पुरातन काल से भारत वर्ष सदा ही ज्ञान का आधार रहा है। भारत की धरती पर अनेक जाति, धर्म और सम्प्रदाय तथा भाषा के लोग इस प्रकार रहते हैं जैसे कि, एक वाटिका में अनेकों सुगंधित पुष्प। भारत की धरती हमेशा 'अतिथी देवो भवः' को आत्मसात करते हुए अनेक नामों से पहचानी जाती है। कोई इसे हिन्दोस्तान कहता है तो कोई इण्डिया जिसमें हिंदुज़म, जैनिज़म, बौधिज़म, सिखीज़म, इस्लाम तथा ईसाइ धर्म समाया हुआ है। ऐसे अद्भुत भारत देश को 11 सितंबर 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद जी ने गौरवान्वित किया। भारत की श्रेष्ठ धार्मिक छवी से प्रभावित होकर 'न्यूयार्क हेरल ट्रिबूट्स' ने लिखा था कि, भारत जैसे देश में धार्मिक मिशनरियों को भेजना कितनी बङी मूर्खता थी।
आज उसी धरती पर धर्म, जाति और भाषा, विवाद का विषय बनता जा रहा हैं। कहने को तो हम विकासशील देश से आगे कदम बढाते हुए विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर हो रहे हैं। नई-नई तकनिकों का आविष्कार कर रहें हैं। फिर भी धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले महानुभावों के असंवेधानिक वचनो के जाल में उलझ जाते हैं। जबकि हम सब ही नही वरन् विज्ञान भी इस बात को मानता है कि, कोई शक्ति है जो पूरे ब्रह्माण्ड को चला रही है। उस सर्वशक्ति को हम सभी ने अपने-अपने अुनसार एक रूप और नाम दे दिया है। ये रूप हमारी आस्था के प्रतीक हैं। किसी ने सच कहा है कि मानो तो ईश्वर न मानो तो पत्थर। हमारी आस्था के प्रतीक राम, रहीम, शिव, ईसामसीह हों या पैगंबर साहेब, गुरू नानक या साई बाबा हों या कृष्ण ये सभी उस शक्ति का मूर्त रूप हैं जहाँ मनु्ष्य अपनी परेशानियों से निजात पाने के लिए अरदास ( प्रार्थना ) करता है। जिस दर पर सुकून और खुशियाँ मिल जाती हैं वही उस व्यक्ति के लिए पूजित हो जाता है।
कबीर दास जी कहते थे कि,
"हिन्दु कहत है राम हमारा, मुसलमान रहमान।
आपस में दौऊ लङै मरतु हैं, मरम कोई नही जाना।।"
अर्थातः- हिन्दु कहते हैं कि हमारे राम सब कुछ हैं और मुसलमान कहते हैं कि रहीम ही सबकुछ हैं। इस तरह से ये आपस में लङते मरते रहते हैं। जबकि सच तो यही है कि राम और रहीम एक ही हैं।
प्रकृति भी हमें धार्मिक, भाषाई और जातिय सिमाओं में नही बाँधती। सूरज सबको एक समान धूप देता है, हवा हिन्दु, मुस्लिम, सिख्ख या ईसाइ नही देखती। पेङ सभी के लिए फल देता है। परन्तु सबसे बुद्धिमान कहा जाने वाला प्राणी मनुष्य ही शान्ति के चमन को भेद-भाव की दुषित मानसिकता से नष्ट कर रहा है। सोचिए ! यदि किसान जातिय और धार्मिक बंधनो में बंध जाये तो जिवन उपयोगी मूलभूत आवश्यक्ताओं की पूर्ती क्या संभव हो पायेगी ?
जब कोई व्यक्ति जिंदगी और मौत से जूझ रहा होता है तब उसे एवं उसके परिजन को डॉक्टर ही भगवान नजर आता है तब वो ये नहीं देखते कि डॉक्टर किस जाति या धर्म को मानने वाला है। डॉक्टर भी इन बंधनो से मुक्त मरीज के इलाज को ही प्रथमिकता देते हैं। कल्पना किजीए यदि डॉक्टर भी भेद-भाव करने लगे तो क्या होगा ? वहीं दूसरी तरफ परेशानी की इस घङी में परिजन अपने अस्वस्थ प्रियजन की सलामती के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। अपने मित्रों के परामर्श पर अन्य विपरीत धर्म के प्रतीकों से मन्नत माँगने में भी परहेज नहीं करते क्योंकि यहाँ प्रियजन की सलामती प्रमुख होती है और प्रियजन के ठीक हो जाने पर आस्था की एक नई ज्योति प्रज्वलित होती है, जो धार्मिक एवं जातिय बंधनो से मुक्त होती है।
हमारे संविधान में भी प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने अनुसार धर्म, जाति एवं भाषा मानने को स्वतंत्र है। फिर क्यों कभी मौलवियों का फरमान तो कभी मठाधीशों के कट्टर अस्वभाविक बयानों से देश की शान्ति को भंग करने का प्रयास किया जाता हैं। जबकि हमारी पवित्र पुस्तकें कुरान, गीता, रामायण या बाइबल में इंसानियत की सीख दी गई है। फिर भी इस अमुल्य सीख से बेखबर हमारे धर्माधिकारी विवादस्पद बयान दे देते हैं जिसका सबसे ज्यादा नुकसान उस निरिह जनता का होता है जिसके घर में दिन की आमदनी से रात का चुल्हा जलता है। इस बात पर विचार करना चाहिए कि, क्या धार्मिक और जातिय प्रतिबंधो से विकास की इबारत लिख सकते हैं? ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, स्वयं का या देश-दुनिया का विकास सभी के सहयोग से ही संभव है।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं, उसी प्रकार सब मत मतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं। मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"
मित्रों, हम सब मिलकर विकास के इस दौर में जातिय, भाषाई और धार्मिक बंधनो से मुक्त भारत का पुनरुथान करें। जहाँ की धरती पर युगों-युगों से सभी धर्मों तथा जातियों और अत्याचार पिङित मनुष्यों को आश्रय मिलता रहा है, ऐसी पवित्र भुमि भारत देश में भारतीयता हमारी जाति हो और इंसानियत ही हमारा धर्म हो।
जय भारत
poori tarah se sahmat.
ReplyDeletejati dharm ko lekar jo vivaad hota hai, ish lekh ko padh kar jarur seekh milegi .
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