Monday, 30 December 2013

नवीन विचारों के साथ नववर्ष का अभिनन्दन करें




सामाजिक, राष्ट्रीय, अंर्तराष्ट्रीय तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयामो में उथल-पुथल मचाता हुआ वर्ष 2013 कुछ अच्छी तो कुछ अमानवीय घटनाओं से व्यथित कर गया। सामाजिक दंगे तो कहीं भ्रष्टाचार जैसी आसुरी प्रवृत्तियों ने अनेकता में एकता की नींव को चोट पहुँचाई। तो कहीं आँगन और गलियारे में हँसती खेलती छोटी-छोटी लङकियाँ बलात्कार की शिकार हुई। ये घटनायें सभ्य समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नही हैं।

अमानवीय आँधियों के बावजूद, वर्ष 2013 के कुहांसे एवं तमस् के बीच में कुछ ऐसी सुखद घटनाएं घटी, जो 2014 को सुखद बनाने के लिए एक सुखद प्रयास है। अग्नी 5 का सफलतम परिक्षण, लोकपाल बिल का पारित होना और देश की राजधानी में नई सोच की सुबह के साथ एक अनोखी सरकार की पहल।

नया साल आते ही हमसब स्वंय से कुछ न कुछ वादा करते हैं। अपने-अपने कार्य क्षेत्र में सफलता की कामना लिए बेहतर प्रयास करते है, किन्तु सब लक्ष्य तक नही पहुँच पाते क्योंकि सफलता उन्ही को मिलती है जो हर बाधाओं को दृण संकल्प के साथ पूरी ईमानदारी से पार करते हैं। कहते हैं, गहरी इच्छा हर उपलब्धी का शुरुआती बिन्दु होती है। जिस तरह आग की छोटी लपटें अधिक गर्मी नही दे सकती उसी तरह कमजोर इच्छा भी बङे नतीजे नही दे सकती। जीवन में सफल होने के लिए अपने लक्ष्य के प्रति जुनून होना भी बहुत जरूरी है। दूसरों पर निर्भर रह कर कामयाबी हासिल नही की जा सकती। कामयाबी के लिए थोङी बहुत रिस्क भी लेनी चाहिए।    कहावत भी हैः- No Risk No Gain.

लाला लाजपत राय ने कहा था कि मनुष्य अपने गुणों से आगे बढता है न की दूसरों की कृपा से।“ कहने का आशय ये है कि, सिर्फ सफल होने का प्रयास न करें बल्कि मुल्य आधारित जीवन जीने वाला इंसान बनने का भी प्रयास करें क्योंकि वास्तविक सफलता की ये प्रमुख ईकाइ है।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुलकलाम कहते हैं कि, असफलता को भूलकर अपनी स्थिती और ऊर्जा को पहचानो। उसी पथ का निर्माण करो, जिसके लिए तुम बने हो, मंजिल तुम्हे जरूर मिलेगी। सपने जरूर देखो और उन सपनों को साकार करने की तीव्र चाह अपने मन में पैदा करो।

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यही कामना करते हैं कि, सभी के सपने साकार हों, 2014 की सुबह नई रौशनी का प्रकाश करे, जिसकी धूप से भारत में इंसानियत खिल उठे, बेटीयां सुरक्षित हों तथा वसुधैव कुटुम्बकम का शंखनाद हो।

                              नया साल सभी के लिए मंगलमय हो

Tuesday, 24 December 2013

MERRY CHRISTMAS



क्रिसमस की हार्दिक बधाई के साथ यही कामना करते हैं कि प्रभु ईशु का आर्शिवाद सभी के लिए हो। 

Wednesday, 18 December 2013

उच्च कोटी के वक्ता (अटल बिहारी वाजपेयी)



राष्ट्र के उच्चकोटी के वक्ता, जिनके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है। पद्मविभूषण जैसी बङी उपाधी से अलंकृत अटल जी भारत के प्रधानमंत्री पद को दो बार सुशोभित कर चुके हैं। भारत में ही नही अपितु अन्य देशों में भी अनेक लोग उनकी ओजस्वी और तेजस्वी शैली में रची कविताओं और भाषणों के कायल हैं।

