Sunday 9 June 2013

भ्रष्टाचार की गंगोत्री

सदियों से मानव ऐसे समाज की कल्पना करता रहा है जहाँ कोई अपराध न हो, सभी व्यवस्थाएं आदर्श के अनुरूप सुचारू रूप से चलती रहे। ऐसी कल्पना मन को बहुत सुख देती थीं। किन्तु, आज के महत्वाकांक्षी समाज में आर्दश मूल्य जैसे शब्द केवल किताबों की शोभा ही रह गये हैं। आज के परिवेश में तो भ्रष्टाचार और घोटाले तो गंगा-जमुना में गोते लगाने जैसा हो गया है, जहाँ हर व्यक्ति डुबकी लगाना चाहता है।

आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने ऐसा सिलसिला शुरु किया जो आज सुरसा के मुख से भी बङा हो गया है। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते थे। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार फल फूल रहा है। पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आई हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबर्दस्त हमला शुरू हुआ है। भ्रष्टाचार का वायरस दिन-प्रतिदिन राष्ट्र के अस्तित्व को दिमक की तरह खोखला कर रहा है।
संविधान निर्माताओं ने इस देश के राजनैतिक परिदृश्य को लोकतंत्र का नाम दिया, उन्हे क्या पता था कि बहुत जल्द ही लोकतंत्र, भ्रष्टतंत्र में तबदील हो जायेगा। आज भारत का लगभग सभी खण्ड भ्रष्टाचार की विषैली धुंध में सांस ले रहा है। अस्सी के दशक से पहले तो कुछ एक घोटाले हुए थे किन्तु उसके बाद तो घोटाले रूपी राक्षस ने रक्तबीज राक्षस की तरह इस तरह अपना प्रभाव दिखाया कि एक को खत्म करने पर अनेक राक्षसों का अस्तित्व सामने आ रहा है। आलम ये है कि आज तो घोटाले प्रतियोगिता का अखाङा बन गये हैं। किसका घोटाला कितना अधिक बङा है या शक्तिशाली है ये साबित करने के लिये नित नये रेर्काड बनाये जा रहे हैं। बोफोर्स घोटाला (64 करोड़ रुपए), चारा घोटाला (950 करोड़ रुपए),शेयर बाजार घोटाला (4000 करोड़ रुपए) या आर्दश घोटाला हो या कोयला घोटाला ऐसे सभी नये घोटाले कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं। कहते हैं, ह्रदय में कोई विकार आ जाये तो शरीर के अस्तित्व को खतरा हो जाता है। राजनीति भी हर राष्ट्र का ह्रदय होती है, आज भ्रष्टाचार और घोटालों के वायरस से ग्रसित राजनीति से पूरे देश का ढांचा बिमार हो रहा है। कहते हैं, यथा राजा तथा प्रजा तो जब राजा ही कुशासक हो जाये तो सुशासन तो एक स्वपन ही रह जाता है। आज तो बहती गंगा में सभी अपना हाँथ धो रहे हैं। आई पी एल जैसे खेल भी भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगा कर अपने को धन्य समझ रहे हैं।

मित्रों, विदेषी लुटेरों को तो हम सब मिल कर फिर भी भगा दिये किन्तु उन अपनो का क्या करें जो अपने हित के लिये अपनो का ही गला काट रहे हैं, जरा सोचिए !  

1 comment:

  1. Kushashn ke chalte Bharshtachar ko Badhava mil rahaa hai. Arthat yatha raja tatha Prajaa......Brij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393, 8287882178

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