हम सब सामाजिक प्राणी हैं, जहाँ संबंधो की दुनिया
में कुछ बुरा-भला आचरण स्वाभाविक है क्योंकि गलती करना मानव स्वभाव है। जिस प्रकार
प्रकृति की बगिया में भाँति-भाँति के पुष्प और पौधे हैं उसी प्रकार जीवन की बगिया
भी अनेक प्रकार की सोच और प्रकृति वाले लोगों से सुसज्जित है। कई बार हममें से कई
लोगों का सामना नागफनी जैसे लोगों से भी होता है। वो अपनी सोच के अनुसार हमारा
मुल्याकंन करते हैं जिससे हम विचलित हो जाते हैं। कहने वाला तो कह कर चला जाता है
किन्तु हम हैं कि उसकी बात को दिल से लगा कर स्वयं को तकलीफ देते रहते हैं। ये
जरूरी तो नही कि सबका नजरिया एक जैसा हो। हमें अपने पर विश्वास होना चाहिए तथा
स्वयं को तकलीफ देने के बजाय उसे क्षमा करके उस बात को भूल जाना चाहिए।
ये भी सच है कि माफी या क्षमा भूलने के समान नही
है तथा व्यक्ति कुछ चीजें कभी नही भूलता खासतौर पर जब मन पर या स्वाभिमान पर चोट
लगी हो। परन्तु ये भी सच है कि गलती किससे नही होती अक्सर कहा जाता है कि गलती
करना मानव स्वभाव है और क्षमा करना ईश्वरीय। किसी को क्षमा कर देने से उससे मिले
कष्ट को भूलने में मदद मिलती है। जीवन तो बढने का नाम है ऐसे में यदि हम एक बात को
लेकर बैठ जायेंगे तो आगे कैसे बढेगें। माफी तो एक ऐसी औषधी है जो गहराई तक जाकर
घावों का इलाज करती है। ये उस जहर को खत्म कर देती है जो प्रेम तथा सोहार्द के लिए
घातक है। माफी ऐसी प्रक्रिया है जिससे अपराधी से अधिक पीङित को राहत मिलती है। क्षमा
कर देने वाला व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सेहत का हकदार होता है। जीवन
में सुखमय शान्ति के दो ही तरीके हैं-
1- माफ कर दो उन्हे जिन्हे तुम भूल नही सकते।
2- भूल जाओ उनको जिन्हे तुम माफ नही कर सकते।
चिकित्सकों के अनुसारः- “जो लोग बदले की बजाय
माफी में विश्वास रखते हैं वो आवेश तथा बदले की कल्पनाओं से मुक्त अच्छी नींद लेते
हैं।
“क्रोध तो गर्म कोयले के समान है जिसे पकङ कर हम स्वयं को ही जलाते
हैं। क्षमा करके हम स्व-परिचय, विशिष्टता और वासत्विक स्व को सुरक्षित रखते हैं।
समाज के लिए ही नही बल्कि आपसी रिश्ते में भी क्षमा महत्वपूर्ण आधार है जो रिश्तों
की नींव को मजबूत करती है। दूसरों के लिए क्षमा भाव के साथ खुद को भी माफ करना
आवश्यक पहलु है। जब हम अपनी असफलताओं और गलतियों को मान लेते हैं तो ग्लानी भाव के
बोझ से निकलकर सकारात्मक वातावरण का निर्माण करते हैं तथा अपने आप से प्रेम करने
लगते हैं जिससे जीवन का सफर सुखद हो जाता है।
क्षमा ऐसा मंत्र है जिसका बीज बचपन से ही बोने का
काम करना चाहिए क्योंकि परिवार ही वह पहला स्कूल है जहाँ इसकी शिक्षा दी जा सकती
है। जब माता पिता एक दूसरे को माफ करते हैं तो वो बच्चों को भी वास्तविक जीवन में
क्षमा के महत्व समझाते हैं, यकिनन यही बच्चा आगे चलकर परिवार, समुदाय, समाज और
राष्ट्र में इन मूल्यों को और एकता को बनाये रखने में सफल होता है।
हमारे सभी धर्मों में क्षमा को विषेश स्थान दिया
गया है। ईद हो या होली, सभी लोग गले मिलकर एक दूसरे की गलतियों को माफ कर देते हैं
और स्वस्थ भाई-चारे को बढावा देते हैं। जैन धर्म मानने वाले हर वर्ष सितंबर के
महिने में एक विशेष पर्व मनाते हैं, जिसे क्षमा पर्व कहते हैं। सभी जन एक दूसरे से
जाने अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रर्थना करते हैं। निःसंदेह ये सकारात्मक
प्रक्रिया है जो मानवीय संबंधो में मधुरता का संचार करती है।
शास्त्रों के
अनुसारः-
क्षमावशीकृतिलोर्के
क्षमया किं न साध्यते।
शान्तिखड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः।।
अर्थात- संसार को क्षमा वश में कर लेती है। ऐसा
कौन सा कार्य है जो क्षमा से नही हो सकता जिसके हाँथ में शान्ति रूपी तलवार हो
दुर्जन उसका क्या बिगाङ सकता है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि क्षमा पर्व जैसे
सत्कर्म अगर केवल एक दिन या एक सप्ताह के लिए भी हों तो व्यक्ति का ह्रदय अपने
अपराध भाव के बोझ से थोङा बहुत मुक्त हो जायेगा लेकिन यदि हम क्षमा भाव को अपनी
जीवन शैली बना लें तो हम गुलाब की तरह वातावरण को खुशनुमा बना सकते हैं, जिसका
काँटो के साथ रहते हुए भी महत्वपूर्ण स्थान है। माफी तो वह खुशबू है, जो एक फूल
उन्ही हाँथो में छोङ जाता है, जिन हाँथो ने उसे तोङा होता है।