विश्व के सबसे बङे लोकतांत्रिक देश भारत में होने वाला चुनाव भी सब देशों से निराला होता है। आज देश में कई राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने विचारों और मुद्दों के साथ चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेकर लोकतांत्रिक परंपरा का निर्वाह कर रही हैं। विभिन्न पार्टियों की अपनी-अपनी पहचान एक प्रतीक चिन्ह के रूप में होती है। जो कहीं न कहीं उनके विचारों और देश के प्रति जागरुकता को भी परिलाक्षित करती हैं। परन्तु क्या आज के परिवेश में राजनैतिक दल पार्टी प्रतीक चिन्ह के प्रति वफादार हैं??
भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाये गये भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है। आज देश के चुनावी दंगल में अनेक राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने भाग्य को आजमा रहीं हैं। जबकि प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती देते हुए कुछ ही दल स्थापित थे। जहां एक ओर श्यामा प्रसाद मुर्खजी ने अक्टुबर 1951 में जनसंघ की स्थापना की, वहीं दूसरी ओर दलित नेता बी.आर. आम्बेडकर ने अनुसूचित जीति महासंघ को पुर्नीवित किया। जो अन्य दल उस समय आगे आए उनमें आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा परिषद, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी शामिल थी। अपने विचार को गति देने के लिए वर्तमान में उपस्थित राजनैतिक दलों के प्रतीक चिन्हों को जानना आवश्यक है।
सबसे
पुरानी पार्टी कांग्रेस का 1885 यानि की स्थापना के समय
चिन्ह था, हल के साथ दो बैल तद्पश्चात
बदलकर गाय-बछङा हुआ। परंतु वर्तमान में इंदिरा गाँधी की सोच अर्थात शक्ति, ऊर्जा और एकता का प्रतीक
हाँथ का पंजा कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है।
दूसरे
नम्बर की राजनैतिक पार्टी है भारतिय जनता पार्टी जिसका वर्तमान में चुनाव चिन्ह है
कमल। कमल किचङ जैसी विपरीत परिस्थिती में भी अपने वजूद को कायम रखता है और
माता लक्ष्मी के हाँथ में शोभायमान है। परन्तु ये पार्टी पूर्व में यानि की 1951 में डॉ. श्यामाप्रसाद
मुर्खजी द्वारा स्थापित भारतिय जनसंघ के नाम से अस्तित्व में आई थी उस दौरान इस
पार्टी का चुनाव चिन्ह दिपक हुआ करता था। 1977 में इसे जनता पार्टी नाम
दिया गया जिसका चिन्ह था हलधर किसान। किन्तु 1980 में इसका स्वरूप बदला तभी से
भारतिय जनता पार्टी के नाम से कमल के साथ वर्तमान के चुनाव में भी अपना भाग्य आजमा
रही है।
कार्लमाक्स
के विचारों से प्रभावित एवं देश की रीढ कहे जाने वाले वर्ग अर्थात कृषक वर्ग एवं
कामगारों के हित के लिए आवाज बुलंद करने वाली पार्टी भारतिय कम्युनिष्ट पार्टी का
अस्तित्व 1952
से आज
तक बना हुआ है। इसका चुनाव चिन्ह है, बाली और हसिया।
मजदूर
वर्ग के मसीहा कहे जाने वाले मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टी ने 1967 से हसिये और हथौङे के साथ
खेतिहर मजदूर और कारखानों के मजदूरों की प्रतीक रूप में कार्यरत है। ये पार्टी
भरतिय कम्युनिष्ट का ही हिस्सा थी परन्तु वर्तमान में एक स्वतंत्र पार्टी
है।
बाईं
ओर देखता हाथी बहुजन समाज पार्टी का चुनाव प्रतीक है। काशीराम द्वारा स्थापित तथा
बहन मायावति के प्रयासों से ये पार्टी देश के अल्पसंख्यक और निचली जाती के सुधार
हेतु प्रयासरत है। बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह हांथी, शारीरिक शक्ति और इच्छा
शक्ति का प्रतीक है। इस पार्टी का विशेष प्रभाव उत्तर
प्रदेश
में है। अन्य प्रदेशों में भी मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में सुदृण मानसिकता
के साथ आंशिक रूप से कार्यरत है।
लाल
और हरे रंग के झंडे पर साइकिल चुनाव चिन्ह के साथ समाजवादी पार्टी देश में हरियाली
और खुशियाली लाने के लिए क्रन्ति का नारा बुलंद कर रही है।
कांग्रेस
पार्टी से अलग हुई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अपने सिद्धान्तों को घङी रूपी
चुनाव चिन्ह में प्रर्दशित कर रही है। नीले रंग की रेखिय घङी जिसमें निचे दो पाए
तथा ऊपर अलार्म बटन लगा है, घङी के कांटे 10 बजकर 10 मिनट को दर्शा रहे हैं।
प्रचीन
भारतीय परंपरा का प्रतीक शंख बीजू जनतादल का चुनावी शंखनाद है। श्री हरि विष्ण् का
