Saturday, 7 March 2015

महिला दिवस पर विशेष (डॉ. मधु सिघल)

मित्रो, भारत देश में अनेक ऐसी महिलाएं हुईं हैं, जिन्होने एक आदर्श प्रस्तुत किया है,  विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होने अपनी दृण इच्छाशक्ति से वो सब संभव किया है जो कभी असंभव नजर आता था। अपनी एक पहचान बनाने का सपना लिए अनेक महिलाओं ने हौसले की उङान भरी और उन्होने सिद्ध कर दिया कि, मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखों से कुछ नही होता हौसलों से उङान होती है। 

महिला दिवस के इस विशेष पर्व पर आज हम एक ऐसी महिला का जिक्र करना चाहेंगे जो, सिर्फ महिलाओं के लिए ही नही वरन् उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो अपनी जिंदगी में आत्म सम्मान से आगे बढना चाहते हैं। हजारों लोगों को रौशनी का दिया दिखाने वाली मधु सिंघल जी एक ऐसी महिला हैं जिन्होने अपनी जिंदगी का सफर अनेक मुश्किल भरे दौर से गुजारा है। उनकी सकारात्मक सोच ने उन्हे  इस मुकाम पर पहुँचाया दिया कि, आज मधु जी को पिछे मुङकर देखने की जरूरत नही है। जो कभी स्वंय नौकरी के लिए कई दफ्तरों के चक्कर लगाया करती थीं, वो आज अनेक लोगों को नौकरी देने तथा दिलवाने का कार्य कर रही हैं। स्वंय दृष्टीबाधित होते हुए हजारों लोगों को आत्म सम्मान से जीने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। 


मधु सिंघल जी जब दो महिने की थीं तो उनकी माँ को पता चला कि, मधु देख नही सकती। स्वाभाविक है उनके माता-पिता को ये जानकर काफी दुखः हुआ होगा। परंतु उन लोगों ने अपने आप को सम्भालते हुए, मधु जी की परवरिश करते रहे। कक्षा छठवीं तक की शिक्षा उनकी घर पर हुई। जब वे थोङी बङी हुईं तो उन्हे ये एहसास होने लगा कि उनके समकक्ष उम्र के बच्चे उनके साथ खेलना नही चाहते। उन्होने  अपनी वास्तविक स्थिति को स्वीकार करते हुए खुश रहना बचपन से ही सीख लिया था। 


कक्षा छठवीं के बाद उनका दाखिला सामान्य बच्चों के स्कूल में हुआ, जो आसान नही था। एकबार तो उनको स्कूल में लेने से मना कर दिया गया था, परंतु उनकी माता जी के अनुरोध पर दाखिला ले लिया। सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए अपनी पहचान बनाना आसान नही था किन्तु अपने गहन अध्यन के बल पर मधु जी शिक्षकों की प्रिय छात्रा बन गईं। उनके समकक्ष दोस्त भी उनकी प्रतिभा के कायल हो गये। अध्ययन के दौरान स्कूल की अन्य गतिविधियों में भी भाग लेती थीं तथा पुरस्कार भी अर्जित करती थीं। उनकी सम्पूर्ण शिक्षा हरियाणा के रोहतक जिले में हुई। ये वो वक्त था जब लङकियों की शिक्षा पर कोई खास महत्व नही दिया जाता था। परिवार के सहयोग से उन्होने 1981 में महर्षी दयानंद युनर्वसीटी से अपना ग्रेजुएशन प्रथम श्रेणी में  पुरा किया। 1983 में हिन्दुस्तानी संगीत में मास्टर की डिग्री प्राप्त  की। 1981 में  कॉलेज की तरफ से ऑल राउन्डर बेस्ट स्टुडेंट की ट्रॉफी से आपको सम्मानित किया गया। उस दौर में आज की तरह कम्प्युटर या कहें की कैसिड का भी अभाव था। तब मधु जी लोगों से किताब पढवाकर सुनती तथा ब्रेल में अपने नोट्स स्वंय ही बनाती थीं। परिक्षा के समय सहलेखक की समस्या को भी उन्होने फेस किया। ये समस्या आज भी बहुत ज्यादा है। 


