Friday, 14 March 2014

नव उल्लास का त्योहार है, होली



भारत के सभी त्योहारों की एक विशेषता है कि सभी पर्व समाज को महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। होलिका दहन का पर्व भी सामाजिक बुराईंयों के विनाष का प्रतीक है। होलीकोत्सव को वैदिक काल में नव सस्येष्टि यज्ञ कहा जाता था, उस समय खेत के अध पके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान प्रचलित था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पङा। होली एक सामाजिक पर्व है जिसे समाज के सभी लोग साथ मिलकर मनाते हैं। ये त्योहार, समाज में समरसता, सौजन्यता, समानता और सामाजिक विकास का संदेश देता है।
भारत वर्ष में होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन शाम को होलीका जलाकर उसकी पूजा की जाती है एवं अगले दिन सुबह रंगो से होली खेली जाती है। उत्सव के ये दोनो ही दिन प्रेरणा, ऊर्जा तथा उत्साह के प्रतीक हैं। रंगों के इस त्योहार में लोग एक दूसरे को रंग एवं गुलाल लगाते हैं और गले मिलकर बधाई देते हैं। रंगो के इस त्योहार में व्यक्ति विशेष की पहचान नही रहती, सभी लोग भाषा, धर्म एवं जाति से परे एक ही रंग यानि की इसानियत के रंग में रंग जाते हैं। परन्तु वर्तमान समय में कुछ विकृत मानसिकता वाले लोग बदला लेने की भावना से रंगो में कैमिकल मिला देते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक होता है। पैसे कमाने की होङ में कुछ लोग होली की मिठाइयों में कुछ ऐसी चीजों की मिलावट कर देते हैं जिससे इंसान के जीवन को भी खतरा हो जाता है। इस कारण आज-कल कई लोग स्वंय को घरों में ही कैद कर लेते हैं और होली के उल्लास से दूर हो जाते हैं।

मित्रों, होली तो अनेका में एकता का प्रतीक है। इसे दुषित भावों से नही मनाना चाहिए बल्कि इस दिन सभी बैर-भाव भूलकर दोस्ती के रंग में रंग जाना चाहिए। होली तो अपनी खुशियों को व्यक्त करने का माध्यम है। होली के इस सामाजिक पर्व पर आत्मियता का रंग इस तरह चढे कि नीरस दिलों में भी उल्लास का सृजन हो सके और सब मिलकर बोलें Happy Holi.

नोट-( पूर्व पोस्ट पढने के लिए निचे दिये लिंक पर क्लिक करें)
http://roshansavera.blogspot.in/2013/03/blog-post_25.html

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