प्रतीक शंख विजयनाद को दृष्टीगोचर करता है। इसी मनोभाव को आत्मसात करते हुए बिजू
जनतादल ने इसे अपने चुनाव चिन्ह के रूप में धारण किया है।
जनता
दल (यूनाइटेड) के लिए चुनाव आयोग द्वारा 'तीर' का निशान स्वीकृत किया गया है। यह चिह्न अविभाजित जनता दल का था। यह तीर
हरे और सफेद रंग के बीच बनी सफेद पट्टी पर बना हुआ है। वास्तव में यह ध्वज जॉर्ज
फर्नांडीज़ की समता पार्टी का था। 'तीर' इंगित करता है कि पार्टी अपने लक्ष्य, भारत को
एक धर्मनिरपेक्ष, संप्रभु, समाजवादी
व लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की ओर प्रयासरत है।
पीले रंग की पृष्ठभूमि पर तेलुगू देशम पार्टी का चुनाव चिह्न 'साइकिल' है। जो समृद्धि, खुशी और धन की चमक को परिलाक्षित करता है।
दो पत्तियों के चुनाव चिन्ह के साथ ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़
मुन्नेत्र कड़गम पार्टी चुनावी रण में अपना भागय आजमा रही है। उक्त चुनाव चिह्न का एक खास इतिहास रहा है। 1987 में एम.जी. रामचंद्रन की मृत्यु के बाद एआईएडीएमके को लेकर जानकी
रामचंद्रन और जयललिता के बीच अनबन हो गई। अत: चुनाव
आयोग ने दोनों को एमजीआर के उत्तराधिकारी के रूप में पार्टी की कमान सम्हालने में
अयोग्य करार दिया। परिणामस्वरूप दोनों को पृथक चुनाव चिह्न आवंटित किए गए। जानकी
रामचंद्रन को 'दो कबूतर' तथा
जयललिता गुट को 'बांग देता हुआ मुर्गा' चुनाव चिह्न दिया गया। हालांकि, द्रमुक के
शक्तिशाली बनकर उभरने से उक्त मामला हल हो गया और 1989 में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके को 'दो
पत्तियां' चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया गया।
डीएमके
(द्रविण मुनेत्र कङगम) का चुनाव चिह्न दो पर्वतों के बीच से
रश्मियां बिखेरते हुए उगता सूरज है। यह चिह्न सीधे तौर पर द्रविण लोगों के
इतिहास और उनकी राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ा था, जिसका
राजनीतिक नेतृत्व पेरियार ने किया था।
अखिल
भारतीय तृणमूल कांग्रेस का चुनाव चिन्ह राष्ट्रीय तिरंगे के सभी रंगो के साथ दो
फूल है एवं पार्टी का नारा है, 'माँ, माटी और मनुष्य
जनता दल (सेक्युलर) : जेडी (एस) का चुनाव चिन्ह 'अपने
सिर पर धान रखकर ले जाती एक कृषक महिला' है। पार्टी का प्रचार वाक्य है, 'मूल्य से एकजुट, विश्वास से प्रेरित'। चिह्न में महिला को दर्शाना
महिलाओं के अधिकारों और अवसरों के प्रति गंभीर होना दर्शाता है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का चुनाव चिह्न 'लालटेन' है। इस चुनाव चिह्न को पार्टी के अनुसार अंधकार
के उन्मूलन और प्रकाश व प्रेम का प्रचार करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
पार्टी की मजबूत हिन्दू राष्ट्रवादी भावना की ओर संकेत करता हुआ केसरिया रंग के ध्वज पर 'तीर-कमान' शिवसेना का चुनाव चिह्न है। केसरिया रंग
हिन्दुत्व का प्रतीक है। पार्टी कार्यकर्ताओं को शिव
सैनिक कहा जाता है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना मनसे का चुनाव
चिह्न दाईं ओर जाता हुआ 'रेलवे का भाप इंजन' है। झंडे में शीर्ष पर गहरा चमकदार नीला रंग, फिर सफेद पट्टी, फिर केसरिया रंग के बाद सफेद
पट्टी और फिर हरा रंग है। राष्ट्रीय तिरंगे के रंग को आत्मसात करते हुए
त्याग-बलिदान, समृद्धि और खुशियाली का प्रतीक है।
2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी (आप) का
चुनाव चिह्न 'झाड़ू' है।
भ्रष्टाचार मिटाने के उद्देश्य से अस्तित्व में आई इस पार्टी का मानना है कि चुनाव
चिह्न झाड़ू के मुताबिक देश में फैले हर प्रकार के भ्रष्टाचार की सफाई करना है।
प्रथम
चुनाव से लेकर आज तक की चुनावी यात्रा में अपनी सरकार स्वंय चुनने का रोमांच नितनई
पार्टियों की भीङ में कहीं खोता जा रहा है। आज जिस तरह से नवीन पार्टियां चुनाव तो
अपने चुनावी चिन्हों के संदेश को लेकर लङती हैं किन्तु परिणाम आने पर कुर्सी को सर्वोपरी
मानते हुए जोङ-तोङ की राजनीति में विश्वास करने लगती हैं। नेताओं के बदलते विचारों
से चुनाव चिन्हों की नितीयों पर ग्रहण लग जाता है और पार्टी के प्रतीक चिन्ह मात्र
प्रतीक बनकर ही रह जाते हैं क्योकिं आज महिलाओं की सुरक्षा एवं सम्मान तथा देश की खुशहाली एवं मजदूर वर्ग
का हित केवल विचारों में सिमट गया है।