Sunday, 13 September 2015

भारत माता के भाल की बिन्दी है हिन्दी

मित्रों, ये बहुत खुशी की बात है कि दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत के ह्द्रय कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सम्पन्न हुआ। मेरा प्रश्न ये है कि क्या हम एक दिन या दिवस मनाकर हिन्दी को विश्व भाषा बना सकते हैं?

जबकी हिन्दी भारत माता के भाल की बिन्दी है, भारत के दिल की धङकन है हिन्दी। 

अतः मित्रों हमें ये प्रण करते हुए कि हिंदी को विश्व की सबसे प्रमुख भाषा बनायेंगे । इसके लिये हर पल हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनायेंगे। 


एक अपील, हिंदी को लेकर जो मेरे विचार हैं वो पूर्व के लेख में अवश्य पढें। 



Wednesday, 9 September 2015

ए.पी.जे.कलाम और ह्वीलर द्वीप



मित्रों, अभी हाल में ही उड़ीसा सरकार ने ह्वीलर द्वीप का नाम हम सबके प्रिय अब्दुल कलाम साहब के नाम कर दिया है। उनके सम्मान में ये कदम बहुत प्रशंसनिय है। ह्वीलर द्वीप से कलाम साहब का क्या नाता रहा है?  इसके बारे में आप सबसे कलाम साहब के संस्मरण को साझां करना चाहेंगे, जो उन्होने अपनी पुस्तक टर्निंग प्वाइंट में उल्लेखित किया है। 

मिसाइल मैन अब्दुल कलाम साहब अपनी पुस्तक में  जिक्र करते हैं कि, 'ये उन दिनों की बात है जब पृथ्वी मिसाइल का सफल परिक्षण हुआ था।इसी के साथ सेना की एक और जरूरत सामने आई जिसमें उन्हे जमीनी क्षेत्र के लिये एक आधुनिक यंत्र की आवश्यकता थी। जिसके लिये हम लोग जिस मरुस्थली क्षेत्र में अपने परिक्षण कर रहे थे, वह सुरक्षा व अन्य कारणों से उपयुक्त नही था। हमें अपने इस काम के लिये पूर्वी तटिय क्षेत्र के किसी निर्जन द्वीप की जरूरत थी।


भू जलीय नक्शे में हमें उड़ीसा तट पर कुछ निर्जन द्वीप नजर आये। वहाँ भू भागों की सम्भावना थी। हम अपनी टीम जिसमें  डॉ़ एस.के.सलवन तथा डॉ. वी.के. सारस्वत शामिल थे। धमरा से एक नौका किराये पर ली गई और हम सब द्वीप की तलाश में निकल पड़े। नक्शे पर इन द्वीपों के संकेत 'लौंग ह्वीलर', 'कोकोनट ह्विलर' और 'स्मॉल ह्विलर' के नाम से लिखे हुए थे। टीम ने एक कमपास( दिशासूचक यंत्र) लिया और यात्रा पर निकल पड़े। टीम रास्ता भटक गई उसे ह्वीलर द्वीप नही मिला लेकिन सौभाग्य से , उन्हे कुछ मछुआरे अपनी नौकाओं में दिखे। उनसे रास्ता पूछा गया। उन मछुआरों को ह्वीलर द्वीप का  तो पता नही था लेकिन उन्होने चन्द्रचूड़ नाम के एक द्वीप का जिक्र किया। मछुआरों ने सोचा कि ये लोग इसी द्वीप का पता पूछ रहे हैं। उन्होने चंद्रचूड़ द्वीप का पता बता दिया। उनके बताये हुए  रास्ते से टीम चंद्रचूड़ पहुंची और बाद में पता चला कि वही स्मॉल द्वीप है और वहाँ हमारी जरूरत भर जगह पर्याप्त है।

उस द्वीप को पाने के लिये हमें उड़िसा नौकरशाही का सामना करना पड़ा। यह जरूरी हुआ कि इसके लिये उड़िसा के तत्कालीन (1993) मुख्यमंत्री से राजनितिक निर्णय पाया जाये। उस समय शक्ति सम्पन्न नेता बीजू पटनायक मुख्यमंत्री थे। उनके कार्यालय से संकेत मिल रहा था कि वह द्वीप किन्ही कारणों से उपलब्ध नही हो पायेगा। खैर हमारी विनय स्वरूप हमें बीजू पटनायक से भेंट करने का अवसर मिला। जब हम उनके कार्यालय में पहुँचे तो फाइल उनके सामने रखी हुई थी। उन्होने कहा, 'कलाम, मैने ये पाँचो द्वीप डी.आर.डी.ओ. को बिना किसी किमत के देने का फैसला लिया है, लेकिन मैं इस फाइल पर अपनी स्वकृति हस्ताक्षर तभी करुंगा जब तुम्हारी ओर से  एक वादा किया जायेगा। उन्होने मेरा हाँथ अपने हाँथ में थाम कर कहा, ' तुम्हे एक मिसाइल ऐसी बनानी पड़ेगी जो दूर के दुश्मनों से भी हमारी रक्षा कर सके'। मैने कहा, 'सर, हम जरूर इसपर काम करेंगे। मैने तुरंत रक्षा मंत्री को सूचना दी। मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होने के बाद हमें स्मॉल द्वीप मिल गया।
  
