Sunday, 30 November 2014

विकलांगता अभिशाप नही है


हमारे समाज में प्रचलित चलन के अनुसार हम किसी योजना या किसी आन्दोलन की, शुरुवात तारीख को प्रतिवर्ष उस दिन उसकी याद में पूरी शिद्दत से मनाते हैं और तो और उस आयोजन के उद्देश्य को भी याद करते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए हम 1992  से 3 दिसम्बर को प्रतिवर्ष विकलांगता दिवस मनाते हैं। इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक तथा खेलकूद से संबन्धित कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, रैलियाँ निकाली जाती है तथा सरकार द्वारा शारीरिक अक्षम लोगों के हित के लिये कई लाभकारी योजनाओं की भी घोषणां की जाती है। विकलांगता दिवस मनाने का उद्देश्य है कि, आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ हो रहे भेद-भाव को समाप्त करना तथा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना। इसी के तहत 2013 के विकलांगता दिवस का थीम था, बंधनो को तोडो. दरवाजों को खोलो अर्थात सभी का विकास समावेशी समाज में।

वास्तविकता तो ये है कि हम वर्ष के सिर्फ एक दिन उस दिवस के उद्देश्यों और आदर्शों को बहुत शिद्दत से मनाते हैं लेकिन अगले ही दिन हम उन आदर्शों और उद्देशों को भूल जाते हैं। हमसब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं। जबकी खास तौर से विकलांगता दिवस का उद्देश्य तभी सार्थक हो सकता है जब हम सिर्फ एक दिन नही वरन वर्ष के सभी दिन उन्हे अपने समाज का हिस्सा माने और उनके साथ सहयोग की भावना रखें।

आज हमारा देश भारत विकासशील देश की श्रेंणी में है।  हमने विज्ञान में अनेक कीर्तिमान रचे हैं, हाल ही में हम मंगल पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। परंतु अभी भी हम भेद-भाव के वायरस को समाप्त नही कर सके हैं। मित्रों,  शारीरिक अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और दुर्घटना की वजह से भी हो सकती है, परंतु जिस विकलांगता का उन्हे एहसास कराया जाता है वो हमारे समाज की विकलांग मानसिकता को ही दर्शाती है।

यदि हम दृष्टिबाधित लोगों की बात करें तो उन्हे सबसे पहले अपने परिवार वालों की ही उपेक्षा का शिकार होना पङता है क्योंकि कई परिवार तो इस डर से कि, समाज में कोई क्या कहेगा या परिवार के बाकी बच्चों का विवाह कैसे होगा जैसे कारणों की वज़ह से दृष्टीबाधितों को छुपाकर रखते है या उन्हे किसी संस्था में छोङ कर दुबारा उनकी तरफ देखते भी नही। बहुत कम खुशनसीब दृष्टीबाधित बच्चे हैं जिनका परिवार उनके साथ होता है। मित्रों, ऐसी उपेक्षित परिस्थिति में दृष्टीबाधित बच्चों का सकल विकास कैसे संभव हो सकता है?

हमारी प्रचलित मान्यताएं और रुढीवादी विचारधारा इस परेशानी में आग में घी का काम करती हैं। वर्षों पहले तक अक्षम बच्चों को अपमान जनक समझा जाता था। दृष्टीबाधिता को सजा का प्रतीक समझा जाता था। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आज भी समाज के कुछ वर्ग में ये मनोवृत्ति व्याप्त है कि अंधापन उनके पूर्व जनम के पाप की सजा है या उनके माँ-बाप के अनुचित कार्यों का ही परिणाम है। आज समय के साथ शिक्षा के विस्तृत ज्ञान ने सामाज की अवधारणा को थोङा परिवर्तित जरूर किया किन्तु आज भी अंधापन सजा की परिभाषा से निकलकर दयाभाव, भिक्षादान के जाल में उलझ गई है। जिसमें अक्सर मानवतापूर्ण सहानुभूति का अभाव नजर आता है। सच्चाई तो ये है कि यदि हम दृष्टीबाधित बच्चो को भी उचित सहयोग और अवसर प्रदान करें तो वो भी आत्मनिर्भर बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं क्योकि विकलांगता कोई अभिशाप नही है।

