Tuesday, 25 June 2019

यूरोप की झलक मेरी नजर से.........


मित्रों, हम दोनों अभी यूरोप टूर पर गये थे। वहाँ पुरानी और नई कला संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। सङकें गजब की शानदार, एक भी स्पीड ब्रेकर नहीं। पहाङों को काट कर सुरंगो से गुजरते रास्ते तो कहीं शहरों की सङकों के ऊपर से गुजरते हाई वे। विभिन्न सङकों का गजब का तानाबाना है, जिसे देखकर अच्मभित होना स्वाभाविक है। हमने  जिन देशों का भ्रमण किया उनमें जर्मनी, स्विट्जर लैंड, फ्रांस और बेल्जियम हैं। सभी देश बहुत खूबसुरत हरे-भरे और साफ-सफाई में भी नम्बर एक पर हैं। जर्मनी और स्विट्जर लैंड में जेब्रा क्रॉसिंग पर एक बटन लगा था जिसे पैदल यात्री दबा देते तो जल्दी ही पैदल क्रॉसिंग के लिए हरी लाइट जल जाती। जहाँ सिगनल नहीं थे वहां यदि जेब्रा क्रॉसिंग पर लोग खङें हैं तो गाङियाँ अपने आप रुक जाती और पैदल यात्रियों को पहले जाने देती थीं। 

इन देशों ने नई टेक्नोलॉजी के साथ पुरानी धरोहर को भी सहेज कर रखा है। दुसरे विश्व युद्ध में जो इमारत या कलाकृति नष्ट हो गई थी, उसे फिर से उसी तरह से बनाया गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जो लकङी की इमारत थी उसे किसी अन्य धातु से बनाया गया। शहरों की खूबसूरती के साथ-साथ वहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं। हम दोनों (मैं और पति अशोक) अकेले कुछ जगह घूमने गये थे, यदि वहां कुछ रास्ता या किसी चीज के बारे में कुछ पूछते तो वहाँ के लोग बहुत खुश होकर अच्छे से बताते और यदि उनको इंग्लिश नही आती तो सॉरी फील करते, जाहिर सी बात है वहां जर्मन, फ्रेंच और स्विस भाषा बोली जाती है। ये जरूरी नही है कि इंगलिश आये फिर भी समझा न पाने पर सॉरी फील करना बहुत बङी बात है। महिला सशक्ति का भी अवलोकन हुआ।
हमारी टूर गाइड 60 साल की थी। पहले दिन कोच (लग्जीरयस बस) की ड्राइवर भी 60 साल की महिला थी। वहां कई जगह होटलों का पूरा संचालन महिलाओं के द्वारा था।






हम लोगों का यूरोप टूर जर्मनी के फ्रेंकफर्ट शहर से शुरु हुआ। ये जर्मनी का पांचवाँ सबसे बड़ा शहर है। फ्रैंकफर्ट सदियों से जर्मनी का आर्थिक केंद्र रहा है और यहां बहुत सारे प्रमुख बैंक और दलाल मंडि़यां हैं। वित्त, परिवहन और व्यापारिक मेले फ्रैंकफर्ट अर्थवय्वस्था के तीन स्तंभ हैं। फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज जर्मनी का अब तक का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण स्टॉक एक्सचेंजों में से एक है। फ्रैंकफर्ट जर्मनी का एकमात्र ऐसा शहर, जहां बहुत सारी गगनचुंबी इमारते हैं। हम लोग फ्रेंकफर्ट में सिटी हॉल जिसे रोमर कहते हैं, उसको देखने गये। रोमर का अधिकांश भाग द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हो गया था, लेकिन बाद में फिर से बनाया गया। यहीं कैथेड्रल गॉथिक चर्च देखे जहां वास्तुशिल्प का अलौकिक चित्रण है। रोमर के मध्य न्याय की देवी जस्टिका की मूर्ति है। वहाँ कानून की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं है। 