पाठकों इस प्रकार कलाम साहब के अनुरोध पर ये द्वीप डी.आर.डी.ओ. को रॉकेट प्रक्षेपण के लिये उपलब्ध हो सका। उनके महत्वपूर्ण प्रयासों से आज ये द्वीप विश्व के महान प्रक्षेपात्रों में शामिल है।

2 दिसंबर 2014 को परमाणु सक्षम अग्नी IV मिसाइल का परिक्षण उङीसा के ह्वीलर द्वीप के एकीकृत परिक्षंण रेंज से किया गया था। नि:संदेह ह्विलर द्वीप का नाम 'कलाम द्वीप' हो जाने से देश के युवाओं और वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिलेगी। 

प्रिय पाठकों, अब्दुल्ल कलाम साहब   के सफर से जुड़े कुछ और संस्मरण आप सबसे इस महिने हर हफ्ते सांझा करेंगे। 

धन्यवाद

Tuesday, 1 September 2015

जिन्दगी की राह को आंतरिक ऊर्जा से रौशन करें।


मित्रों, हम सबके भीतर अजस्र ऊर्जा शक्ति छिपी पङी है जिसे न तो हम 
पहचान पाते हैं और ना ही उसका समुचित उपयोग कर पाते हैं। जिस तरह से एक छोटे से बीज में एक बङा वृक्ष बनने की हर क्षमता होती है लेकिन कई बार सही पोषण न मिलने से वो अपने प्रारंभकाल में ही दम तोङ देता है। उसी तरह मनुष्य में भी अपार संभावनाये हैं जो कुछ तो वातारण के कारण पल्लवित नही हो पाती, तो कुछ उसके स्वयं के आलसी व्यवहार के कारण। अक्सर ये भी देखा जाता है कि अपार ऊर्जा के बावजूद कई लोग असफलता के डर से आगे बढने की हिम्मत नही करते। दर असल कमी संसार में नही है कमी तो हमारे मन में है। यदि हम चाहें तो बिगङे काम भी बना सकते हैं।

मित्रों, बात सिर्फ कैरियर की नही है। हम जिस समाज में रहते हैं वहाँ नाना प्रकार के रिश्ते और अभिलाषायें भी विद्यमान हैं। जिनमें कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक परिवेश की रचना करती हैं। ऐसे में कई बार हम लोग रिश्ते निभाने में भी अपनी अच्छाईयों और अपनी सकारात्मक निःश्चल भावनाओं का आकलन सही तरीके से नही करते।यदि किसी ने कहा कि आप गलत हो तो उसे ही आधार मानकर खुद को कोसने लगते हैं कि, हम तो रिश्ता निभा नही सकते। जबकि ये बहुत बङा सच होता है कि, आपके प्रति लोगों का आकलन  उनके नजरिये से होता है न की आपके नजरिये से, फिर भी नकारात्मक वातावरण  हमारी शुद्ध भावनाओं को आघात कर देते हैं। 

ऐसे में हमें हमारी शुद्ध भावनात्मक ऊर्जा पर विश्वास होना चाहिए। बाहर से दिखने में सभी मनुष्य एक समान दिखते हैं परंतु हर किसी में कोई न कोई न्यूक्लियर शक्ती छुपी हुई है जो सृजन भी कर सकती है और विध्वंस भी कर सकती है। ये तो उसके उपयोग पर निर्भर है। आज विडंबना है ये कि हम अपनी क्षमता को अन्य से कम आंकते हैं और सफलता अर्जित करने वालों को भाग्यशाली कहकर अपने मन को  भी प्रताङित करते हैं। सच तो ये है कि, जिनके दिल में कुछ कर गुजरने के अरमान हैं वो बङे कारनामें कर सकते हैं, फिर चाहे रिश्तों का ताना-बाना हो या कैरियर की ऊँचाइयां सभी में सफल हो सकते हैं। 


स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि,  ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। 

छोटे से परमाणु में भी अजस्र शक्ति छुपी होती है। जीवन के हर क्षेत्र में अपनी क्षमता को पहचानते हुए आगे बढने में ही सच्ची सफलता है। अतः मित्रों, अपने अन्दर की शक्ति पर विश्वास करते हुए निडर होकर जिन्दगी की राह को आंतरिक ऊर्जा से रौशन करें।