Monday, 30 November 2015

समाज और सहयोग की भावना को सलाम

मित्रों, दृष्टीबाधित लोगों की सहायता हेतु आपकी भावना का स्वागत करते हैं। आशा करते हैं कि,  वर्तमान में सम्मलित  सभी सदस्य ये पढ चुके होंगे कि,  दृष्टीबाधितों  की सहायता कैसे करनी है।बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना, भारत की आवो हवा में है। फिल्मों ने भी अपनी भूमिका में मिलजुल कर कार्य करना तथा समाज के लिये कार्य करने की प्रवृत्ति को बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया है। नया दौर का प्रसिद्ध गाना "साथी हाँथ बढाना एक अकेला थक जायेगा मिलकर बोझ उठाना"  लगभग हम सभी की जुबान पर है। 

अक्सर हम सबने महसूस किया होगा कि परिवार में जो बच्चा सबसे कमजोर होता है माँ का उस पर विशेष स्नेह होता है। ऐसे ही स्नेह की अपेक्षा हमारे दृष्टीबाधित साथी भी चाहते हैं, जहाँ उन्हे दया नही बल्की आगे बढने के लिये सहयोग का हाँथ चाहिये।

आज सरकार द्वारा अनेक सुविधायें देने की बात कही जाती है, किन्तु ये सुविधायें और योजनायें सिर्फ मंत्रालय की फाइलों मे ही सिमट कर रह गईं हैं तथा चंद शहरों या चंद संस्थानों की ही अमानत है। आज भी अनेक शहरों में दृष्टीबाधित बच्चे उन योजनाओं से वंचित है, जैसे कि परिक्षा के समय सहलेखक को दिया जाने वाला भत्ता हो या रेर्काडिंग की सुविधा। सबसे बड़ी विडंबना है कि, सरकार द्वारा पारित योजनाओं को सरकार के ही अधिनस्त कर्मचारी नही मानते और अपने मन की करते हैं। जिसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ता है जिनकी कोई गलती नही है। दृष्टीबाधिता हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता, सरकार तथा समाज की उदासीनता की बली चढ जाती है।

कहते हैं सिक्के के हमेशा दो पहलु होते हैं , सिक्के  के दूसरे पहलू में सहयोग का भाव लिये आप सब नये सदस्यों  की सामाजिक चेतना से दृिष्टीबाधित बच्चों को सकारात्मक  दिशा मिलेगी। नव जागरुक सदस्यों से कुछ आवश्यक बातें कहना चाहेंगे। मित्रों, स्पष्ट किये गये सभी कार्य अपना एक विशेष महत्व रखते हैं, परंतु दो कार्य अति महत्वपूर्ण है। 

1- सहलेखन (scribe) या कहें राइटर और पाठ्य पुस्तक (study materials) की रेर्काडिंग (recording) विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि मित्रों ये कार्य समय सीमा में करना होता है तथा इस पर दृष्टीबाधित बच्चों का भविष्य निर्भर है। जो पुस्तकें record के लिये आती हैं उसे लगभग एक महिने में रेकार्ड करके वापस करना होता है ताकि परिक्षा के एक महिने पहले उनको पाठ्य सामग्री ऑडियो (audio) में मिल जाये, जिसे  सुनकर वे याद कर सकें और परिक्षा में अपना अच्छा प्रदर्शन कर सकें।

2- दूसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है परिक्षा के समय सहलेखकों की, उनको परिक्षा की समय सारिणी के अनुसार परिक्षा स्थल पर पहुँचना। 

हमें विश्वास है कि जो भी सदस्य इन दो अति महत्व पूर्ण कार्य के लिये उत्सुक हैं वो अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभायेंगे।  Recording के इच्छुक सदस्य अपनी आवाज की एक ऑडियो क्लिप हमें मेल करें।
यदि आपके मन में कोई भी अन्य जिज्ञास (query) है तो, आप हमें मेल कर सकते हैं। पुनः आपके सहयोग की जागरुकता को सलाम करते हैं। निःसंदेह हम सब मिलकर दृष्टीबाधित लोगों के जीवन को अवश्य रौशन करेंगे।  