रोमर के बाद हमारा सफर ब्लैकफॉरेस्ट की तरफ बढ चला, जहाँ वनों से घिरे पर्वत मंत्रमुग्ध कर रहे थे। यहां के वन इतने घने हैं कि सूर्य का प्रकाश भी अपनी दस्तक नही दे पाता इसलिये हम लोग भी इसका सोंदर्य सङकों पर से ही देख सके। ब्लैकफॉरेस्ट में ज्यादातर चीङ और देवदार के वृक्ष हैं। यहीं कु कु क्लॉक फेक्ट्री का भी अवलोकन किये।यहां एक ओपन-एयर संग्रहालय है जो घड़ी  के इतिहास को दर्शाता है। लकड़ी पर नक्काशी इस क्षेत्र का एक पारंपरिक कुटीर उद्योग है। 

हम लोग राइन फॉल्स देखने गये जो यूरोप में सबसे बड़ा सादा झरना है। जर्मनी की सुंदरता का अवलोकन करते हुए हम लोग स्विटजर लैंड में प्रवेश कर चुके थे, जहां रात्रि विश्राम के पश्चात अगले दिन माउंट टिटलिस को प्रस्थान करना था जो बहुत उत्सुकता पूर्ण था। सङक के दोनों तरफ हरे भरे पेङ और कॉटेज टाइप के घर। हर घर में छोटा या बङा बगिचा जरूर था। पिले,सफेद,गुलाबी और लाल गुलाब के फूलों की तो बहुतायत थी। सभी घर बाहर से भी सुसज्जित दिख रहे थे।  धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस देश पर प्रकृति ने दिल खोलकर अपनी छटा बिखेरी है। 

होटल से माउंट टिटलिस तक का सफर भी बहुत लुभावना था।  माउंट टिटलिस का बेस पङाव इंगलवर्ड था। जहां से केबल कार के माध्यम से ऊपर का सफर शुरु हुआ। रास्ते में सफेद चादर से ढकी टिटलिस की श्रेणियां मन को असीम खुशी दे रही थीं। केबल कार से निचे इंग्लबर्ड का नजारा भी अद्भुत दिख रहा था। गायों के गले में बंधी घंटी की आवाज प्रकृति की सुंदरता को संगीतमय कर रही थी। काफी ऊचाई पर आ जाने के बाद दूसरी केबल कार से हम लोग आगे बढे जो दुनिया की सबसे पहली Rotated केबल कार थी। इसमें एकबार में 80 लोग खङे होकर माउंट टिटलिस के शिखर तक पहुंचते हैं। ये 360 डिग्री घूम जाती है। माउंट टिटलिस पर जैसे ही पैर जमीं पर पङा लगा परिलोक में आ गये। बर्फ की चादर ओढी इसकी श्रृखंलाएं अंतरमन तक प्रसन्नचित्त कर गईं। एक चोटी से दूसरी चोटी तक एक बृज बना है जिसपर चहल कदमी करना किसी स्वपन को साकार करता नजर आ रहा था। यहां बर्फ से अटखेलियां करने के बाद इंगलबर्ड वापस आ गये, जहां भारतीय भोजन के सभी व्यंजन की उपलब्धता लिये रेस्टुरेंट था।

इंगलबर्ड भी किसी स्वपनलोक से कम नही था। यहां से बर्फ की चादर ओढे आल्पस की पहाङियों का नजारा अद्भुत था।

भोजन के पश्चात हमलोग ल्युसर्न की ओर बढ चले। ल्युसर्न स्विट्जर लैंड का सातवां बङा शहर है। प्रकृति ने इसे भी अपनी भरपूर छटा प्रदान की है। शहर तीन तरफ आल्पस की ऊंची बर्फ की पहाङियों  से ढका नजर आता है। लेक ल्युसर्न से निकलती नदी और झील पर बना पुल अत्यधिक रमणिय हैं। यहां का टाउनहाल 16वीं शताब्दी में इतावली रेनंसा शैली में बना है।
रोइस नदी पर लकङी का बना चैपल बृज अचरज करने वाला है। ये 600 साल पुराना बृज है, इसके अंदर एशियन चित्रकारी को देखा जा सकता है। इसकी खास बात ये है कि इसका कुछ हिस्सा जल गया था जिसे वापस लकङी से ही हुबहु बनाया गया है। ये पुल वाकई आश्चर्य का रंग बिखेरता है। नदी के उस पार जेसुइट चर्च और पिकासो म्युजियम का नजारा देखते हुए हम लोग लॉयन मान्युमेंट की ओर बढ चले। 

लॉयन मान्युमेंट 18वीं शताब्दी में फ्रांस की क्रांति में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया है। एक खङी चट्टान पर सुरंग में लेटे हुए शेर का अद्भुत शिल्प है। जिसके सिरहाने भाला और तलवार रखा है तथा पेट में खंजर लगा हुआ है। शेर की भंगिमाएं स्पष्ट नजर आती हैं कि वो विषाद में है। मार्क ट्वेन ने इस शिल्प को विश्व की सबसे विषाद और ह्रदयस्पर्शी प्रतिमा कहा है। ल्युसर्न घुमने के पश्चात हम लोग वापस होटल आ गये। 


अगला दिन ऑपशनल था तो हम दोनों मेट्रो से जुग शहर घूमने निकल पङे, जहां कुछ खरिदारी के पश्चात जुग लेक पर पहुँच गये। स्विट्जर लैंड को झीलों का देश भी कहते हैं। जुग लेक भी प्रकृति के उपहार से परिपुर्ण है। उसके किनारे बने घर भी बहुत सुंदर बने हुए हैं। सौभाग्य से वहां उस दिन बच्चों की विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे- तैराकी, साइकिलिंग और दौङ को देखने का अवसर मिला। 

