Wednesday, 25 March 2015

परिक्षा में नकल सफलता का आधार नही है

आधुनिक सदी में शिक्षा ही एकमात्र ऐसा सशक्त  हथियार है जो पूरी दुनिया को बदलने की ताकत रखता है। बाल्यकाल की शिक्षा तो उस नींव के समान है जिस पर उज्जवल भविष्य की ईमारत खडी होती है। बाल्यकाल से ही शिक्षा के प्रति जागृति का असर जिवन पर्यन्त लाभ देता है। शिक्षा समाज में नैतिकता की परिचायक है, परंतु विगत कुछ समय से शिक्षा के क्षेत्र में जिस तरह की अनैतिकता का जन्म हुआ है, वो किसी भी समाज, देश तथा दुनिया के पतन का मुख्य कारण है। आज आधुनिकता के साथ शिक्षा के क्षेत्र में नकल के लिए नए-नए आइडियाज का आविष्कार हो रहा है। एक फिल्म आई थी मुन्नाभाई एम बी बी एस जिसमें मोबाइल जैसे नए उपकरण का उपयोग परिक्षा में नकल करने के लिये किया गया था।  पिछले सप्ताह टीवी चैनलों पर नकल की जो तस्वीर नजर आई वो तो सीधे तौर पर दादागीरी है जो स्कूल प्रशासन तथा सरकार की कमजोर सुरक्षा प्रणाली को उजागर करती है। उत्तरपुस्तिकाओं को बदल देना तथा पैसे के बल पर डिग्रियाँ खरीदना आमबात होता जा रहा है।  जिन राज्यों की तस्वीर टीवी पर दिखाई गई, ये वो राज्य हैं जहाँ नालन्दा विश्वविद्यालय तथा काशी हिन्दु विश्वविद्यालय जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान स्थित हैं। आज चंद लोगों की अनैतिक शिक्षा नीति के कारण इन प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानो को भी शर्मिन्दा होना पडा क्योंकि सम्पूर्ण राज्य की डिग्री पर ही आज प्रश्न चिन्ह लग गया है। परिक्षा में नकल के वायरस से भारत के कई राज्य ग्रसित हैं।  शॉर्टकट से सफलता पाने की ये मनोवृत्ति किसी भी समाज तथा देश के लिए हानिकारक है। आज तो अफसोस इस बात का भी है कि नकल जैसे अपराध को हमारे राजनेता अनुचित नही मानते और बयान देते हैं कि, मेरे शासन में तो मैं, परिक्षा में  उत्तर लिखने के लिए किताब दे देता। यदि यही सोच है तो,  परिक्षा जैसे प्रावधान की जरूररत ही क्यों है?  बच्चों को बिना परिक्षा के ही पास की डिग्री दे देना चाहिए। स्कूली परिक्षाओं के बाद विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित प्रवेश परिक्षाओं तथा प्रशासनिक सेवाओं में कार्य करने हेतु जो प्रवेश परिक्षाएं होती हैं, उसमें आशातीत परिणाम न मिलने पर युवा वर्ग जिस अवसाद में जाकर आत्महत्या जैसी कोशिशों को अंजाम देता है, उसके लिए बाल्यकाल की शिक्षा प्रणाली बहुत हद तक जिम्मेदार है। आज आबादी का एक बहुत बङा तबका गलत शिक्षा निती के कारण पिछङता जा रहा है। लाखों युवा डिग्री होने के बावजूद बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। इस त्रासदी के जिम्मेदार सिर्फ बच्चे ही नही हैं बल्की अभिभावक, सरकार तथा स्कूल प्रशासन भी बराबर के जवाबदार हैं। आज समाज में बढती आत्महत्या की मानसिकता, अपराधीकरण तथा दिन प्रतिदिन बढता अनैतिक माहौल, हमारी बिमार शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है। नकल का वायरस दिमक की तरह सभ्य समाज को खोखला कर रहा है। भारत का भविष्य आज के बच्चे हैं, भविष्य को सच्ची और सार्थक शिक्षा का मार्ग दिखाना वर्तमान की जिम्मेदारी है। Education is not a Problem. Education is an Opportunity दोस्तों, यदि समय रहते हमलोग नही जागे तो अनुचित तरीके से प्राप्त डिग्रियां इंटरव्यु तथा प्रवेश परिक्षाओं की असफलता को बर्दाश्त नही कर पायेंगी। जिसके परिणाम में लाखों युवा अवसाद के आगोश में चले जायेंगे। 