व्यंग्य विनोद की फुहारों के साथ उनके भाषण जन-जन में प्रिय हैं। अटल जी अपने भाषणों के माध्यम से जन-जन में देशप्रेम की अलख जगाने वाले राजनीतिज्ञ नही वरन् सच्चे देशभक्त कवि और साहित्यकार हैं। उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है। नैतिकता के प्रतीक अटल जी के भाषण से संबन्धित कुछ प्रसंग आप सभी से सांझा(Share) कर रहे हैं।
अटल जी के अनुसार उन्होने अपना पहला भांषण पाँचवी कक्षा में आयोजित एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में बोला था। जहाँ अटक-अटक कर बोलने की वजह से उनकी बहुत हँसाई हुई थी। दरअसल तब वे अपना भाषंण रट कर गये थे। दृणसंक्लप अटल जी ने तभी ये निश्चय किया कि अब कभी भी रटकर भांषण नही बोलेगें। उनकी दृणसंक्लपता का ही परिणाम है कि उनके भाषणों को सुनने दूर-दूर से लोग आते हैं।

एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन था। अटल जी एवं रघुनाथ सिंह इस प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहे थे। परन्तु ट्रेन लेट हो जाने की वजह से वो लोग, प्रतियोगिता समाप्त होने पर वहाँ पहुँचे। उस समय निर्णायक मंडल निर्णय तैयार कर रहे थे। परेशान हुए बिना अटल जी ने ट्रेन लेट होने की बात अध्यक्ष महोदय को बताई, महोदय ने उन्हे बोलने की इजाजत दे दी। अटल जी ने अपनी परिमार्जित और काव्यात्मक शैली में ऐसा उत्कृष्ट भाषण दिया कि उन्हे सर्वप्रथम वक्ता होने का पुरस्कार प्राप्त हुआ। उस निर्णायक मंडल में डॉ. हरिवंश बच्चन जी भी थे।

अटल जी की वाकपटुता का एक और प्रसंग है। एक बार वाद-विवाद का विषय था, हिन्दी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। अटल जी पक्ष के वक्ता थे और उनका जोङीदार विपक्ष का जिसे हिन्दी की जगह हिन्दुस्तानी का पक्ष लेना था। परन्तु ऐन वक्त पर उनके जोङीदार ने कहा कि, अटल में तो पक्ष में बोलने की तैयारी करके आया हुँ। विचलित हुए बिना अटल जी ने कहा कोई बात नही, आप पक्ष में बोल दीजीए। अटल जी बिना किसी तैयारी के प्रतिपक्ष के विषय पर बोले। उनके आत्मविश्वास का आलम ये था कि वे उस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान से पुरस्कृत हुए।

अपनी अद्भुत भाषा शैली से उन्होने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन करते हुए जन-मानस में देशभक्ती का शंखनाद किया। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, भाषा शैली पर उनकी मजबूत पकङ है। अपने विचारों को प्रभावशाली शब्दो में अभिव्यक्त करने की प्रतिभा के धनी अटल जी को उनके आने वाले जन्मदिन (25 दिसम्बर) पर अभिनंदन और वंदन करते हैं। ईश्वर से अटल जी की स्वस्थ दीर्घायु की कामना करते हैं।

नोटः- अटल जी से जुङे और भी प्रसंग को Comment के माध्यम से हम सभी से Share करें।  
अटल जी से संबन्धित पूर्व की पोस्ट पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें। 
  

Sunday, 8 December 2013

बदलता बचपन जिम्मेदार कौन????








बचपन की बात करते ही एक ऐसा चेहरा नजर आता है जिसमें मस्ति, खुशी, बेफ्रिक और मासूमियत झलकती थी, जिसे देखकर उनकी भूलों को माफ कर दिया जाता था, किन्तु आज के परिपेक्ष में देखें तो, परिपक्व अपराधों से, कम उम्र के बच्चे इस तरह जुङे हैं कि उनकी मासुमियत नजर ही नही आती। 

