Wednesday, 6 March 2013

साहसी नारियों के जज़्बे को सलाम


आत्मविश्वास से भरी एक मुठ्ठी खुल चुकी है, जो सदियों से बंद थी। मजबूत इरादों और कर्तव्यों को साकार करती हुई नारी, मानव जीवन की आधार स्तंभ है जिसके बगैर हम मानव जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही नारी के लिए काफी आदर का भाव रहा है, और हो भी क्यों नही? नारी ने माँ, बहन, पत्नी, दोस्त हर रिश्ते को करुणा, ममता और स्नेह से सींचा है। आज नारी, अनंत संभावनाओं के साथ आकाश से ऊची हौसले की उङान लिये शान्ति मार्च के साथ नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिये तत्पर है।

नई सदी की नारी के पास कामयाबी के उच्चतम शिखर को छूने की अपार क्षमता है। उसके पास अनगिनत अवसर भी हैं। जिंदगी जीने का जज्बा उसमें पैदा हो चुका है। दृढ़ इच्छाशक्ति एवं उचित शिक्षा के बल पर विपरीत परिस्थितियों में भी सालमन मछली की तरह धारा के विपरीत चलकर कुछ महिलाओं ने मुसीबतों, परेशानियों, हादसों और कुदरत के कहर के बावजूद भी जीने का हौसला पैदा किया। ऐसी ही कुछ साहसी महिलाओं का महिला दिवस पर हम वंदन करते हैं।

जिस युग में कविता रचना अपराधों की सूची में आती थी। कोई तुक जोङता है’, ये बात सुनकर ही लोगों की मुख की रेखाएं वक्रकुंचित हो जाती थीं। ऐसे में पाँचवी कक्षा में पढने वाली बालिका गणित की किताब में शब्दो से खेलती तुकबन्दी बनाती नित नई कविताओं को रचने का प्रयास करती। उसकी एक साथी जो सातवीं कक्षा की छात्रा थी, वो भी कविताओं के ताने-बाने बुनती थी। ये बालिकाएं आगे चलकर साहित्य जगत में इस तरह सम्मानित हुईं कि हम सब उनकी रचनाओं को आज भी लगभग सभी कक्षाओं में पढते हैं। जी हाँ मित्रों, पाँचवी कक्षा की बालिका महादेवी वर्मा थी और सातवीं में सुभद्रा कुमारी चौहान पढती थीं। आपकी रचना खूब लङीं मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी, कविता वीर नारी को सच्ची श्रद्धांजलि है।

मणिपुर में अफ्सफा के खिलाफ 12 साल से अन्न तो दूर पानी भी हलक से न उतारने वाली इरोम शर्मिला, सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम को निरस्त करवाना चाहती हैं क्योकि एएफएसपीए के तहत सैनिकों द्वारा बालात्कार, यौनउत्पीङन और फर्जी मुढभेङ के मामले सामने आते रहें हैं।
इम्फाल से 10 किलोमीटर दूर मालोम (मणिपुर) गांव के बस स्टॉप पर बस के इंतजार में खड़े 10 निहत्थे नागरिकों को उग्रवादी होने के संदेह पर गोलियों से निर्ममतापूर्वक मार दिया गया। मणिपुर के एक दैनिक अखबार हुये लानपाऊ की स्तंभकार और गांधीवादी 35 वर्षीय इरोम शर्मिला 2 नवंबर, 2000 को इस क्रूर और अमानवीय कानून के विरोध में सत्याग्रह और आमरण अनशन पर अकेले बैठ गईं। शर्मिला का कहना है कि जब तक भारत सरकार सेना के इस विशेषाधिकार कानून को पूर्णत: हटा नहीं लेती, तबतक उनकी भूख हड़ता जारी रहेगी।

5 मार्च 2013 को कानूनी कारवाई के तहत न्यायालय ने कहा कि- हम आपका सम्मान करते हैं, लेकिन लॉ ऑफ लेंड आपको इस बात की इजाजत नही देता कि आप अपनी जिंदगी ले लें। शर्मिला जिस तरीके से अफ्सफा से प्रभावित राज्यों के लोगों के मौलिक अधिकारों के लिये लङ रही हैं, उनके दृढंसंक्लप और जज्बे को सलाम करना लाज़मी है।

तालिबान के खिलाफ आवाज उठाकर 14 वर्षीय पाकिस्‍तानी बालिका मलाला यूसुफजई आज हक और हिम्मत की मिसाल बन गई है। लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज  उठाकर शांति कार्यकर्ता मलाला ने सिर्फ दहशतगर्दों के खिलाफ ही बड़ी आवाज नही बनी हैं, बल्कि  उसके प्रयासों ने अंधियारे के बीच उम्मीद की एक किरण जगा दी है। यही नहीं,  उसकी बहादुरी ने पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को आतंकवाद के खतरे के खिलाफ नए सिरे से एकजुट होने की प्रेरणा दी है। मलाला को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया। गत वर्ष नौ अक्टूबर को आतंकवादी संगठन तालिबान ने स्कूल से लौटते समय मलाला के सिर में गोली मारी थी जिसके बाद पूरी दुनिया में लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद करने वाली यह छोटी सी बच्ची संघर्ष की पहचान बन गई है।

