प्लेनेटेरियम की कल्पना सबसे पहले आर्कमीडीज ने
की थी। लगभग उन्नीसवीं शताब्दी तक कई देशों में स्टैटिक प्लेनेटेरियम बनने शुरु हो
गये थे। तारामंडल यानि प्लेनेटेरियम(Planetarium), विशाल गुंबदनुमा ऐसा भवन है जहाँ कृतिम रूप से
ग्रह नक्षत्रों को दिखाया जाता है। इसकी गुंबदनुमा छत अर्धगोलाकार होती है, जिसे
ध्वनीनिरोधक कर दिया जाता है। यही ग्रहनक्षत्रों के प्रकाशबिंबों के लिये पर्दे का काम करती है। इसके
मध्य में बिजली से चलनेवाला एक प्रक्षेपक (Projector) पहिएदार गाड़ी पर स्थित रहता है। इसके
चारों ओर दर्शकों के बैठने का प्रबंध रहता है। भारत में लगभग 30 ताराघर हैं। कोलकता
स्थित “एम पी बिड़ला” ताराघर, एशिया का सबसे बङा एवं विश्व में दूसरे नम्बर का ताराघर है।
मुंबई, नई दिल्ली, बंगलौर तथा इलाहाबाद में स्थित ताराघर जवाहरलाल नेहरु के नाम से
जाना जाता है। चार ताराघर बिड़ला घराने द्वारा स्थापित किये गये, जो कोलकता, चैन्नई, हैदराबाद व जयपुर में स्थित हैं। सितंबर
१९६२ में प्रारंभ कोलकाता स्थित एम पी बिड़ला ताराघर देश का पहला ताराघर है।
एक स्टडी के अनुसार अमेरिका में प्रत्येक एक लाख
आबादी के पीछे एक प्लेनेटेरियम है। यहाँ न्यूयार्क में स्थित हेडेन प्लेनेटेरियम 21 मीटर लम्बा है। इसमें लगभग 430 लोग एक साथ बैठकर शो देख सकते हैं।
जवाहर लाल
नेहरू का साइंस और बच्चों में रुझान था। इसी को देखते हुए इंदिरा गांधी ने उन्हीं
के नाम पर बच्चों के लिये विज्ञान के क्षेत्र में एक सराहनीय प्रयास किया। इस तरह
नेहरू तारामंडल अस्तित्व में आया। दिल्ली तारामंडल जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड
के पैसे से बनाया गया था पर आज इसे नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी चलाती
है। तारामंडल को बनाने की शुरुआत सन् १९८२ में हुई थी और सन् १९८४ में इसका पहला
प्रोग्राम शुरू कर दिया गया था। इसका उद्घाटन इंदिरा गांधी ने किया था।
पहले शो का नाम था “अवर कॉस्मिक हेरिटेज”। इस शो में ब्रह्मांड के बनने के बारे
में अब तक मान्य सिद्धान्त बिग बैंग के जरिए ग्रहों, उपग्रहों और आकाशगंगा के अस्तित्व में
आने की कहानी बताई गई थी। तारामंडल के पहले डायरेक्टर कर्नल सिंह थे।
दिल्ली स्थित तारामंडल का मुख्य आकर्षण सोयूज
टी-10 प्रोग्राम है। इसमें आंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की चन्द्रमा यात्रा के
दौरान इंदिरा गॉधी से ह्ई बातचीत की आवाज सुनाई जाती है।
1990 में थ्री डाईमेंशनल डिजिटल प्लेनेटेरियम की
शुरुवात हुई। डिजिटल या पोर्टेबल प्लेनेटेरियम पहली बार जापान के ताकायुनकी ओहरा
ने तैयार किया था। लियो प्लेनेटेरियम फुले हुए गुब्बारे की तरह दिखाई देता है। ये
स्कूल के कमरे के आकार का होता है, जो पैराशूट मटैरियल से बना होता है। इसकी भीतरी
दिवार का फैब्रिक सिल्वर कोटेड होता है। इसमें हवा लगातार अंदर आती रहती है एवं
निकलती रहती है तकि सांस लेने में दिक्कत न हो। इसमें एक पंखा भी लगा होता है जो
सतह की हवा निकाल कर एटामॉस्फेरिक प्रेशर बनाता है और उसे सही आकार में रखता है।
औसतन 80 लोगों की इसमें बैठ सकते हैं। दिल्ली स्थित लियो प्लेनेटेरियम के संस्थापक
विकास नौटियाल हैं।
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