हिन्दी
संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा है। संसार में जितनी भी भाषा बोली जाती है उनकी
अपनी विषेशता होती है एवं अपना साहित्य होता है। संसार में जितनी भी भाषा बोली
जाती है उनके ज्ञान से मानवीय विचारों का आदान प्रदान सरलता से होता है, किन्तु
अपनी भाषा में अपनापन है। इसमें माँ की ममता और सम्बन्धों का माधुर्य होता है
इसिलिये इसे मातृभाषा कहते हैं।
संसार
की उन्नत भाषाओं में से हिन्दी सबसे व्यवस्थित भाषा है। अनेक तुफानों को सहते हुए
आज हिन्दी विश्वभाषा बनने को अग्रसर है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में संदेश
वाहिका के रूप में हिन्दी ने अपनी भूमिका भली-भाँती निभाई थी। आज भी हिन्दी
देशप्रेम का अमूर्त वाहन है।
यदि
प्राचीन इतिहास पर नजर डाले तो उस काल में संसकृत भाषा का वर्चस्व था। किसी कार्य में
सफलता पाने के लिये संर्घष एवं परिश्रम करना पङता है। हमारी हिन्दी भाषा भी अनेक
संघर्षों के बाद इतनी सशक्त हुई है। हिन्दी भाषा का ही असर है कि आज के
कम्प्यूटराइज युग में कम्प्युटर भी हिन्दी जानता है और बोलता भी है, जिस पर कभी पूर्णतः अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व था।
हिन्दी
केवल एक दिवस मनाने की भाषा नही है, अपितु हमारी प्रतिष्ठा की सूचक है क्योंकि हमारे
संतो ने इसे वाणी दी है। उत्तर से दक्षिण तक पूरव से पश्चिम तक भारत के हर प्रांत
के महापुरुषों ने हिन्दी की सरलता एवं सहजता से प्रभावित हो कर अपने प्रवचन हिन्दी
में दिये हैं। दक्षिण
भारत के प्रमुख संत वल्लभाचार्य, विठ्ठल रामानुज तथा रामदेव। महाराष्ट्र के संत
नामदेव, संत ज्ञानेश्वर। गुजरात के नरसी मेहता, राजस्थान के दादू दयाल, पंजाब के
गुरू नानक आदी संतो ने धर्म के प्रचार के लिये हिन्दी भाषा को माध्यम बनाया ।
देश
विदेश में हिन्दी भाषा का परचम फैलाने में एवं जन जन की भाषा बनाने में अपनी
हिन्दी फिल्मो एवं गानो का भी विशेष योगदान है। किसी भी भाषा का ज्ञान गलत नही
होता चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो। तकलीफ तब होती है जब किसी भाषा को अपनी मातृ
भाषा पर थोपा जाता है। मित्रों, एक किस्सा याद आ रहा है---
एक
बार प्रसिद्ध कोशाकार डॉ. रघुवीर, सदन में हिन्दी के महत्व पर बोल रहे थे। उन्होने
कहा कि ‘संस्कृत सभी भाषा की जननी है’। हिन्दी सरलतम भाषा है हमें इसे प्रमुखता
देनी चाहिये और अपनाना चाहिये। तभी दक्षिण के एक सांसद ने टिप्पणी करते हुए कहा कि
अंग्रेजी भी तो भाषा के नाते हिन्दी की बहन यानी मौसी हुई, फिर आप उसके पीछे हाँथ
धोकर क्यों पीछे पङे हैं।
डॉ.
रघुवीर ने शान्त भाव से उत्तर दिया कि, हमारे देश में मौसी बहन की प्रगती में बाधा
नही बनती परन्तु ये विदेशी मौसी बङी बहन के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रही है।
पूरा सदन हँसी से गूँज उठा।
आज
कई राष्ट्र अपनी भाषा को साथ लेकर चल रहे हैं और राष्ट्र की तरक्की का परचम भी
फैला रहे हैं। जैसे- जापान, चीन, अमेरीका, रूस इत्यादि। अपनी
मातृभाषा हमारे जीवन में इस प्रकार घुल जाती है जैसे दूघ में पानी। विदेशी भाषा
मस्तिष्क की वस्तु रह सकती है, परन्तु ह्रदय की भाषा नही हो सकती।
“भारत के भाल पर लिखा आभास है हिन्दी
जन जन के मन में
जागता विश्वास है हिन्दी
वन्दन करें नमन
करें और आरती करें
अपने स्वतंत्र
राष्ट्र का इतिहास है हिन्दी”
Good to see you as blogger.congratulations!
ReplyDeleteI appreciate your efforts in philanthopic work.
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Thanks for appriciating my cause.
DeleteAunty,
ReplyDeleteIt is incredible to see your creative efforts for contributing towards society. We are all proud of your efforts
Anshuman Jaiswal
Thanks a lot.
Deleteबहुत अच्छा लेख | हिंदी हैं हम|
ReplyDeleteThanks for appriciating my article
DeleteSahi kaha aapne- "भारत के भाल पर लिखा आभास है हिन्दी, जन जन के मन में जागता विश्वास है हिन्दी"
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasand aayen- Albert Einstein Quotes , Love Quotes for Him