Sunday, 30 March 2014

NavVarsh ki hardik Shubhkamnayen















Tuesday, 25 March 2014

फिल्मी पोस्टर






भारतिय सिनेमा अपने सौ वर्षों के सफर का जलसा मना रहा है। सौ वर्षों के सफर में कई नई चीजें जुङी तो कई पुराने तरीके आधुनिक तकनिकों के शिकार भी हुए। डिजीटल युग ने तो हाथ से बने  फिल्मी पोस्टर्स को गुजरे जमाने का अक्स बना दिया। पोस्टर बनाना श्रम-साध्य काम होता था। जिसके एवज में बनाने वाले को मेहनताना मिलता था, जो रचनात्मक कला से पूर्ण रोजगार होता था। किसी भी चेहरे को उसके मूल रूप में कागज पर उकेरना आसान नही होता था। बॉलीवुड में कई नामचीन लोगों ने इस विधा में काम किया, जो समय के परिर्वतन के साथ गुमनामी में खो गये। परन्तु चित्रकार एफ.एम. हुसैन तथा डी.आर.भोसले का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। उनकी कार्यशैली एक अलग अंदाज में थी।

1924 में भारत में  पहली बार 'कल्याण खजिना' फिल्म का पोस्टर बना था। ये फिल्म शिवाजी के जीवन पर बनाई गई थी।  इसके पोर्स्टस बाबुराव पेंटर ने बनाए थे। संसार का पहला फिल्मी पोस्टर 1890 में एक लघु फिल्म प्रोजेक्शन 'आर्टटिकुएस' के लिए फ्रेंच चित्रकार जुल्स चेरेट ने बनाया था। 1913 में भारत की निर्मित पहली फिल्म का पोस्टर तस्वीर विहीन था। उस समय पोस्टर कैनवस पर हांथ से पेंट किये जाते थे। फिल्मो के प्रचार प्रसार में फिल्मी पोस्टर्स का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

1930 से लेकर 1960 के फिल्मी पोस्टर्स काफी चर्चा में रहे। संसार में लुप्त होती इस कला के कुछ पारखियों ने 2007 में  फिल्मी पोस्टर्स पर लगी प्रदर्शनी को सफल बनाया। इस प्रर्दशनी में  डी.आर.भोसले द्वारा बनाया गया गाइड का पोस्टर दो हजार डॉलर में बिका।  हॉलीवुड में कुछ समय पूर्व 'द साइलेन्स एंड द लैम्ब' फिल्म के पोस्टर को 35 साल का सबसे शानदार फिल्मी पोस्टर माना गया है।

आज नई पीढी अपनी इस लुप्त हेती सांस्कृतिक धरोहर को लेकर सजग है। हितेश जेठवानी जैसे कुछ लोग हस्तनिर्मित पोस्टर्स को हिप्पी डॉट संस्था के जरिये बढावा दे रहे हैं। ओसियन संग्रहालय में सदियों पुराने लगभग 19,500 पोस्टर्स सुरक्षित रखे गये हैं.। पश्चिमी देशों में बसे कला प्रेमियों के लिए भारतीय फिल्मी पोस्टर्स का विशेष महत्व है। एक दुकानदार द्वारा पाँच रूपये में खरीदे 'मदर इण्डिया' के एक पोस्टर को विदेश में लगभग 6 हजार में बेचा गया था।  फिरभी लगातार लुप्त होती प्रजातियोॆ की तरह ही फिल्मी पोस्टर्स का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है क्योंकि पोस्टर्स का सिधा रिश्ता प्रचार और एडवरटाइजिंग से होता है।
यदि सरकार और फिल्मी क्षेत्र के जागरूक लोग इन पोस्टर्स को सहजने का बीङा उठाएं तो निःसंदेह लुप्त होते पोस्टर्स फिर से जिवित हो जायेंगे और हजारो कलाकारों के हाथ को रोजी-रोटी का आधार मिल जायेगा।

Wednesday, 19 March 2014

हिन्दी बनाम अंग्रेजी


हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्ताँ हमारा कहने वाले देश की ये विडंबना है कि, यहाँ कुछ लोग अंग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं। जबकि हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन हो या बंगाली, तेलगु, कन्नङ, जापानी इत्यादि ये सभी भाषाएं हैं। भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम होती हैं। ये एक ऐसी शक्ति है जो मानव को मानवता प्रदान करती है। हम भाषा के माध्यम से ही अपने मन के भावों और विचारों को शाब्दिक रूप देते हैं।

