क्रिसमस के शुभअवसर पर आप सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं। प्रभु ईशु की अनुकंपा सबपर सदैव बनी रहे।
25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में जन्मे भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी को उनके जन्मदिन पर वंदन एवं नमन करते हुए उनके स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं एवं उनकी लिखी कविताओं को स्मरण करते हैं। जो आज भी ताजगी से परिपूर्ण हैं,
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
एवं
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
एवं
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
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संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले, आदरणीय अटल जी
उच्च कोटी के वक्ता (अटल बिहारी वाजपेयी)