मदर टेरेसा के अनुसार, "महत्वपूर्ण ये नही है की आपने कितना दिया, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि देते समय आपने कितने प्यार से दिया।" 

विकास के इस दौर में आप सबसे अनुरोध है कि, हम सब मिलकर दृष्टीबाधित बच्चों के लिये मानवीय भावना से ओत-प्रोत एक ऐसे आसमान की रचना करें, जिसकी छाँव में दृष्टीबाधित बच्चे सकारात्मक सहयोग और स्वयं के प्रयास से आत्मनिर्भर बन सकें। मित्रों, दृष्टीबाधितों के विकास में हम उनकी शैक्षणिक पाठ्य सामग्री को रेकार्ड करके, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) बनकर  तथा चिकित्सा आदि के माध्यम से अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को निभा सकते हैं। हम सबकी सामाजिक चेतना के सहयोग से, दृष्टीबाधित बच्चों में भी आत्म-सम्मान से जीने की भावना का विकास होगा, जो किसी भी समाज और देश के लिये हितकर होगा। समाज की प्रथम ईकाइ परिवार के भावनात्मक सहयोग और हम सबके मानवीय दृष्टिकोंण  से दृष्टीबाधितों को जो सुरक्षित और आशावादी क्षितिज प्राप्त होगा उसकी मधुर एवं संवेदनशील छाँव में ये बच्चे निश्चय ही विकास की इबारत लिखेंगे।  निःसंदेह हम सबके साथ से विकलांता दिवस  सार्थक और सफल बन सकता है।

"Children with Disabilities are like Butterflies with a broken wings. They are just as beautiful as all others, But they need help to spread their Wings" 

नोटः- कई दृष्टिबाधित समाज की मानवीय जागरुकता और पारिवारिक सहयोग से आत्मनिर्भरता के साथ समाज में अपना विशेष स्थान बनाने में सफल हुए हैं। सकारात्मक दृष्टिकोंण लिये ऐसे ही लोगों के बारे में दिये गये लिंक पर क्लिक करके अवश्य पढें।

अंधेरी दुनिया में हौसले की रौशनी

आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को दृष्टिबाधिता भी रोक न सकी

धन्यवाद 




Tuesday, 18 November 2014

परिवार जिंदगी का आधार है


हमारी सुरक्षा का महत्वपूर्ण घेरा परिवार होता है, जो बाहर ( परि) के आक्रणम (वार) से हमें बचाता है। ये ऐसा समूह है जहाँ प्यार और सपोर्ट के अनुभवों की चेन में हमसब बंधे होते हैं।  हम सब की खुशी का आधार है परिवार। परंतु  एक सच्चाई ये भी है कि जब हम पारिवारिक जीवन में प्रवेश करते हैं तो कई समस्याओं का भी सामना करना पङता है। सबसे प्रमुख समस्या होती है आर्थिक जिम्मेदारी जिसकी वजह से कई बार परिवार के पुरूष सदस्य को घर से दूर रोजगार की तलाश में जाना पङता है, जिसे खास तौर से मध्यम वर्गीय या निम्नवर्गीय परिवारों को अधिक झेलना पङता है। वैसे यदि गहराई से विचार किया जाये तो आर्थिक समस्या इतनी बङी भी नही है कि, जो परिवार की खुशहाली को ग्रहंण लगा सके क्योंकि भौतिक सुविधा की कोई सीमा नही है वो तो हमारे ऊपर निर्भर है कि हम किसे और कितना महत्व दे रहे हैं। आज भले ही भौतिकवाद का जमाना हो किन्तु जीवन की वास्तविक खुशहाली आपसी प्रेम और सहयोग पर ही अंकुरित होती है।