परन्तु सेंटर फॉर रिर्सच एंड डिवेट्स इन डेवलप पॉलिसी की रिर्पोट के अनुसार फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा कमाते हैं। सवाल ये उठता है कि जब आजकल हर तरफ अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा कार्य चल रहा है तो भारत में बेरोजगारी की समस्या क्यों है? यदि फर्राटेदार अंग्रेजी से ज्यादा तनख्वाह मिल सकती है तो अंग्रेजी शिक्षा से तो रोजगार की गारंटी होनी चाहिए। किन्तु हकिकत में आज अधिकांश बच्चे बरोजगारी के शिकार हैं। सर्वे करने वाले न जाने किस आधार पर सर्वे करते हैं, वो ये भूल गये हैं कि रोजगार और अच्छी तनख्वाह के लिए हुनर होना चाहिए। जिस क्षेत्र में कार्य करना है उसका तकनिकी ज्ञान उस क्षेत्र की कामयाबी का प्रथम सोपान है। भारत में हिन्दी फिल्मों के क्षेत्र की विधाओं से जुङे लोग अत्यधिक कमाई करते है वनस्पत अन्य भाषाओं के, फिर भी भारत में अंग्रेजी को ही श्रेष्ठ मानना ये किसी त्रासदि से कम नही है।  
कबीर के अनुसार, "संस्कारित है कूप जल, भाषा बहता नीर।"

प्राचीन भारत के इतिहास का यदि अवलोकन करें तो स्पष्ट हो जाता है कि, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आर्यभट्ट, चिकित्सा के क्षेत्र में चरक एवं धनवंतरि आदि वैज्ञानिकों ने तकनिकी ज्ञान के जटिलतम रहस्यों को भारतीय भाषाओं में अभिव्यक्त किया है। विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली 10 भाषाओं में हिन्दी को दूसरा स्थान मिला है।

गाँधी जी ने कहा था, देशी भाषा का अनादर राष्ट्रीय आत्महत्या है।

आज भले ही अंग्रेजी की वाकालत की जा रही है परन्तु 200 वर्ष पूर्व अंग्रेजी दोयम दर्जे की भाषा थी। उस समय फ्रेंच और जर्मन भाषा का वर्चस्व था। उस दौरान माइकल फैराडे ने अंग्रेजी को उबारने के लिए एक पहल की, उन्होने अपने मित्रों के साथ अंग्रेजी को प्रचारित करना शुरू किया जिससे अंग्रेजी भाषा का विकास होने लगा। कहने का आशय ये है कि, किसी भी भाषा को यदि प्रसारित किया जाए तो उसका विकास संभव है। अर्थात हिन्दी का उपयोग यदि अधिक से अधिक कार्यो में होने लगे तो उसका भी विकास संभव है। अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, और कानून आदि के क्षेत्र में नए ज्ञान का सृजन, मौलिक कार्य और अनुवाद से हिन्दी को भी रोजगार और व्यवसाय की भाषा बनाई जा सकती है।

परन्तु हम ऐसे दुर्भाग्यशाली हैं, जहाँ मातृभाषा दम तोङ रही है और अंग्रेजी हमें अपना गुलाम बना रही है। अंग्रेजी को अच्छी नौकरी का पैमाना बनाकर भ्रम फैलाया जा रहा है। सोचिए! देश का आधार कहा जाने वाला वर्ग यानि की किसान को खेती करने के लिए क्या अंग्रेजी बोलना जरूरी है?  भारत के कस्बों, गॉवों और शहरों में करोङों लोग ऐसे हैं जिन्हे अंग्रेजी पल्ले नही पङती, उनके साथ व्यपारिक बातें अंग्रेजी में कैसे संभव है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, भाषा को बोली में परिर्वतित करने की ये सोची समझी साजिश है, जो आजादी के 60 दशक बाद भी हमें अंग्रेजी दासता से जकङे हुए हैं।आज हम भाषाई शुद्धता खो रहे हैं, न तो हिन्दी शुद्ध बोल रहे हैं और न ही अंग्रेजी, एक अलग ही अपभ्रंश भाषा 'हिंग्लिश' का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि देश की आशा है; हिन्दी भाषा। हिन्दी हमारी मातृभाषा है; मात्र एक भाषा नही है।