अतः सभी विद्यार्थियों से मेरा निवेदन है कि, शॉर्टकट को न अपनाएं अपनी मेहनत और बुद्धी के दमपर अपनी योग्यता को सिद्ध किजिए। विद्यार्थी जीवन में कितनी भी शारीरिक, प्राकृतिक और वैचारिक बाधाँए आए फिर भी हमें अपना आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिये क्योंकि परिक्षा में नकल करना किसी भी ज्ञान या परिक्षा को पास करने का समाधान नही है। ईमानदारी से प्राप्त शिक्षा तो उस प्रकाश के समान है जो विद्यार्थी के जिवन को पतन के अंधकार से दूर करती है। शिक्षा व्यपार की वस्तु नही है बल्की वास्तविक और सच्ची शिक्षा व्यक्ति के आत्मिय विकास में अह्म योगदान देती है और उसे सफलता के शिखर पर पहुँचाती है।  शिक्षा तो सभ्य समाज की नीव है इसे नकल के वायरस से बचाना हमसब की नैतिक जिम्मेदारी है क्योंकि परिक्षा में नकल सफलता का आधार नही है।   Respected A.P.J. Kalam says, 
                       Learning gives creativity,
                       Creativity leads thinking,
                       Thinking provides knowledge,
                       Knowledge makes you great. 








Sunday, 22 March 2015

देशभक्त सरदार भगत सिंह


आज हम लोग जिस आजाद फिज़ा में सांस ले रहे हैं, उसके लिए अनेक देशभक्तों ने अपना सर्वस्य बलिदान कर दिया था।  अपने जीवन की आहुति देकर भारत माता के अनेक सपूतों ने भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया। सरदार भगत सिंह उन्ही सच्चे सपूतों में से एक हैं। भगत सिंह ने अपने जीवन की आहुति देकर ये सिद्ध कर दिया कि वे भारत माता के सच्चे सपूत थे। भगत सिंह सिर्फ क्रांतिकारी ही नही थे बल्की उनके व्यक्तित्व के और भी पहलु ऐसे हैं, जो उन्हे महान बनाते हैं। विलक्षण प्रतिभा के धनी भगत सिंह भारतीय क्रांति के दार्शनिक तथा सुलझे हुए लेखक भी थे। 1930 में उन्होने संपादक मॉर्डन रिव्यु के नाम से एक पत्र लिखा था। जो भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज के नाम से संकलित है। इस पत्र में भगत सिंह ने क्रांति के प्रति अपने दृष्टीकोंण को व्यक्त किया था। उनके अनुसार " क्रांति (इंकलाब) का मतलब अनिवार्य रूप से सशत्र आंदोलन नही होता। विद्रोह को क्रांति नही कहा जा सकता, यद्यपि ये हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो।"