प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु का कहना है कि, "परिवार किसी भी राज्य की पहली ईकाइ है। ये राज्य के विकास की पहली मंजिल का पङाव है। परिवार मनुष्य की शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ती करने वाली पहली संस्था है।" 

मनोवेज्ञानिकों की यदि माने तो कई ऐसे परिवार हैं जो कम धन में भी खुश हैं उनके बच्चे भी अपनी प्रतिभा के बल पर अपना और अपने परिवार का नाम रौशन करते हुए सुखी और संपन्न हैं क्योकि उनके पास संतोष का पंरम धन है। किसी ने सच कहा है कि 'संतोषी सदा सुखी'. वहीं दूसरी ओर कई ऐसे साधन सम्पन्न परिवार हैं जहाँ समस्त भौतिक साधन हैं फिरभी वे अवसाद में चले जाते हैं। वास्तव में परिवार की खुशहाली तो चार स्तंभ पर टिकी होती है, वो हैं प्यार, विश्वास, सम्मान और आपसी समझदारी। परिवार के इन आधारों की नींव जितनी मजबूत होती है उतनी ही मजबूत रिश्तों की भी डोर होती है। जिस तरह पाँचों अँगुली एक बराबर नही होती फिर भी एक साथ मिलकर जब मुठ्ठी बन जाती है तो अच्छों अच्छों की छुट्टी कर देती है, उसी प्रकार परिवार में सभी लोगों की विचारधारा एक नही होती किन्तु जब वे परिवार के सुर में अपना विचार व्यक्त करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उनसे उनकी खुशी नही छीन सकती। परिवार तो संगीत की तरह है जिसके कुछ स्वर नीचे तथा कुछ स्वर ऊंचे लगते हैं लेकिन इसी संगीत के मिल जाने से सुंदर गीत बनता है। परिवार तो ऐसा मधुर केंद्र बिन्दु है जहाँ व्यक्ति, जिंदगी की जद्दोज़हद और तनाव को बच्चों की किलकारी में भूल जाता है। अपने अभिभावक से मिले स्नेहशील आशिर्वाद के साथ पुनः जिंदगी की दौङ में शामिल हो जाता है।  

"Family is like branches on a tree, we all grow in different directions, yet our roots remain as one."

परिवार तो ईश्वर का सुंदर वरदान है जहाँ जिंदगी की शुरुआत प्यार और अपनेपन के पोषण से पल्लवित होती है। खुशहाल परिवार समाज और देश को भी सुखी और सम्पन्न बनाता है। मनु संहिता पर आधारित  हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में भी परिवार को सर्वोपरी माना गया है। परंतु यदि आज के परिपेक्ष्य में  देखें तो हर तरफ, हर जगह बेशुमार इंसान नजर आते हैं फिर भी कहीं न कहीं परेशानियों और तनहाईयों का शिकार है इंसान, ऐसे में मदर टेरिसा का कहना है कि, What can you do to promote word peace? Go home & love your Family. आज भले ही वक्त के तराजू पर एकल परिवार का पलङा भारी हो गया हो फिर भी परिवार के महत्व का पलङा सदैव भारी रहेगा क्योंकि जिंदगी का आधार परिवार ही है। 

किसी भी बच्चे के लिये परिवाार तो वो प्रथम पाठशाला है जहाँ बच्चा आपसी सहयोग और सम्मान का ककहरा पढता है। जिंदगी का पहला कदम अपनो के दुलार और आशीष के साथ आगे बढाता है। मेरी नजर में परिवार तो वो सुंदर कल्पना है जहाँ खून के रिश्ते ही नही वरन दोस्त और पङोसी भी सब मिलकर परिवार की तरह  रहते हुए सहयोग और भाईचारे के पैगाम से चारों दिशाओं को गुंजायमान करते हैं। परिवार और दोस्त तो वो छुपा हुआ खजाना हैं, जो हमें आंनदित करते हैं और धनवान बनाते हैं। परिवार तो किसी परी की जादू की छङी की तरह है, जिसके जादू से जिंदगी की सभी बाधाएं और मुश्किलें छुमंतर हो जाती हैं। परिवार में जो खुशी मिलती है वो अमुल्य है उसका कोई विकल्प भी नही होता।    

सच्चाई तो यही है कि,  "Family is one of the strongest words any one can say because the letter of family means father & mother I love you." 