अतः हमें भाषाई विवादों को छोङकर अपने ज्ञान और कौशल का विकास करते हुए सफलता अर्जित करनी चाहिए। हिन्दी हो या फिर अंग्रेजी,  इससे फर्क नही पङता। भाषा कोई भी हो, वह तो हमेशा एक दूसरे को जोङती है और तरक्की के रास्ते खोलती है, सफलता की गारंटी नही देती  है।

Friday, 14 March 2014

नव उल्लास का त्योहार है, होली



भारत के सभी त्योहारों की एक विशेषता है कि सभी पर्व समाज को महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। होलिका दहन का पर्व भी सामाजिक बुराईंयों के विनाष का प्रतीक है। होलीकोत्सव को वैदिक काल में नव सस्येष्टि यज्ञ कहा जाता था, उस समय खेत के अध पके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान प्रचलित था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पङा। होली एक सामाजिक पर्व है जिसे समाज के सभी लोग साथ मिलकर मनाते हैं। ये त्योहार, समाज में समरसता, सौजन्यता, समानता और सामाजिक विकास का संदेश देता है।
भारत वर्ष में होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन शाम को होलीका जलाकर उसकी पूजा की जाती है एवं अगले दिन सुबह रंगो से होली खेली जाती है। उत्सव के ये दोनो ही दिन प्रेरणा, ऊर्जा तथा उत्साह के प्रतीक हैं। रंगों के इस त्योहार में लोग एक दूसरे को रंग एवं गुलाल लगाते हैं और गले मिलकर बधाई देते हैं। रंगो के इस त्योहार में व्यक्ति विशेष की पहचान नही रहती, सभी लोग भाषा, धर्म एवं जाति से परे एक ही रंग यानि की इसानियत के रंग में रंग जाते हैं। परन्तु वर्तमान समय में कुछ विकृत मानसिकता वाले लोग बदला लेने की भावना से रंगो में कैमिकल मिला देते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक होता है। पैसे कमाने की होङ में कुछ लोग होली की मिठाइयों में कुछ ऐसी चीजों की मिलावट कर देते हैं जिससे इंसान के जीवन को भी खतरा हो जाता है। इस कारण आज-कल कई लोग स्वंय को घरों में ही कैद कर लेते हैं और होली के उल्लास से दूर हो जाते हैं।

मित्रों, होली तो अनेका में एकता का प्रतीक है। इसे दुषित भावों से नही मनाना चाहिए बल्कि इस दिन सभी बैर-भाव भूलकर दोस्ती के रंग में रंग जाना चाहिए। होली तो अपनी खुशियों को व्यक्त करने का माध्यम है। होली के इस सामाजिक पर्व पर आत्मियता का रंग इस तरह चढे कि नीरस दिलों में भी उल्लास का सृजन हो सके और सब मिलकर बोलें Happy Holi.

नोट-( पूर्व पोस्ट पढने के लिए निचे दिये लिंक पर क्लिक करें)
http://roshansavera.blogspot.in/2013/03/blog-post_25.html

Thursday, 6 March 2014

Women in Freedom Struggle



विश्व में भारत ही ऐसा देश है, जिसकी स्वतंत्रता के लिए पुरूषों के साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना पूरा योगदान दिया। गाँधी जी के आह्वान पर अनेक महिलाओं ने विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में अपने प्राणों की परवाह किये बिना स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। जिन महिलाओं ने कभी घर से बाहर कदम भी नही रखा था, उन्होने भी भारत माता की आजादी के लिए अनेक महिलाओं को नेतृत्व प्रदान किया। हजारों महिलाओं ने स्वतंत्रता के यज्ञ को अपनी आहुती से सफल बनाया। सत्याग्रह के दौरान लगभग 15000 से भी ज्यादा महिलाएं जेल गईं। उन्होने जेलखानों को आराधना गृह का नाम दिया। लाठियों या गोलियों की परवाह न करते हुए अनगिनत महिलाओं ने इस देश की बेटी एवं बहु होने का फर्ज हँसते-हँसते अदा किया। ये महिलाएं नारी शक्ति के लिए प्रेरणा स्वरूप हैं, इन्होने अपने अदम्य साहस से भारत माता को गुलामी की जंजीर से मुक्त कराकर स्वतंत्रता का शंखनाद किया..............