आज देश में एक बङी बहस चल रही है कि नाबालिग बच्चे अपराध की तरफ क्यों बढ रहे हैं। निर्भया काण्ड हो या हाल ही में दिल्ली में एक ज्वेलर के घर में हुआ अपराध। हत्या जैसा जघन्य अपराध करने में भी आज 14-15 साल के बच्चे हिचकते नही। कहाँ गया वो मासूम बचपन ??
आर्थिक सामाजिक स्थितियों के कारण सङक पर रह रहे लावारिस बच्चे अशिक्षा एवं उचित मार्गदर्शन के अभाव में अपराधी प्रवृत्तियों के चंगुल में फंस जाते हैं। गरीबी और भूखमरी उन्हे अपराध की दुनिया का रास्ता दिखाती है। परन्तु आज स्थिती इतनी भयानक हो गई है कि शिक्षित और सभ्य कहे परिवारों के बच्चों के लिए अपराध खेल बन गया है और वे अपराधिक प्रवृत्ति के नशे में मस्त हैं। भ्रष्टव्यवस्था के कारण रसूखदारों के बच्चों को सजा का भी खौफ नही है। कई बार अभिभावकों द्वारा छोटी-छोटी गलतियाँ नजर अंदाज कर दी जाती है, यही छोटी-छोटी गलतियाँ सूरसा के मुहँ की तरह बङी हो जाती है और अभिभावकों को पछतावे के सिवाय कछ भी हाँथ नही लगता।

बच्चे हर जमाने में समझदार और चुलबुले होते हैं। आज के बच्चे ज्यादा स्टाइलिश, गुगल अपडेटेड हैं। उनके मन में वर्चुअलदुनिया बसती है। तकनिकी समझदारी का आलम ये है कि 4 से 10 साल के बच्चों के लिए मोबाइल, आईपेड और टेबलेट खिलौना बन गये हैं। गलियों में धमाल मचाने वाला नटखट बचपन, लुका-छिपी, ऊँच-नीच, हरा समंदर नीली तितली वाले खेलों को विडियो गेम का ग्रहंण लग गया है। गेम भी इस प्रकार के कि एक व्यक्ति मशीन गन से लोगों मारते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। जहाँ बचपन तकनिकी के पंख लगाकर उङ रहा है, 14-17 साल के बच्चे ऐसे कई अपराधों में लिप्त पाये गये हैं जो बालिग मानसिकता को परिलाक्षित करता है। वहाँ हमारा कानून अभी भी पुरानी मासुमियत भरे बचपन के भ्रम में ही है। कम उम्र में बढती परिपक्वता कई चिन्ताओं को जन्म दे रही है।  


प्रश्न ये उठता है कि बचपन की इस बदलती और बदरंग होती तस्वीर क्या सिर्फ बच्चों द्वारा ही बनाई जा रही??? मेरा मानना है कि, बच्चो की इस बदलती दुनिया के लिए हमारी सामाजिक, आर्थिक और पूंजीवादी व्यवस्था बहुत हद तक जिम्मेदार है।



पूंजीवाद ने लिटिल वंडर को स्मार्ट उपभोक्ता में बदल दिया है। मॉल संस्कृति के ये बच्चे मेले की भीङ-भाङ से घबराते हैं। उनके लिए गंगा की घाट पर नहाना अनहाइजेनिक है और वाटरकिंगडम में नहाना प्रतिष्ठा का सूचक है। पिज्जा, बरगर को खाते हुए देशी समोसे और कचोरी को सोSSS ऑयली कह कर छोङ देते हैं।   
बच्चों का रूठना, फरमाइश करना पहले भी होता था, तब बच्चों को मनाने का तरिका दूसरा हुआ करता था। बच्चों को अच्छी शिक्षाप्रद कहानी सुनाकर या घर में कुछ स्पेशल खाने की चीज बनाकर उन्हे मनाते थे इसी में प्यार और अपनापन होता था। आज हम अभिभावक बच्चे को बहलाने के लिए सेलफोन थमा देते हैं। भाई-बहन के झगङे को निपटाने की बजाय उन्हे अलग-अलग करके एक को टीवी के आगे बैठा देते हैं और दूसरे के हाँथ में लेपटॉप थमा देते हैं। प्रतिस्पर्धा वाले बाजारवाद में चैनल की दुनिया पर क्या विश्वास किया जा सकता है? गिरते नैतिक स्तर का असर आज के टीवी कार्यक्रमों में देखा जा सकता है किन्तु, माता-पिता को इससे कोई सरोकार नही कि बच्चा क्या देख रहा है या किस तरह की भाषा सुन रहा है। बाल- मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे परिवेश का असर बच्चे पर अत्यधिक पङता है। बच्चे काल्पनिक दुनिया में जीते हैं। उसमें आधुनिकता की दुहाई देने वाले पाश्चातय संस्कृति में रंगे कार्यक्रम आग में घी का काम करते हैं।