अगले दिन हम लोगों का टूर पेरिस के लिये निकल चला। पेरिस में कई बङी रिहायशी ईमारतें देखने को मिली। एफिल टॉवर से तो पेरिस का नजारा अदभुत था। हालांकि एफिल का नजारा हर किसी को मोहित कर देता है। फ्रांस की राजधानी पैरिस के शैम्प-दे-मार्स में स्थित एफिल टावर दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। यह लौह टावर दुनिया के सबसे आकर्षित निर्माणों में से एक और फ्रांस की संस्कृति का प्रतीक है। इस टावर की ऊँचाई 324 मीटर है और जब यह बनकर तैयार हुआ था, उस वक्त यह दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। गौरतलब है कि, इस टावर का डिजाइन अलेक्जेंडर-गुस्ताव एफिल ने किया था और इन्हीं के नाम पर इसका नाम भी रखा गया है। हम लोग दिन में एफिल टॉवर पर गये थे लेकिन जगमगाते एफिल टॉवर को शाम को क्रूज से देखे। सेंट नदी में क्रूज की यात्रा भी आनंदमय थी। नदी के दोनों ओर स्थित पेरिस शहर बहुत ही शानदार है। फ्रांस की राजधानी पेरिस को ‘रोशनी का शहर’ और ‘फैशन की राजधानी’ भी कहा जाता है। हरेक प्रेमी जोडा चाहता है कि जिंदगी में एक बार वह एफिल टावर के नीचे कुछ खुशगवार पल बिताए | पेरिस एक ऐसा शहर जो पूरी दुनिया के कला प्रेमियों को रोमांचित करता है। आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि पेरिस एक ऐसा शहर है जिसमें बच्‍चों की संख्‍या से ज्‍यादा कुत्‍तों की संख्‍या है | पेरिस के निवासी कुत्तों को बहुत पसंद करते हैं।उन्हे अपने कुत्ते को रेस्टोरेंट में ले जाने की अनुमति भी होती है। पेरिस में साइकिल चलाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जो वहां के पर्यावरण के लिए काफी अच्छा साबित हो सकता है। शहर में साइकिल चलाने के लिए लगभग 500 किलोमीटर के बराबर लंबी सङक है। हालांकि जर्मनी और स्विट्जर लैंड में भी रास्ते इतने शानदार थे कि, वहां बहुत लोग साइकिल , स्केटिंग या एक पैर से धक्का देकर रफ्तार देनी वाली स्कुटी चलाते दिखे। वहां भी पर्यावरण बहुत शुद्ध था। अब तक हम जिन देशों से गुजरे वहां रात के 10 बजे भी सूरज की गजब रौशनी रहती है। वहां हमलोग सुबह 8 बजे से घूमने निकलते तो रात 11 बजे ही वापस होटल आते। 
पेरिस के बाद हमलोग बैल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स के लिये निकल लिये। ग्रेंड प्लेस ब्रुसेल्स का सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। लगभग 110 गुणें 70 वर्ग मीटर में फैले इस स्कॉयर को यूनेस्को ने हेरीटेज साइट का दर्जा दिया है। यहां की सबसे ऊंची इमारत पर संत माइकल की मूर्ति बनी हुई है। संत माइकल की मूर्ती के ठीक सामने ड्यूक ने अपने रहने के लिए इमारत बनवाई थी लेकिन वो उसमें कभी रह नही पाया। यहां की सभी इमारतों पर अद्भुत कलाकृति का अवलोकन किया जा सकता है। ये इलाका ब्रुसेल्स चॉकलेट के लिए भी प्रसिद्ध है। 
इस स्कॉयर से आगे बढने पर एक छोटे से बच्चे की मूर्ति है जिसे मानके पिस्स के नाम से जाना जाता है, डच भाषा में इसका अर्थ है सू सू करता बच्चा। इस स्मारक के लिए कहा जाता है कि, बारहवीं शताब्दी में ड्यूक अचानक चल बसे। उनका एक छोटा बालक था। गद्दी पर उत्तराधिकारी न होने पर विरोधियों ने आक्रमण कर दिया ड्यूक सेना भी लङने को तैयार थी किंतु उनकी शर्त थी कि अपने राजा को देखे बिना युद्ध नही करेंगी तब बच्चे को एक टोकरी में रखकर सैनिकों को दिखाया गया उस समय बच्चा सू सू कर रहा था। बच्चे को देखकर ड्यूक सैनिकों में जोश आ गया और ड्यूक सेना जीत गई। उसी जीत की याद में ये मूर्ती बनाई गई। 

ब्रूसेल्स घूमकर हम लोग वापस जर्मनी के कोलोन में पहुँचे। ये शहर लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बमबर्षा के कारण इस नगर का दो तिहाई भाग पूर्णत: नष्ट हो गया था। जिसका निर्माण पुनः किया गया। कोलोन एक सुंदर और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध शहर है जो जर्मनी का चौथा सबसे बड़ा शहर है । कोलोन में हम लोग कैथेड्रल चर्च देखने गये जो अपने विशालकाय आकार की वजह से शहर के किसी भी कोने से दिखाई देता है। इनकी दिवारों पर उकेरे गये शिल्प बारीक कारिगरी का उदाहरण हैं। कोलोन विश्वविद्यालय यूरोप के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। 
अगले दिन सुबह बोम्पार्ट से राइन नदी में क्रूज से घुमते हुए यूरोप को बाय बाय करते हुए फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डा का सफर शुरु हुआ। राइन नदी के किनारों का दृष्य भी अद्भुत मनोहारी था। पूराना कोलोन शहर नदी के किनारे बसा हुआ है। रास्ते में एक जगह कई चर्च थे। राइन नदी का ये सफर भी खूबसूरत यादों के साथ समाप्त हुआ।  ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि प्रकृति ने यूरोप को अनुपम उपहार दिये हैं और वहां के लोगों ने इसे अपने हुनर के साथ बङे प्यार से सहेजा है। 



नमस्कार