मैडम भिकाजी कामाः-  ये भारत की प्रथम क्रान्तिकारी महिला थीं। विदोषों में निष्काशित जीवन व्यतीत करते हुए भारत की लङाई को जिवित रखा। 24 सितंबर 1861 को बंब्ई में एक पारसी परिवार में जन्म हुआ था। विदोषों में रहते हुए ये प्रमुख रूप से श्यामा जी, लाला  हरदयाल, वीर सावरकर, आदि के साथ सक्रिय रहीं। 1907 में जर्मनी में अंर्तराष्ट्रिय समाजवादी सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए इन्हे राष्ट्रिय ध्वज फैराने का गौरव प्राप्त हुआ था। इंग्लैण्ड में इन्हे अपराधी घोषित किया गया और वहां से निकल जाने का हुक्म दिया गया। ये इंग्लौण्ड से फ्रांस आ गईं, वहां से इन्होने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। 13 अगस्त 1936 को आपका निधन हो गया।

श्रीमति एनीबेसेन्टः-  एक अक्टुबर 1847 को लंदन में जन्मी एनीबेसेन्ट एक आइरिश महिला थीं। परन्तु भारतिय दर्शन एवं संस्कृति से प्रभावित होकर भारत आईं। उन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी। 1919 में होमरूल लीग की स्थापना की। कांग्रेस के अधिवेशनो में वे सदैव पूर्ण स्वराज की मांग उठाती रहीं। एनीबेसेन्ट गरमदल की प्रमुख नेता थीं। 1916 में बनारस हिंदुविश्वविद्यालय की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। 86 वर्ष की आयु में 20 सितंबर1933 को मद्रास में उनका निधन हो गया।

कु. प्रीती लता:-    यह एक सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी महिला थीं। प्रीती लता का जन्म 8 मई 1911 को चटगॉव में हुआ था, जो अब बंगाला देश में है। चटगॉव शस्त्रागार काण्ड में आपने भाग लिया था। ये इस काण्ड में गंभीर रूप से जख्मी हो गीई थी। अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हे घेर लिया था। अंग्रेजो के हाँथ वे न लगें इसलिए उन्होने सायनाइड खाकर अपने को देश के लिए बलिदान कर दिया।


कस्तूरबा गाँधीः- राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पत्नी, कस्तूरबा गाँधी का जन्म 1869 में पोरबंदर में हुआ था। स्वतंत्रता के कार्यक्रमों में वे सदैव गाँधी जी के साथ रहीं और अनेक बार जेल गईं अंतिम बार 9 अगस्त 1942 को उन्हे गाँधी जी के साथ आगा खाँ जेल में नजरबंद कर दिया गया था, वहीं बन्दी जीवन में ही 22 फरवरी 1944 को उनका निधन हो गया।

कु. खुर्शिद बैन नौरोजीः-  राष्ट्रीय नेता दादा भाई नौरोजी की पोती कु. खुर्शिद बैन नौरोजी का जन्म 1894 में हुआ था। विदेषों से शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद इनपर वहाँ का रंग नही चढा। भारत की स्वतंत्रता के लिए लोगों को जागरूक करती रहीं और आजादी के आन्दोलन में 8 बार जेल गईं। सन् 1966 में आपकी मृत्यु हुई।

 कमला देवी चट्टोपाध्याः-  3 अप्रैल 1903 समाज सेविका कमला देवी चट्टोपाध्या का जन्म बंगौलर में हुआ था। राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के लिए चलाए गये सभी आन्दोलनो में उन्होने हिस्सा लिया और अनेकों बार जेल भी गईं। आजादी के दौरान सोशलिष्ट पार्टी की स्थापना में उनका प्रमुख योगदान रहा।

