Saturday, 2 May 2015

निःस्वार्थ सहयोग से जिंदगी को रौशन करें


मित्रों, अरबों की आबादी वाले देश में आज विकास की गति भी अपनी आधुनिक तकनीक से दिन प्रतिदिन बढ रही है और जनसंख्या की बात करें तो अपना देश भारत, विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। विकास की इस चाल में कहीं कुछ पिछङता हुआ भी नजर आ रहा है। जगजीत सिंह की गजल पर गौर करें तो, "हर जगह हर तरफ बेशुमार आदमी फिर भी तनहांईयों का शिकार आदमी"  ये पंक्ति आज की सच्चाई बयां करती है। आज हम तरक्की की इबारत लिख रहे हैं और जिंदगी के सफर में हर दिन  इंसानो की भीङ से दो चार हो रहें हैं और इस भीङ भरी आँधी में इंसानियत के अपनेपन को तङपते हुए भी देख रहे हैं।  हमारी भारतीय संस्कृति की धरोहर सहयोग की भावना, विकास की इस आँधी में दूर होती नजर आ रही है। हम ये नही कह सकते कि सहयोग की भावना खत्म ही हो गई क्योंकि आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने दर्द को भूलकर दूसरों के जीवन को खुशहाल करने का भाव रखते हैं और हर संभव प्रयास भी करते हैं। जैसा कि, आप सभी पाठकों को पता होगा कि मई-जून में भारत के लगभग सभी राज्यों में परिक्षा का मौसम होता है और हर कोई अच्छे नम्बर लाने की कोशिश करता है ताकि अच्छे नम्बरों वाली डिग्री से अच्छी नौकरी मिले तथा जीवन सुखमय हो जाये। करोणों की संख्या वाले विद्यार्थियों के बीच कुछ हजारों की संख्या में ऐसे भी विद्यार्थी हैं जो वर्षभर मेहनत से पढते हैं लेकिन समाज और सरकार की उदासीनता की वजह से परिक्षा नही दे पाते क्योंकि वो देख नही सकते उनको परिक्षा में सहलेखक की आवश्यकता होती है, परंतु ऐसे जरूरत के समय पर हममें में से कई लोगों के पास  दूसरों के लिये वक्त नही होता। ऐसे में  हाल ही में गुजरात की एक घटना  आप सबसे शेयर करना चाहेंगे। वहाँ महाविद्यालय की परिक्षा चल रही है। अहमदाबाद में सामान्य विद्यार्थियों के बीच कुछ दृष्टीबाधित बच्चे भी अपने सपनो को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में अंध कल्यांण केन्द्र की दृष्टिबाधित बालिका हेतल को भी B.A. II year की परिक्षा देनी थी लेकिन उसे कोई राइटर नही मिला तो उसके ही संस्था की अल्पदृष्टीबाधित बालिका प्रियंका उसका पेपर लिखने को तैयार हो गई हालांकी प्रियंका के लिये ये आसान नही है क्योंकि अल्पदृष्टी के साथ कॉलेज के पेपर को लिखना किसी साहस से कम नही है। फिर भी प्रियंका अपनी दोस्त हेतल का पेपर देने में पुरा सहयोग दे रही है क्योंकि वह अपनी दोस्त हेतल के सपनों को साकार करना चाहती है। ऐसे में उसे अपनी परेशानी बहुत छोटी नजर आ रही है। प्रियंका जैसे और भी कई लोगों से मेरा सामना हुआ जो अपनी तकलीफ को दरकिनार करते हुए दूसरों की मदद के लिये सदैव तत्पर  रहते हैं। इंदौर में एक बालिका वर्षा, पोलियो  से ग्रस्त है फिर भी उसने अपनी पढाई अच्छे से पूरी की और ट्राईसिकल पर रोज दृष्टीबाधित बालिकाओं की मदद करने जाती थी। ऐसा ही एक वाक्या और है जब हम इंदौर में राइटर के लिये समाचार पत्र में अनुरोध किये तो देवास से एक विकलांग बालक विनय ने हमें फोन किया कि हम परिक्षा देने को तैयार हैं। मित्रों, ऐसे लोगों के जज़बों को हम और हमारा वाइस फॉर ब्लाइंड क्लब सलाम करता है। हालांकी समाचार पत्र में दिये इश्तेहार से कई दृष्टीसक्षम लोग भी सहायता के लिये आगे आये और उन लोगों ने सहयोग भी दिया और दे भी रहे हैं किन्तु जितनी आवश्यकता है राइटर की उतनी पूर्ती नही हो रही है तभी तो हमारे देश में हेतल जैसी छात्राओं या छात्रों को राइटर का अभाव आज भी सहना पङ रहा है। एक कहावत है जाके पङे न पैर बवाई वो क्या जाने पीर पराई। दोस्तों, इस कहावत को झुटला दिजीये और जिंदगी की तेज रफ्तार में अपने मन में उन लोगों के दर्द का एहसास महसूस किजीये जिन्हे आपकी जरूरत है। आइये हम सब मिलकर निःस्वार्थ भाव से भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित करें और अपने सहयोग से हजारों दृष्टीबाधित लोगों की जिंदगियों को रौशन करें। आपका सकारात्मक सहयोग किसी के सपने को साकार कर सकता है।  
धन्यवाद

एक अनुरोधः- आप में से जो भी पाठक दृष्टीबाधित लोगों की मदद करना चाहते हैं,  वो ब्लॉग में अटैच फार्म को भरकर अपने सहयोग का क्षेत्र बतायें। 





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