आज की अत्याधुनिक जीवन शैली में अनेक लोग लेपटॉप, मोबाइल आई पैड लिये कहीं भी दिख जायेंगे। बस का सफर हो या ट्रेन का कहीं भी अप टू डेट कहे जाने वाले लोग इंटरनेट के माध्यम से गुगल पर सर्च करके सभी जानकारी से अपडेट हो जाना चाहते हैं। मित्रों, क्या आपने कभी ये सोचा कि ये हाई प्रोफाइल माध्यम में जानकारियां आईं कहाँ से ? निः संदेह इन जानकारियों का स्रोत हमारी किताबें ही जहाँ से इन जानकारियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में परिवर्तित करने का प्रयास चल रहा है। परंतु अभी भी ज्ञान का अथाह सागर लिये हमारी पुस्तकों का ज्ञान इन आधुनिक उपक्रमों में मिल पान असंभव है। जिन्हे वास्तविकता में जानकारियों की चाहत होती है उन्हे तो किताबों के संसार में ही डुबकी लगाने से तृप्ति मिलती है। सच्चाई तो ये है कि गुगल जैसे सर्च इंजन हमारी जिज्ञासा को पूर्णतः शान्त नही कर सकते उसके लिये तो हमें किताबों के शरण में ही जाना चाहिये।
पुस्तकें हमारे समाज का आइना होती हैं। जिनके जरिये हम अपने अतीत के गौरवमय इतिहास को देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। प्रेमचंद जी की कहानियाँ हों या टैगोर की कविताएं सभी के माध्यम से सामजिक चित्रण हमारे मानस पटल को छू जाता है। गर्मी की छुट्टियों में नंदन, चंदामामा,चंपक और चाचा चौधरी जैसी अनेक किताबों को पढते हुए बच्चे, एक मधुर कल्पना में कहीं खो जाते थे। परंतु आज स्थिती बदल गई है, पुस्तकें तो बहुत हैं किन्तु आधुनिकता की चादर ओढे लोग उन्हे पढना नही चाहते। आज के बच्चे भी मोबाइल पे गेम खेलकर या टीवी देखकर अपना मनोरंजन कर रहे हैं। जबकि पुस्तकें तो हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं, सिर्फ देना जानती हैं बदले में आपसे कुछ नही माँगती। पुस्तकें तो हमें एक ही जगह बैठे-बैठे दुनिया की सैर करा देती हैं। हमारे व्यक्तित्व को निखारती हैं। हावर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन के अनुसार, किताबों से हमें अलग-अलग प्रकार के लोगों को समझने में मदद मिलती है। किस्से कहानियों के माध्यम से हमें एक नया अनुभव और नजरिया मिलता है।हम दूसरे लोगों की सोच और व्यवहार का अंदाजा लगा सकते हैं।
एक सर्वे के अनुसार यदि रोजमर्रा की भाग-दौङ भरी जिंदगी में से मात्र 6 मिनट आप कुछ पढने के लिये निकाल लें तो सच मानिये आपके स्ट्रेस का 2/3 हिस्सा यूँ ही कम हो जाता है। युनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में माइंड इंटरनेशनल द्वारा किये शोध के अनुसार, संगीत सुनने, वॉक पर जाने या चाय पीने के मुकाबले कुछ पढने से स्ट्रेस तेजी से कम होता है।शोधकर्ताओं का मानना है कि पढते हुए व्यक्ति को अपना दिमाग एक जगह केन्द्रित करना होता है और ऐसा करने से उसके मन एवं शरीर का टेंशन धिरे-धिरे निकल जाता है। शोध के नतीजे बताते हैं कि, संगीत से 61 फीसदी, चाय से 54 फीसदी एवं वॉक से 42 फीसदी तनाव घटता है। जबकी पढने से 68 फीसदी तनाव घटता है। मित्रों, आज हमलोगों की जीवन शैली अनेकों तनावों के अधीन हैं और तो और अर्थव्यवस्था पर कम्प्युटर का प्रतिदिन बढता प्रभाव तनाव को और बढा रहा हैं। ऐसे में किताबों को पढने की आदत हमारे तनाव को कम करने में बहुत मददगार साबित होतीं हैं।
22वें विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि, देश में ज्ञान की भूख अधिक है और इंनटरनेट के युग में भी किताबों की अहमियत बरकरार है क्योंकि किताबें पढने की आदत हमारी सभ्यता में निहीत है। उन्होने कहा कि कोई भी सभ्य समाज बच्चों के लिये सार्थक लेखन के बिना विकसित नहीं हो सकता। भारत देश में तो ज्ञान और पुस्तकों की परंपरा का आदर किया जाता है।
22वें विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि, देश में ज्ञान की भूख अधिक है और इंनटरनेट के युग में भी किताबों की अहमियत बरकरार है क्योंकि किताबें पढने की आदत हमारी सभ्यता में निहीत है। उन्होने कहा कि कोई भी सभ्य समाज बच्चों के लिये सार्थक लेखन के बिना विकसित नहीं हो सकता। भारत देश में तो ज्ञान और पुस्तकों की परंपरा का आदर किया जाता है।
प्राचीन समय में ताम्रपत्र पर लिखे साक्ष्य और प्राचीन ग्रंथो को प्रमाणिक माना जाता है। इनमें लिखी बातों को बिना किसी विवाद के स्वीकार किया जाता है और यही कारण है कि व्यक्ति इनमें निहीत ज्ञान को अपने जीवन में अपनाता है। रामयण, गीता, कुरान, बाइबिल और गुरुग्रन्थ साहिब जैसी पुस्तकें सिर्फ पढी ही नही जाती बल्की उनके अनुयायी उनकी पूजा भी करते हैं। पुराने समय में जब लङकियों को पढाया नही जाता था तब भी उन्हे धार्मिक पुस्तकों को पढने के लिये अक्षर ज्ञान दिया जाता था।
आज हमारे देश में अनेक न्यूज चैनल हैं फिर भी सुबह-सुबह अखबार का इंतजार इस बात को सत्यापित करता है कि प्रिंट मिडीया का महत्व अभी भी हमारी जिंदगी में है। अतः मित्रों, हम आज के परिवेश में किताबों के महत्व को अनदेखा नही कर सकते। आज भी हमारी संस्कृति, सभ्यता, धर्म तथा आध्यात्म को समेटे हमारी पुस्तकें ज्ञान का भण्डार हैं। जिसके अस्तित्व को नकारा नही जा सकता।
A room without Books is like a Body without a Soul.
नोटः- आपके विचार (Feed Back) लेख को मजबूत बनाते हैं और लिखने की क्रिया को प्रेरणा प्रदान करते हैं। अतः मित्रों, लेख के प्रति अपने विचारों को हमसे (सांझा) शेयर करें। धन्यवाद
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Very nice article about books.
ReplyDeleteHello Sir / Madam aaj maine aap ki is post se ek nayi sikh li hai ki main books padna kabhi nahi chodunga. This is A very good lekh I like it. Sir Ji aap apni kalam jaree rakhe.
ReplyDeleteThanks for your blog and to You .
If any mistakes in my comment please forgive me sir.
Thanks Meena
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