सरोजनी नायडु:-  प्रथम श्रेणीं की राष्ट्रीय नेता एवं सुप्रसिद्ध कवित्री सरोजनी नायडु का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। ओजस्वी कविताओं के कारण भारत कोकिला के नाम से प्रख्यात सरोजनी नायडु को  1925 के कानपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में कांग्रेस की अध्यक्ष चुना गया था। एतिहासिक दांडी यात्रा में गाँधी जी के साथ थीं। गाँधी इरविन पैक्ट के अर्न्तगत दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गाँधी जी के साथ लंदन गईं थीं। सभी राष्ट्रीय आन्दोलन में उन्होने हिस्सा लिया और अनेक बार जेल यात्राएं की। आगा खाँ जेल में नजर बंदी के दौरान ये भी गाँधी जी के साथ थीं। भारत की स्वतंत्रता के बाद सरोजनी नायडु को पहली महिला गर्वनर नियुक्त किया गया था।

कु. कल्पना दत्तः-  एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त कल्पना दत्त का जन्म चटगॉव में हुआ था। चटगॉव शस्त्रागार काण्ड में सूर्यसेन के नेतृत्व में  क्रियाशील रहीं किन्तु उस समय पुलिस उन्हे गिरफ्तार नही सकी। 1933 में कङे संघर्ष के बाद सूर्यसेन के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 12 फरवरी 1934 को आजीवन कारावास की सजा दी गई।

विजय लक्ष्मी पंडितः- मोती लाल नेहरु की पुत्री विजय लक्ष्मी का जन्म 1900 में इलाहाबाद में हुआ था। सदैव स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहते हुए नमक सत्याग्रह में हिस्सा लेने के साथ ही विदेशी कपङों की दुकानो पर धरने दिये। 1937 में जब प्रांतिय सरकारों की स्थापना हुई तब उत्तर प्रदेश के मंत्रीमंडल में पहली महिला मंत्री का कार्यभार संभाला।

डॉ. सुशिला नैय्यरः-  इनका लगभग समस्त परिवार स्वतंत्रता संग्राम से जुङा हुआ था। बङे भाई प्यारे लाल नैय्यर गाँधी जी के सचिव थे। ये प्रायः सेवा ग्राम में रहती थीं। 1942 में नजरबंद के दौरान आगा खाँ जेल में 21 महिने रहीं। इन्होने सेवा ग्राम में कस्तूरबा हेल्थ सोसाइटी की स्थापना की जिसके माध्यम से आपने, आस-पास के गाँवों के लोगों के लिए उपाचार की व्यवस्था की। सेवाग्राम में ही गाँधी जी की स्मृति में महात्मा गाँधी साइंस इन्सटीट्यूशन की स्थापना की थी। 3 जनवरी 2001 को सुशिला नैय्यर जी का निधन सेवाग्राम में हुआ।

अरुणा आसफ अलीः-  राष्ट्रीय नेता आसफअली की पत्नी अरुणा आसफ अलि का जन्म 1906 में हुआ था। लाहौर और नैनिताल में शिक्षा प्राप्त अरुणा, नमक सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन  में प्रमुख रूप से सक्रिय रहीं। 1942 के भारत छोङो आन्दोलन में आपका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनिय है। 9 अगस्त 1942 को जब अनेक बङे नेताओं को गिरफ्तार किया गया तो इन्होने भुमिगत रहकर राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिशील बनाए रखा। तत्कालीन सरकार ने इनकी गिरफ्तारी के लिए 5000 नकद पुरस्कार की घोषित किया था, लेकिन ये अंत तक पुलिस के हाँथ नहीं आईं इसलिए अरुणा आसफ अलि को 1942 की हिरोइन कहा जाता है। जब 26 जनवरी 1946 को अंग्रेज सरकार ने इनके वारंट को रद्द करने की घोषणा की तभी ये सार्वजनिक रूप से सामने आईं। 

राजकुमारी अमृत कौरः-  सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और गाँधी जी की निकट सहयोगिनी थीं। 2 फरवरी 1889 को कपूरथला में जन्मी राजकुमारी अमृत कौर ने ऐशो आराम का जीवन त्यागकर देश की स्वतंत्रता हेतु अनेकों बार जेल गईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ये प्रथम केन्द्रिय मंत्रीमंडल में स्वास्थ मंत्री बनी।