Thank you God for my Family. Keep them safe.

Sunday, 9 November 2014

भारत अपडेट हो गया


पिछले सप्ताह काफी वर्षों बाद मैं अपने मित्र से मिलने भारत आया। एयरपोर्ट पर मित्र ने कार भेज दी थी, जिससे उसके घर की ओर निकल चला। रास्ते में शहर की तरक्की देखकर खुशी भी हुई एवं आश्चर्य भी हुआ, खैर जैसे ही मित्र के घर पहुँचा उसके नौकर ने अभिवादन करते हुए कहा कि आप चाय नाश्ता लेकर आराम किजीये साहब थोडी देर से आयेंगे। तभी मित्र का विडियो कॉल आया और कहने लगा sorry  यार थोडी देर हो जायेगी तु आराम कर। मैं जब तक कुछ बोलता फोन कट हो गया।

मै पुरानी यादों  में चला गया, सोचने लगा कि पहले तो मुझे लेने एक घंटे पहले एयरपोर्ट पहुँच जाता था।  अब इतना व्यस्त है की कार भेज दी, खैर मेने सोचा कम से कम फोन तो किया भले ही मुझसे यात्रा के बारे में कुछ नही पूछा। रात के खाने पर मित्र से मुलाकात हुई, जनरल बातों के बाद मैने मित्र से कहा कि यहाँ बहुत कुछ बदल गया है, लोग छतों पर नही दिखते। 

मित्र बोला छत अब हैं कहाँ ऊंची-ऊंची इमारतों ने छत की संस्कृति को दूर कर दिया है। मेरे भाई; आज बमुश्किल लोगों को सर पर छत नसीब हो रही है और तुम हो की खुली छत की बात कर रहे हो। मैने कहा मैं पूरे दिन यहाँ रहा, पहले जैसे तुम्हारे पढोसी मिलने नही आए! मित्र बोला क्या बात करते हो! किस दुनिया में हो, फेसबुक के जमाने में फेस टू फेस बात करने का टाइम किसके पास है।

मैने कहा जब मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था तो 8बजे  मेरा मन हुआ कि बाहर बगीचे में चलें वहाँ जरूर कोई मिलेगा परंतु बाहर बगीचे में भी कोई नही मिला, वो सामाजिकता, मिलना जुलना सब कहीं खो गया है। मित्र बोला सामाजिकता तो अभी भी है, कुछ लोग निशा के कजिन से मिलने गये होंगे तो कुछ लोग महादेव के दर्शन कर रहे होंगे।  देश-दुनिया की चिंता करने वाले लोग राजनैतिक बहस में शामिल होने गये होंगे। मैने कहा परंतु बाहर तो कहीं भी कोई आता-जाता नही दिखा।

मित्र हँसते हुए बोला , कैसे नजर आयेंगे! कोई ड्राइंग रूम में तो कोई लिविंग रूम में 24 या 32 इंच के एल सी डी के सामने बैठकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा रहा होगा। मैने बीच में ही टोकते हुए कहा, अरे यार मैं तुझे एक बात बताना तो भूल ही गया शाम को जब बाहर टहल रहा था तो अपना अजय दिखा, देखते ही कहने लगा कब आये? जब तक मैं कुछ बोलता पूछने लगा वाट्सअप पर हो, नम्बर क्या है? जैसे ही मैने नम्बर बताया, पता नही कितनी जल्दी में था मुस्कराते हुए bye करके चला गया। मित्र मुस्कराते हुए बोला भारत अपडेट हो गया, हम मंगल पर पहुँच गये हैं और तुम अभी पुराने भारत को ही ढूंढ रहे हो।

