Sunday, 22 March 2015

देशभक्त सरदार भगत सिंह


आज हम लोग जिस आजाद फिज़ा में सांस ले रहे हैं, उसके लिए अनेक देशभक्तों ने अपना सर्वस्य बलिदान कर दिया था।  अपने जीवन की आहुति देकर भारत माता के अनेक सपूतों ने भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया। सरदार भगत सिंह उन्ही सच्चे सपूतों में से एक हैं। भगत सिंह ने अपने जीवन की आहुति देकर ये सिद्ध कर दिया कि वे भारत माता के सच्चे सपूत थे। भगत सिंह सिर्फ क्रांतिकारी ही नही थे बल्की उनके व्यक्तित्व के और भी पहलु ऐसे हैं, जो उन्हे महान बनाते हैं। विलक्षण प्रतिभा के धनी भगत सिंह भारतीय क्रांति के दार्शनिक तथा सुलझे हुए लेखक भी थे। 1930 में उन्होने संपादक मॉर्डन रिव्यु के नाम से एक पत्र लिखा था। जो भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज के नाम से संकलित है। इस पत्र में भगत सिंह ने क्रांति के प्रति अपने दृष्टीकोंण को व्यक्त किया था। उनके अनुसार " क्रांति (इंकलाब) का मतलब अनिवार्य रूप से सशत्र आंदोलन नही होता। विद्रोह को क्रांति नही कहा जा सकता, यद्यपि ये हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो।"

जन आंदोलन के प्रति भगत सिंह का दृष्टीकोंण बहुत स्पष्ट था। 1929 में लाहौर के ट्रिब्युन में प्रकाशित विद्यार्थियों के नाम पत्र लिखते हुए कहा था कि, " हम इस समय विद्यार्थियों से  बम और पिस्तौल उठाने को नही कह सकते उनके सामने और भी महत्वपूर्ण कार्य हैं। भगत सिंह का एक महत्वपूर्ण गुंण था उनका लचिलापन जिसके कारण वो रुढीवादी, अढियल स्वभाव के नही थे। महात्मा गाँधी के विचारों से मतभेद रखने के बावजूद वे कांग्रेस द्वारा संचालित जन-आंदोलन में बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। अपनी गिरफ्तारी के दौरान उन्होने भूख हङताल जैसे शस्त्र को भी अपनाया। यद्यपि ये अस्त्र गाँधी जी का था, लेकिन जेल में कैदियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए इस अस्त्र को भी अपनाने में भगत सिंह ने  संकोच नही किया। भगत सिंह जेल में भूख हङताल के दौरान इतने प्रसिद्ध हो गये थे कि 30 जून 1929 को पूरे देश में भगत सिंह दिवस मनाया गया था। लाला लाजपत राय से भगत सिंह का संबध क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का दिलचस्प अध्याय है। वैचारिक भेद होने के बावजूद भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मृत्यु को राष्ट्रीय अपमान समझा और उन्होने योजनाबध तरीके से इस राष्ट्रीय अपमान का बदला भी लिया। देशप्रेम का ज्वार उनके रग-रग में समाया हुआ था। उनका कहना था कि, मेरे जज़बातों से इस कदर वाकिफ है कलम मेरी कि, इश्क भी लिखना चाहुँ तो इंकलाब लिख जाता है। 

भगत सिंह को जेल में अमानविय यातनाओं से गुजरना पडा था फिर भी उनके चेहरे पर शिकन नही रहती थी।इंकलाब जिंदाबाद का नारा सदैव बुलंद आवाज में गुंजायमान करते थे।  न्यायालय में जब भगत सिंह पर अभियोग की चर्चा हो रही थी तब उनके समर्थक उन्हे लाहौर जेल से छुडाने की योजना बना रहे थे लेकिन  भगत सिंह ने अपने समर्थकों को समझाया कि दो-चार व्यक्तियों के लिए मैं इतने अधिक लोगों का रक्तपात  नही देख सकता।  उनका कहना था कि व्यक्ति विशेष को महत्व न देकर राष्ट्र के स्वतंत्रता आंदोलन को महत्व देना चाहिए। सरदार भगत सिंह की जिंदगी, क्रांतिकारी रणनितियों को लेकर दुःसाहसिक प्रयोगों से भरी हुई थी। 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि,  आजादी के दौरान जन-मानस में क्रांति की चिंगारी जलाने वाले शहीद भगत सिंह का नाम भारत के भाल पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ है। भगत सिंह के बलिदान ने आजादी की जो आग जलाई थी उसकी तपन आज भी महसूस की जा सकती है। भगत सिंह शौहरत से प्रभावित होकर डॉ. पट्टासितारमैया ने कहा था कि, भगत सिंह का नाम उतना ही लोकप्रिय है जितना गाँधी जी का। भगत सिंह के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, उनकी शहादत पर गाँधी जी एवं नेहरु जी ने भी अंग्रेजों की नीति की घोर निंदा की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तो यहाँ तक कहा था कि, अंग्रेजों ने बिना जाँच-पङताल के ही उन्हे फाँसी दे दी, जो अन्याय की पराकाष्ठा है। 

23 मार्च को सुखदेव एवं राजगुरु के साथ भगत सिंह को फांसी दे दी गई थी। भारत माता के ये सच्चे सपूत इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए खुशी-खुशी भारत माता की गोद में समा गये। अनेक युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भगत सिंह , राजगुरु एवं सुखदेव की शहादत को इतिहास कभी भुला नही सकता। उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

इंकलाब जिंदाबाद 
सुखदेव, राजगुरु तथा भगतसिंह के बारे में अधिक पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

शहीद दिवसः जरा याद करो कुर्बानी






1 comment:

  1. शहीदों की चिताओ पे लगेंगे हर बरस मेले ...
    वतन पे मरनेवालो का यही बाकी निशाँ होगा ..!!

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