Sunday, 17 September 2017

मेरी लाडली कायरा



मित्रों, आज हम आप सबसे अपनी खुशी के ऐसे पल को शेयर कर रहे हैं जिसे शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करना आसान नही है फिरभी मेरा प्रयास होगा कि हम अपनी भावनाओं को शब्द प्रदान कर सकें। खुशी के उस लम्हे को  16 सितंबर को एक माह पुरा हो गया। ये एक माह कब और कैसे बीत गया पता ही नही चला।  मित्रो,  16 अगस्त 2017 की सुबह  सूरज की किरणों पर सवार मेरे घर-आँगन में मुझे  नानी कहने वाली एक परी का आगमन हुआ। गोद में लेते ही, उसके सुंदर नाजुक और कोमल हांथों के स्पर्श से अनुठे आनंद का एहसास अंतरमन को अद्भुत खुशी में रंग गया। उसकी किलकरी से मन के तार  झूम झूम कर गुनगुनाने लगे........छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी आई कोई परी, भोली सी न्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी। उसे देखकर दुआओं की सरिता का प्रवाह स्वतः ही प्रस्फुटित हो कहने लगा... गाते मुस्कुराते  खुशियों की बहारों में स्वस्थ रहे मस्त रहे और झूमती रहे संगीत की तरह। उसकी बंद खुलती आँखें और अलसाई सी मुस्कान को देखकर, हमें अपनी बिटिया का बचपन बरबरस ही याद आ गया।  माँ से नानी माँ बनकर मेरी खुशी को चार चाँद लग गया। अपने आदरणिय बुजर्गों द्वारा कही बात कि, "मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है" इसके अर्थ का स्वतः ही एहसास हो गया। अभी मेरी लाडली परी कायरा सिर्फ एक माह की है, मन नानी माँ सुनने के लिये व्याकुल है जबकी पता है बच्चे 9माह के बाद ही बोलते हैं फिरभी 😊

सच्चाई तो यही है दोस्तों, बच्चों की प्यारी प्यारी हरकतें स्वयं को भी बच्चा बना देती हैं, जो प्राकृतिक नियम को दरकिनार करके बच्चों संग बातें करने और खेलने के लिये हर पल उत्सुक रहता है। विगत एक माह का समय लाडली कायरा की बालसुलभ हरकतों में यूँ खो गया कि पता ही नही चला। नानी के पद पर आसीन मन! कायारा की मुस्कान पर प्रफुल्लित हो हर पल यह गुनगुनाता है ...

जूही की कली मेरी लाडली नाज़ों की पली मेरी लाडली। कोमल तितली सी मेरी लाडली, हीरे की कनी मेरी लाडली, गुड़िया-सी ढली मेरी लाड़ली, मोहे लागे भली मेरी लाडली। चिराग आकांक्षा की लाडली कायरा जुग-जुग तू जिये, मेरी लाडली नन्ही-सी परी ओ मेरी लाडली...


मुझे नानी बनाकर दुनिया की सबसे बङी खुशी देने के लिये चिराग और आकांक्षा तुम दोनों को दिल से अंनत आशिर्वाद। हमें विश्वास है कि, तुम दोनों हमसे भी बेहतर अभिभावक बनकर, अपनी कायारा को ऊँचाइयों का एक नया आसमान दोगे। कायरा के सुखद भविष्य को अपने प्यार और दुलार के रंग से पल्लवित करोगे। नाना-नानी और दादा-दादी के  आशिर्वाद संग कायरा तुमको ढेरसारा प्यार और दुलार 😊😊

Thank you God for all your blessing to me and my family





Wednesday, 13 September 2017

हिंदी दिवस पर विशेष.........हिंदी अपनी पहचान है


सत्तर वर्ष बीत गये, ये कैसा जनतंत्र है मित्रों, अब भी जनता अंग्रेजी की गुलाम है।  अंग्रेजी में सारा तंत्र चल रहा है। स्वभाषा के बिना ये कैसी स्वतंत्रता है और जन भाषा के बिना ये कैसा जनतंत्र है।  स्वतंत्र भारत में आज हिंदी की स्थिती को देखकर कौन कह सकता है कि भारत वास्तव में स्वतंत्र है। संविधान में राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिंदी आज भी एकराष्ट्र एकभाषा के रूप में जनमानस की आवाज नही बन सकी है।  क्षैत्रिय राजनीति, एकराष्ट्र एकभाषा के विकास में सबसे बङा अवरोध है। अपनी भाषाओं की उपेक्षा का दुष्परिणाम यह भी है कि, हम अपनी भाषाओं के माध्यम से अनुसंधान नहीं करते।  भारतीय भाषाओं में ज्ञान-विज्ञान का खजाना उपलब्ध है लेकिन हम लोग उसकी तरफ से बेखबर हैं।  हम प्लेटो और चोम्सकी के बारे में तो खूब जानते हैं लेकिन हमें पाणिनी, चरक, कौटिल्य, भर्तृहरि और लीलावती के बारे में कुछ पता नहीं। हमारे ज्ञानार्जन के तरीके अभी तक वही हैं, जो गुलामी के दिनों में थे। जब तक हमारे देश की सरकारी भर्तियों, पढ़ाई के माध्यम, सरकारी काम-काज और अदालातों से अंग्रेजी की अनिवार्यता और वर्चस्व नहीं हटेगा,  तबतक भारत का विकास श्रेष्ठता के शिखर पर नही पहुंच सकता।