मैने आश्चर्य से कहा, लेकिन तुम्हारे प्रधानमंत्री तो अभी भी रेडियो पर मन की बात करते हैं, दिपावली पर कश्मीर जाते हैं तथा अमेरीका जाकर वहाँ के लोगों को आमंत्रित करके  भारतीय संस्कृति को निभा रहे हैं।  गाँधी जी के सपनो को साकार करने हरिजन बस्ती में भी जा रहे हैं और साफ-सफाई के महत्व को पूरे भारत में पहुँचाने के लिये स्वंय झाडु़ उठाने में भी संकोच नही कर रहे,  माँ गंगा के महत्व को  जन-जन की आवाज बना रहे हैं तो कहीं गॉव का विकास कर रहे हैं और  तुम कह रहे हो कि  भारत अपडेट हो गया।

मित्र बोला, हाँ मैं सच ही तो कह रहा हूँ, भारत अपडेट हो गया हमारे प्रधानमंत्री को मालूम है कि यदि भारत के प्रत्येक व्यक्ति तक अपना वर्चस्व स्थापित करना है तो रेडियो को अपनी आवाज बनानी होगी, टीवी वाले तो स्वंय ही पीछे आ जायेंगे। तुम्हे तो पता ही होगा कि कोकाकोला कंपनी ने भारत की ऐसी-ऐसी जगह पर कोकाकोला बेचा जहाँ बिजली भी नही आती इसी लिये तो दो बार दिवालिया घोषित होने पर भी आज बङी कंपनी में गिनी जाती है और अच्छा कारोबार कर रही है। तुम अभी हमारे प्रधानमंत्री को जानते नही वो बाजू में IIM लेकर घूमते हैं और तो और हमारे प्रधानमंत्री  अपनी कंपनी यानि की पार्टी के CEO भी तो हैं। कश्मीर की बात करते हो, क्या तुमने देखा नही महाराष्ट्र और हरियाणां में पहली बार भाजपा आगई; आशा करते हैं दूरदर्शिता तुम्हे समझ में आगई होगी।

मैने कहा ये तो अच्छी बात है, अपनी पार्टी का कर्ज तो अदा कर रहे हैं वरना कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होने वसियत में मिली पार्टी को ही निगल लिया। मित्र बोला, कौन किसका कर्ज अदा कर रहा है मैं ये तो नही जानता लेकिन एक बात ये जरूर जानता हुँ कि पेट्रोल डीजल के दाम कम होने से हम जनता को जरूर राहत महसूस हो रही है।

मेरे और मित्र के बीच बात करते हुए कब सुबह हो गई पता ही नही चला। ये सुबह मेरे लिये नई जरूर थी किन्तु अपनी भारतीय संस्कृति की खुशबु के साथ थी। आज हमारी सामाजिक संरचना पहले से अपडेट हो गई है, पहले से कहीं अधिक संख्या में दामिनी के साथ खङी होती है तो कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ एक साथ विरोध करती दिखती है। पलभर में फेसबुक,ट्युटर और वाट्सअप के जरिये फेस टू फेस नजर आती है। परिवर्तन तो जीवन का चक्र है और विकास का सूचक भी, यदि इस विकास में हम अपनी वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति से भी जुङे हुए हैं तो ये अपडेट सोने में सुहागा है। इन्ही अच्छी यादों के साथ मैंने अपने कार्यक्षेत्र की ओर वापसी की....... 

धन्यवाद 



Wednesday, 5 November 2014

आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को दृष्टीबाधिता भी रोक न सकी.....