लेडी अब्दुल्ल कादिरीः- 1883 में लाहौर में जन्मी लेडी अब्बदुल कादिरी ने 1922 से खिलाफत आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आनदोलन में प्रमुख रूप से हिस्सा लिया था। लेडी अब्दुल्ल कादिरी का कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश में लखनऊ में था।

अम्तु सलाम बेनः-  गाँधी जी के सभी प्रमुख रचनात्मक कार्यो में निकट से जुङी रहीं। 1942 के आन्दोलन में रेहाना बहन के साथ सक्रिय रहीं। 1946 में नोआखली के सामप्रदायिक दंगो के शिकार लोगों की सहायता हेतु शान्ति यात्रा में गाँधी जी के साथ थीं।

दुर्गा बाई देशमुखः-  सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेविका दुर्गा बाई देशमुख का जन्म 1909 में आन्ध्रप्रदेश में हुआ था। एल.एल.बी तक शिक्षा प्राप्त की थी। स्वदेशी आन्दोलन में इन्होने अपने विवाह के समय के सभी विदेषी कपङों को जला दिया था। अपने किमती आभूषणों को देश हित के लिए गाँधी जी को समर्पित कर दिया था। राष्ट्रीय कार्यक्रमों के आन्दोलन में ये तीन बार जेल गईं थीं। 9 मई 1981 को आपका निधन हैदराबाद में हुआ था।

दुर्गा भाभीः-  दुर्गा का जन्म 7 अक्टुबर 1907 को लाहौर में हुआ था। इनके पति भगवति चरण बोहरा सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी थे। दुर्गा भाभी ने लगभग सभी क्रान्तिकारी गतिविधियों में अपना योगदान दिया। दुर्गा भाभी क्रान्तिकारियों के छिपने के लिए गुप्त व्यवस्था करती थीं। चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, यशपाल आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियों से निकट से जुङी हुईं थीं।  

कु. बिना दासः-  24 अगस्त 1911 में बंगाल में जन्मी बिना दास ने बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की थी। अध्ययन के दौरान ही ये क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गईं थीं। 6 फरवरी 1932 को कॉलेज के एक समारोह में बंगाल के गर्वनर स्टेनले जेक्सन पर गोली चला दी, लेकिन गर्वनर बच गये तब इन्हे पकङ लिया गया और 9 वर्ष की कङी कैद की सजा दी गई। 1942 के आन्दोलन में भी सक्रिय रहीं किन्तु तब इनको अंग्रेज गिरफ्तार न कर सके।

श्रीमति जानकी देवी बजाजः-  प्रसिद्ध उद्योगपति जमना लाल बजाज की पत्नि श्रीमति जानकी देवी बजाज ने अपने घर की सभी विदेशी वस्तुओं को जला दिया था। सरकार विरोधी भाषणों के कारण उन्हे अंग्रेज सरकार ने कुछ समय तक जेल में रखा था।

श्रीमति सुचेता कृपलानीः-  1908 में अम्बाला में जन्मी सुचेता कृपलानी देशभक्त, आचार्य जे बी कृपलानी की पत्नी थीं। श्रीमति सुचेता कृपलानी भारत छोङो आन्दोलन में अरुणा आसफ अलि के साथ भुमिगत रहकर आन्दोलन का संचालन करती रहीं। इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. की परिक्षा पास की थी। आजादी के उपरान्त अनेक बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं।  अक्टुबर 1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। ये स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं।  आजादी के बाद देश में कई जगह साम्प्रदायिक दंगे भङक उठे थे, सुचिता कृपलानी ने दंगा पिङीत लोगों को राहत पहुँचाने का कार्य किया था।

बहन सत्यवतिः-  दिल्ली की सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सेविका सत्यवति का जन्म 1906 में दिल्ली में हुआ था। लगभग सभी आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी देते हुए, खराब स्वास्थ के बावजूद कई बार जेल भी गईं।  उस समय की टी.बी. जैसी गंभीर बिमारी के बावजूद उन्होने अपने प्रयासो से दिल्ली में महिलाओं के मन में स्वतंत्रता के प्रति जागरुकता का शंखनाद किया।  सत्यवति जी की प्रेरणा से हजारों महिलाओं ने उनका अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता के आंदोलन में अपना योगदान दिया।


