वसुधैव कुटुम्बकम की भावना की अलख जलाती हमारी हिन्दी भाषा, दक्षिण से उत्तर तक तथा पश्चिम से पूरब तक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। परंतु भारत की आजादी के 68 वर्ष बाद भी हिन्दी भाषा को लेकर कई राज्यों में विवाद चल रहा है जबकि संविधान के अनुसार 14 सितंबर 1949 को अनुछेद 343 एक के अनुसार हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया तथा ये 26 जनवरी 1950 से अधिकारिक तौर पर बोली जाने वाली भाषा बन गई। संवेधानिक दर्जा प्राप्त हिन्दी को अभी भी यदा-कदा अग्नि परिक्षा से गुजरना पङता है। विश्व स्तर पर अग्रसर हिन्दी अपने ही देश में अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रही है।
संत कनफ्यूशियस के अनुसार, "अपनी भाषा हीन होने से कोई देश आजाद नही रह सकता।"
संविधान के अनुसार हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है और हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से आजाद भी हो गये। अंग्रेज भारत छोङकर चले भी गये किन्तु उनकी अंग्रेजी के हम अभी भी गुलाम हैं। स्वतंत्रता के संघर्ष में जनमानस की भाषा, गाँधी, टैगोर, तिलक, दयानंद सरस्वति, एवं सुभाष चंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों की भाषा हिन्दी को आज भी वो स्थान नही मिल सका जिसकी वो हकदार है। ये अजीब विडंबना है कि आजादी के साठ दशक बाद भी स्वंय सिद्धा हिन्दी पूर्णतः सरकारी काम-काज की भाषा का सम्मान न पा सकी।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।"
इतिहास गवाह है कि, हमारे कई मुस्लिम शासकों ने हिन्दी को अपने कामकाज की भाषा माना था। मौहम्द गौरी ने अपने राजकीय काम-काज को देवनागिरी तथा हिन्दी में संपादित करने के आदेश दिये थे। उसने सिक्कों पर देवानागीरि में 'श्री हम्मी तथा मेहमूद साँब' अंकित करवाया था। शेरशाँह सूरी ने भी अपने शासन काल में सिक्कों पर देवनागिरी में 'श्री हम्पी तथा ऊँ' अंकित करवाया था। उनके शासन काल में परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से शासन का कार्य हिन्दी में किया जाता था। 18वीं शताब्दी में पेशवा, सिंधिया और होलकर जैसे मराठी राजघरानो में हिन्दी में ही कामकाज होता था। अनेक संतो जैसे नामदेव, चैतन्य महा प्रभु, गुरु नानक ने अपने उपदेश हिन्दी में दिये थे क्योकि हिन्दी जन-साधारण की भाषा थी। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, हिन्दी भाषा प्राचीन काल से सभी प्रान्तों को एक दूसरे से जोङे हुए है। आजादी का संदेश लिये हिन्दी भाषा ने सभी देशभक्तों को एक सूत्र में बाँधा था।
दयानंद सरस्वती ने कहा था कि, "हिन्दी ही राष्ट्रीय एकता को शास्वत और अक्षुणं बना सकती है।"
एक सर्वे के अनुसार 24 प्रतिशत साक्षर लोगों में से केवल दो प्रतिशत ही लोग अंग्रेजी जानते हैं क्योंकि अंग्रेजी में नरेशन की दिक्कत है जबकि हिन्दी नरेशन की बला से मुक्त है। हमारी हिन्दी भाषा में बङों का सम्मान लिए 'आप' जैसे शब्द है, जबकि अंग्रेजी ने तो सभी को एक ही शब्द 'यू' (You) के साँचे में कैद कर दिया है। समय के बंधनो से मुक्त हिन्दी भाषा में हमारी अभिवादन शैली, प्रणाम और नमस्कार नम्रता का प्रतीक है। हिन्दी समृद्ध और सर्वग्राही भाषा है।
आचार्य केशवचन्द्र सेन के अनुसार, "भारत जैसे देश में जहाँ अनेक बोलियां बोली जाती हैं वहाँ हिन्दी ही सम्पर्क, सर्वसुलभ ओर सार्वभौमिक भाषा सिद्ध होती है। ये राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।"
आजादी से पूर्व हम सब एक भाषा हिन्दी के साथ, एक उद्देश्य के लिए अंग्रेजों के खिलाफ थे, परंतु आज के परिवेश में कुछ राजनैतिक गतिविधियों ने भारत को अनेक राज्यों में बाँट दिया है, वहाँ की क्षेत्रिय भाषाएं अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने लगी हैं। आज जिसे देखो वो अपने को पहले पंजाबी, बंगाली, मराठी, कन्नण, मद्रासी आदि कहते हुए मिल जायेगा, बहुत कम ही लोग स्वंय को भारतवासी या हिन्दुस्तानी कहते हुए मिलते हैं। भाषाई विवाद का ही परिणाम है, अनेक राज्यों का स्वतंत्र उदय।मित्रों, भाषा पर कुठाराघात किसी भी राष्ट्र के लिए हितकर नही होता और राष्ट्र से बढकर किसी भी भाषा का कोई स्वाभीमान नहीं होता।
भारत जैसे विविधता वाले देश में जहाँ के लिए कहा जाता है कि चार कोस पर भाषा बदले छः कोस पर पानी, वहाँ सभी को एक सूत्र में बाँधना आसान नही है किन्तु सभी भाषाओं का मिश्रित रूप और संतो की वाणी से अलंकृत संवेधानिक भाषा हिन्दी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाये रखने में सक्षम है क्योंकि हिन्दी भाषा सद्भावना, प्रेम, श्रद्धा तथा अहिंसा, करुणा एवं विश्व मैत्री का प्रतीक है।
वर्तमान में गूगल जैसे सर्चइंजन भी हिन्दी के विकास को समझते हुए अपनी कार्य प्रणाली को हिन्दी में भी उपलब्ध करा रहे हैं। हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने को भी अग्रसर है। अतः मित्रों विश्व स्तर पर अपना वर्चस्व रखने वाली हिन्दी भाषा को हम सब मिलकर वैश्विक मानचित्र पर नम्बर एक पर ले जाने का प्रयास करें और गर्व से हिन्दी भाषा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायें।
संत कनफ्यूशियस के अनुसार, "अपनी भाषा हीन होने से कोई देश आजाद नही रह सकता।"
संविधान के अनुसार हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है और हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से आजाद भी हो गये। अंग्रेज भारत छोङकर चले भी गये किन्तु उनकी अंग्रेजी के हम अभी भी गुलाम हैं। स्वतंत्रता के संघर्ष में जनमानस की भाषा, गाँधी, टैगोर, तिलक, दयानंद सरस्वति, एवं सुभाष चंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व वाले लोगों की भाषा हिन्दी को आज भी वो स्थान नही मिल सका जिसकी वो हकदार है। ये अजीब विडंबना है कि आजादी के साठ दशक बाद भी स्वंय सिद्धा हिन्दी पूर्णतः सरकारी काम-काज की भाषा का सम्मान न पा सकी।
महात्मा गाँधी ने कहा था कि, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।"
इतिहास गवाह है कि, हमारे कई मुस्लिम शासकों ने हिन्दी को अपने कामकाज की भाषा माना था। मौहम्द गौरी ने अपने राजकीय काम-काज को देवनागिरी तथा हिन्दी में संपादित करने के आदेश दिये थे। उसने सिक्कों पर देवानागीरि में 'श्री हम्मी तथा मेहमूद साँब' अंकित करवाया था। शेरशाँह सूरी ने भी अपने शासन काल में सिक्कों पर देवनागिरी में 'श्री हम्पी तथा ऊँ' अंकित करवाया था। उनके शासन काल में परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से शासन का कार्य हिन्दी में किया जाता था। 18वीं शताब्दी में पेशवा, सिंधिया और होलकर जैसे मराठी राजघरानो में हिन्दी में ही कामकाज होता था। अनेक संतो जैसे नामदेव, चैतन्य महा प्रभु, गुरु नानक ने अपने उपदेश हिन्दी में दिये थे क्योकि हिन्दी जन-साधारण की भाषा थी। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, हिन्दी भाषा प्राचीन काल से सभी प्रान्तों को एक दूसरे से जोङे हुए है। आजादी का संदेश लिये हिन्दी भाषा ने सभी देशभक्तों को एक सूत्र में बाँधा था।
