Saturday 22 June 2013

आज का परिवेश और कबीर


  

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
      मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
कबीर दास जी ने जाति-पाँति के भेद को समाजिक कुरीतियाँ कहा है। उनके अनुसार इंसानियत ही जाति है और ज्ञान रूपी संस्कार ही किसी को महान बनाते हैं। आज के परिवेश में अगर देखें तो जाति, राजनीति का सबसे प्रमुख विषय है। जाति के नाम पर आरक्षण वोट की ऐसी रोटी है जिसे हर कोई खाना चाहता है। सृष्टी के रचयिता ने कोई भेद नही किया किन्तु जिस इंसान की रचना हुई उसमें ऐसे कई विकार आ गये जिसने इंसान को इंसान से अलग कर दिया। 
आज जब राजनीतिज्ञ हों या खाफ पंचायते जाँति-पाँति और ऊँच-नीच की दिवारों में इंसानियत को बाँध रहे हैं तब कुछ लोग कबीर पंथी न होते हुए भी कबीर की शिक्षाओं को आत्मसात करके सामाजिक एकरूपता को बढावा दे रहे हैं। कोटा में श्रीभारतीय अंतरजातीय संस्था एक ऐसे समाज का आकार ले रही है, जहाँ जाँत-पाँत और ऊँच-नीच की दिवारें नही है। 80 परिवारो की इस संस्था में ब्राहम्ण, जैन, राजपूत, खाती, माली, तेली, कोली और मोदी समाज के लोग भारत की अनेकता को एकता के सूत्र में बाँध रहे हैं। ये संस्था ऐसा अनूठा सामुहिक विवाह सम्मेलन आयोजित कर रही है जिसमें एक समाज का दूल्हा तो दूसरे समाज की दुल्हन। लेकिन प्रेम-विवाह या अन्य कारणों से कोई जोङां इस संस्था से जुङना चाहता है तो, उसे संस्था के नियम कानून को मानने के बाद ही सदस्यता दी जाती है। ये संस्था दहेज विरोधी है और मृत्युभोज न करने के लिये दृणसंकल्प है। सभी वर्गों की समानता के लिये धनि परिवार के युवक गरीब परिवारों की बेटियों से शादी करते हैं। पाखंड, कट्टरता ओर दिशाहीनता के समय में ये संस्था मानवतावादी सामाजिक परिकल्पना है। 
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर। 
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।।
कबीर दास जी सभी को समरसता की धार में ले जाना चाहते हैं। सबके लिये अच्छी भावना ही सभ्य समाज का गठन कर सकती है। जहाँ सब एक हैं तो वहाँ दोस्त और दुष्मन का विरोधाभास भी न रहेगा। प्रेम की वो धारा बहेगी जिसे पोथी पढने वाला शायद न समझ सके। प्रेम का ढाई अक्षर का ज्ञान इंसान को इंसानियत की शिक्षा देता है। 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। 
सामाजिक जीवन में व्याप्त जाति-भेद, साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास और आडंबर आदि को मिटाने का कबीर सदैव प्रयास करते रहे। आर्दश जीवन के लिये नीतिपूर्ण उपदेश भी दिये। धर्म के नाम पर होने वाली नर बली और पशुवध को घृणित माना। आज के एकांकी वातावरण में कबीर की शिक्षाएं अपनाने की अति आवश्यकता है। जहाँ दया, करुणा, अतिथि सत्कार जैसे मानवीय व्यवहार विलुप्त हो रहे हैं। कथनी और करनी के समन्वय पर और सदाचारपूर्ण जीवन पर कबीर दास जी ने बल दिया था। कबीर के काव्य में उपस्थित इस्लाम के एकेश्वरवाद, भारतीय दैव्तवाद, योग-साधना, बौद्ध साधना एवं वैष्णवों की शरणागत भावना और अहिंसा को अपनाकर हम आज के अशुद्ध वातावरण को शुद्ध कर सकते हैं। कबीर के उपदेशों के आधार पर नवीन समन्वित एवं सन्तुलित समाज की संरचना सम्भव है

2 comments:

  1. This is very true. Caste and creed basis bifurcation for any thing means nothing. it is just a burden on our society. Thanks for sharing a cause which is being carried out in Kota. we all should get make it large.

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  2. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
    मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
    कबीर दास जी ने कहा है, इंसानियत ही जाति है और ज्ञान रूपी संस्कार ही किसी इंसान को महान बनाते हैं।
    कोटा में श्रीभारतीय अंतरजातीय संस्था ke sarahniy kary ke liye subhkamnayain.
    Gyanvardhak avm sarahniy lekh.

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