अक्सर हम लोग पढाई के दौरान या कैरियर बनाते समय किसी न किसी ऐसी महान विभूति के जीवन के बारे में पढते हैं जिससे हमें प्रेरणा मिलती है। भले ही हम उन्हे व्यक्तिगत रूप से न जानते हों फिर भी उनके अनुभव से हम रास्ते में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को दूर कर पाते हैं। विवेकानंद जी की बात करें या ए.पी.जे. अब्दुल्ल कलाम साहब की, ये विभूतियाँ आज भी अनेक लोगों के लिये आदर्श हैं। मेरे लिये भी ये आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत हैं। इसके साथ ही मुझे कुछ ऐसी बच्चियों से भी प्रेरणा मिलती है, जिनके साथ हम कुछ शैक्षणिंक कार्यक्रमों के कारण जुङे। आज हम जिन बालिकाओं के बारे में बात करने जा रहे हैं वो भले ही लाखों लोगों के लिये प्रेरणास्रोत न हों किन्तु मेरे लिये एवं उन जैसी ही अन्य दूसरी बालिकाओं के लिये सफल प्रेरक हैं। इंदौर की रश्मि चौरे और रजनी शर्मा ऐसी बालिकाएं हैं जिन्होने, हर विपरीत परिस्थिति में धैर्य के साथ सकारात्मक दृष्टीकोंण लिये आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को साकार करने में सफल हुईं हैं।

मित्रों, रश्मि और रजनी के जीवन का सफर इतना आसान नही है क्योंकि ईश्वर ने इन्हे बनाने में थोङी कंजुसी कर दी है। ये बालिकाएं दृष्टीबाधिता के बावजूद  अपनी दृणइच्छा शक्ति (Will Power) के बल पर सफलता के सोपान पर पहला कदम रख चुकी है अर्थात आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गईं हैं। इनके जीवन का सफर आसान तो बिलकुल भी नही था क्योंकि यदि विज्ञान की माने तो ज्ञानार्जन का 80%  ज्ञान हमें आँखों द्वारा ही होता है। अपनी इस कमी के बावजूद इन बच्चियों ने जहाँ चाह है वहाँ राह है कहावत को चरितार्थ किया है। सोचिये! जहाँ हम आँख पर पट्टी बाँध कर चार कदम भी नही चल पाते वहाँ ये बालिकाएं जीवन के 22-23 वर्षों को पार करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ रही हैं।

रशमि ने राजनीति शास्त्र से एम.फिल किया है, सपना है प्रोफेसर बनने का किन्तु उसकी एक विचार धारा ये भी है कि अन्य विधाओं की प्रवेश परिक्षा भी देते रहना चाहिये। वे प्रवेश परिक्षाओं हेतु पढाई भी करती रहती है। एम.फिल. के दौरान ही उसका चयन बैंक में हो गया। आज उसकी नियुक्ति इंदौर में युनियन बैंक की मुख्य शाखा में हो गई है। जन्म से ही रशमि को दृष्टीबाधिता की शिकायत थी। जैसे-जैसे बङी हुई तो छोटी बहन को स्कूल जाते देख बहुत रोती। ऐसा नही था कि माता-पिता पढाना नही चाहते थे किन्तु इटारसी जैसी जगह पर जहाँ सुविधाएं कम हों वहाँ दृष्टीबाधितों के लिये पढना तथा आगे बढना, किसी एवरेस्ट पर चढने से कम नही होता। समाज की उदासीनता भी ऐसी परेशानियों को और बढाने का ही काम करती हैं। ऐसे में रश्मि की दादी ने बहुत जागरुकता दिखाई वे कई स्कूल गईं वहाँ वे अध्यापकों से मिन्नत करती कि मेरी पोती को विद्यालय में बैठने दो, आखिरकार उनका प्रयास रंग लाया और एक विद्यालय ने रश्मि को एडमिशन दिया। जहाँ वे मौखिक शिक्षा ग्रहण करने लगी। रश्मि का पढाई के प्रति  आर्कषण देखकर उसके पिता उसे इंदौर में दृष्टीबाधित संस्था  में दाखिला करा दिये। जहाँ उसने ब्रेल लीपी का विधिवत अध्ययन किया। 8वीं के बाद सामान्य बच्चियों के साथ सरकारी स्कूल में पढी तद्पश्चात कॉलेज में उच्च अध्ययन के लिये गई। 9वीं से एम.फिल. तक की शिक्षा सामान्य छात्रों के साथ ही हुई। अध्ययन के दौरान नाटक, वाद-विवाद तथा नृत्य जैसी विधाओं में अनेक पुरस्कार प्राप्त करके स्वयं का एवं संस्थान का गौरव बढाया। परिवार की जागरुकता और रश्मि का हौसला सफल हुआ। असंभव को संभव करते हुए आत्मनिर्भर की चाह का अंकुरण हुआ, जो आज भी रश्मि की सकारात्मक सोच और दृणइच्छाशक्ति से पल्लवित हो रहा है।