जन आंदोलन के प्रति भगत सिंह का दृष्टीकोंण बहुत स्पष्ट था। 1929 में लाहौर के ट्रिब्युन में प्रकाशित विद्यार्थियों के नाम पत्र लिखते हुए कहा था कि, " हम इस समय विद्यार्थियों से  बम और पिस्तौल उठाने को नही कह सकते उनके सामने और भी महत्वपूर्ण कार्य हैं। भगत सिंह का एक महत्वपूर्ण गुंण था उनका लचिलापन जिसके कारण वो रुढीवादी, अढियल स्वभाव के नही थे। महात्मा गाँधी के विचारों से मतभेद रखने के बावजूद वे कांग्रेस द्वारा संचालित जन-आंदोलन में बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। अपनी गिरफ्तारी के दौरान उन्होने भूख हङताल जैसे शस्त्र को भी अपनाया। यद्यपि ये अस्त्र गाँधी जी का था, लेकिन जेल में कैदियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए इस अस्त्र को भी अपनाने में भगत सिंह ने  संकोच नही किया। भगत सिंह जेल में भूख हङताल के दौरान इतने प्रसिद्ध हो गये थे कि 30 जून 1929 को पूरे देश में भगत सिंह दिवस मनाया गया था। लाला लाजपत राय से भगत सिंह का संबध क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का दिलचस्प अध्याय है। वैचारिक भेद होने के बावजूद भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मृत्यु को राष्ट्रीय अपमान समझा और उन्होने योजनाबध तरीके से इस राष्ट्रीय अपमान का बदला भी लिया। देशप्रेम का ज्वार उनके रग-रग में समाया हुआ था। उनका कहना था कि, मेरे जज़बातों से इस कदर वाकिफ है कलम मेरी कि, इश्क भी लिखना चाहुँ तो इंकलाब लिख जाता है। 

भगत सिंह को जेल में अमानविय यातनाओं से गुजरना पडा था फिर भी उनके चेहरे पर शिकन नही रहती थी।इंकलाब जिंदाबाद का नारा सदैव बुलंद आवाज में गुंजायमान करते थे।  न्यायालय में जब भगत सिंह पर अभियोग की चर्चा हो रही थी तब उनके समर्थक उन्हे लाहौर जेल से छुडाने की योजना बना रहे थे लेकिन  भगत सिंह ने अपने समर्थकों को समझाया कि दो-चार व्यक्तियों के लिए मैं इतने अधिक लोगों का रक्तपात  नही देख सकता।  उनका कहना था कि व्यक्ति विशेष को महत्व न देकर राष्ट्र के स्वतंत्रता आंदोलन को महत्व देना चाहिए। सरदार भगत सिंह की जिंदगी, क्रांतिकारी रणनितियों को लेकर दुःसाहसिक प्रयोगों से भरी हुई थी। 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि,  आजादी के दौरान जन-मानस में क्रांति की चिंगारी जलाने वाले शहीद भगत सिंह का नाम भारत के भाल पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ है। भगत सिंह के बलिदान ने आजादी की जो आग जलाई थी उसकी तपन आज भी महसूस की जा सकती है। भगत सिंह शौहरत से प्रभावित होकर डॉ. पट्टासितारमैया ने कहा था कि, भगत सिंह का नाम उतना ही लोकप्रिय है जितना गाँधी जी का। भगत सिंह के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, उनकी शहादत पर गाँधी जी एवं नेहरु जी ने भी अंग्रेजों की नीति की घोर निंदा की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तो यहाँ तक कहा था कि, अंग्रेजों ने बिना जाँच-पङताल के ही उन्हे फाँसी दे दी, जो अन्याय की पराकाष्ठा है। 

23 मार्च को सुखदेव एवं राजगुरु के साथ भगत सिंह को फांसी दे दी गई थी। भारत माता के ये सच्चे सपूत इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए खुशी-खुशी भारत माता की गोद में समा गये। अनेक युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भगत सिंह , राजगुरु एवं सुखदेव की शहादत को इतिहास कभी भुला नही सकता। उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

इंकलाब जिंदाबाद 
सुखदेव, राजगुरु तथा भगतसिंह के बारे में अधिक पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

