मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखो से कुछ नही होता हौसले से उङान होती है। जी हाँ मित्रों, प्रत्येक मनुष्य अपनी सफलता के लिये बेहतरीन सपने देखता है, सच तो ये है की जीवन में सफलता इन्ही सपनो के आधार पर मिलती है और इससे पहले की सपने सच हों हमें सपने देखना होगा। किसी ने सच कहा है कि अपने सपनो को साकार करने के लिये दृणसंकल्प हो जाओ तो इस दुनिया की कोई भी ताकत उसे पूरा होने से नही रोक सकती।
कई बार सपने जल्दी पूरे नही होते और हम लोग उम्र की दुहाई देकर तथा भाग्य में नही है ये सोचकर अपने सपनो को एक ऐसा सपना समझ लेते हैं जो कभी पूरा नही होता। वास्तविकता तो ये है कि, सपने देखने और सपनो को साकार करने की इच्छा किसी भी उम्र की मोहताज नही होती। ये भी एक सच्चाई है कि हमारे देश में सरकारी नौकरी के लिये आयु सीमा का निर्धारण किया गया है लेकिन इसका मतलब ये तो नही है कि सपनो को पूरा करने के अन्य विकल्प न हो। ऐसा भी नही है कि जो लोग आगे बढना चाहते हैं उनके लिये रास्ते बंद हो गये हों। वर्तमान की यदि बात करें तो भारत सरकार की कई ऐसी योजनाएं हैं, जो हमें अपने सपनो को साकार करने में मददगार हैं क्योंकि नींद नही सपने बदलते हैं, मंजिल नही रास्ते बदलते हैं, जगा लो जीतने का जज़बा , किस्मत की लकीरें बदले या न बदले वक्त जरूर बदलता है।
धीरूभाई अंबानी ने कहा है कि, "जो सपने देखने की हिम्मत रखते हैं वो सारी दुनिया जीत जाते हैं।"
मित्रों, रास्ते तो बहुत हैं, सिर्फ दरकार है जीवन में कुछ कर गुजरने की दृणइच्छाशक्ती की जिसके लिये उम्र बाधा नही है। मन में ठान ले तो जीत है वरना, लक्ष्य के करीब होते हुए भी व्यक्ति निराश हो जाता है। मन की शक्ति को पहचान कर ही लियोनार्डो दि विन्ची ने 51 वर्ष की उम्र में अपनी पेटिंग मोनालिया को बनाया था। जो उनके जीवन की सबसे प्रसिद्ध पेंटिग है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो 90 वर्ष की आयु में तुलसी राम चरित्र मानस लिखी थी। नेल्सन मंडेला का अधिकतम जीवन संघर्ष में बीत गया था। फिर भी वे 75 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति बने।
महात्मा बुद्ध का कहना था कि, "जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसकी जीत को देवता भी हार में नही बदल सकते"।
मनोवैज्ञानिकों का तो कहना है कि.....
जिन लोगों के सपने अधुरे रह गये हों तो उन्हे अपने सपनों को महत्व देना चाहिये। आज तो विज्ञान की इतनी टेक्नोलॉजी आ गई है जिसकी मदद से हम शारीरिक असमर्थता के बावजूद अपने सपनो को पूरा करते हुए कामयाबी का सफर तय कर सकते हैं।विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक और लेखक स्टीफन हॉकिंस को तो आप सब जानते ही होंगे। नब्बे फीसदी विकलांग होने के बावजूद उनकी क्षमता का लोहा पूरी दुनिया मानती है। महान वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हॉकिंग पर 'जितेंद्र' शब्द बिल्कुल सटीक बैठता है। वे एक न ठीक होने वाली बिमारी यानी स्टीफ मोटर न्यूरॉन बिमारी से पीङित हैं। बचपन से होनहार और महत्वाकांक्षी स्टीफन के सपने भी बहुत महत्वाकांक्षी थे, जिसे वे अपनी बिमारी के बावजूद भी खुली आंखों से देख रहे हैं तथा उसे पूरा करने में शिद्दत से लगे हुए हैं। हॉकिंग के जज़बे का आलम ये है कि वे व्हीलचेयर पर बैठे - बैठे अंतरिक्ष विज्ञान की जटिल पहेलियों और रहस्यों को सुलझा रहे हैं। ब्लैक होल को लेकर उनकी थ्योरी बहुत मजेदार है। हॉकिंस खासतौर से कॉसमोलॉजी पर काम कर रहे हैं। जिसके अंतर्गत ब्रह्मांड की उत्पत्ती, संरचना और स्पेस के बारे में अध्ययन किया जाता है।
दोस्तों, जिंदगी को बेहतर बनाने की संभावना हमेशा रहती है। सफलता पाने के लिये हमारी परिस्थिती और बीता हुआ कल कभी भी अवरोध नही बन सकते क्योंकि हर नया दिन हमें नये उजाले के साथ हमें आगे बढने की प्रेरणा देता है। हम सबके प्रिय मिसाइल मैन ए.पी.जे. कलाम साहब कहते हैं कि, सपने देखना कभी न छोङें और सपने वो हों जो आपको नींद न आने दें।
एक प्रसिद्ध दार्शनिक ने कहा है कि, जीवन में कोई व्यक्ति तब तक बुढा नही होता जबतक वह अपने सपने पूरे करने में लगा रहता है। गाँधी जी ने कहा था कि, सपने ऐसे देखो की आप हमेशा जीवित रहोगे। कहते हैं सफलता के सपनो का रुकना मनुष्य को कमजोर एवं असाहय कर देता है इसलिये उम्र का कोई भी दौर क्यों न हो अपने सपनो को कभी भी मरने नही देना चाहिये। इन्हे हमेशा अपनी पॉजीटिव सोच और मजबूत इरादों से सिंचना चाहिये क्योंकि आँखों में सजे सपने ही हम सबकी आशाओं के स्रोत हैं। तो हम सब सपने देखें और अपनी दृण सोच के साथ सपनो को आसमान छुने दें।
हर सपने में चमक होती है,
हर राह एक मंजिल होती है,
रख हौसला कुछ कर दिखाने का,
हर सपने की जीत होती है।