रश्मि के बारे में पढते समय आपके मन में ये अवश्य आया होगा कि बैंक में तो रुपये का लेन-देन होता है, वहाँ दृष्टीबाधित लोग कैसे काम करेंगे। मित्रों, आज विज्ञान ने बहुत तरक्कि कर ली है। कोई भी शारीरिक अक्षमता किसी भी कार्य क्षेत्र में बाधा नही है। यदि मन सक्षम और दृणं है तो रास्ते तो विज्ञान ने बना दिये हैं। सच तो ये है कि यदि हम असफल होते हैं तो अपनी मानसिक विकलांगता के कारण। यदि बात करें रशमी की तो उसकी नियुक्ति युनियन बैंक की मुख्य शाखा में हुई है। यहाँ वो सीधे तौर पर बैंक ग्राहंको से नही जुङी है। उसका कार्य़ क्षेत्र बैंक की अन्य शाखाओं के साथ है। जॉज़ 13,14 और 15 जैसे सॉफ्टवेयर के माध्यम से वे अपने कार्य को सुचारु रूप से कर रही है। प्रवेश परिक्षा में पास होने के बाद उसे लखनऊ में बैंक के कार्य संबन्धित ट्रेनिगं दी गई। जहाँ सामान्य बालक-बालिकाओं के साथ रश्मि जैसे ही 35 बच्चे थे, जिनकी नियुक्ति अलग-अलग बैंकों में हुई।  

अब बात करते हैं रजनी की, वह भी बहुत होशियार बालिका है। जब वे 12 वर्ष की थी, तब उसे आई.टी.पी. बिमारी हुई जिसमें रक्त में प्लेटलेट्स कम हो जाती है और शरीर की कमजोर नसों से रक्त बहने लगता है। इस बिमारी का प्रकोप उसके आँखों पर हुआ, आँख के अंदर की रक्तवाहिकाओं के फटने से उसकी आँखों के परदे पर खून जम गया और उसे दिखना बंद हो गया। 
(Idiopathic thrombocytopenic purpura (ITP) is a disorder that can lead to easy or excessive bruising and bleeding. The bleeding results from unusually low levels of platelets — the cells that help your blood clot .Idiopathic thrombocytopenic purpura, which is also called immune thrombocytopenic purpura, affects both children and adults. Children often develop idiopathic thrombocytopenic purpura after a viral infection and usually recover fully without treatment. In adults, however, the disorder is often chronic.  )