शहीद दिवसः जरा याद करो कुर्बानी






Wednesday, 11 March 2015

सहयोग की भावना मानवता की प्रतीक है


दोस्तों, वर्तमान युग नई तकनिकों का युग है और हम सब आधुनिक सोच के साथ आगे बढ रहे हैं। हमारी सामाजिकता ने भी आधुनिकता अपना ली है। फेसबुक तथा वाट्सअप को अपनाते हुए हम सब व्यस्त जिंदगी में भी समाज के करीब हैं और एक दूसरे की सहयाता भी इन नये तरिकों से करने लगे हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि हम कितने भी आधुनिक हो जायें फिर भी हम समाज और उसके सहयोग की अहमियत को समझते हैं क्योंकि समाज से परे एकांकी रहकर तो व्यक्तिगत जीवन का भी विकास संभव नही है। धरती पर जीवन की बनावट ही कुछ ऐसी है कि मनुष्य अपने आप में सिमट कर नही रह सकता। विकास की यात्रा हो या जिवन यापन की जरूरतें सब के सहयोग से ही पूर्ण होती है। गौतम बुद्ध, महावीर, ईसा तथा विवेकानंद जी की शिक्षाओं का ही परिणाम है कि, समस्त देश मानव समाज के विकास हेतु एक मंच पर सहयोग की भावना का आगाज कर रहे हैं। हमारा सामाजिक ढांचा सात सुरों का संगम है, जहाँ कुछ सुर मध्यम तथा कुछ सुर ऊँचे लगते हैं परंतु जब सब सुर मिल जाते हैं तो एक मधुर संगीत गूँजता है। उसी तरह समाज में सबल-निबर्ल, सक्षम-अक्षम, ज्ञानी-अज्ञानी इत्यादी सभी तरह के लोग विद्यमान हैं। कहने का आशय है कि कोई भी सर्वगुणं सम्पन्न नही होता परंतु सहयोग की भावना से व्यक्ति खास हो जाता है। जिस तरह आम के पेङ की शीतल छाया तथा मधुर फल, किसान के सहयोग का ही परिणाम है क्योंकि किसान द्वारा उचित समय पर खाद एवं पानी देने से आम का वृक्ष अन्य लोगों के लिए परोपकारी बन जाता है। सहयोग का ये क्रम एक चेन की तरह है तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। ईश्वर ने सबको समान नही बनाया है। प्रकृति का भी स्वरूप भिन्नताओं से भरा हुआ है फिर भी संसार का विकास सभी के सहयोग से गतिमान है। उसी तरह  समाज भी भिन्नताओं से भरा हुआ है, जहाँ   ऐसे भी लोग हैं जिनको समाज के सकारात्मक सहयोग की आवशयकता थोङी अधिक होती है। मित्रों, हमारा देश हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर रहते हुए आगे का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। हम सब भी अपने सहयोग की भावना को इस तरह प्रकाशित करें कि जिससे दृष्टीबाधित लोगों का जीवन आत्मसम्मान से रौशन हो जाये और भारत स्वदेशी सहयोग के धन से परिपूर्ण हो जाए। हमारी भारतीय संस्कृति का जीवन दर्शन भी यही है कि, सबका हित, सबका सुख, सबका लाभ। दूसरों की सहयाता करने का गुणं अर्थात सहयोग की भावना मानवता की प्रतीक होती है। 
धन्यवाद

दृष्टीबाधितों की सहायता कैसे कर सकते हैं






Saturday, 7 March 2015

महिला दिवस पर विशेष (डॉ. मधु सिघल)

मित्रो, भारत देश में अनेक ऐसी महिलाएं हुईं हैं, जिन्होने एक आदर्श प्रस्तुत किया है,  विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होने अपनी दृण इच्छाशक्ति से वो सब संभव किया है जो कभी असंभव नजर आता था। अपनी एक पहचान बनाने का सपना लिए अनेक महिलाओं ने हौसले की उङान भरी और उन्होने सिद्ध कर दिया कि, मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखों से कुछ नही होता हौसलों से उङान होती है। 