मित्रों, जिंदगी इतनी आसान नही होती, परिक्षाएं लेती रहती है। मधु जी के साथ भी कुछ ऐसा हुआ, जब सब कुछ सामान्य चल रहा था, तभी उनके पिता जी का देहान्त हो गया और उनको अपनी माँ के साथ भाई के पास कानपुर आकर रहना पङा। नया शहर अन्जान लोग और एक ऐसा माहौल जहाँ सामान्य लङकियों को भी बाहर निकलने की इजाज़त नही थी। ऐसे में मधु जी की माँ उन्हे बाहर नौकरी करने या पढने के बारे में सोच भी नही सकती थीं। उनका ज्यादातर समय घर पर ही गुजरता था।  पढने की शौकीन थीं तो घर पर ही किताबें पढती। उस दौरान ब्रेल में ज्यादा पत्रिका भी नही आती थी। दृष्टीबाधित लोगों के लिए तब सिर्फ एक पत्रिका आती थी। मधु जी उसको पढती तथा उसमें एक कॉलम था, पेन मित्र कॉलम उसके माध्यम से उन्होने अपने जैसे कुछ दोस्त बनाए। धिरे-धिरे जिंदगी का अंधकार दूर होता गया। मधु जी की जिंदगी में एक नई सुबह तब आई जब वे बैंगलोर अपने जीजा जी के यहाँ गईं। वहाँ उनकी बहन और जीजा जी ने उनको आगे बढने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि तुम अपनी राह स्वंय बनाओ। उन लोगों के इसी हौसले का परिणाम है मित्रा ज्योती का संघटन। इस संगठन की नीव  1990 में मधु जी द्वारा रखी गई है। यहाँ भी संघर्ष था किन्तु आगे बढने की चाह ने सभी मुश्किलों को आसान कर दिया। बैंगलोर में उन्होने कन्नङ भाषा तथा अंग्रेंजी भाषा का विधिवत अध्ययन किया। किसी ने सच ही कहा है कि, नींद नही सपने बदलते हैं, मंजिल नही रास्ते बदलते हैं। जगा लो जज्बा जीतने का, किस्मत की लकीरें बदले न बदले, वक्त जरूर बदलता है। मधु जी ने भी किस्मत पर रोने के बजाय अपने जज्बे से आज ऐसा मुकाम बनाया कि वे अनेक लोगों के लिए आर्दश बन गईं हैं।  


मित्रा ज्योति संस्था सिर्फ दृष्टीबाधित लोगों के लिए ही नही वरन अन्य विकलांग लोगों के लिए भी कार्यरत है। जहाँ कम्प्युटर ट्रेनिंग, लङकियों के लिए किचन सम्बन्धित कार्य की ट्रेनिग इत्यादी ऐसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसको सीख कर कई बच्चे आत्मनिर्भर हो रहे हैं।। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि मधु जी के प्रयासों से आज कई बच्चे अनेक विकलांगता के बावजूद आत्मसम्मान से जीवन यापन कर रहे हैं। मधु सिंघल जी ,  भारत की हेलेन केलर हैं। जिन्होने असंभव को अपने प्रयासों से संभव कर दिया है। अब तक 5000 लोगों को नौकरी दिलवाने वाली सशक्त महिला मधु सिघल जी को 2008 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दृष्टीबाधितों को आत्मनिर्भर बनाने के क्षेत्र में महिला सामाजिक उद्यमी के वर्ग में डॉ. मधु सिंघल जी को सदूरु ज्ञानानंद पुरस्कार 2011(Saduru Gnanananda Awardees 2011) से सम्मानित किया गया। 
ये हम सबके लिए खुशी की बात है कि,मेरी जानकारी के अनुसार, डॉ. मधु सिंघल, भारत की पहली दृष्टीबाधित महिला हैं जिनको बिजापुर युनिर्वसीटी कर्नाटका से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से 5 मार्च 2015 को सम्मानित किया गया है। Visual Impaired बच्चों के लिये उनके द्वारा किया गया कार्य अतुल्यनिय है।
महिला दिवस पर डॉ. मधु सिघल जी के बारे में लिखना मेरा सौभाग्य है। मधु जी के साहस और प्रयासों का अभिनंदन तथा वंदन करते हुए कहना चाहेंगे कि,

कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नही मन चाहिए, साधन सभी जुट जायेंगे, संकल्प का धन चाहिए, गहन संकल्प से ही संभव है पूर्ण सफलता। 

                   महिला दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामना   















1 comment:

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