सोचिये! इतनी छोटी सी उम्र में जहाँ सब ठीक चल रहा हो वहाँ अचानक सब कुछ अंधकार में डूब जाये। निःसंदेह वो पल उसके एवं उसके परिवार वालों के लिये अत्यधिक कष्टप्रद रहा होगा। परंतु उसकी स्वंय की हिम्मत और परिवार वालों के साथ से उसे नये रास्ते पर आगे बढने का हौसला मिला। उज्जैन में अधिक सुविधा न होने के कारण रजनी के अभिभावक ने उसका दाखिला इंदौर की दृष्टीबाधित संस्था में करा दिया। पढाई में वो लगभग सदैव अव्वल रही और सामान्य बालिकाओं के साथ पढते हुए भी कक्षा में प्रथम आती रही। उसका ये क्रम विद्यालय तक अनवरत चलता रहा। कविता लिखने के साथ-साथ उसने वाद-विवाद, नृत्य तथा निबंध प्रतियोगिताओं में बहुतायत पुरस्कार अर्जित किये हैं। हिन्दी से एम.ए. प्रथम श्रेंणी में पास करने के बाद प्रशासनिक सेवाओं में जाने की तैयारी कर रही है। इसी दौरान उसकी नियुक्ति देवास में राजस्व विभाग में LDC के पद पर हो गई है। जहाँ उसे मेल चेक करना, लेटर टाइप करना जैसे दायित्व सौंपे गये हैं। संस्था में रहते हुए ही रजनी ने टाइपिंग का कोर्स भी कर लिया था। अपनी बिमारी के दर्द को सहते हुए आगे बढने के लिये सदैव तत्पर है। रजनी का मानना है कि,  भले ही मंजिल हो अभी दूर, वो भी मिलेगी एक दिन जरूर। उसके ऐसे ही सकारात्मक विचारों को उसकी कविता (रौशनी का कारवां) में पढा जा सकता है, जिसे हमने अपने ब्लॉग पर लिखा है। नित नई चिजों को सीखना उसकी आदत में है। वर्तमान में रजनी आंध्र बैंक भोपाल में राज्य भाषा अधिकारी के रूप में कार्यरत है। विपरीत परिस्थिति में भी कामयाबी की संभावनाओं को तलाशते हुए, आज रजनी अपने लक्ष्य की ओर बढते हुए कई लगों के लिये प्रेरणास्रोत है। 

मित्रों, ऐसा नही है कि रजनी और रश्मि को कभी नकारात्मक खयाल नही आए किन्तु उन दोनों ने अपने आत्मनिर्भर बनने के सपने को ज्यादातर सकारात्मक खाद से ही सींचा। जिसका सुखद परिणाम आज उन दोनो के सामने है। ये मेरा सौभाग्य है कि हमें इनको पढाने का अवसर प्राप्त हुआ और जीवन में इनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला।  आज भले ही शिक्षा के सोपान को पार करके इन दोनों ने नौकरी के सोपान पर कदम रख लिया हो, परंतु उनकी राह आसान नही है। अभी भी वे समाज में अपने अस्तित्व को स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं। हमारे समाज का कर्तव्य बनता है कि हम उनके प्रयासों की प्रशंसा करें और उनको अपना सहयोग दें क्योकि नये वातावरण में सामजस्य बैठाने में थोङा वक्त लगता है। वैसे तो इस प्रकार की परेशानी किसी के साथ भी हो सकती है किन्तु नई जगह पर वाँश रूम जाने या सीट पर वापस आने जैसी छोटी-छोटी मुश्किलों में महिला सहकर्मचारियों का सहयोग इनके लिये सकारात्मक सहारा बन सकता है। समाज का ईमानदारी से किया सहयोग रजनी और रश्मि जैसे अनेक लोगों को आगे बढने के लिये हौसला दे सकता है।  अतः अपना सहयोग दें न की दया, क्योंकि आपका सहयोग सभ्य समाज का संदेश भी देगा।

नोटः-  सभी पाठकों से निवेदन है कि, YouTube पर रजनी की आवाज में उसके मन की बात आप अवश्य सुने। आपके सकारात्मक संदेश भी रजनी एवं रश्मि को हौसला देंगे अतः अपने विचार अवश्य लिखें, हम आपका संदेश उन तक अवश्य पहुँचायेंगे। 
धन्यवाद
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