महिला दिवस के इस विशेष पर्व पर आज हम एक ऐसी महिला का जिक्र करना चाहेंगे जो, सिर्फ महिलाओं के लिए ही नही वरन् उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो अपनी जिंदगी में आत्म सम्मान से आगे बढना चाहते हैं। हजारों लोगों को रौशनी का दिया दिखाने वाली मधु सिंघल जी एक ऐसी महिला हैं जिन्होने अपनी जिंदगी का सफर अनेक मुश्किल भरे दौर से गुजारा है। उनकी सकारात्मक सोच ने उन्हे  इस मुकाम पर पहुँचाया दिया कि, आज मधु जी को पिछे मुङकर देखने की जरूरत नही है। जो कभी स्वंय नौकरी के लिए कई दफ्तरों के चक्कर लगाया करती थीं, वो आज अनेक लोगों को नौकरी देने तथा दिलवाने का कार्य कर रही हैं। स्वंय दृष्टीबाधित होते हुए हजारों लोगों को आत्म सम्मान से जीने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। 


मधु सिंघल जी जब दो महिने की थीं तो उनकी माँ को पता चला कि, मधु देख नही सकती। स्वाभाविक है उनके माता-पिता को ये जानकर काफी दुखः हुआ होगा। परंतु उन लोगों ने अपने आप को सम्भालते हुए, मधु जी की परवरिश करते रहे। कक्षा छठवीं तक की शिक्षा उनकी घर पर हुई। जब वे थोङी बङी हुईं तो उन्हे ये एहसास होने लगा कि उनके समकक्ष उम्र के बच्चे उनके साथ खेलना नही चाहते। उन्होने  अपनी वास्तविक स्थिति को स्वीकार करते हुए खुश रहना बचपन से ही सीख लिया था। 


कक्षा छठवीं के बाद उनका दाखिला सामान्य बच्चों के स्कूल में हुआ, जो आसान नही था। एकबार तो उनको स्कूल में लेने से मना कर दिया गया था, परंतु उनकी माता जी के अनुरोध पर दाखिला ले लिया। सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए अपनी पहचान बनाना आसान नही था किन्तु अपने गहन अध्यन के बल पर मधु जी शिक्षकों की प्रिय छात्रा बन गईं। उनके समकक्ष दोस्त भी उनकी प्रतिभा के कायल हो गये। अध्ययन के दौरान स्कूल की अन्य गतिविधियों में भी भाग लेती थीं तथा पुरस्कार भी अर्जित करती थीं। उनकी सम्पूर्ण शिक्षा हरियाणा के रोहतक जिले में हुई। ये वो वक्त था जब लङकियों की शिक्षा पर कोई खास महत्व नही दिया जाता था। परिवार के सहयोग से उन्होने 1981 में महर्षी दयानंद युनर्वसीटी से अपना ग्रेजुएशन प्रथम श्रेणी में  पुरा किया। 1983 में हिन्दुस्तानी संगीत में मास्टर की डिग्री प्राप्त  की। 1981 में  कॉलेज की तरफ से ऑल राउन्डर बेस्ट स्टुडेंट की ट्रॉफी से आपको सम्मानित किया गया। उस दौर में आज की तरह कम्प्युटर या कहें की कैसिड का भी अभाव था। तब मधु जी लोगों से किताब पढवाकर सुनती तथा ब्रेल में अपने नोट्स स्वंय ही बनाती थीं। परिक्षा के समय सहलेखक की समस्या को भी उन्होने फेस किया। ये समस्या आज भी बहुत ज्यादा है। 