जय शंकर प्रसाद जी कहते हैं कि,
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत करलो
सबको सुखी बनाओ 

Mail ID:-  voiceforblind@gmail.com
                    

Thursday, 19 November 2015

हजार परेशानियों का हल, खुश रहना


दोस्तों, जीवन है तो उसमें सभी तरह के रंग-रूप रहेंगे। इस धरती पर कोई भी ऐसा नही है, जिसे कभी किसी परेशानी का सामना न करना पड़ा हो। जीवन में सब परफैक्ट हो ऐसा कम ही होता है।  सुख दुःख , हानि-लाभ, सफलता-असफलता तो रात दिन की तरह हम सबके साथ चलती है। ऐसे में स्वंय को संतुलित रखते हुए, हर परिस्थिती में खुश रहते हुए  दूसरे लोगों को भी खुश रखने का प्रयास करना चाहिये। ये विश्वास रखे मन में कि हर रात के बाद सुबह होती है। जीवन में जब सब कुछ अच्छा होगा तभी हम खुश होंगे, ये विचार मन से निकाल देना चाहिये।

मित्रों,सब कुछ हमारे अनुकूल हो ये संभव नही है। जब हम किसी भी क्षेत्र में कोई भी काम शुरू करते हैं तो, अड़चने भी आती हैं और कार्य गलत भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में तनाव, दुःख और निराशा की चादर ओढ लेने से कभी भी समस्या का समाधान नही होता। कहते हैं भूल इंसान से ही होती है, अतः ऐसी परिस्थिति में जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को समेट कर खुशनुमा  माहौल में असफलता के कारणों को समझते हुए उसके निदान पर विचार करना चाहिये। जीवन में मौके बहुत आते हैं। यदि भूलवश कुछ मौके हाँथ से निकल जाये या गलती हो जाये तो,  पछताने के बजाय या अवसाद में जाने के बजाय, दूसरे मौके को सकारात्मक खुशी के साथ संभव करने का प्रयास करना चाहिये। 

जिन्दगी में उतार चढाव तो लगे रहते हैं ई सी जी में भी  सांसों की रफ्तार ऊपर-नीचे आती जाती नजर आती हैं। यदि सांसो की गति सपाट हो जाये तो ये मृत्यु का ही संकेत देती है। दोस्तो , जीन्दगी में मुश्किलें तो तमाम है और जीना भी हर हाल में है, तो मुस्करा कर जीने में क्या नुकासान है। सच तो ये है दोस्तों कि, खुश रहने का मतलब ये नही है कि सब ठीक है बल्की ये व्यवहार, ये दर्शाता है कि आपने जीवन जीना सीख लिया।

मित्रों, हम सबको खिला हुआ मुस्कुराता हुआ फूल ही अच्छा लगता है।मुरझाये फूल की तरफ कोई नही देखता, तो फिर तनाव और दुःखनुमा चेहरा लेकर हम कैसे सफल हो सकते हैं क्योंकि तनाव और दुःखी चेहरों को सिर्फ हमदर्दी मिलती है, सार्थक सहयोग नही। खुशनुमा चेहरा तो उस फूल की तरह होता है जिससे सब प्रभावित होते हैं और परेशानियों को दूर करने में हर संभव मदद करते हैं। जीवन की परेशानियां और असफलतायें तो हवा की आँधियाँ हैं जो वक्त के साथ चली जाती है। खुशियों का भाव तो ताजी हवा का झोंका है जो हर पल को खुशनुमा बनाता है। जब तक आप खुद नहीं चाहें खुशियां कभी खत्म नही होती। तो दोस्तों जीवन की छोटी छोटी खुशियों को समेटते हुए बड़ी से बड़ी परेशानियों का हल ढूंढे। मदर टेरेसा कहती हैं कि, सफलता और शांति की शुरुआत मुस्कान से होती है।