48 वर्षिय नसरीन सतुदेह ईरान की बेहद लोकप्रिय मानव अधिकार वकील और कार्यकर्ता हैं। वे कट्टरपंथी शासन विरोधी विचारों के लिये सरकार की आँख की किरकिरी बनी हईं हैं। जनवरी 2011 में ग्यारह साल की उनको एकांकी सजा दी गई है। जेल में रहते हुए भी उनका जज़्बा काबीले तारीफ है। जेल से अपनी बेटी को बहुत ही सकारात्मक खत लिखा है उसका कुछ अंश – मेरी सबसे दुलारी मेहरावे, मैं तुमसे कहना चाहती हुँ कि तुम लोगों के और तुम्हारी तरह के दूसरे बच्चों के बाल-अधिकारों की हिफाजत को ध्यान में रखकर और उनके बेहतर भविष्य के लिये ही मैने ये पेशा अपनाया था। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे और मेरी तरह के हालात में रह रहे बहुतेरे परिवारों की तकलीफ व्यर्थ नही जायेगी। दरअसल, इंसाफ तभी प्रकट होता है जब चारो ओर घनघोर निराशा छाने लगती है और हम इंसाफ की उम्मीद करना छोङ देते हैं। मुझसे जिरह करने वालों और जजों के लिये गुस्सा नही पालना कि वे मेरे साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं, बल्की अमन और चैन की दुआएं माँगना। ऐसा करोगी तो उनके साथ-साथ हमें भी खुदा ऐसे ही अमन चैन के आर्शिवाद देगा।

जिंदगी की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखती ज्योति बचपन से थैलिसीमिया रोग से ग्रसित हैं। काफी मुश्किलों का सामना करते हुए ज्योति अंग्रेजी और मनोविज्ञान से एम ए कर चुकी हैं। आशावादी जज़बे के साथ स्वतंत्र लेखन का कार्यकर रहीं हैं। कंप्यूटर में महारत हासिल किये हुए अनेक थैलिसीमिया के मरीजों को फेसबुक के माध्यम से इस बिमारी के प्रति जागरूक करती रहती है। ज्योति द्वारा लिखित पुस्तक ड्रीम्स सेक, निराशा से आशा की ओर ले जाती है।

आत्मविश्वास के साथ ही युवतियों ने अपनी सही बात सही तरीके से कहना सीख लिया है। घर के संरक्षित कवच से बाहर आ संघर्ष करते-करते उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वयं हासिल कर ली है।

इतिहास के अनुसार समानाधिकार की यह लड़ाई आम महिलाओं द्वारा शुरू की गई थी प्राचीन ग्रीस में लीसिसट्राटा नाम की एक महिला ने फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्घ समाप्ति की माँग रखते हुए इस आन्दोलन की शुरूआत की, फारसी महिलाओं के एक समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इस मोर्चे का उद्देश्य युद्घ की वजह से महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार को रोकना था।

आज के परिपेक्ष्य में एक साहसी नारी अनेक लोगों को जागृत कर गई। वो आज भले ही सशरीर हमारे बीच नही है पर ऐसे कई सुधार कार्यक्रमों को आवाज दे गई जो नारी के सम्मान से जुङे हैं। साहस और आशावादी विचारों को रौशन करती भारत ही नही पूरे विश्व की आवाज है। 16 दिसंबर की निर्भया को अंर्तराष्ट्रीय वुमन ऑफ करेज अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है। इस बहादुर नारी ने नाजुक हालत में भी पुलिस को दो बार बयान दिया। इंसाफ की आस में जीने की इच्छाशक्ति दिखाई। मिशेल ओबामा और जॉन केरी 8 मार्च को अमेरिका में इस बहादुर लङकी के साहस को सम्मानित करेंगी।

प्रसिद्ध गायिका इला अरुण का कथन है कि नारी की उपलब्धियाँ पिछली सदी के आखिरी दशक से परवान चढ़ी हैं। इस सदी के पहले पायदान पर वह मजबूती से खड़ी है। हर जगह उसकी पूछपरख बढ़ी है। उसने ठान लिया है...मान लिया है...चट्टानों से टकराना जान लिया है...। वर्तमान को भरपूर जीना उसने सीख लिया है और भविष्य को अपने हाथों से सँवारने का संकल्प ले लिया है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि :-

जीवन बगिया के फूलों को आशाओं के जल से सींचती है नारी,
तिनका-तिनका बुनती हुई अपना आसमान बनाती है नारी,
आने वाले जीवन में नई संभावना है नारी,
समय की रेखा पर इतिहास रचती हुई, सकारात्मक सोच की पहचान है नारी,
सफलता की इबारत लिखती हुई, कामयाबी की उङान भरती है नारी।।

4 comments:

  1. वाह, बहुत ठीक, प्रभावशाली और सार्थक प्रस्तुति.
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  2. Naari, Shakti hai, Pahchaan hai, नारी ने माँ, बहन, पत्नी, दोस्त हर रिश्ते को करुणा, ममता और स्नेह से सींचा है। इंसाफ तभी प्रकट होता है जब चारो ओर घनघोर निराशा छाने लगती है Hamain hamesha Naari ka samman karna chahiye........ Brij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393, 8287882178

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  3. बहुत सुन्दर और सटीक लेख ....

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