Sunday 30 November 2014

विकलांगता अभिशाप नही है


हमारे समाज में प्रचलित चलन के अनुसार हम किसी योजना या किसी आन्दोलन की, शुरुवात तारीख को प्रतिवर्ष उस दिन उसकी याद में पूरी शिद्दत से मनाते हैं और तो और उस आयोजन के उद्देश्य को भी याद करते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए हम 1992  से 3 दिसम्बर को प्रतिवर्ष विकलांगता दिवस मनाते हैं। इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक तथा खेलकूद से संबन्धित कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, रैलियाँ निकाली जाती है तथा सरकार द्वारा शारीरिक अक्षम लोगों के हित के लिये कई लाभकारी योजनाओं की भी घोषणां की जाती है। विकलांगता दिवस मनाने का उद्देश्य है कि, आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ हो रहे भेद-भाव को समाप्त करना तथा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना। इसी के तहत 2013 के विकलांगता दिवस का थीम था, बंधनो को तोडो. दरवाजों को खोलो अर्थात सभी का विकास समावेशी समाज में।

वास्तविकता तो ये है कि हम वर्ष के सिर्फ एक दिन उस दिवस के उद्देश्यों और आदर्शों को बहुत शिद्दत से मनाते हैं लेकिन अगले ही दिन हम उन आदर्शों और उद्देशों को भूल जाते हैं। हमसब अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं। जबकी खास तौर से विकलांगता दिवस का उद्देश्य तभी सार्थक हो सकता है जब हम सिर्फ एक दिन नही वरन वर्ष के सभी दिन उन्हे अपने समाज का हिस्सा माने और उनके साथ सहयोग की भावना रखें।

आज हमारा देश भारत विकासशील देश की श्रेंणी में है।  हमने विज्ञान में अनेक कीर्तिमान रचे हैं, हाल ही में हम मंगल पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। परंतु अभी भी हम भेद-भाव के वायरस को समाप्त नही कर सके हैं। मित्रों,  शारीरिक अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और दुर्घटना की वजह से भी हो सकती है, परंतु जिस विकलांगता का उन्हे एहसास कराया जाता है वो हमारे समाज की विकलांग मानसिकता को ही दर्शाती है।

यदि हम दृष्टिबाधित लोगों की बात करें तो उन्हे सबसे पहले अपने परिवार वालों की ही उपेक्षा का शिकार होना पङता है क्योंकि कई परिवार तो इस डर से कि, समाज में कोई क्या कहेगा या परिवार के बाकी बच्चों का विवाह कैसे होगा जैसे कारणों की वज़ह से दृष्टीबाधितों को छुपाकर रखते है या उन्हे किसी संस्था में छोङ कर दुबारा उनकी तरफ देखते भी नही। बहुत कम खुशनसीब दृष्टीबाधित बच्चे हैं जिनका परिवार उनके साथ होता है। मित्रों, ऐसी उपेक्षित परिस्थिति में दृष्टीबाधित बच्चों का सकल विकास कैसे संभव हो सकता है?

हमारी प्रचलित मान्यताएं और रुढीवादी विचारधारा इस परेशानी में आग में घी का काम करती हैं। वर्षों पहले तक अक्षम बच्चों को अपमान जनक समझा जाता था। दृष्टीबाधिता को सजा का प्रतीक समझा जाता था। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आज भी समाज के कुछ वर्ग में ये मनोवृत्ति व्याप्त है कि अंधापन उनके पूर्व जनम के पाप की सजा है या उनके माँ-बाप के अनुचित कार्यों का ही परिणाम है। आज समय के साथ शिक्षा के विस्तृत ज्ञान ने सामाज की अवधारणा को थोङा परिवर्तित जरूर किया किन्तु आज भी अंधापन सजा की परिभाषा से निकलकर दयाभाव, भिक्षादान के जाल में उलझ गई है। जिसमें अक्सर मानवतापूर्ण सहानुभूति का अभाव नजर आता है। सच्चाई तो ये है कि यदि हम दृष्टीबाधित बच्चो को भी उचित सहयोग और अवसर प्रदान करें तो वो भी आत्मनिर्भर बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं क्योकि विकलांगता कोई अभिशाप नही है।

मदर टेरेसा के अनुसार, "महत्वपूर्ण ये नही है की आपने कितना दिया, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि देते समय आपने कितने प्यार से दिया।" 

विकास के इस दौर में आप सबसे अनुरोध है कि, हम सब मिलकर दृष्टीबाधित बच्चों के लिये मानवीय भावना से ओत-प्रोत एक ऐसे आसमान की रचना करें, जिसकी छाँव में दृष्टीबाधित बच्चे सकारात्मक सहयोग और स्वयं के प्रयास से आत्मनिर्भर बन सकें। मित्रों, दृष्टीबाधितों के विकास में हम उनकी शैक्षणिक पाठ्य सामग्री को रेकार्ड करके, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) बनकर  तथा चिकित्सा आदि के माध्यम से अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को निभा सकते हैं। हम सबकी सामाजिक चेतना के सहयोग से, दृष्टीबाधित बच्चों में भी आत्म-सम्मान से जीने की भावना का विकास होगा, जो किसी भी समाज और देश के लिये हितकर होगा। समाज की प्रथम ईकाइ परिवार के भावनात्मक सहयोग और हम सबके मानवीय दृष्टिकोंण  से दृष्टीबाधितों को जो सुरक्षित और आशावादी क्षितिज प्राप्त होगा उसकी मधुर एवं संवेदनशील छाँव में ये बच्चे निश्चय ही विकास की इबारत लिखेंगे।  निःसंदेह हम सबके साथ से विकलांता दिवस  सार्थक और सफल बन सकता है।

"Children with Disabilities are like Butterflies with a broken wings. They are just as beautiful as all others, But they need help to spread their Wings" 

नोटः- कई दृष्टिबाधित समाज की मानवीय जागरुकता और पारिवारिक सहयोग से आत्मनिर्भरता के साथ समाज में अपना विशेष स्थान बनाने में सफल हुए हैं। सकारात्मक दृष्टिकोंण लिये ऐसे ही लोगों के बारे में दिये गये लिंक पर क्लिक करके अवश्य पढें।

अंधेरी दुनिया में हौसले की रौशनी

आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को दृष्टिबाधिता भी रोक न सकी

धन्यवाद 




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