आपने जो चाहा वो आपको मिल गया, ये तो है सफलता।  लेकिन आपको जो मिला उसे चाहना ही सच्ची खुशनुमा सफलता है। जब एक हल्की सी मुस्कान से फोटो अच्छी हो सकती है ,तो जिंदगी क्यों नही! सुंदरता का सबसे अच्छा आभूषण है, आपकी मुस्कान। हजार परेशानियों का हल है, खुशनुमा व्यवहार। हम सब वास्तविकता में हमेंशा अपने दुःख को ही गिनते हैं, इसके बजाय यदि हम अपनी खुशियों को गिने तो पायेंगे कि, कुदरत ने हमें कितनी ज्यादा खुशियाँ दे रखी हैं। खुशी सब दवाओं में सर्वोत्तम दवा है। इसलिये खुश रहें और खुशियाँ बांटे। 





Monday, 9 November 2015

भारतीय संस्कृति का प्रतीक है; दिपक


भारतीय संस्कृति में दिपक का विशेष महत्व है। भारत के जन-मन में बसे पर्व दीपावली पर तो दिपों का विशेष महत्व हो जाता है। दिपों की अंनत माला के  प्रकाश से  मानव जीवन के संघर्ष, निराशा एवं कुंठा के मध्य आशा की नई ऊर्जा का संचार होता है। दिपक की तुलना तो गुरु से भी की गई है क्योंकि अज्ञान रूपी तिमिर को गुरु समान दिपक, अपने प्रकाश से रौशन करता है। आदिमानव के आग के आविष्कार के बाद से समस्त मानव जाति ने दिपक को तम से प्रकाश का वाहक स्वीकार किया है। सुख सौभाग्य के प्रतीक के रूप में  सभी धार्मिक अनुष्ठानों में  दिपक की ज्योति सर्वप्रथम प्रज्वलित की जाती है ।


दिपों का महत्व तो संगीत, कला एवं साहित्य में भी जिवंत है। राग दिपक हो या रागमाल चित्र हर जगह दिपक की ज्योति विद्यमान है। साहित्यकारों की रचनाओं में दिपक, एक प्रिय उपमान के रूप में प्रज्वलित है।

मैथली शरण गुप्त के अनुसार, दिपक श्रमिकों के तप का फल है. पुनित आँचल का प्रतीक है।जयशंकर प्रसाद जी तो, जीवन की गोधली में , कितनी निर्जन रजनी में , तारों के दिप जलाएं कहकर प्रिय के आगमन की प्रतिक्षा करते हैं। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और कवी अटल बिहारी वाजपेयी ने तो देशहित में कहा कि, "आओ फिर से दीप जलाएँ , अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधिची की हड्डियाँ गलाएँ. आओ फिर दीप जलाएँ।" यथार्त में दिपों की सार्थकता अप्रतिम है। प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही रूप में, यही कारण है कि एक नन्हा ज्योर्तिमय दीप देह शांति के पश्चात भी निरंतर जल कर देह का पंचतत्व में विलिन होने का विश्वास दिलाता है।

मित्रों , इस दिपावली पर हम सब मिलकर जाँति-पाँति के बंधन से मुक्त होकर भाईचारे की बाती से मानवता का दीपक जलायें। महापुराण एवं वेदवाणी से "तमसो मा ज्योतिर्गमय" का आह्वान करें। रिश्तों में मधुरता और विश्वास से भरे दिपक को प्रज्वलित करें । भारतीय संस्कृति के प्रतीक रूपी दिपक के प्रकाश से  "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वेसंतु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु माँ कश्चित् दुःख भाग् भवेत् " जैसी भावना  को आलोकित करें।
         सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामना

Thursday, 5 November 2015

इंसानियत को सलाम



मित्रों, आप सभी पाठकों को हार्दिक धन्यवाद। जैसा कि आप में से कई लोगों को पता है कि एक्सीडेंट की वजह से हम ब्लॉग पर पिछले महिने लिखने में असमर्थ रहे। कई पाठकों ने मुझे मेल करके मेरे स्वस्थ होने की शुभकामना दी। आप सबकी शुभकामनाएं और हम जिन बच्चों के लिये कार्य कर रहे हैं उनका प्यार तथा प्रार्थनाओं के बल पर हम स्वास्थ लाभ की ओर अग्रसर हैं और बहुत जल्दी नई ऊर्जा के साथ पूरी तरह से अपने कार्य क्षेत्र में लौट आयेंगे। 

