हम सब दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत
के प्रतीक रूप में मनाते हैं। रावण बहुत बुद्धिमान और अनेक विद्याओं में निपुण था।
फिर भी रावण के अन्त को हम सब बुराई का प्रतीक मानते हुए उसे जलाते हैं। प्रेमचन्द
जी कहते हैं कि, आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।
रावण में भी सबसे बङी बुराई यही थी कि, उसे
अंहकार का भ्रम हो गया था। अंहकार, व्यक्ति के जीवन को ऐसे नशे में डुबो देता है,
जिसके कारण व्यक्ति स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझने लगता है और सोचता है कि पूरी
दुनिया उसी से चल रही है। रावण में भी ऐसी भावना ने अपना रूप विकसित कर लिया था
जिसका परिणाम ये हुआ कि सब कुछ अंहकार की ज्वाला में जल गया। वास्तव में अंहकार का
कोई सच्चा अस्तित्व है ही नही। वीर का असली दुश्मन तो उसका अहंकार ही
होता है। किसी ने सच ही कहा है, आप ने क्या कमाया उस पर कभी घमंड न करें क्योंकि शतरंज की बाजी समाप्त होने पर राजा और मोहरे एक ही डिब्बे में रख दिये जाते हैं।
अहंकार एक ऐसा बीज है जिससे कभी भी सकारात्मक फसल नही उगती बल्की बुराईयों की जङें गहरी हो जाती है। कहते हैं, अहंकार को कितना भी पोषण दीजिए उसकी तृप्ति संभव नही है। अहंकार तो गुब्बारे के समान है जो हवा भरने पर फूल जाता है यही हवा रूपी अहंकार जब ज्यादा हो जाता है तो गुब्बारा फूट जाता है। जरा सा कुछ हासिल हो जाने पर हम सब भी गुब्बारे की तरह फूल जाते हैं और अंहकार के वायरस को अपने भावों में समा लेते है। ये भूल जाते हैं कि कोई भी उपलब्धी किसी एक का परिणाम नही होती उसमें कई लोगों का योगदान होता है। कहावत को भूल जाते हैं कि, अकेला चना भाङ नही फोङता। हम हैं कि खुद को सर्वे-सर्वा समझ कर अहंकार की अग्नि में स्वयं को तबाह कर देते हैं।
वाल्टेयर ने कहा है कि, “मनुष्य
जितना छोटा होता है, उसका अंहकार उतना ही बड़ा होता है।“
अतः
मित्रों सच्ची विजय या सही मायने में दशहरे का महत्व तभी है जब हम अपने अंदर के
अहंकार रूपी रावण को ऊँचाई से उतार कर धरातल पर ले आयें। जन मानस की याद में अच्छे
विचारों के साथ रहें। इसके लिए हमें विनम्रता और शालीनता को जीवन का अंग बना लेना
चाहिए।
विद्वानों ने सच ही कहा है कि, “कभी भी कामयाबी को
दिमाग में और नाकामयाबी को दिल में जगह नही देनी चाहिए क्योंकि, कामयाबी दिमाग में
घमंड और नाकामयाबी दिल में मायुसी पैदा करती है।“
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Isamain koi do rai nahin ki Ravan bahut Vidvan tha, Lekin uske Ghamand ne uska sarve naash kar diyaa. किसी ने सच ही कहा है, आप ने क्या कमाया उस पर कभी घमंड न करें क्योंकि शतरंज की बाजी समाप्त होने पर राजा और मोहरे एक ही डिब्बे में रख दिये जाते हैं।
ReplyDeleteBrij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393
your story is very motivate for new generation all ages..Ilike it.
ReplyDeleteThank to you.
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