 8 बजे से घूमने निकलते तो रात 11 बजे ही वापस होटल आते। 
पेरिस के बाद हमलोग बैल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स के लिये निकल लिये। ग्रेंड प्लेस ब्रुसेल्स का सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। लगभग 110 गुणें 70 वर्ग मीटर में फैले इस स्कॉयर को यूनेस्को ने हेरीटेज साइट का दर्जा दिया है। यहां की सबसे ऊंची इमारत पर संत माइकल की मूर्ति बनी हुई है। संत माइकल की मूर्ती के ठीक सामने ड्यूक ने अपने रहने के लिए इमारत बनवाई थी लेकिन वो उसमें कभी रह नही पाया। यहां की सभी इमारतों पर अद्भुत कलाकृति का अवलोकन किया जा सकता है। ये इलाका ब्रुसेल्स चॉकलेट के लिए भी प्रसिद्ध है। 
इस स्कॉयर से आगे बढने पर एक छोटे से बच्चे की मूर्ति है जिसे मानके पिस्स के नाम से जाना जाता है, डच भाषा में इसका अर्थ है सू सू करता बच्चा। इस स्मारक के लिए कहा जाता है कि, बारहवीं शताब्दी में ड्यूक अचानक चल बसे। उनका एक छोटा बालक था। गद्दी पर उत्तराधिकारी न होने पर विरोधियों ने आक्रमण कर दिया ड्यूक सेना भी लङने को तैयार थी किंतु उनकी शर्त थी कि अपने राजा को देखे बिना युद्ध नही करेंगी तब बच्चे को एक टोकरी में रखकर सैनिकों को दिखाया गया उस समय बच्चा सू सू कर रहा था। बच्चे को देखकर ड्यूक सैनिकों में जोश आ गया और ड्यूक सेना जीत गई। उसी जीत की याद में ये मूर्ती बनाई गई। 

ब्रूसेल्स घूमकर हम लोग वापस जर्मनी के कोलोन में पहुँचे। ये शहर लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बमबर्षा के कारण इस नगर का दो तिहाई भाग पूर्णत: नष्ट हो गया था। जिसका निर्माण पुनः किया गया। कोलोन एक सुंदर और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध शहर है जो जर्मनी का चौथा सबसे बड़ा शहर है । कोलोन में हम लोग कैथेड्रल चर्च देखने गये जो अपने विशालकाय आकार की वजह से शहर के किसी भी कोने से दिखाई देता है। इनकी दिवारों पर उकेरे गये शिल्प बारीक कारिगरी का उदाहरण हैं। कोलोन विश्वविद्यालय यूरोप के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। 
अगले दिन सुबह बोम्पार्ट से राइन नदी में क्रूज से घुमते हुए यूरोप को बाय बाय करते हुए फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डा का सफर शुरु हुआ। राइन नदी के किनारों का दृष्य भी अद्भुत मनोहारी था। पूराना कोलोन शहर नदी के किनारे बसा हुआ है। रास्ते में एक जगह कई चर्च थे। राइन नदी का ये सफर भी खूबसूरत यादों के साथ समाप्त हुआ।  ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि प्रकृति ने यूरोप को अनुपम उपहार दिये हैं और वहां के लोगों ने इसे अपने हुनर के साथ बङे प्यार से सहेजा है। 



नमस्कार 






Friday 31 May 2019

कारा की रिपोर्ट

जय हिन्द मित्रो,
आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर लिख रहे हैं, या यूं कहें कि एक खबर पढने के बाद अपने आपको लिखने से रोक नही पाये, व्यस्तता तो अभी भी है पर खबर कुछ ऐसी है कि, आभास हुआ अच्छे दिन आ गये हैं। मित्रों, केन्द्र सरकार की एजेंसी कारा की 2019 की रिपोर्ट पढकर अति प्रसन्नता हुई, खबर है कि 2018-2019 की रिपोर्ट के अनुसार 4027 बच्चे गोद लिए गए जिसमें 2398 लङकियां हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 845 बच्चे गोद लिये गये इनमें 477 लङकियां हैं। ये रिपोर्ट इस बात का संकेत है कि अब लोग बेटे वाली मानसिकता से हटकर बेटियों को भी महत्व दे रहे हैं। ये वाकई खुशी की बात है।

मित्रों, एक तरफ जहां गर्भ में ही बेटियों को नष्ट करने की दुषित मानसिकता है वहीं ये पहल नए आगाज के साथ हमारी बेटियों के लिये सम्मान का सूरज लेकर आई है, जिसकी वो हकदार हैं। गौरतलब है कि, हरियाणां में जहां पैदा होते के संग बेटियों की इहलीला समाप्त कर दी जाती थी वहां भी 72 गोद लिये बच्चों में से 45 बच्चियां हैं। आज भारत में ही नही बल्की इस्लामिक देशों में भी बेटियों के लिये एक स्वतंत्र आकाश का आगाज हो रहा है।

मित्रों, इस रिपोर्ट में एक बात और खास है कि, गोद लेने की कवायद भी पहले की अपेक्षा बढी है। आज कल बिग एफ एम पर विद्याबालन का एक शो चल रहा है जिसमें नई सोच के धुन की बात होती है उसमें गोद लेने के विषय पर कई ऐसे विचार आये जिन्होने कहा कि, हम खुद का बच्चा इस दुनिया में लाने के बजाय एक अनाथ बच्चे को अपनाकर उसे नई पहचान दें। वाकई धुन तो बदल रही है, एक नये परिवर्तन का आगाज हो रहा है जो भारत के लिये शुभ संदेश है। फिलहाल बेटियों का सम्मान करने वाले अभिभावकों को नमन करते हैं। मित्रों सच तो ये है कि, बेटा बेटी दो आंखे हैं दोनों का ध्यान बराबर रखना चाहिये। आपकी दृष्टी ही इस सृष्टी का आधार है।

धन्यवाद 

बेटी है तो कल है