आज हम , आप सबसे इंसानियत के उन हाँथों की बात करेंगे जिनके लिये जाँत-पाँत , धर्म - मजहब या जान पहचान माने नही रखती। हर मुसिबत में सहायता करने को उनके हाँथ तत्पर रहते हैं। बात करते हैं हम अपने एक्सीडेंट की मेरी कार की स्टेरिगं फेल हो गई थी जिससे कार पर कंट्रोल खत्म हो गया और कार सड़क के किनारे 7 फिट गढ्ढे में गिर कर पलट गई,  पलक झपकते ही ये एकसीडेंट हो गया लेकिन पता नही कहाँ से पल भर में कई लोग वहाँ इक्कठे हो गये हम लोगों को कार में से निकालने के लिये। ये वो लोग थे जिनका मकसद हम लोगों को तुरंत बाहर निकाल कर चिकित्सा कक्ष तक ले जाना था। फिर तो सड़क से गुजरने वाले और भी कई इंसानियत के हाँथ हम लोगों की मदद के लिये आगे आये उनमें सफर को जा रही महिलाओं ने भी हमारी मदद की। हम उन सभी इंसानियत के हाँथ को नतमस्तक धन्यवाद करते हैं जो किसी पहचान के मोहताज नही हैं। उस वक्त हम इस अवस्था में नही थे कि उन लोगों को धन्यवाद कह सकें किन्तु आज हम अपने ब्लॉग के माध्यम से तहे दिल से उन सबका शुक्रिया अदा करते हैं और उन सबकी इंसानियत को हमेशा अपने साथ रखते हुए इंसानियत की इस मशाल को अपने द्वारा भी प्रज्वलित रखेंगे।

मित्रों , अक्सर कुछ लोग कहते हुए मिल जाते हैं कि भारत में इंसानियत नही रह गई किन्तु मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि इंसानियत भारत के रग-रग में आज भी विद्यमान है क्योंकि ये मेरे दूसरे एक्सीडेंट का अनुभव है जो हाई वे पर हुआ जबकी पहला एक्सीडेंट इंदौर जैसे महानगर के बीच हुआ था। वहाँ भी पल भर में इंसानियत के हाँथ सहायता को आगे बढ गये थे, यहाँ तक कि जब तक हमारे घर से कोई आ नही गया वो अस्पताल में ही रहे। कहने का आशय ये है कि शहर हो या गॉव हर जगह मदद करने को लोग तैयार रहते हैं। उनको कोई धन्यवाद कहे या न कहे , पेपर में नाम छपे या न छपे , वे तो इंसानियत के नाते हर पल सेवा को तैयार रहते हैं रक्तदान हो या अन्य मदद की गुहार उनके हाँथ सहयोग के लिये सदैव बढते हैं।
मित्रों, मेरे साथ ही नही बल्की जिन लोगों ने भी ऐसी इंसानी मदद का अनुभव किया है उनसे यही गुहार करते हैं कि इंसानियत की इस श्रृंखला (chain) को और बड़ी तथा मजबूत बनायें। हम अपने इस ब्लॉग के माध्यम से , जाने अन्जाने इंसानियत के हाँथों को पुनः सलाम करते हैं. ये प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हम सबको सच्चा इंसान बनने की सनमति दे

I believe that every human  minds feels pleasure in doing good to another. 

इसी के साथ ये अपील भी करना चाहेंगे कि कार में बैठने वाले सभी व्यक्ति को सीट बेल्ट जरूर लगानी चाहिये क्योंकि सीट बेल्ट बाँधने की वजह से हम लोग एक बहुत बङी दुर्घटना से बच गये थे। दो पहिया वाहन पर भी हेलमेट का इस्तमाल जरूर करना चाहिये 
धन्यवाद 

मन्ना  डे के गाये गीत से अपनी बात को विराम देते हैं. " इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा"