मित्रों, दृष्टीबाधित लोगों की सहायता हेतु आपकी भावना का स्वागत करते हैं। आशा करते हैं कि, वर्तमान में सम्मलित सभी सदस्य ये पढ चुके होंगे कि, दृष्टीबाधितों की सहायता कैसे करनी है।बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना, भारत की आवो हवा में है। फिल्मों ने भी अपनी भूमिका में मिलजुल कर कार्य करना तथा समाज के लिये कार्य करने की प्रवृत्ति को बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया है। नया दौर का प्रसिद्ध गाना "साथी हाँथ बढाना एक अकेला थक जायेगा मिलकर बोझ उठाना" लगभग हम सभी की जुबान पर है।
अक्सर हम सबने महसूस किया होगा कि परिवार में जो बच्चा सबसे कमजोर होता है माँ का उस पर विशेष स्नेह होता है। ऐसे ही स्नेह की अपेक्षा हमारे दृष्टीबाधित साथी भी चाहते हैं, जहाँ उन्हे दया नही बल्की आगे बढने के लिये सहयोग का हाँथ चाहिये।
आज सरकार द्वारा अनेक सुविधायें देने की बात कही जाती है, किन्तु ये सुविधायें और योजनायें सिर्फ मंत्रालय की फाइलों मे ही सिमट कर रह गईं हैं तथा चंद शहरों या चंद संस्थानों की ही अमानत है। आज भी अनेक शहरों में दृष्टीबाधित बच्चे उन योजनाओं से वंचित है, जैसे कि परिक्षा के समय सहलेखक को दिया जाने वाला भत्ता हो या रेर्काडिंग की सुविधा। सबसे बड़ी विडंबना है कि, सरकार द्वारा पारित योजनाओं को सरकार के ही अधिनस्त कर्मचारी नही मानते और अपने मन की करते हैं। जिसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ता है जिनकी कोई गलती नही है। दृष्टीबाधिता हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता, सरकार तथा समाज की उदासीनता की बली चढ जाती है।
कहते हैं सिक्के के हमेशा दो पहलु होते हैं , सिक्के के दूसरे पहलू में सहयोग का भाव लिये आप सब नये सदस्यों की सामाजिक चेतना से दृिष्टीबाधित बच्चों को सकारात्मक दिशा मिलेगी। नव जागरुक सदस्यों से कुछ आवश्यक बातें कहना चाहेंगे। मित्रों, स्पष्ट किये गये सभी कार्य अपना एक विशेष महत्व रखते हैं, परंतु दो कार्य अति महत्वपूर्ण है।
1- सहलेखन (scribe) या कहें राइटर और पाठ्य पुस्तक (study materials) की रेर्काडिंग (recording) विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि मित्रों ये कार्य समय सीमा में करना होता है तथा इस पर दृष्टीबाधित बच्चों का भविष्य निर्भर है। जो पुस्तकें record के लिये आती हैं उसे लगभग एक महिने में रेकार्ड करके वापस करना होता है ताकि परिक्षा के एक महिने पहले उनको पाठ्य सामग्री ऑडियो (audio) में मिल जाये, जिसे सुनकर वे याद कर सकें और परिक्षा में अपना अच्छा प्रदर्शन कर सकें।
2- दूसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है परिक्षा के समय सहलेखकों की, उनको परिक्षा की समय सारिणी के अनुसार परिक्षा स्थल पर पहुँचना।
हमें विश्वास है कि जो भी सदस्य इन दो अति महत्व पूर्ण कार्य के लिये उत्सुक हैं वो अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभायेंगे। Recording के इच्छुक सदस्य अपनी आवाज की एक ऑडियो क्लिप हमें मेल करें।
यदि आपके मन में कोई भी अन्य जिज्ञास (query) है तो, आप हमें मेल कर सकते हैं। पुनः आपके सहयोग की जागरुकता को सलाम करते हैं। निःसंदेह हम सब मिलकर दृष्टीबाधित लोगों के जीवन को अवश्य रौशन करेंगे।
जय शंकर प्रसाद जी कहते हैं कि,
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत करलो
सबको सुखी बनाओ
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत करलो
सबको सुखी बनाओ
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