दयानंद सरस्वती ने कहा था कि, "हिन्दी ही राष्ट्रीय एकता को शास्वत और अक्षुणं बना सकती है।"
एक सर्वे के अनुसार 24 प्रतिशत साक्षर लोगों में से केवल दो प्रतिशत ही लोग अंग्रेजी जानते हैं क्योंकि अंग्रेजी में नरेशन की दिक्कत है जबकि हिन्दी नरेशन की बला से मुक्त है। हमारी हिन्दी भाषा में बङों का सम्मान लिए 'आप' जैसे शब्द है, जबकि अंग्रेजी ने तो सभी को एक ही शब्द 'यू' (You) के साँचे में कैद कर दिया है। समय के बंधनो से मुक्त हिन्दी भाषा में हमारी अभिवादन शैली, प्रणाम और नमस्कार नम्रता का प्रतीक है। हिन्दी समृद्ध और सर्वग्राही भाषा है।
आचार्य केशवचन्द्र सेन के अनुसार, "भारत जैसे देश में जहाँ अनेक बोलियां बोली जाती हैं वहाँ हिन्दी ही सम्पर्क, सर्वसुलभ ओर सार्वभौमिक भाषा सिद्ध होती है। ये राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।"
आजादी से पूर्व हम सब एक भाषा हिन्दी के साथ, एक उद्देश्य के लिए अंग्रेजों के खिलाफ थे, परंतु आज के परिवेश में कुछ राजनैतिक गतिविधियों ने भारत को अनेक राज्यों में बाँट दिया है, वहाँ की क्षेत्रिय भाषाएं अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने लगी हैं। आज जिसे देखो वो अपने को पहले पंजाबी, बंगाली, मराठी, कन्नण, मद्रासी आदि कहते हुए मिल जायेगा, बहुत कम ही लोग स्वंय को भारतवासी या हिन्दुस्तानी कहते हुए मिलते हैं। भाषाई विवाद का ही परिणाम है, अनेक राज्यों का स्वतंत्र उदय।मित्रों, भाषा पर कुठाराघात किसी भी राष्ट्र के लिए हितकर नही होता और राष्ट्र से बढकर किसी भी भाषा का कोई स्वाभीमान नहीं होता।
भारत जैसे विविधता वाले देश में जहाँ के लिए कहा जाता है कि चार कोस पर भाषा बदले छः कोस पर पानी, वहाँ सभी को एक सूत्र में बाँधना आसान नही है किन्तु सभी भाषाओं का मिश्रित रूप और संतो की वाणी से अलंकृत संवेधानिक भाषा हिन्दी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाये रखने में सक्षम है क्योंकि हिन्दी भाषा सद्भावना, प्रेम, श्रद्धा तथा अहिंसा, करुणा एवं विश्व मैत्री का प्रतीक है।
वर्तमान में गूगल जैसे सर्चइंजन भी हिन्दी के विकास को समझते हुए अपनी कार्य प्रणाली को हिन्दी में भी उपलब्ध करा रहे हैं। हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने को भी अग्रसर है। अतः मित्रों विश्व स्तर पर अपना वर्चस्व रखने वाली हिन्दी भाषा को हम सब मिलकर वैश्विक मानचित्र पर नम्बर एक पर ले जाने का प्रयास करें और गर्व से हिन्दी भाषा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायें।
कल 14/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत ही सुन्दर अनीता जी
ReplyDeleteबेहद सटीक जानकारियां मिली आपके ब्लॉग पर ...पढकर मन को अच्छा लगा
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग तक भी आईये...अति प्रसन्नता होगी रंगरूट
अद्भुत लेखन
ReplyDeleteWtf
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख है 💐🙏
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख है
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