स्वामी विवेकानंद जी का कथन हैः- बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है अपना समय और अच्छे संस्कार। ध्यान रखें, एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण सौ विद्यालयों को बनाने से बेहतर है।


आज का बचपन पहले से मुखर और होशियार है। पहले परिवार बच्चों का मूल आधार होते थे। आज की अत्यआधुनिक एवं अपार्टमेंट लाइफ में बच्चों के मन को सींचने और पोषित करने का वक्त माता-पिता के पास नही है। दादा-दादी एंव नाना-नानी की जगह रिक्त है। सब मिलकर न चाहते हुए भी हम सब ने बच्चों की सुहानी दुनिया में काँटे बो दिये हैं। पहले खेल-खेल में एक्सरसाइज हो जाती थी और बच्चों में मिलजुलकर रहने की प्रवृत्ति का विकास होता था। आज एकल खेल बच्चों में अंर्तमुखी भावना को जागृत कर रहे हैं जिससे मासूम बच्चे अवसाद में आत्महत्या तक को अंजाम दे रहे हैं।


नेहरु जी का कथन हैः- “Children are likes buds in a garden and should be carefully and lovingly nurtured, as they are the future of the Nation and citizens tomorrow.”


सहजता बचपन का मूलर्धम है। यह वो भाव है जो बीज से पेङ बनकर समर्थ और मानवीय गुणों से युक्त व्यक्ति का निर्माण करता है। बचपन तो उस कोरी किताब की तरह है जिसपर जो चाहो लिखा जा सकता है। कहते हैं इमारत वही मजबूत होती है जिसकी नींव मजबूत हो, यही नियम बच्चों के विकास पर भी लागू होता है। अच्छे संस्कारों से बनी बचपन की नींव सभ्य और सुसंस्कृति युवा का आधार है।


आज की दुनिया उनकी स्वयं की रचाई दुनिया नही है। ये दिशाहीन  दुनिया अनियमित सामाजिक, पारीवारिक, बाजारवादी और राजनैतिक प्रक्रियाओं की उपज है। आज डोरेमॉन, नोबिता, शिनचैन और स्पाइडर मैन देखकर बच्चे एंग्री बर्डस तो बन सकते हैं। परन्तु रविन्द्र नाथ की मिनी या चेखव नही बन सकते।  


डॉ. कलाम का कहना है कि, जब माता-पिता अपने बच्चे को विभिन्न चरणों में शक्तिशाली बनाते हैं, तो बच्चा जिम्मेदार नागरिक बनता है। जब एक शिक्षक को ज्ञान और अनुभव से शक्ति-संपन्न बनाया जाता है तो छात्र आगे चलकर योग्य युवा बनता है, जो राष्ट्र एवं परिवार के हित में कार्य करता है।“   


आज समय की माँग है कि, दोषारोपण करने की बजाय हम सब मिलकर हर बच्चे को उसका बचपन लौटाएं, मिलकर एक बेहतर कल बनायें।



“The Greatest gifts you can give your children are the roots of responsibility and the wings of Independence.”  




Tuesday, 3 December 2013

Strong Will Power( दृण इच्छाशक्ति)


