मित्रों, हम सब मदर्स डे बहुत उत्साह से मनाते हैं, सच कहें तो माँ के सम्मान में एक दिन क्या वर्ष के 365 दिन भी कम हैं।
जो जन्म देती है वो हमारी माँ है, इसके अलावा हम भारतीयों के लिये माँ का स्वरूप लिये गौ माता तथा धरती माता हैं, जिनका हमारे अस्तित्व को कायम रखने में विशेष स्थान है। आदि काल से गाय को माता के समान माना जाता है। यदि किसी कारण वश बच्चे को माँ का दूध नही मिल पाता तो नवजात शिशु को गौ माता का ही दूध दिया जाता है। गौ माता, पृथ्वी, प्रकृति तथा परमात्मा का स्वरूप है। भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति सुजाता द्वारा प्रदत्त गौ दूध की खीर से हुई थी। बाईबिल एवं कुरान में भी गौ माता की महिमा का उल्लेख है। वैज्ञानिकों ने जिस प्रकार विज्ञान का विकास किया उसी प्रकार आध्यात्मिक मनिषियों ने गौ विज्ञान का आविष्कार किया। गाय के दूध से समस्त समाज को शक्ति, बल एवं सात्विक बुद्धी प्राप्त होती है। गाय का गोबर एवं मूत्र खेती के लिये पोषण का कार्य करते हैं। एक सर्वे के अनुसार जापान जैसे आधुनिक टैक्नोलॉजी वाले देश में गाय के गोबर से बनी खाद को सबसे अच्छी खाद मानते हैं। गाय धरती पर एक मात्र प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहंण करती है और ऑक्सीजन छोङती भी है। वो प्रकृति से 21% ऑक्सीजन लेती है और 5% लेकर 16% प्रकृति को वापस कर देती है। गाँव प्रधान एवं कृषी प्रधान देश भारत में गौ माता का कोई विकल्प नही है , फिर भी आज हम अपनी संस्कृति, गौ माता को अनदेखा कर रहे हैं। प्लास्टिक की थैलियों के रूप में उसे खाने को जहर दे रहे हैं। आज कई गौ माता की मृत्यु प्लास्टिक की थैलियां खाने से हो रही है, जिसे हम सभी जाने अंजाने में उसे दे रहे हैं। मानव संस्कृति की समृद्धि गाय की समृद्धि से जुङी हुई है। अतः हमें अपनी गौ माता को यत्र-तत्र बिखरी प्लास्टिक की थैलियों से बचाना होगा। यदि हम देश का विकास चाहते हैंं तो हमें हर हाल में गौ माता की रक्षा करनी होगी।
हम सबकी एक और माँ है वो है धरती माँ, जिसकी वजह से हम सबको रहने के लिये घर और जिवित रहने के लिये भोजन प्राप्त होता है। धरती पर ही अनाज, फल, फूल, साग सब्जियाँ इत्यादी उगते हैं जिससे सभी सजीव जगत का पालन पोषण होता है। पुराणों के अनुसार धरती को सदैव माता माना गया है और यहाँ तक की धरती पर पैर रखना भी पुराणों में पाप मान जाता है लेकिन धरती पर पैर रखे बिना व्यक्ति कोई कार्य नही कर सकता इसलिये सुबह-सुबह धरती पर पैर रखने से पहले क्षमा-याचना हेतु पुराणों में एक श्लोक दिया गया है,
समुंद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
अर्थात समुद्र रूपी वस्त्र पहनने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी, हे माता पृथ्वी, आप मुझे पाद (पांव) स्पर्श के लिए क्षमा करें।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, ये श्लोक तो बहुत कम ही लोग अपने दैनिक जीवन में पढते होंगे। बरहाल धरती माता को आज सबसे बङा खतरा ग्लोबल वार्मिंग से है और रही सही कसर भू माफिया के आतंक से है। रत्नगर्भा, वसुंधरा को इस धरती के उन लोगों से सबसे ज्यादा खतरा है जो हरी भरी धरा को कंक्रीट के जंगलो में बदल रहे हैं। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है, किन्तु मित्रों, सिर्फ एक दिन की जागरुकता से हम अपनी धरती माता की मुस्कान वापस नही कर सकते। इसके लिये हमें हर पल प्रयास करना होगा नये पेङ पौधों से धरती माँ की हरियाली को वापस लाना होगा।
मित्रों, गौ माता और धरती माता एक दूसरे की पूरक हैं। पुराणों और शास्त्रों में भी गौ माता को धरती माता का जीवन्त रूप माना गया है। इन दोनों का ही हम सबके जीवन में उतना ही महत्व है जितना की हमारी जन्मदात्री माँ का। अतः आज हम सब ये संकल्प करें कि, गौ माता तथा धरती माता की हर संभव रक्षा करेंगे।
धन्यवाद
अनिता शर्मा