Saturday, 15 February 2020

मोबाइल दुनिया और सिमटता बचपन


आज हर तरफ मोबाइल जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। मोबाइल ने जहाँ दुनिया को छोटा कर दिया है, वहीं कुछ ऐसी समस्याओं को भी जन्म दे रहा है जिससे भारत का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। आज दो तीन वर्ष के बच्चों को भी मोबाइल का इस्तमाल करते बहुतायत में देखा जा सकता है और अनेक अभिभावकों को ये कहते भी सुना जा सकता है कि, उनका बच्चा मोबाइल देखे बिना खाना नही खाता या वो मोबाइल के लिये बहुत जिद्द करता है।

दोस्तो, ये वो उम्र होती है जिसमें क्या अच्छा है क्या बुरा है समझना नामुमकिन है। ऐसे में मन में ये प्रश्न आना भी लाज़मी है कि, इतने छोटे बच्चे के सामने मोबाइल रूपी जिन्न प्रकट कहां से हुआ। स्वाभाविक है कि, ये जिन्न परिवार के सभी सदस्यों के हांथ में हर पल विराजमान है। मानते हैं कि, मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है, लेकिन इससे बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अफसोस तो इस बात का है कि मोबाइल रूपी जिन्न से छुटकारा पाने के लिये कोई दवा भी नही बनी है, जिसको बच्चों को खिलाकर उनकी आदत को छुङा दिया जाये। बच्चों में ये जिन्न नित नये विकार (जैसे- जिद्दीपना, चिङचिङापन और अनिन्द्रा) उत्पन्न कर रहा है। इस विकार का उपचार यही है कि, बच्चों को मोबाइल जिन्न से दूर किया जाये। जो आज की तेज भागती दुनिया में कुछ अभिभावकों को असंभव सा लगता है किंतु यदि अभिभावक ठान लें कि हम अपने बच्चे को इस जिन्न से मुक्त करा सकते हैं, तो दुनिया की कोई भी ताकत आपके बच्चे को इस दुष्प्रभाव के जाल में नहीं फंसा सकती। 

कहते हैं, बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें जैसा आकार दो वो वैसा ढल जाते हैं। वे अपने आसपास के माहौल से ही सीखते हैं। जैसा व्यवहार उन्हें अपने आसपास मिलता है वो वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। ये कहना अतिश्योकति न होगा कि, बच्चे कहना सुनने में इतने सफल नही होते जितना अनुकरण करने में सफल होते हैं। इसलिये हम बच्चों से जो चाहते हैं उसको हमें अपने व्यवहार में अमल करना होगा। दरअसल बच्चे जब देखते हैं कि अधिकतर समय मेरे अभिभावक मोबाइल में उलझे रहते हैं, तो उन्हें लगता है कि शायद मोबाइल मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है, इसलिए वह भी मोबाइल में खोने लगता है। कई बार तो बच्चे को मोबाइल नहीं चाहिये होता है वो अपने माता-पिता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भी चिल्लाने या गुस्से जैसी हरकत करता है। परंतु हम लोग समझते हैं कि बच्चे को मोबाइल चाहिये और उसको मोबाइल देकर निश्चिंत हो जाते हैं और अनजाने में ही एक खतरनाक आदत को बढावा दे देते हैं। फिर जब बच्चे पर मोबाइल का जिन्न हावी हो जाता है तो सबसे उसकी शिकायत करते हैं। मित्रों, अपने बच्चे की कोई भी गलत आदत की शिकायत कभी भी किसी से नहीं करना चाहिये। इससे बच्चे का बालमन अत्यधिक क्रोधित होता है और वह अधिक जिद्दी होता है। अतः जो गलत आदत हम अभिभावकों की वजह से बच्चे में आई है उसे सुधारना भी हमें ही चाहिए। बच्चे का जिद्द करना या गुस्सा करना हमेशा गलत नही होता। कई बार वो अपने अभिभावक पर अपना अधिकार समझते हैं इसलिये भी करते हैं। ऐसी स्थिती में उनको डांटने या मारने से परहेज करना चाहिये। बच्चा जब ज्यादा ही नाराज या जिद्द करे तो उसे गोद में लेकर प्यार करें उसके मूड को डाइवर्ट करें। कहते हैं प्यार की ताकत से तो पत्थर भी पिघल जाता है वो तो बच्चा है, माता-पिता का प्यार भरा स्पर्ष उसके लिये सबसे बङा उपहार होता है। आज की अत्याधुनिक जीवन शैली में बच्चों को सबसे ज्यादा माता-पिता 
के प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। उनको कहानियां सुनायें, हो सके तो कहानियों को अभिनय के माध्यम से भी सुनायें। इससे बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल भी धीरे-धीरे बंद कर देगा। 

अलबर्ट आइंसटाइन ने कहा है कि, “यदि आप अपने बच्चे को बुद्धीमान बनाना चाहते हैं तो उन्हे परियों की कहानी सुनाएं। यदि उन्हे और अधिक बुद्धीमान बनाना चाहते हैं तो उन्हे और अधिक परियों की कहानी सुनाएं।“

बच्चे का घरेलू कामों में सहयोग लें, इससे बच्चा आत्मनिर्भर बनेगा और कुछ व्यवहारिक चीजें भी सीखेगा। बच्चे का सहयोग लेते समय उसे ये एहसास करायें कि उसकी वजह से काम जल्दी हो गया।

मित्रों, ये भी सच है कि, कोई भी आदत एक ही बार में नहीं छूटती किंतु धीरे-धीरे बच्चो के टीवी व मोबाईल देखने के समय को कम करके इस आदत को दूर किया जा सकता है। आज समय की माँग है कि, एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय हम सब मिलकर हर बच्चे को उसका बचपन लौटाएं, मिलकर एक बेहतर कल बनायें। क्योंकि बचपन तो उस कोरी किताब की तरह है जिसपर जो चाहो लिखा जा सकता है। कहते हैं, इमारत वही मजबूत होती है जिसकी नींव मजबूत हो, यही नियम बच्चों के विकास पर भी लागू होता है। अच्छे संस्कारों से बनी बचपन की नींव सभ्य और सुसंस्कृति युवा का आधार है।

नेहरु जी के कथन के साथ अपनी कलम को विराम देते हैं और सभी युवा अभिभावकों से अनुरोध करते हैं कि, डांटने और मारने जैसी गलतियां आप लोग मत करिये क्योंकि क्रोध पूर्ण प्रतिक्रिया किसी भी समस्या का समाधान नही है खास तौर से बच्चे की आदत सुधारने में तो किसी जहर से कम नही है। अतः धैर्य के रथ पर सवार होकर सकारत्मक विश्वास के साथ बच्चे को खुशनुमा माहौल दिजिये

नेहरु जी का कथन हैः- “Children are likes buds in a garden and should be carefully and lovingly nurtured, as they are the future of the Nation and citizens tomorrow.”


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बदलता बचपन जिम्मेदार कौन????

आज के बालक भारत का भविष्य हैं