मित्रों, जिंदगी इतनी आसान नही होती, परिक्षाएं लेती रहती है। मधु जी के साथ भी कुछ ऐसा हुआ, जब सब कुछ सामान्य चल रहा था, तभी उनके पिता जी का देहान्त हो गया और उनको अपनी माँ के साथ भाई के पास कानपुर आकर रहना पङा। नया शहर अन्जान लोग और एक ऐसा माहौल जहाँ सामान्य लङकियों को भी बाहर निकलने की इजाज़त नही थी। ऐसे में मधु जी की माँ उन्हे बाहर नौकरी करने या पढने के बारे में सोच भी नही सकती थीं। उनका ज्यादातर समय घर पर ही गुजरता था।  पढने की शौकीन थीं तो घर पर ही किताबें पढती। उस दौरान ब्रेल में ज्यादा पत्रिका भी नही आती थी। दृष्टीबाधित लोगों के लिए तब सिर्फ एक पत्रिका आती थी। मधु जी उसको पढती तथा उसमें एक कॉलम था, पेन मित्र कॉलम उसके माध्यम से उन्होने अपने जैसे कुछ दोस्त बनाए। धिरे-धिरे जिंदगी का अंधकार दूर होता गया। मधु जी की जिंदगी में एक नई सुबह तब आई जब वे बैंगलोर अपने जीजा जी के यहाँ गईं। वहाँ उनकी बहन और जीजा जी ने उनको आगे बढने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि तुम अपनी राह स्वंय बनाओ। उन लोगों के इसी हौसले का परिणाम है मित्रा ज्योती का संघटन। इस संगठन की नीव  1990 में मधु जी द्वारा रखी गई है। यहाँ भी संघर्ष था किन्तु आगे बढने की चाह ने सभी मुश्किलों को आसान कर दिया। बैंगलोर में उन्होने कन्नङ भाषा तथा अंग्रेंजी भाषा का विधिवत अध्ययन किया। किसी ने सच ही कहा है कि, नींद नही सपने बदलते हैं, मंजिल नही रास्ते बदलते हैं। जगा लो जज्बा जीतने का, किस्मत की लकीरें बदले न बदले, वक्त जरूर बदलता है। मधु जी ने भी किस्मत पर रोने के बजाय अपने जज्बे से आज ऐसा मुकाम बनाया कि वे अनेक लोगों के लिए आर्दश बन गईं हैं।  


मित्रा ज्योति संस्था सिर्फ दृष्टीबाधित लोगों के लिए ही नही वरन अन्य विकलांग लोगों के लिए भी कार्यरत है। जहाँ कम्प्युटर ट्रेनिंग, लङकियों के लिए किचन सम्बन्धित कार्य की ट्रेनिग इत्यादी ऐसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसको सीख कर कई बच्चे आत्मनिर्भर हो रहे हैं।। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि मधु जी के प्रयासों से आज कई बच्चे अनेक विकलांगता के बावजूद आत्मसम्मान से जीवन यापन कर रहे हैं। मधु सिंघल जी ,  भारत की हेलेन केलर हैं। जिन्होने असंभव को अपने प्रयासों से संभव कर दिया है। अब तक 5000 लोगों को नौकरी दिलवाने वाली सशक्त महिला मधु सिघल जी को 2008 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दृष्टीबाधितों को आत्मनिर्भर बनाने के क्षेत्र में महिला सामाजिक उद्यमी के वर्ग में डॉ. मधु सिंघल जी को सदूरु ज्ञानानंद पुरस्कार 2011(Saduru Gnanananda Awardees 2011) से सम्मानित किया गया। 
ये हम सबके लिए खुशी की बात है कि,मेरी जानकारी के अनुसार, डॉ. मधु सिंघल, भारत की पहली दृष्टीबाधित महिला हैं जिनको बिजापुर युनिर्वसीटी कर्नाटका से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से 5 मार्च 2015 को सम्मानित किया गया है। Visual Impaired बच्चों के लिये उनके द्वारा किया गया कार्य अतुल्यनिय है।
महिला दिवस पर डॉ. मधु सिघल जी के बारे में लिखना मेरा सौभाग्य है। मधु जी के साहस और प्रयासों का अभिनंदन तथा वंदन करते हुए कहना चाहेंगे कि,

कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नही मन चाहिए, साधन सभी जुट जायेंगे, संकल्प का धन चाहिए, गहन संकल्प से ही संभव है पूर्ण सफलता। 

                   महिला दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामना