मित्रों, ये कविता अंधेरों से डरती सहमती हुई
अपने हौसले के दम पर उम्मीद के आंचल को ओढे हुए, एक अद्भुत विश्वास के साथ अपने
लक्ष्य को हासिल करने की कहानी को रौशन कर रही है। ये कविता एम.ए. की छात्रा रजनी
शर्मा द्वारा लिखी गई है। रजनी दृष्टीबाधित छात्रा होने के बावजूद अपने अथक
परिश्रम से कई बार सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए अपनी कक्षा में प्रथम स्थान
प्राप्त कर चुकी है। विज्ञान के विकास से आजकल वो कंप्युटर का भी बखुबी उपयोग करने
में सक्षम है। अपनी संस्था में कई दृष्टीबाधित बच्चियों को कंप्युटर सिखाने का भी
प्रयास कर रही है। शासन द्वारा आयोजित अनेक सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रथम स्थान
लाकर संस्था को गौरवान्वित कर चुकी है। रजनी जैसी और भी छात्राएं हैं जिन्हे पढाने
का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ है, ये छात्राएं उन लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत हैं
जो छोटी-छोटी परेशानियों से घबरा जाते हैं और अपने लक्ष्य को छोङ देते हैं।
रौशनी का कारवाँ
मेरे जीवन में अंधेरों का धुआँ सा है,
इन अंधेरों में ये मन गम हुआ सा है,
आशा मिलने की भी कोई उम्मीद नही है लेकिन,
इन अंधेरों में एक साया छुपा हुआ सा है।
चलते-चलते लगी अगर कोई
ठोकर
चलना है फिर भी
हमें रो-रोकर
जीवन की हर चाह
को हमने खोकर
आशाओं का दीप भी
बुझा हुआ सा है।
प्रकृति में कितनी सुंदरता है,
ईश्वर में कितनी निर्ममता है,
अंधेरों में ये मन सहमता है,
जीवन हर क्षंण अंधेरों पर रुका हुआ सा है।
अंधेरा है बहुत मगर इतना घना नहीं,
अंधेरों में ये मन
अभी रमा नही है,
जीवन है निरंतर ये अभी थमा नही है,
पूरा होगा एक दिन हर सपना अधुरा,
इस विश्वास का दामन अभी पकङा
हुआ सा है।
कामयाबी की एक लम्बी राह है,
सितारों पर मेरी निगाह है,
मन में नदियों सा प्रवाह है,
सितारों की मंजिल अभी दूर है लेकिन,
चाँद का रास्ता आगे झुका हुआ सा है।
भले ही मंजिल हो
अभी दूर,
वो भी मिलेगी एक
दिन जरूर,
आखिर कहेंगे यही
हम हुजूर,
अंधेरे बहुत है
जीवन में लेकिन,
रौशनी का कारवाँ साथ
चलता हुआ सा है।
ऱजनी शर्मा
दोस्तों, एक निवेदन है- आपका साथ एवं नेत्रदान का
संकल्प कई दृष्टीबाधित बच्चों के जीवन को रौशन कर सकता है। रजनी का हौसला बढाने के
लिये इस कविता पर अपने विचार जरूर लिखें।
धन्यवाद