Monday, 20 October 2014

मानवीय चेतना को प्रकाशित करें


आज जीवन, समाज एवं राष्ट्र के बहुत सारे अंग अँधेरे में घिरे हुए हैं। आज की दुनिया में सेवा, सहकार, त्याग आदि गुणं को अलगाववाद, आतंकवाद एवं जातिवाद तथा स्वहित के सघन अंधेरे ने घेर लिया है।  हिंसा, अपराध, हत्या,  भ्रष्टाचार एवं बलात्कार जैसी घटनाएं हर किसी को भयभीत कर रही हैं। मित्रों,  सच तो ये है कि अँधेरे की कोई सत्ता नही होती वह तो केवल प्रकाश का अभाव मात्र है, जैसे ही प्रकाश का आगमन होता है वह अंधेरा अपने आप दूर चला जाता है।  जब आत्मबल, मनोबल एवं साहस रूपी तेल का दिया संकल्प तथा पराक्रम की बाती के साथ जलता  है तो आशा विश्वास एवं उत्साह का वातावरण निर्मित होता है जिससे सभी अंधकार, अर्धम तथा नकारात्मक ऊर्जाओं का अंत निश्चित है। दिपावली में जलने वाले अनगिनत दीप भले ही छोटे-छोटे  हैं परंतु इन छोटे दिपों में मानवीय चेतना समाई हुई है।  इन्ही दिपों में  जिंदगी का बुनियादी सच समाया हुआ है। अप्प दिपो भव कहकर भगवान बुद्ध ने दिये के महत्व को अभिव्यक्त किया था।  ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि एक छोटा सा दिया जिस तरह अंधेरे को दूर करता है उससे  अनेक लोगों को आगे बढने की प्रेरणा मिलती है। अतः मित्रों इस दिपावली पर दिये की शक्ती को आत्मसात करते हुए ऐसा दिपक जलाएं जिसमें आशा और विश्वास का समावेश हो, उसकी ज्योति से अंर्तमन के साहस को प्रकाशित करें जिससे जीवन के सभी रास्ते भयमुक्त हों और सफलता रौशन हो।  एकता तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना लिये  इस दिपावली हमसब मिलकर आतंक के इन अंधकार रूपी असुरों का नाश करें। जिससे सम्पूर्ण विश्व मुस्करा सके और प्रकाश पर्व सार्थक हो।   

रौशनी का पर्व है, दिप सबको मिलकर जलाना है,
जो हर दिल को अच्छा लगे गीत ऐसा सुनाना है,
गिले-शिकवे सब भूलकर सबको गले लगाना है,
ईद हो या दिपावली बस खुशियों का पर्व मनाना है। 

दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

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http://www.roshansavera.blogspot.in/2012/11/happy-deepawali_11.html



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