एकबार महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि, "ये क्या किसी जुल्म से कम है कि अपने देश में मुझे इंसाफ पाना हो, तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना पङता है। बैरिस्टर होने पर मैं स्वभाषा न बोल सकुँ! ये गुलामी नही है तो क्या है?  इसमें मैं अंग्रेजों का दोष निकालुं या अपना ? हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले हम अंग्रेजी बोलने वाले लोग ही हैं।"

मित्रों, राष्ट्रभाषा से ही राष्ट्र की पहचान बनती है। भाषा में हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति समाहित होती है। हम सब की आकांक्षाओं के स्वप्न भाषा में ही अपनी आंखें खोलते हैं। गौरतलब है कि, किसी भी दूसरे देश की वास्तविक नागरिकता उस देश की भाषा के जानकार होने पर ही संभव होती है। यही कारण है कि किसी भी दूसरे देश की संस्कृति को जीने और जीतने का सुख उस देश की भाषा सीखने पर ही संभव हो पाता है। जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, नार्वे, डेनमार्क और पोलैंड जैसे देशों की अपनी राष्ट्रभाषा है और उन्हीं भाषाओं में इन देशों का राजकाज और शिक्षा संचालित होती है। यद्यपि इन देशों में विश्व के कई देशों के धर्म, जाति, संप्रदाय और संस्कृति के लोग रह रहे हैं फिरभी वह उसी देश की राष्ट्रभाषा को अपनाए हुए अपना जीवन जीते हैं, इसलिए वह राष्ट्र भी अपने राष्ट्र परिवार के नागरिक की तरह उन्हें अपनाए रहता है। नीदरलैंड सहित यूरोप के किसी भी देश में अंग्रेजी का कोई प्रवेश नहीं है। कोई अख़बार और पत्रिका अंग्रेजी में प्रकाशित नहीं होती है। सड़क, बस, रेल यात्रा आदि की सारी सूचनाएं उस देश की अपनी राष्ट्रभाषा में लिखी रहती हैं। कई राष्ट्रों के नाम में ही वहाँ की भाषा समाहित है। उदाहरण के लिए स्पेन की स्पेनिश, फ्रांस की फ्रेंच, जर्मनी की जर्मन रूस की रशियन। स्थिति यह है कि राष्ट्र भाषा से ही राष्ट्र की पहचान होती है। लेकिन हिंदुस्तान ने अपना नाम इंडिया रख कर अपनी राष्ट्रभाषा की पहचान भी खो दी है।

स्वामी विवेकानंद जी ने तो, अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को माँ का सम्मान दिया है। उनका कहना था कि, यदि किसी भी भाई बहन को अंग्रेजी बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है, हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिंदी आती है.....


मित्रों, वास्तविकता तो यही है कि, राष्ट्रभाषा के वजूद से ही राष्ट्र के एकत्व की छवि बनती है। भाषा के दर्पण में संगठित राष्ट्र का दिव्य स्वरूप उभरता है। अनेकता में एकता की पहचान लिये अपने देश में हिंदी भाषा ही पूरे राष्ट्र को एक संस्कृति प्रदान कर सकती है। आज देश को एकरूपता के बंधन में बाँधने के लिये एक राष्ट्रभाषा हिंदी को वास्तविक बोलचाल और प्रशासनिक कार्यों में अधिकाधिक प्रयोग करने की आवश्यकता है।देश के विकास में आज हम सबका ये कर्तव्य बनता है कि, हम हिंदी को एक दिवस की जंजिरो से मुक्त करके जीवन भर के संवाद का माध्यम बनायें। सब मिलकर प्रण करें, भारत के भाल पर हिंदी की बिंदी सदा चमकती रहे। हम सब मिलकर हिंदी का वंदन करें, हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें, भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें.........

धन्यवाद 😊

पूर्व के लेख पढने हेतु ...