मृदुला सारा भाईः-  1911 में अहमबदाबाद में जन्मी मृदुला सारा भाई का समस्त परिवार स्वतंत्रता के आन्दोलनो में सक्रिय रहा। स्वतंत्रता के लिए अनेकों बार जेल गईं और जब भारत विभाजन में साम्प्रदायिक दंगे भङके तो दंगा पिङीत लोगों की सहायता में सक्रिय रहीं।

लाडो रानी जुत्सीः-  लाडो रानी जुत्सी ने पंजाब में महिलाओं का जागरुक किया और महिलाओं को एकत्र कर शराब की दुकाने बंद कराने एवं विदेषी वस्तुओं के बहिष्कार में महत्वपूर्ण भुमिका का निर्वाह किया। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान इन्हे एक वर्ष तक के लिए जेल में बंद कर दिया गया था। 1932 में निषेधाग्या भंग करने के आरोप में पुनः 18 महिने के लिए जेल गईं।

सरला बहनः-  5 अप्रैल 1900 में लंदन में जन्मी कु. कैथलिन 1938 में समाज सेवा के लिए भारत आईं। गाँधी जी से प्रभावित होकर उनके अनेक कार्यक्रमें से जुङी रहीं। 1942 के भारत छोङो आन्दोलन में विशेष रूप से सक्रिय रहीं। ये जीवन पर्यन्त अलमोङा में समाज सेवा का कार्य करती रहीं। इस क्षेत्र में रचनात्मक कार्यो को बढाने हेतु कौशानी आश्रम की स्थापना की। 40 वर्षों तक निरंतर देश सेवा के उपरान्त 8 जुलाई 1962 को उनका निधन हो गया।

रानी गाइनडिल्युः-  जॉन ऑफ आर्क नाम से प्रख्यात रानी गाइनडिल्यु का जन्म 26 जनवरी 1915 को नागालैण्ड में हुआ था। ये सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी महिला थीं। रानी गाइनडिल्यु ने 17 वर्ष की अल्प आयु में ही अपने हजार अनुयाइयों के साथ अंग्रेजों के प्रति गोरिल्ला युद्ध छेङ कर उन्हे पराजित किया। 17 अक्टूबर 1942 को इन्हे अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा गंभीर प्रताङना दी गई। आजिवन कारावास का दंड मिला। जब प्रान्तिय शासन आरंम्भ हुआ तब अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को छोङा गया किन्तु जवहारलाल नेहरु के प्रयासों के बावजूद इन्हे रिहा नही किया गया। भारत की आजादी के उपरान्त ही इनको जेल से रिहाई मिली, तद्पश्चात ये जीवन भर लोकप्रिय नागानेता के रूप में सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों में सक्रिय रहीं।

सुशिला दीदीः-  प्रसिद्ध क्रान्तिकारी महिला सुशिला दीदी का जन्म 5 मार्च 1905 को गुजरात में हुआ था।  काकोरी कांड के केस में खर्च हो रहे रूपये हेतु इन्होने अपने सारे जेवर दान कर दिये थे। अपने अध्ययन काल के दौरान से ही ये चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, भगवतिचरण वोहरा एवं दुर्गा भाभी के साथ क्रान्तिकारी गतिविधियों में सदैव सक्रिय रहीं। दिल्ली में वायसराय लार्ड इरविन की ट्रेन उङाने की जो योजना बनाई गयी थी। उसमें इन्होने क्रान्तिकारियों तक सभी सुचनाएं पहुँचाने का दायित्व निभाया था।

स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्य न्यौछावर करने वाली अमर बलिदानी महिलाओं को कभी भी भुलाया नही जा सकता, उनके बलिदान को महिला दिवस पर नमन करने का प्रयास है। भारत की स्वतंत्रता से लेकर स्वयं की एवं समाज तथा देश की रक्षा करने में भारतीय नारी सक्षम है, सिर्फ उसे अपनी शक्ति को आज के परिपेक्ष में नई पहचान की जरूरत है। जिससे कोई भी उसके साथ अराजकता का व्यवहार न कर सके।
   Everyday remind yourself that You are the best.
               Happy Women's Day