वर्तमान का समय प्रतियोगिता का समय है। आज हर कोई एक दूसरे से आगे बढना चाहता है। आगे बढने की प्रवृत्ति विकास के राह को आसान करती है। विद्यार्थी हो या व्यपारी, शोध-कर्ता हो या किसान हर कोई अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रर्दशन करना चाहता है। परन्तु कुछ लोग अपनी इच्छा के अनुरूप परिणाम को प्राप्त कर लेते हैं, तो कुछ लोग चाहत के अनुसार अपने लक्ष्य को हासिल नही कर पाते। जो अपने कार्य को दृण इच्छा शक्ति से पूर्ण करता है वो लक्ष्य को निःसंदेह हासिल करता है। नेपोलियन बोनापार्ट का कहना था कि, असम्भव शब्द मेरे शब्दकोश में नही है। लाल बहादुर शास्त्री, गाँधी जी, सुभाष चन्द्र बोस, अब्राहम लिंकन, आइंस्टाइन, सरदार पटेल, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इत्यादि बङे-बङे महापुरूष अपनी दृण इच्छा शक्ति से ही उच्चतम शिखर पर पहुँचे और आज भी सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
कहने का आशय ये है कि यदि मनुष्य चाहे तो सब कुछ सम्भव है। उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कार्य को ईमानदारी से और दृण संकल्प के साथ करना चाहिए। मजबूत इच्छा विपरीत परिस्थीति में भी आगे बढने की प्रेरणा देती है। मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है, नित नई इच्छाएं जन्म लेती रहती हैं।अतः मन की चंचलता को नियन्त्रित करने के लिए इच्छा शक्ति की दृणता अनिवार्य होती है। गीता में कहा गया है कि, मन को वश में करना कठिन जरूर है पर असम्भव नही है।
दृण इच्छा शक्ति के बल पर ही तेनसिहं और बछेन्द्री पाल जैसे पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट पर विजय पताका फहराई। इंग्लिश चैनल और उत्तरी ध्रुव के बर्फिले सागर को दृण इच्छा शक्ति के बल पर ही पार किया गया। लक्ष्य के प्रति दृण इच्छा रखने वाले संकल्पवान लोग इतिहास की धारा बदल देते हैं।

सफलता के लिए दृण संकल्प का होना आवशयक है किन्तु आज आगे बढना तो हर कोई चाहता है परन्तु विषम परिस्थिती में संघर्ष करना नही चाहता। परिश्रम करने से भागता है और शार्टकट तरीके से सबकुछ पाना चाहता है। लक्ष्य के प्रति दृण इच्छाशक्ति का अभाव इंसान की सबसे बङी कमजोरी है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, गहरी इच्छा हर उपलब्धि का शुरूवाती बिन्दु होती है, जिस तरह आग की छोटी लपटें अधिक गर्मी नही दे सकती वैसे ही कमजोर इच्छा बङे नतीजे नही दे सकती। मजबूत इरादों से ही लक्ष्य की राह आसान होती है।

गाँधी जी ने कहा था कि, “Strength Dose not come from Physical  capacity. It comes from an Indomitable  will.”

अपनी दृण इच्छाशक्ति और अटूट विश्वास के बल पर भारत की पहली महिला आई. पी. एस. अधिकारी किरण बेदी ने अनेकों कठिनाईयों के बावजूद अपने लछ्य को हासिल किया। एशिया का सबसे बङा मेग्सस पुरस्कार प्राप्त कर भारत को भी गौरवान्वित किया। अनेक लोगों की प्रेरणा स्रोत किरण बेदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में पुलिस सलाहाकार नियुक्त किया गया। (Strong will power )दृण इच्छा शक्ति से कैंसर जैसी जानलेवा बिमारी से भी जीता जा सकता है। यदि इरादे मजबूत होते हैं तो उम्र की सीमा और विकलांगता भी बाधा नही बनती। प्रेमलता अग्रवाल 48 वर्ष की उम्र में एवरेस्ट पर फतह हासिल करने वाली सबसे अधिक उम्र की पहली महिला हैं। हेलेन केलर की दृण इच्छा शक्ति के आगे उनकी दृष्टीबाधिता नत्मस्तक हो गई।  

स्वामी विवेकानंद जी का कहना था कि, पवित्र और दृण इच्छा सर्वशक्तिमान है, अतः प्रबल इच्छा को कठिन अभ्यास एवं संकल्प शक्ति द्वारा प्राप्त करना चाहिए।

सफलता की कामना करना उत्तम विचार है। उसकी पूर्णता के लिए कार्य के आरंभ में ही दृण इच्छा को अपने में समाहित कर लेना चाहिए। ईमानदारी के साथ कार्य पूर्ण करने में अपनी सारी  शक्ति लगा देनी चाहिए। दृण इच्छाशक्ति मार्ग की बाधाओं को पार कर देती है और सफलता के शिखर पर पहुँचना आसान कर देती है। अतः अपनी सोच को साकार रूप देने के लिए दृण इच्छा शक्ति (Strong Will Power) को रग-रग में संचारित कर लें।

"कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नही मन चाहिए, साधन सभी जुट जाएंगे, संकल्प का धन चाहिए, गहन संकल्प से ही संभव है पूर्ण सफलता।"